स्त्रियां कितने प्रकार की होती है उनके लक्षण क्या होते है उनका स्वाभाव कैसा होता है इन बारे में काफी कुछ लिखा गया है। हिंदू धर्म में स्त्री को देवी का रूप माना गया है, ये माना जाता है कि जिस घर में स्त्री की इज्जत होती है और उसे सुखी रखा जाता है उस घर में माता लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। वहीं जिस घर में नारी का सम्मान नहीं होता और उसे पीड़ा पहुंचाई जाती है ऐसे घर से माता लक्ष्मी दूरियां बना लेती हैं। जिस घर से माता लक्ष्मी दूर हो जाती हैं उस घर के सदस्यों को आर्थिक परेशानियों का तो सामना करना ही पड़ता है इसके साथ ही उसे अन्य प्रकार की पीड़ाएं भी सहनी पड़ती हैं।किसी भी मनुष्य के शरीर की बनावट उसकी चाल-ढाल, आवाज और चरित्र से उसका भाग्य भी बताया जा सकता है। यहीं नहीं इस शास्त्र में स्त्री-पुरुष के विभिन्न प्रकार भी बताए गए हैं, किन्तु फिर भी इन ग्रंथों में स्त्रियों के लक्षणों का उल्लेख अधिक विस्तृत मिलता है। हो सकता है इसी कारण, स्त्रियों के विषय में ये कहा जाता है कि उन्हें समझना बहुत कठिन होता है। और हमारे ऋषियों ने इस विषय में उल्लेख अधिक विस्तृत रूप से किया है। आज हम आपको ज्योतिष में बताए गए स्त्रियों के विभिन्न प्रकार और सधवा (सुहागन), विधवा स्त्रियों के लक्षणों के विषय में बताते हैं।
शंखिनी स्वभाव की स्त्रियां-
- शंखिनी स्वभाव की स्त्रियां अन्य स्त्रियों से थोड़ी लंबी होती हैं। इनमें से कुछ मोटी और कुछ दुर्बल होती हैं। इनकी नाक मोटी, आंखें अस्थिर और आवाज गंभीर होती है। ये हमेशा अप्रसन्न ही दिखाई देती हैं और बिना कारण ही क्रोध किया करती हैं।
- ये पति से रूठी रहती हैं, पति की बात मानना इन्हें गुलामी की तरह लगता है। इनका मन सदैव भोग-विलास में डूबा रहता है। इनमें दया भाव भी नहीं होता। इसलिए ये परिवार में रहते हुए भी उनसे अलग ही रहती हैं। ऐसी स्त्रियां संसार में अधिक होती हैं।
- ऐसी लड़कियां चुगली करने वाली यानी इधर की बात उधर करने वाली होती हैं। ये अधिक बोलती हैं। इसलिए लोग इनके सामने कम ही बोलते हैं। इनकी आयु लंबी होती हैं। इनके सामने ही दोनों कुल (पिता व पति) नष्ट हो जाते हैं। अंत समय में बहुत दु:ख भोगती हैं। ये उस समय मरने की बारंबार इच्छा करती हैं, लेकिन इनकी मृत्यु नहीं होती।
2. चित्रिणी(Chitrini)
- चित्रिणी स्त्रियां पतिव्रता, स्वजनों पर स्नेह करने वाली होती हैं। ये हर कार्य बड़ी ही शीघ्रता से करती हैं। इनमें भोग की इच्छा कम होती है। श्रृंगार आदि में इनका मन अधिक लगता है। इनसे अधिक मेहनत वाला काम नहीं होता, परंतु ये बुद्धिमान और विदुषी होती हैं।
- गाना-बजाना और चित्रकला इन्हें विशेष प्रिय होता है। ये तीर्थ, व्रत और साधु-संतों की सेवा करने वाली होती हैं। ये दिखने में बहुत ही सुंदर होती हैं।
- इनका मस्तक गोलाकार, अंग कोमल और आंखें चंचल होती हैं। इनका स्वर कोयल के समान होता है। बाल काले होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। यदि इनका जन्म गरीब परिवार में भी हो तो ये अपने भविष्य में पटरानी के समान सुख भोगती हैं।
