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वैज्ञानिक लालजी सिंह की जीवनी

 
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डॉ लालजी सिंह कुलपति बनारस हिंदू विश्वविद्यालय"" (5 जुलाई 1947 – 10 दिसम्बर 2017) हैदराबाद स्थित 'कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र' (CCMB) के भूतपूर्व निदेशक थे। सम्प्रति वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वह भारत के नामी नू-जीवविज्ञानी थे। लिंग निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगरप्रिंटिंग, वन्यजीव संरक्षण, रेशमकीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि उनकी रुचि के प्रमुख विषय रहे।

जीवन परिचय-

उत्तर प्रदेश में जौनपुर जिले के सदर तहसील एवं सिकरारा थाना क्षेत्र के कलवारी गांव के निवासी स्व॰ ठाकुर सूर्य नारायण सिंह के पुत्र के रूप में पांच जुलाई 1947 को डॉ॰ लालजी सिंह का जन्म हुआ था। इण्टरमीडियेट तक शिक्षा जिले में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिये 1962 में श्री सिंह बीएचयू गये जहां पर उन्होंने बीएससी एमएससी व पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1971 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे कोलकाता गये जहां पर साइंस में 1974 तक एक फोलोशिप के तहत रिसर्च किया। इसके बाद वे छह माह की फोलोशिप पर यू॰के॰ गये और तीन माह की बढोत्तरी लेकर नौ माह बाद वापस भारत आये। जून 1987 में सीसीएमबी हैदराबाद में वैज्ञानिक पद पर कार्य करने लगे और 1998 से 2009 तक वहां का निदेशक रहे।

पद्मश्री से सम्मानित -

इसे अद्भुत संयोग भी कहेंगे कि लालजी सिंह ने जहां से शिक्षा-दीक्षा ली वहीं उन्होंने अंतिम सांस भी ली। कुलपति के कार्यकाल के दौरान वह मात्र एक रुपये वेतन लिया करते थे। इंटरमीडिएट तक शिक्षा जौनपुर जिले में लेने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1962 में श्री सिंह बीएचयू चले आए थे। यहां से उन्होंने बीएससी, एमएससी और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। 2004 में उन्हें भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

500 से ज्यादा मामलों में मिला न्याय-

डीएनए वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह के व्याख्यानों ने डीएनए फिंगर प्रिंटिंग को विधिक वैधता दिलवाकर 500 से अधिक प्रकरणों को सफलता पूर्वक सुलझाया है। इस तकनीक से राजीव गांधी हत्याकांड, मेरी बनाम लक्ष्मी कांड, मद्रास उच्च न्यायालय का गुम शुदा बच्चों का मामला, टेलीचेरी, केरल का पितृत्व विवाद, नैना साहनी तंदूर हत्या कांड, बेअंत सिंह हत्या कांड, प्रियदर्शनी मट्टू हत्याकांड स्वामी श्रद्धानन्द प्रकरण में फैसला मिल सका।

पैतृक गांव में जीनोम फाउंडेशन प्रयोगशाला की स्थापना-
डीएनए वैज्ञानिक डॉ. लालजी सिंह ने अपने पैतृक गांव कलवारी में जीनोम फाउंडेशन प्रयोगशाला की स्थापना किया। साथ ही उसी कैंपस में राहुल पीजी कालेज भी स्थापित किया ,जहां साइन्स व आर्ट ग्रुप की पढ़ाई होती है। उनको 85 अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार व सम्मान दिए गए हैं,जिसमें 2004 में पद्मश्री, 2009 में सीएसआईआर फेलोशिप ,2010 में बीपी पाल  मेमोरियल अवार्ड, 2011 में मेरोटोरियस इवेंशन अवार्ड आदि प्रमुख पुरस्कार हैं।



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