गोण्डा लाइव न्यूज एक प्रोफेशनल वेब मीडिया है। जो समाज में घटित किसी भी घटना-दुघर्टना "✿" समसामायिक घटना"✿" राजनैतिक घटनाक्रम "✿" भ्रष्ट्राचार "✿" सामाजिक समस्या "✿" खोजी खबरे "✿" संपादकीय "✿" ब्लाग "✿" सामाजिक "✿" हास्य "✿" व्यंग "✿" लेख "✿" खेल "✿" मनोरंजन "✿" स्वास्थ्य "✿" शिक्षा एंव किसान जागरूकता सम्बन्धित लेख आदि से सम्बन्धित खबरे ही निःशुल्क प्रकाशित करती है। एवं राजनैतिक , समाजसेवी , निजी खबरे आदि जैसी खबरो का एक निश्चित शुल्क भुगतान के उपरान्त ही खबरो का प्रकाशन किया जाता है। पोर्टल हिंदी क्षेत्र के साथ-साथ विदेशों में हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है और भारत में उत्तर प्रदेश गोण्डा जनपद में स्थित है। पोर्टल का फोकस राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों को उठाना है और आम लोगों की आवाज बनना है जो अपने अधिकारों से वंचित हैं। यदि आप अपना नाम पत्रकारिता के क्षेत्र में देश-दुनिया में विश्व स्तर पर ख्याति स्थापित करना चाहते है। अपने अन्दर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर एक नई पहचान देना चाहते है। तो ऐसे में आप आज से ही नही बल्कि अभी से ही बनिये गोण्डा लाइव न्यूज के एक सशक्त सहयोगी। अपने आस-पास घटित होने वाले किसी भी प्रकार की घटनाक्रम पर रखे पैनी नजर। और उसे झट लिख भेजिए गोण्डा लाइव न्यूज के Email-gondalivenews@gmail.com पर या दूरभाष-8303799009 -पर सम्पर्क करें।

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी

beerabal-saahanee


बीरबल साहनी का जन्म नवंबर, 1891 को पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के शाहपुर जिले के भेड़ा नामक एक छोटे से व्यापारिक नगर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके पिता रुचि राम साहनी रसायन के प्राध्यापक थे। उनका परिवार वहां डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो कर बस गया था।

शिक्षा-

प्रोफेसर रुचि राम साहनी ने उच्च शिक्षा के लिए अपने पांचों पुत्रों को इंग्लैंड भेजा तथा स्वयं भी वहां गए। वे मैनचेस्टर गए और वहां कैम्ब्रिज के प्रोफेसर अर्नेस्ट रदरफोर्ड तथा कोपेनहेगन के नाइल्सबोर के साथ रेडियोसक्रियता पर अन्वेषण कार्य किया। प्रथम महायुद्ध आरंभ होने के समय वे जर्मनी में थे और लड़ाई छिड़ने के केवल एक दिन पहले किसी तरह सीमा पार कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचने में सफल हुए। वास्तव में उनके पुत्र बीरबल साहनी की वैज्ञानिक जिज्ञासा की प्रवृत्ति और चारित्रिक गठन का अधिकांश श्रेय उन्हीं की पहल एवं प्रेरणा, उत्साहवर्धन तथा दृढ़ता, परिश्रम औरईमानदारी को है। इनकी पुष्टि इस बात से होती है कि प्रोफेसर बीरबल साहनी अपने अनुसंधान कार्य में कभी हार नहीं मानते थे, बल्कि कठिन से कठिन समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। इस प्रकार, जीवन को एक बड़ी चुनौती के रूप में मानना चाहिए, यही उनके कुटुंब का आदर्श वाक्य बन गया था।

इनको १९१९ ई. में लन्दन विश्वविद्यालय से और १९२९ ई. में केंब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि मिली थी। भारत लौट आने पर ये पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। १९३९ ई. में ये रॉयल सोसायटी ऑव लन्दन के सदस्य (एफ.आर.एस.) चुने गए और कई वर्षों तक सायंस कांग्रेस और नेशनल ऐकेडेमी ऑव सायंसेज़ के अध्यक्ष रहे। इनके अनुसंधान जीवाश्म (फॉसिल) पौधों पर सबसे अधिक हैं। इन्होंने एक फॉसिल 'पेंटोज़ाइली' की खोज की, जो राजमहल पहाड़ियों में मिला था। इसका दूसरा नमूना अभी तक कहीं नहीं मिला है। हिंदू विश्वविद्यालय से डा. साहनी लाहौर विश्वविद्यालय गए, जहाँ से लखनऊ में आकर इन्होंने २० वर्ष तक अध्यापन और अन्वेषण कार्य किया।