- अधिक संतान होने पर भी इनकी लगभग तीन संतान ही जीवित रहती हैं, उनमें से एक को राजयोग होता है। इस जाति की लड़कियों की आयु लगभग 48 वर्ष होती है।
3. हस्तिनी (Hastini)
- इस जाति की लड़कियों का स्वभाव बदलता रहता है। इनमें भोग-विलास की इच्छा अधिक होती है। ये हंसमुख स्वभाव की होती हैं और भोजन अधिक करती हैं। इनका शरीर थोड़ा मोटा होता है। ये प्राय: आलसी होती हैं।
- इनके गाल, नाक, कान और व मस्तक का रंग गोरा होता है। इन्हें क्रोध अधिक आता है। कभी-कभी इनका स्वभाव बहुत क्रूर हो जाता है। इनके पैरों की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इनकी संतानों में लड़के अधिक होते हैं। ये बिना रोग के ही रोगी बनी रहती हैं। इनका पति सुंदर और गुणवान होता है।
- इनके गाल, नाक, कान और व मस्तक का रंग गोरा होता है। इन्हें क्रोध अधिक आता है। कभी-कभी इनका स्वभाव बहुत क्रूर हो जाता है। इनके पैरों की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं। इनकी संतानों में लड़के अधिक होते हैं। ये बिना रोग के ही रोगी बनी रहती हैं। इनका पति सुंदर और गुणवान होता है।
- अपने झगड़ालू स्वभाव के कारण ये परिवार को क्लेश पहुंचाती हैं। इनके पति इनसे दु:खी होते हैं। धार्मिक कार्यों के प्रति इनकी आस्था नहीं होती। इन्हें स्वादिष्ट भोजन पसंद होता है। इनकी परम आयु 73 वर्ष होती है। विवाह के 4, 8, 12 अथवा 16 वे वर्ष में इनके पति का भाग्योदय होता है। इनके कई गर्भ खंडित हो जाते हैं। इन्हें अपने जीवन में अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं, लेकिन इसका कारण भी ये स्वयं ही होती हैं। इनके दुष्ट स्वभाव के कारण ही परिवार में भी इनकी पूछ-परख नहीं होता है।
4. पुंश्चली (Punshchali) :
- पुंश्चली स्वभाव की लड़कियों के मस्तक का चमकीला बिंदु भी मलीन दिखाई देता है। इस स्वभाव वाली महिलाएं अपने परिवार के लिए दु:ख का कारण बनती हैं।
- इनमें लज्जा नहीं होती और ये अपने हाव-भाव से कटाक्ष करने वाली होती हैं। इनके हाथ में नव रेखाएं होती हैं जो सिद्ध (पुण्य, पद्म), स्वस्तिक आदि उत्तम रेखाओं से रहित होती हैं। इनका मन अपने पति की अपेक्षा पर पुरुषों में अधिक लगता है। इसलिए कोई इनका मान-सम्मान नहीं करता। सभी इनकी अपेक्षा करते हैं।
- पुंश्चली स्त्रियों में युवावस्था के लक्षण 12 वर्ष की आयु में ही दिखाई देने लगते हैं। इनकी आंखें बड़ी और हाथ-पैर छोटे होते हैं। स्वर तीखा होता है।
- यदि ये किसी से सामान्य रूप से बात भी करती हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे ये विवाद कर रही हैं। इनकी भाग्य रेखा व पुण्य रेखा छिन्न-भिन्न रहती है। इनके हाथ में दो शंख रेखाएं व नाक पर तिल होता है।
5. पद्मिनी (Padmini)
- समुद्र शास्त्र के अनुसार पद्मिनी स्त्रियां सुशील, धर्म में विश्वास रखने वाली, माता-पिता की सेवा करने वाली व अति सुंदर होती हैं। इनके शरीर से कमल के समान सुगंध आती है। यह लंबे कद व कोमल बालों वाली होती हैं। इसकी बोली मधुर होती है। पहली नजर में ही ये सभी को आकर्षित कर लेती हैं। इनकी आंखें सामान्य से थोड़ी बड़ी होती हैं। ये अपने पति के प्रति समर्पित रहती हैं।
