यह किस्सा मुझे वरसोवा के एक मछुआरे ने सुनाया था। तब मैं अपने वीक-एण्ड घर 'पराग' में आकर रुकता था और सागर तट पर घूमता और डूबते सूरज को देखा करता था। तब मेरी जिन्दगी को अफ़वाहों का पिटारा बना दिया गया था। यहाँ तक कि जब मैं सोलह-सत्रह साल की अपनी बेटी मानू को रात के दस-ग्यारह बजे लेकर सन-एण्ड सैण्ड होटल से घर जाने के लिए निकला, तो एक अंग्रेजी अखबार ने छापा--कमलेश्वर को कमसिन लड़कियाँ पसन्द हैं।
ऐसे थपेड़ों को बर्दाश्त कर सकना आसान नहीं है। ऐसा ही एक और हादसा मेरी माली (आर्थिक) हालत को लेकर हुआ। फिल्मी लेखन के शुरुआती दौर में मैं ब्लैक-मनी नहीं लेता था, पर मेरी लिखी फिल्में जब चल निकलीं तो इनकमटैक्स वालों ने मुझे घेरा। इनकमटैक्स अफसर ने अपने दफ्तर बुलाकर सवाल किया-मि. कमलेश्वर! आपकी आमदनी तो अब प्रति फिल्म चार-पाँच लाख होगी क्योंकि फिल्म सफल होते ही लेखक की प्राइस बढ़ जाती है...पर आप फिल्मी आमदनी में लाख-सवा लाल से ऊपर नहीं दिखाते; इस पर कैसे विश्वास किया जाए?
मैंने कहा-मैं ब्लैक मनी नहीं लेता!
सवाल था-यह कैसे मुमकिन है?
मैं-क्योंकि मैं जो कुछ कमाता हूँ उसमें खुश हूँ...मेरी खुशी का यही राज़-रहस्य है!
हालाँकि बाद में मैं ब्लैक मनी लेने लगा था पर मैं उन नैतिकता- भरे दिनों में ज्यादा सन्तुष्ट था। तभी वरसोवा के मछुआरे ने मुझे यह किस्सा सुनाया था।
: साब! जमनालाल बजाज की जुहूवाली कोठी में गांधी जी आकर ठहरते थे....जमनालाल जी टहलने निकलते थे। एक दिन नाव की छाया में लेटा, बीड़ी पीता एक मछुआरा उन्हें मिला। वह आराम से लेटा हुआ था।
बजाज जी ने सवाल किया :
-तुम मछलियाँ पकड़ते हो।
जी!
-तो कितनी मछलियाँ पकड़ते हो?
-जी, कभी कम, कभी ज्यादा! पर जो मिल जाती हैं, वो मेरे लिए काफी हैं!
-तो ज्यादा मछलियाँ पकड़ कर तुम अपनी आमदनी क्यों नहीं बढ़ाते?
-उससे क्या होगा?
-तुम अमीरी की तरफ बढ़ोगे, इस गई-गुजरी नाव की जगह तुम मोटर बोट खरीद सकोगे!
-तो?
-तुम नायलन के जाल खरीद सकोगे....और ज्यादा मछलियाँ पकड़ कर अपनी आमदनी दस-पन्द्रह गुना बढ़ा सकोगे!
-फिर?
-फिर तुम बेफिक्र होकर ख़ुशी से अपनी जिन्दगी जी सकोगे!
लेकिन मैं यह क्यों करूं? मैं तो अब भी अपनी नाव की छाया में लेटकर बीड़ी पीते हुए बेफिक्र होकर खुशी की जिन्दगी जीता हूँ! मेरी खुशी मेरे पास है।
-पर जो मैं तुम्हें बताता हूँ, सुख उसी में है!
-जी नहीं, आप अपना सुख मुझे न दें। मेरा अपना सुख मेरे पास है! मैं इसी में आपसे ज्यादा सुखी हूँ!
(‘महफ़िल’ से)
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