ये अनेक विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सदस्य थे। लखनऊ में डा. साहनी ने पैलिओबोटैनिक इंस्टिट्यूट की स्थापना की, जिसका उद्घाटन पं. जवाहरलाल ने १९४९ ई. के अप्रैल में किया था। पैलिओबोटैनिक इंस्टिट्यूट के उद्घाटन के बाद शीघ्र ही साहनी महोदय की मृत्यु हो गई। इन्होंने वनस्पति विज्ञान पर पुस्तकें लिखी हैं और इनके अनेक प्रबंध संसार के भिन्न भिन्न वैज्ञानिक जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं। डा. साहनी केवल वैज्ञानिक ही नहीं थे, वरन् चित्रकला और संगीत के भी प्रेमी थे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने इनके सम्मान में 'बीरबल साहनी पदक' की स्थापना की है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को दिया जाता है। इनके छात्रों ने अनेक नए पौधों का नाम साहनी के नाम पर रखकर इनके नाम को अमर बनाए रखने का प्रयत्न किया है।

बीरबल साहनी की खोज-

इंडियन पैलियोबॉटनी का जनक (father of indian paleontology ) ने अपने समस्त जीवन शोध में बीता दिया। इनका ज्यादातर  अनुसंधान जीवाश्म (फॉसिल) वनस्पति पर रहा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम करने वाले पुरावनस्पति वैज्ञानिक बीरबल साहनी ने फॉसिल ‘पेंटोज़ाइली’ की खोज की थी। उन्होंने फॉसिल ‘पेंटोज़ाइली’ की खोज तत्कालीन बिहार के राजमहल की पहाड़ियों से की थी। सूक्ष्म जीवाश्मों पर उनकी खोज के कारण दुनियाँ भर के वैज्ञानिकों ने उनकी प्रशंसा की थी।

बीरबल साहनी का योगदान -

महान अवशेष वनस्पति वैज्ञानिक बीरबल साहनी को उनके अमूल्य योगदान के लिए हमेशा याद किया जायेगा। उन्होंने वनस्पति अवशेषों पर शोध के लिए पुरा विज्ञान संस्थान की स्थापना की।

इस संस्थान की नींव भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। यह संस्थान ‘बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैलियोबॉटनी’ के नाम से लखनऊ में स्थित है।

उनकी इच्छा थी की भारत में एक पुरा-वनस्पति संस्थान की स्थापना की जाय। इसके लिये उन्होंने जी-जान से प्रयास किया। उनके प्रयास के फलसरूप ही लखनऊ में बीरबल साहनी पूरा विज्ञान संस्थान (इंस्टीट्यूट ऑफ़ पलेओबॉटनी) की स्थापना संभव हो सकी।

उन्होंने प्राचीन नदी घाटी अर्थात सिन्धु घाटी, हङप्पा, मोहनजोदङो के अनेकों स्थल पर जाकर शोध किया। इन्होंने बिहार के राजमहल की पहाङियों से भी अवशेष प्राप्त कर शोध किया।

इस प्रकार इन्होंने अनेक वनस्पतियों पर शोध कर विश्व को कई महत्वपूर्ण जानकारी दी। बीरबल साहनी ने भारतवर्ष के कई दुर्लभ वनस्पतियों से विश्व को अवगत कराया। उन्होंने रोहतक के पास ईसा से 100 साल पहले के राजाओं के टकसाल के बारे में भी अनुसंधान किए।

इस प्रकार वनस्पति विज्ञानी डॉ. बीरबल ने अपने शोध के बल पर भारत को विश्व पटल पर गौरान्वित करने का कार्य किया। बीरबल साहनी पूरा वनस्पति विज्ञान संस्थान

सम्मान व पुरस्कार-
बीरबल साहनी को उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार से अलंकृत किया गया।
  • सन 1929 ईस्वी में कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञान वाचस्पति की उपाधि प्रदान की गई।
  • सन 1936 में इन्हें प्रसिद्ध संस्थान रॉयल सोसाइटी द्वारा अपना फ़ेलो (सदस्य) मनोनीत किया गया।
  • बीरबल साहनी दो वार 1937-1939 एवं 1943-1944 के बीच भारत के राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष रहे।
  • सन 1948 में वे अमेरिका की कला एवं विज्ञान अकादमी के सदस्य रहे।
  • सन 1950 में वे अंतर्राष्ट्रीय वानस्पतिक कांग्रेस, स्टाॅकहोम के अध्यक्ष रहे।
मृत्यु-
वनस्पति विज्ञान के लिए अपने सारी जिंदगी को समर्पित करने वाले इस महान वैज्ञानिक ने बिश्व को कई महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। लेकिन हार्ट अटेक के कारण 10 अप्रैल 1949 ईस्वी में लखनऊ में इनका अचानक निधन हो गया।

उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सावित्री ने उनके काम को आगे बढ़ाया। बीरबल साहनी सिर्फ पुरावनस्पति विज्ञानी ही नहीं थे, बल्कि वे एक महान भूविज्ञानी और पुरातत्ववेता भी थे। उन्हें ‘भारत के प्रथम जुरासिक वैज्ञानिक‘ के रूप में हमेशा याद रखा जायेगा।

उनका मानना था की वैज्ञानिक अध्ययनों एवं अनुसंधानों का उपयोग मानव प्रगति एवं विकास में किया जाय। बीरबल साहनी उम्र भर जीवशम विज्ञान को समर्पित कर दिया।


No comments:

Post a Comment

कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।

अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।

”go"