- इनके नाक, कान और हाथ की उंगलियां छोटी होती हैं। इसकी गर्दन शंख के समान रहती है व इनके मुख पर सदा प्रसन्नता दिखाई देती है।पद्मिनी स्त्रियां प्रत्येक बड़े पुरुष को पिता के समान, अपनी उम्र के पुरुषों को भाई तथा छोटों को पुत्र के समान समझती हैं।
- यह देवता, गंधर्व, मनुष्य सबका मन मोह लेने में सक्षम होती हैं। यह सौभाग्यवती, अल्प संतान वाली, पतिव्रताओं में श्रेष्ठ, योग्य संतान उत्तपन्न करने वाली तथा आश्रितों का पालन करने वाली होती हैं।
- इन्हें लाल वस्त्र अधिक प्रिय होते हैं। इस जाति की लड़कियां बहुत कम होती हैं। जिनसे इनका विवाह होता है, वह पुरुष भी भाग्यशाली होता है।
6.आतुरा ( Atura)
इस तरह की स्त्रियां हमेशा हड़बड़ी में ही रहती हैं। प्रत्येक कार्य को शीध्र से शीघ्र पूरा करने का इनमें जुनून होता है। इसी करण से कई बार इनके काम बिगड़ भी जाते हैं। ये होती तो साधारण रूप-रंग वाली हैं लेकिन पति से बहुत प्रेम करती हैं। यदि इनके मन की कोई बात पूरी न हो तो पति से लड़ाई भी कर लेती हैं। इन्हें नए-नए मित्र बनाने का स्वाभाव होता है। इनके अधिकतम मित्र स्त्री ही होते हैं। ये धन संचय करने में कमजोर होती है। अपने मित्रों पर अधिक खर्च कर बैठती हैं।
7.डाकिनी स्त्रियों (Dakinie)
इस प्रकार की स्त्रियां मीठी-मीठी बातें करके अपना काम निकालना खूब अच्छी तरह जानती हैं। लोगों को धोखा देना इनकी प्रकृति में होता है। ये ऊपर से प्रत्येक व्यक्ति से बहुत निकटता और अपनापन दिखाती हैं लेकिन भीतर ही भीतर उन्हें धन ऐंठने की योजना बनाती रहती हैं। यहां तक कि पति को भी धोखा देने में संकोच नहीं करती। इनमें धन की विशेष लालसा होती है और धन पाने के लिए ये अपराध तक कर बैठती हैं। देखने में सुंदर, वाणी में मधुरता इनका सबसे बड़ा गुण होता है।
8.प्रेमिणी स्त्रियों(Pramini)
प्रेमिणी श्रेणी की स्त्रियां अत्यंत सुंदर, गौर वर्ण, चंचल नेत्र, गुलाबी पतले होंठ, सुराही जैसी गर्दन और लंबे केश की मालकिन होती हैं। इनकी सुंदरता के दीवाने सैकड़ों होते हैं। जो कोई भी एक बार इन्हें देख ले वह भूल नहीं पाता। जितना आकर्षक इनका रूप होता है, उतना सौम्य इनका स्वभाव भी होता है। इनका आचरण शुद्ध होता है। परोपकार और प्रेम की भावना इनमें प्रबल होती है। ये अपने परिवार और पति-बच्चों के लिए समर्पित होती हैं। इन्हें भोग-विलास के समस्त साधन प्राप्त होते हैं। स्वर्ण तो इन्हें विशेष प्रिय होता है।
9.कृपिणी स्त्रियों(kripini)
ऐसी स्त्रियां कमजोर शरीर वाली, सांवली त्वचा वाली, कंजूस और निर्लज्ज होती हैं। अपनी गलत हरकतों के कारण से परिवार, समाज में बदनाम होती है। इन्हें अपनी संतान और पति से कोई मोह नहीं रहता। इस कारण इनका घर-परिवार कई बार टूट भी जाता है। प्रत्येक पुरुष को अपनी ओर आकर्षित करने की चेष्टा करती हैं और धन पाने के लिए किसी भी पुरुष के साथ हो लेती हैं। इनके दिमाग में अपराध का कीड़ा भी पनपता रहता है। भोग-विलास पाने के लिए ये अपराध की राह पकड़ लेती हैं।
