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जुड़वाँ भाई मुंशी प्रेमचंद

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कभी-कभी मू्र्ख मर्द ज़रा-ज़रा-सी बात पर औरतों को पीटा करते हैं। एक गाँव में ऐसा ही एक किसान था। उसकी औरत से कोई छोटा- सा नुकसान भी हो जाता तो वह उसे बग़ैर मारे न छोड़ता । एक दिन बछड़ा गाय का दूध पी गया। इस पर किसान इतना झल्लाया कि औरत को कई लातें जमाईं । बेचारी रोती हुई घर से भागी। उसे यह न मालूम था कि मैं कहाँ जा रही हूँ। वह किसी ऐसी जगह भाग जाना चाहती थी, जहां उसका शौहर उसे फिर न पा सके।

चलते-चलते वह जंगल में पहुँच गई। पहले तो वह बहुत डरी कि कोई जानवर न उठा जे जाय, मगर फिर सोचा, मुझे क्या डर जब दुनिया में मेरा कोई अपना नहीं है, तो मुझे जीकर क्या करना है। मरकर मुसीबत से तो छूट जाऊंगी। मगर उसे कोई जानवर न मिला और वह रात को एक पेड़ के नीचे सो गई। दूसरे दिन उसने उसी जंगल में एक छोटी-सी झोपड़ी बना ली और उसमें रहने लगी । लकड़ी और फूस की कोई कमी थी ही नहीं, मूंज भी इफ़रात से थी। दिन-भर में झोपड़ी तैयार हो गयी । अब वह जंगल में लकड़ियाँ बटोरती और उन्हें आस-पास के गाँवों में बेचकर खाने-पीने का सामान खरीद लाती । इसी तरह उसके दिन कटने लगे ।

कुछ दिनों के बाद उस औरत के जुड़वाँ लड़के पैदा हुए। बच्चों को पालने-पोसने में उसका बहुत-सा वक्त निकल जाता और वह मुश्किल से लकड़ियाँ बटोर पाती। उसे अब रात को भी काम करना पड़ता । मगर इतनी मुसीबत झेलने पर भी वह अपने शौहर के घर न जाती थी । एक-दिन वह दोनों बच्चों को लिये सो रही थी। गरमी की रात थी। उसने हवा के लिए झोपड़ी का दरवाजा खुला छोड़ दिया था। अचानक रोने की आवाज़ सुनकर उसकी नींद टूट गई तो देखा कि एक बड़ा भारी भालू उसके एक बच्चे को उठाये लिये जा रहा है। उसके पीछे-पीछे दौड़ी मगर भालू जंगल में न जाने कहाँ घुस गया । बेचारी छाती पीट-पीटकर रोने लगी। थोड़ी देर में उसे दूसरे लड़के की याद आई । भागती हुई झोपड़ी में आई मगर देखा कि दूसरे लड़के का भी पता नहीं । फिर छाती पीटने लगी । ज़िन्दगी का यही एक सहारा था, वह भी जाता रहा। वह दुःख की मारी दूसरे ही दिन मर गई।

भालू उस बच्चे को ले जाकर अपनी माँद में घुस गया और उसे बच्चों के पास छोड़ दिया । बच्चे को हँसते-खेलते देखकर भालू के बच्चों को न मालूम कैसे उस पर तरस आ गया । पशु भी कभी-कभी बालकों पर दया करते हैं। यह लड़का भालू के बच्चों के साथ रहने लगा । उन्हीं के साथ खेलता, उन्हीं के साथ खाता और उन्हीं के साथ रहता । धीरे-धीरे वह उन्हीं की तरह चलने-फिरने लगा । उसकी सारी आदतें जानवरों की-सी हो गईं । वह सूरत से आदमी, मगर आदतों से भालू था और उन्हीं की बोली बोलता भी था।

अब दूसरे लड़के का हाल सुनो । जब उसकी मां उसके भाई की खोज में चली गई थी, तो झोपड़ी में एक नई बात हो गई । एक राजा शिकार खेलने के लिए जंगल में आया था और अपने साथियों से अलग होकर भूखा-प्यासा इधर-उधर भटक रहा था। अचानक यह झोपड़ी देखी, तो दरवाज़े पर आकर पुकारने लगा कि जो कोई अन्दर हो, मुझे थोड़ा-सा पानी पिला दो, मैं बहुत प्यासा हूं। मगर जब बच्चे के रोने के सिवा उसे कोई जवाब न मिला तो वह झोपड़ी में घुस आया। देखा कि एक बच्चा पड़ा रो रहा है, और यहाँ कोई नहीं है। वह बाहर निकलकर चिल्लाने लगा कि यहाँ कौन रहता है । जल्दी अओ, तुम्हारा बच्चा अकेला रो रहा है। अब कई बार पुकारने पर भी कोई नहीं आया, तो उसने समझा कि इस बच्चे की मां को कोई जानवर उठा ले गया है। राजा के कोई लड़का न था। उसने बच्चे को गोद में उठा लिया और घर चला आया।
बीस वर्ष बीत गये। किसान का अनाथ बच्चा राजा हो गया। वह बड़ा विद्वान और चतुर निकला । बहादुर भी ऐसा था कि इतनी ही उम्र में उसने अपने बहुत से दुश्मनों को हरा दिया।

एक दिन नये राजा साहब शिकार खेलने गये । मगर कुछ हाथ न लगा । निराश होकर घर की ओर लौटे आ रहे थे कि इतने में उन्होंने देखा कि एक अद्भुत जानवर एक बड़े हिरन को कंधे पर लादे भागा जा रहा है ! उसकी शक्ल बिल्कुल आदमी की-सी थी । सिर, दाढ़ी, मुँछ के बाल इतने बढ़ गये थे कि उसका मुंह क़रीब क़रीब बालों से ढक गया था, उसे देखकर राजा ने फ़ौरन घोड़ा रोक लिया और उसे ज़िन्दा पकड़ने की कोशिश करने लगे। वह जानवर हिरन को ज़मीन पर रखकर राजा की ओर दौड़ा । राजा साहब शिकार खेलने में चतुर थे, उन्होंने तलवार निकाली और दोनों में लड़ाई होने लगी । आखिर वह जानवर ज़ख्मी हो गया। राजा साहब ने उसे अपने घोड़े पर लाद लिया और अपने घर लाये। कुछ दिनों तक तो वह पिंजड़े में बन्द रखा गया, फिर कभी-कभी बाहर निकाला जाने लगा। धीरे-धीरे उसकी आदतें बदलने लगी। वह आदमियों की तरह चलने लगा और आदमियों की तरह बोलने भी लगा। उसके बाल काट दिये गये और कपड़े पहिना दिये गये। देखनेवालों को अचम्भा होता था कि इस जंगली आदमी की सूरत राजा साहब से इतनी मिलती है, मगर यह किसे मालूम था कि वह राजा साहब का जुड़वां भाई है, जिसे भालू उठा ले गया था ।

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