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सुरबग्घी बौद्धिक विकास के लिए अत्यधिक लाभकारी है

 

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वर्तमान समय में मोबाइल फोन के बढ़ते चलन की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के युवा मिट्टी से जुड़े खेलों से दूर होते जा रहे हैं। मिट्टी से जुड़ा ​एक खेल 'सुरबग्घी' भी है, जो पहले बहुत प्रचलित था, किंतु अब समय के साथ-साथ गाँवों में अपनी पहचान खोता जा रहा है। गर्मी की छुट्टियों का वह दृश्य शायद सब ही याद करते होंगे, जब अपने गाँव के घर के बरामदे में सुरबग्घी की चौकोर बिसात को देखते होंगे। यह बिसात कुछ हद तक चाईनीज़ चेकर (Chinese Checkers) और शतरंज खेलों से मिलती जुलती है। चाईनीज़ चेकर एक स्ट्रेटेजी बोर्ड गेम (Strategy Board Game) है, जिसे दो, तीन, चार या छह लोग व्यक्तिगत रूप से या भागीदारी में खेल सकते हैं। यह खेल मुख्य रूप से जर्मन मूल का है। इसके नियम सरल हैं, जिस कारण इसे छोटे बच्चे भी खेल सकते हैं।

सुरबग्घी खेल में 32 गिट्टियों की ज़रूरत पड़ती हैं, जिसमें 16 गोटियां एक खिलाड़ी के पास होती हैं और बाकी 16 गोटियां दूसरे खिलाड़ी के पास। दोनों पक्षों की गिट्टियों का रंग अलग होता है। खेल भले ही घर के अंदर खेला जाता है, लेकिन इसमें दिमाग की कसरत बहुत अच्छी होती है। आपकी एक गलत चाल आपको हरा सकती है, इसलिए खेल खेलने वाले दोनों खिलाड़ियों को बड़े ध्यान से खेल खेलना पड़ता है। इस खेल में बनाई गई चौकौर बिसात में प्वाइंटों (Points) के सहारे एक पंक्ति पर गोटियां चली जाती हैं। मान लीजिए कि आपकी और आपके विपक्षी खिलाड़ी की गिट्टी अगल-बगल है और तीसरा प्वाइंट खाली है तथा आपकी गिट्टी बीच में है और अब चाल अगले खिलाड़ी की है।

अगर विपक्षी खिलाड़ी आपकी गिट्टी को काट कर आगे के प्वाइंट पर अपनी गिट्टी रख देता है, तो आपकी गिट्टी कट जाएगी और दूसरा खिलाड़ी बाज़ी जीत जाएगा। गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग मानते थे कि सुरबग्घी का खेल न सिर्फ हमारी मानसिक शक्ति को बढ़ाने का काम करता है, बल्कि खाली समय में यह खेल मनोरंजन के अच्छे साधन की तरह भी काम करता है। पुराने समय में ग्रामीण सजावट के तौर पर सुरबग्घी को अपने घर की ज़मीन या फिर दीवारों पर बनवाते थे। इसके नियम चाईनीज़ चेकर के समान हैं, लेकिन सुरबग्घी में प्यादे (Pawns) बाहर हो जाते हैं।

लखनऊ के निकट 2009 से ग्रामीण ओलंपिक (Village Olympic) खेलों का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें कई खेल जैसे भैंस दुहना, साइकिल दौड़, नहर में तैरना, कबड्डी, वॉलीबाल (Volleyball), पतंगबाजी, रस्साकशी, शतरंज, सुरबग्घी आदि शामिल हैं। इस प्रतियोगिता में उत्तर भारत के कई राज्य भाग लेते हैं, जिनमें राजस्थान, उत्तराखंड, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश मुख्य हैं। 2009 में पहली बार किसी गाँव में इस तरह के पैमाने पर राष्ट्रीय ग्रामीण खेलों का आयोजन किया गया था।

खेल की पुरातनता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि खेल के साक्ष्य अकबर के शासन काल से भी प्राप्त हुए। अकबर और उसके अधिकारी, भीतर खेले जाने वाले खेलों के बहुत शौकीन थे। व्यक्तिगत रूप से अकबर ‘चंदल-मंदल’ और ‘पच्चीसी’ के खेल के बहुत शौकीन थे। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों के लोग कबड्डी और सुरबग्घी खेलना बहुत पसंद करते थे। मोबाईल फोन के चलन और कई अन्य कारणों से सुरबग्घी आज अपनी लोकप्रियता खोता जा रहा है किंतु बौद्धिक विकास के लिए यह आज भी उतना ही फलदायी है, जितना पहले माना जाता था।


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