10.स्वर्गिणी स्त्रियों(svarginee)
ऐसी स्त्री धर्मपरायण होती है। धार्मिक कार्यों में सम्मिलित होना इन्हें प्रिय होता है। इनका परिवार व्यवस्थित रूप से चलता रहता है। न किसी वस्तु की अधिक लालसा होती है और न कुछ अधिक पाने का प्रयास करती हैं। जितना होता है उसी में खुश रहती हैं। इनका अपनी संतान से विशेष लगाव होता है। धन संचय करने का गुण इनमें होता है। इस प्रकार की स्त्रियां समाज के किसी बड़े पद पर भी देखी जाती हैं। रूप-रंग सामान्य किंतु आकर्षक होता है। ये स्त्रियां परोपकार करने में सबसे आगे रहती हैं।
11.बहुवंशिनी स्त्रियों
इन स्त्रियों का रंग गेहुआं होता है और पूरी तरह से गृहस्थ धर्म को निभाने वाली होती हैं। ये कभी झूठ नहीं बोलती और मन की साफ होती हैं। पति और परिवार इनके लिए सबसे ऊपर होते हैं। ये समाज में सम्मानित होती हैं तथा उच्च पदों पर आसीन होती है। हां, इनका स्वभाव थोड़ा गर्म होता है, लेकिन जल्दी ही मान भी जाती हैं। दूसरों की बुराई करने वाले और दूसरों पर दोषारोपण करने वालों से ये दूर रहना पसंद करती हैं। ये अनेक प्रकार की संपत्तियों की मालकिन होती है। प्रेम का गुण इनमें विशेष होता है।
12-सधवा स्त्रियों (sadhwa)
सधवा स्त्रियों के दोनों हाथ कमल के समान सुंदर होते हैं। उंगलियां सीधी होती हैं। हाथ की रेखाएं सूक्ष्म, लेकिन साफ होती हैं। हथेली चिकनी और गोलाकार होती हैं। इनके हाथ में पद्म, कानन, जयंती तथा स्वस्तिक रेखा स्पष्ट दिखाई देती हैं। भाग्य रेखा भी बिना कटी होती है। हथेली का मध्यभाग थोड़ा ऊंचा होता है। संपूर्ण शरीर का रंग एक समान दिखाई देता है। भौंहें मिली नहीं होती। दांत एक-दूसरे से चिपके होते हैं।
विधवा स्त्रियों (vidhwa)
समुद्र शास्त्र के अनुसार विधवा लक्षण वाली स्त्रियों के बाएं हाथ में तीन या छ: रेखाएं होती हैं। भाग्य रेखा छिन्न-भिन्न या दंड रेखा से युक्त होती है। ऐसी महिलाओं के बाल रूखे से रंग के, कान मोटे और मुंह लंबा होता है। इनका कंठ मोटा व बाहर की ओर निकला होता है। इनकी आवाज कर्कश होती है, इनके नाखून चपटे होते हैं
01-नारी का त्याग
‘त्याग’ की परिभाषा को यदि बारीकी से किसी ने समझा है तो वह है एक औरत। वह चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहती हो, किसी भी धर्म एवं मज़हब को मानती हो, लेकिन त्याग का धर्म उसे बचपन से ही सिखा दिया जाता है। शायद उसके खून के एक-एक कण में त्याग नामावली बस चुकी है, तभी तो जन्म से लेकर मरण तक हर पल अपनी खुशियों एवं तमन्नाओं का त्याग करना सीखा है नारी ने।
02-रीति-रिवाज का जिम्मा
केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में ज़रा नज़र घुमा कर देखें आपको ऐसे कई रीति-रिवाज जरूर मिल जाएंगे, जिसमें त्याग का बीड़ा एक स्त्री को उठाना पड़ता है। कई बार तो इस त्याग का प्रभाव इतना गहरा होता है कि बेचारी उस महिला को यह पूछने का भी मौका नहीं मिलता कि ‘ऐसा उसके साथ क्यों हो रहा है’?
