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हनुमान चालीसा में सूर्य से पृथ्वी की दूरी बताई गयी है ?

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यह निस्संदेह सत्य है कि ” हनुमान चालीसा” में पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी का उल्लेख है । मॉडरेन एस्ट्रोनॉमी एंड साइंस के अनुसार, हम जानते हैं कि सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा एक वृत्त नहीं है और थोड़ा अण्डाकार है । इसलिए, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी पूरे वर्ष बदलती रहती है। सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा दीर्घवृत्त पर अपने निकटतम बिंदु पर, पृथ्वी सूर्य से 91,445,000 मील (147,166,462 किलोमीटर) दूर है। पृथ्वी की कक्षा में इस बिंदु Periapsis (के रूप में जाना जाता है नेपच्यून ) और यह जनवरी 3 के आसपास होता। पृथ्वी 3 जुलाई के आसपास सूर्य से सबसे दूर है जब यह सूर्य से 94,555,000 मील (152,171,522 किमी) दूर है। पृथ्वी की कक्षा में इस बिंदु को  Apoapsis कहा जाता है।  पृथ्वी से सूर्य की औसत दूरी 92,955,807 मील (149,597,870.691 किमी) है।
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हनुमान चालीसा में उल्लिखित सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी:-

रिकॉर्ड्स के अनुसार, 1672 में पहली बार जीन रिचर और जियोवानी डोमेनिको कैसिनी ने दूरी नापी, पृथ्वी और सूर्य के बीच पृथ्वी की त्रिज्या का 22,000 गुना है। (पृथ्वी की त्रिज्या 6,371 किलोमीटर है)। यानी 22000 * 6371 किलोमीटर = 140,162,000 किलोमीटर (140 मिलियन किलोमीटर)। हिंदू प्रार्थना की दो पंक्तियाँ “हनुमान चालीसा” इस दूरी की गणना बड़ी सरलता से करती हैं।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

यह दोहा अवधी भाषा में है इस दोहे का हिंदी भाषा में अर्थ है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।

दोहे के हर एक शब्द के गणित को वैदिक ज्योतिष के आधार पर ऐसे समझिए-
सतयुग = 4800 दिव्य वर्ष
त्रेतायुग = 3600 दिव्य वर्ष
द्वापरयुग = 2400 दिव्य वर्ष
कलियुग = 1200 दिव्य वर्ष

जुग( युग) = 12000 वर्ष
एक सहस्त्र = 1000
एक जोजन (योजन) = 8 मील
भानु = सूर्य

युग x सहस्त्र x योजन = पर भानु यानि सूर्य की दूरी
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
एक मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 153600000 किमी
इसी के आधार गोस्वामी तुलसीदास ने बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।
 

दोहे का पूरा प्रसंग इस प्रकार है-

हनुमानजी को भगवान शंकर का अवतार माना गया है और उनको जन्म से ही कई दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। हनुमान चालीसा के अनुसार बहुत छोटी अवस्था में जब बाल हनुमान खेल रहे थे, तब उन्हें सूरज ऐसे दिखाई दे रहा था जैसे वह कोई मीठा फल हो। उस फल को प्राप्त करने के लिए बाल हनुमान सूर्य तक उड़कर चले गए। अपनी दिव्य शक्तियों के बल से उन्होंने अपना आकार इतना बड़ा कर लिया कि सूर्य उनके मुंह में समा गया। सभी देवी- देवता जब डर गए तब इंद्र ने बाल हनुमान की ठोड़ी पर वज्र से प्रहार कर दिया। इस प्रहार से केसरी नंदन की ठोड़ी कट गई और इसी वजह से वे हनुमान कहलाए। संस्कृत में ठोड़ी को हनु कहा जाता है।

सूर्य से पृथ्वी की दूरी को 1AU (astronomical unit) कहा जाता है , जो 149,597,870,700 मीटर  के बराबर है। ये दूरी आज के आधुनिक उपकरणों से नापी गयी है ।

