प्राचीन काल की बात है, जब मनुष्य धान (चावल) से अनभिज्ञ था । कुछ मनुष्यों ने अपनी राह जाते हुए एक पोखर मे धान का पौधा देखा । वे इस आकर्षक वस्तु को निकालने का प्रयत्न करने लगे । किन्तु पोखर अधिक गहरा होने के कारण वे उस पौधे तक पहुँचने मे असमर्थ हो गये ।
अतः उऩ्होने चूहे को धान लाने के लिये भेजा । चूहा अपने आकार के कारण सरलता से पोखर मे चला गया और धान का पौधा लेकर आ गया ।
मनुष्यों ने उस पौधे से धान की खेती की । फ़सल तैयार होने पर उऩ्होने चूहे से कहा कि वह आकर अपना हिस्सा ले जाए । चूहे ने उत्तर दिया, 'नहीं, हम इतना धान ले जाने मे असमर्थ हैं क्योंकि हमारे सिर बहुत छोटे हैं, आप इसके स्थान पर हमे कृपा करके प्रतिदिन थोड़ा सा धान खाने की अनुमति दें ।'
मनुष्य ने चूहे के उपकार का ऋण चुकाते हुए, उसे प्रतिदिन थोड़ा सा धान खाने का वचन दिया । इस प्रकार तबसे चूहे, मनुष्यों द्वारा उगाया धान खाते चले आ रहे हैं ।
चूहे धान क्यों खाते हैं? ('आओ' कथा): नागा लोक-कथा
प्राचीन काल में, जब मनुष्य चावल से अनभिज्ञ था, चूहा उसका मित्र हुआ करता था। एक दिन चूहे ने मानव से कहा, 'मैं तुम्हें एक स्वादिष्ट उपहार दूँगा, यदि तुम मुझे वचन दो कि तुम मेरी मृत्यु के पश्चात मेरा अन्तिम संस्कार उच्च कोटि का करोगे।' मानव ने चूहे को उसका उच्च कोटि का अन्तिम सन्स्कार करने का वचन दिया । वचन के बदले मे चूहे ने उसे धान उपहार मे दिया तथा उसकी विशेषताएं बताते हुए उसके स्वादिष्ट होने का प्रमाण दिया।
कुछ समय पश्चात, मानव के वचन को परखने की दृष्टि से चूहे ने एक नाटक रचा। वह नदी के किनारे गया और मृत के समान लेट गया। थोड़ी देर बाद मानव अपने पुत्र के साथ नदी के किनारे टहलने के लिये आया। उसके पुत्र ने मृत चूहा देखा और अपने पिता का ध्यान उस ओर आकर्षित करवाया। मानव ने अपना वचन पूर्ण करने के स्थान पर कहा, 'क्या? मरा हुआ चूहा!' ऐसा कह कर, उसने घृणा से चूहे को लकड़ी की छड़ी से उठाया और नदी में फेंक दिया। चूहा, जो वास्तव मे जीवित था, कूद कर बाहर आ गया और् क्रोध मे चिल्लाया, 'मानव! तेरे विश्वासघात के बदले में तेरा उगाया धान सदैव सबसे पहले मैं खाऊँगा और अपना शौच छोड़ जाऊँगा।' ऐसा बोलकर उसने ब्रह्मपुत्र नदी मे छलांग लगा दी।
परिणाम स्वरूप मनुष्य के विश्वासघात का बदला लेने के लिये चूहे चावल खाते हैं।
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