03-रिवाज़ों में बंधी महिलाएं
संस्कृतियों एवं रिवाज़ों में बंधी यह महिलाएं बस त्याग करना सीखती हैं। पति की मृत्यु के बाद खुद का त्याग कर देना भी एक ऐसा तथ्य है जो महिलाओं के लिए अभिशाप बनकर रह गया है।
04-सती प्रथा जैसा उदाहरण
वर्षों पहले हिन्दू इतिहास ने ‘सती प्रथा’ जैसी घटनाओं को अपने किताब के पन्नों में जगह दी है। यह एक ऐसी क्रूर प्रथा थी जिसकी कल्पना भी कोई स्त्री नहीं करना चाहती। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव से जुड़ी है यह प्रथा, महाभारत के राजा पाण्डु की पत्नी माद्री ने भी उनके साथ सती होने का निश्चय किया था।
05-लेकिन खत्म हुई यह प्रथा
शायद यही कुछ ऐसी घटनाएं थी जिसने सती प्रथा को भारतीय सिद्धातों में पनाह दी, लेकिन एक समय ऐसा आया जब धीरे-धीरे यह प्रथा विलुप्त हो गई। हालांकि आज की विधवा महिला को भी कुछ ऐसे नियम-कायदों का पालन करना पड़ता है जो उसके लिए पांव में बंधी बेड़ियों के बराबर हैं।
06-विधवा की ज़िंदगी
केवल पति की मृत्यु का शोक ही उसके लिए काफी नहीं होता, उसके बाद उसका अकेलापन अन्य कट्टर रिवाज़ों से बंधकर उसे पल-पल मारता है। और इसी घुटन में वह स्त्री सोचती है कि काश इससे अच्छा तो वह अपने पति के साथ ही सती हो जाती।
07-मान्यताओं का बोझ
एक विधवा के लिए हिन्दू मान्यताओं में खास नियम बनाए गए हैं। उसे दुनिया भर के रंगों को त्याग कर सफेद साड़ी पहननी होती है, वह किसी भी प्रकार के आभूषण एवं श्रृंगार नहीं कर सकती। इतना ही नहीं, जो लोग कट्टर तरीके से इन नियमों का पालन करते हैं, वे विधवाएं तो शाम को सूरज ढलने के बाद अनाज का एक निवाला भी निगलती नहीं हैं।
08-इच्छानुसार कोई कार्य नहीं कर सकतीं
इसका तो यही अर्थ हुआ कि वह अपनी इच्छानुसार कोई कार्य नहीं कर सकतीं। उन्हें आखिरी श्वास तक भगवान को याद करके अपना बचा हुआ जीवन व्यतीत करने को मजबूर किया जाता है।
09-पति की मृत्यु के बाद
आप सोच रहे होंगे कि आज के आधुनिक युग में यह सब कहां होता है। आजकल तो पति की मृत्यु के कुछ समय के पश्चात महिलाएं दूसरा विवाह करके अपना आगे का जीवन सुखपूर्वक चलाने की कोशिश करती हैं। परन्तु सच मानिये आज भी देश के कई हिस्सों में एक विधवा को बोझ मानकर घर के एक कोने में फेंक दिया जाता है।
10-व्यर्थ के समान जीवन
उसका जीवन पति के मरने के बाद व्यर्थ है ऐसा उसे बार-बार महसूस कराया जाता है। पर क्यों? एक विधवा से उसके अधिकार, उसके रंग एवं श्रृंगार को छीन लेने का क्या अर्थ है? क्या हमारे शास्त्र हमें इस बात की सलाह देते हैं?