अब अगर हम इस से ये समझें की तुलसीदास जी ने सूर्य से पृथ्वी की दूरी का वर्णन हनुमान चालीसा में कर दिया, तो ये आस्था के हिसाब से गलत नहीं है। दोनों दूरियां लगभग एक सामान ही हैं।

कुछ व्यक्ति इस हिसाब को संशय की दृष्टी से देखते हैं।  उनका ये मानना है कि इन तीनो अंकों में केवल सहस्र ही एक ऐसा अंक है जिसका मान बिना किसी संशय के 1000 बताया जा सकता है । युग और योजन का मान अलग अलग पुस्तकों में अलग अलग दिया गया है । कोई व्यक्ति युग का 12000 वर्ष का बताता है, तो कोई 1200 दिव्य वर्ष का और एक दिव्य वर्ष का पृथ्वी के 360 वर्षों के बराबर भी बताया गया है ।

विकिपीडिया पर एकत्रित जानकारी के अनुसार चारों युगों की अवधि अलग अलग है , कलियुग 1200 दिव्य वर्ष , द्वापर युग 2400 दिव्य वर्ष , त्रेता युग 3600 दिव्य वर्ष और सतयुग 4800 दिव्य वर्ष के बताये गए हैं । इस प्रकार चारों युगों को मिला कर बनने वाला एक महा-युग 12000 दिव्य वर्षों के बराबर बनता है , जिसका उल्लेख हनुमान चालीसा की इस चौपाई में हुआ है । हालांकि इस चौपाई में "महा-युग" शब्द का प्रयोग न करके केवल "युग" शब्द का प्रयोग हुआ है। किन्तु एक कवि को पंक्तियों में ताल मेल बिठाने के लिए शब्दों में इतना हेर फेर तो करना ही पड़ता है।

योजन एक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसे दूरी नापने के लिए वैदिक काल से उपयोग किया जा रहा है | अलग अलग समय और स्थान पर इसकी लम्बाई अलग अलग पाई गई है।  वैसे एक योजन को 4 कोस के बराबर माना जाता है , और कोस लगभग 2 से 3.5 km का होता है।  इस प्रकार योजन की लम्बाई 12 से 15 km के बराबर होती है । अर्थशास्त्र में दिए गए तथ्यों के अनुसार योजन की सर्वमान्य लम्बाई 12.3 km है ।

इन तीनो अंकों की गुणा से जो अंक प्राप्त होता है वह सूर्य की लगभग औसत दूरी ही है।

अब यदि हम थोडा और गहराई में जाएँ तो ये प्रश्न मन में उठता है की क्या गोस्वामी तुलसीदास जी ने पृथ्वी से सूर्य की दूरी की गणना करी थी। इस का बड़ा सरल सा जवाब है , नहीं । तुलसीदास जी सोलहवी सदी के कवि थे , जो केवल 500 साल पुरानी बात है । उस समय से पहले ही बहुत से खगोलीय खोजें हो चुकी थी । वैसे भी भारत वैदिक काल से ही महान विद्वानों और गणितज्ञों की भूमि रही है। शून्य की खोज से लेकर ज्यामिति (Geometry) तक की खोज में इनका योगदान रहा है। इसलिए सूर्य की दूरी भी इस समय से पहले ही भारतीय विद्वानों ने खोज ली होगी , जिसका वर्णन तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में किया है।

लगभग 250 BC में Aristarchus नामक ग्रीक विद्वान ने सूर्य की दूरी खोज ली थी और सन 1653 में पश्चिमी विद्वान Christiaan Huygens ने भी यह खोज की थी | पुराने समय में अपनी खोजों को पेटेंट (Patent) कराने की कोई व्यवस्था नहीं थी , अन्यथा भारतीय विद्वानों के नाम अनगिनत और खोजों के पेटेंट होते।

हनुमान चालीसा की चौपाई से ये प्रमाणित होता है की भारत के विद्वानों को सूर्य की दूरी ज्ञात थी और शायद यह पुराने गुरुकुलों में पढाई भी जाती थी , इसीलिये गोस्वामी तुलसीदास ने इतनी सरलता से इसे पंक्तिबद्ध भी कर दिया।



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