11-वेदों में नहीं है वर्णन
नहीं... आप जानकर यह हैरानी होगी कि वेदों में एक विधवा को सभी अधिकार देने एवं दूसरा विवाह करने का अधिकार भी दिया गया है। वेदों में एक कथन शामिल है – “उदीर्ष्व नार्यभि जीवलोकं गतासुमेतमुप शेष एहि । हस्तग्राभस्य दिधिषोस्तवेदं पत्युर्जनित्वमभि सम्बभूथ।“
12-दूसरे विवाह की सलाह देते हैं वेद
इसका अर्थ है कि पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा उसकी याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर दे ऐसा कोई धर्म नहीं कहता। उस स्त्री को पूरा अधिकार है कि वह आगे बढ़कर किसी अन्य पुरुष से विवाह करके अपना जीवन सफल बनाए।
13-लेकिन बनी हैं सामाजिक धारणाएं
लेकिन हमारा समाज इस बात को नहीं मानता। सामाजिक नियमों के अनुसार पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा रंगीन वस्त्र नहीं पहन सकती, कोई श्रृंगार नहीं कर सकती, किसी प्रकार के आभूषण धारण नहीं कर सकती बल्कि वह स्त्री उन सभी नियमों के साथ बंध जाती है जो उसे विधवा धर्म सिखाते हैं।
14-साधारण जीवन
पति के जीवित होते हुए जिस प्रकार से वह खुद को सुंदर बनाकर रखती थी, उसके जाने के बाद उसे उससे भी ज्यादा खुद को बदसूरत बनाने के लिए कहा जाता है। कुछ संस्कारों में तो एक विधवा का मुंडन भी किया जाता है।
15-अनेक कारण
ऐसा करने के पीछे कई सारे सामाजिक एवं वैज्ञानिक कारण दिए जाते हैं। कहते हैं कि एक इंसान जितना साधारण होगा, कम आकर्षक होगा उतना ही लोग उस पर कम ध्यान देंगे। और एक विधवा को सबकी नज़रों से, खासतौर से पराए मर्दों की नज़रों से बचकर रहने की सलाह दी जाती है।
16-रक्षा करने वाला कोई नहीं
क्योंकि पति की मृत्यु के बाद इस समाज में उसकी रक्षा करने वाला कोई नहीं है। कम से कम तब तक नहीं जब तक वह पुन: विवाह नहीं कर लेती। इसलिए उसे सफेद साड़ी एवं बिना किसी श्रृंगार के रहने की सलाह दी जाती है।
17-श्रृंगार नहीं कर सकती
एक नारी का श्रृंगार उसे चंचल बनाता है। यह उसकी सुंदरता ही तो है जिसकी बदौलत एक पुरुष उसकी ओर आकर्षित होता है। लेकिन एक विधवा को सबकी निगाहों से छिपकर रहना होता है। यह शायद हमारे समाज की मानसिकता ही है कि यदि कोई स्त्री रंग-बिरंगे कपड़े पहने खड़ी होगी तो उसे ज्यादा लोग देखते हैं।
18-बदसूरत बनने को मजबूर
लेकिन कोई असुंदर एवं बेहद कम आकर्षक महिला पास से गुजरे तो लोग उसे देखना भी नहीं चाहते। लेकिन पश्चिमी देशों में ऐसा कभी नहीं होता। वहां की मानसिकता एवं भारतीयों की मानसिकता में काफी अंतर है।
19-रंगों से मुख मोड़ना
यह सच है कि हमारे द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों के रंग हमारे चरित्र पर एक गहरा असर करते हैं। लाल रंग हमें भड़काऊ बनाता है तो नीला सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है। हरा रंग मानसिक संतुलन देता है तो सफेद शांति का प्रतीक माना जाता है।
20-सफेद रंग पहनने की सलाह
शायद यही कारण है कि एक विधवा को सफेद रंग पहनने की सलाह दी जाती है ताकि वह दुख के इस समय में खुद को शांत रखने की कोशिश कर सके। साथ ही इस शांत व्यवहार से वह विधवा प्रभु में अपना ध्यान भी आसानी से लगा सकती है।
21-खान-पान में बदलाव
कपड़ों के अलावा एक विधवा के खान-पान के तरीके में भी बड़ा बदलाव किया जाता है। शास्त्रों की मानें तो एक विधवा स्त्री को बिना लहसुन-प्याज वाला भोजन करना चाहिए और साथ ही उन्हें मसूर की दाल, मूली एवं गाजर से भी परहेज रखना चाहिए।
22-सात्विक भोजन
सिर्फ इतना ही नहीं उनके लिए भोजन में मांस-मछली परोसना घोर अपमान व पाप के समान है। उनका खाना पूरी तरह सात्विक होना चाहिए। और शाम को सूरज ढलने के बाद वह पानी के अलावा कुछ ग्रहण नहीं कर सकती।
23-परन्तु कब आएगा बदलाव
यह कड़े नियम आज देश के सभी तो नहीं लेकिन कुछ हिस्सों में विधवा के लिए एक अभिशाप के समान कायम हैं। जिससे वह उबरना चाहती है और अपने जीने का एक मकसद ढूंढ़ना चाहती है। परन्तु शास्त्रों एवं धर्म के नाम पर यह समाज एक विधवा को आज़ादी की उड़ान शायद ही कभी भरने दे।
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