इलेक्ट्राॅन जो आज की संपूर्ण वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति का मूल है, इतना प्रचलित है कि जनसामान्य भी इससे अपरिचित नहीं रहा है। ये परमाणु के सबसे हल्के कणों में से एक है तथा यह ऋणावेशित (negatively charged) होते हैं। एक इलेक्ट्रॉन का भार सर्वाधिक हल्के परमाणु – Hydrogen के भार के लगभग 2 हजारवें अथवा बिल्कुल 1837वें भाग के बराबर होता है। यदि आपको नहीं पता कि Electron ki khoj kisne ki और कब? तो बता दे कि परमाणु के इस कण की खोज आज से 121 वर्ष पहले ब्रिटिश भौतिकशास्त्री जे.जे. थॉमसन (Sir Joseph John Thomson) ने 1897 में किया था।
थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन की खोज कैसे की ?
संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी जड़-चेतन है वे पदार्थ से बने हैं। पदार्थ छोटे-छोटे अविभाज्य कणों से बना होता है जिसे परमाणु कहते हैं। 19वीं शताब्दी के शुरू में जॉन डाल्टन ने अपना परमाणुवाद का सिद्धांत प्रस्तुत किया था जो काफी समय तक सर्वमान्य था। उनके अनुसार पदार्थ की सबसे सूक्ष्म संरचनात्मक इकाई परमाणु है जो अविभाज्य एवं अविनाशी है। किन्तु अप्रैल, 1897 में ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी जे.जे. थॉमसन ने “क्रुक्स नलिका” (Crookes tube) पर कार्य करते हुए एक नए कण की खोज की जो ऋणावेशित था।
थॉमसन ने जिस नलिका पर प्रयोग किया था वह शीशे की नलिका थी जिसमें धातु के दो इलेक्ट्रोड लगे थे। नली में वायु या गैस को बाहर निकालने के लिए निर्वात पम्प की व्यवस्था थी। जब नली में दबाव मिलीमीटर के हजारवें भाग के बराबर था तथा इलेक्ट्रोड के सिरों को दस हजार वोल्ट से जोड़ा गया तो पाया गया कि कैथोड से एक प्रकार की किरणें उत्पन्न होती हैं। ये किरणें सीधी रेखा में एनोड की तरफ गति करती हैं तथा एनोड प्लेट के मध्य स्थित छिद्र से कुछ किरणें आगे जाकर धनात्मक प्लेट की ओर मुड़ जाती हैं। इससे निष्कर्ष निकला कि ये कण ऋणावेशित हैं। चूंकि ये कैथोड से उत्पन्न थे अतः इनको ‘कैथोड किरणें’ (Cathode Rays) कहा गया।
थॉमसन ने बार-बार इलेक्ट्रोड की धातु बदलकर तथा नली में ली गयी गैस को बदलकर यह प्रयोग दोहराया किन्तु हर बार उन्हें एक ही बात देखने को मिली। अतः इन कणों को ‘इलेक्ट्रॉन’ नाम दिया गया तथा बाद में इनका आवेश एवं द्रव्यमान भी ज्ञात किया गया जो कि क्रमशः 1.6 × 10−19 कुलम्ब (C) एवं 9.109 × 10−31 कि. ग्रा. (kg) प्राप्त हुआ।
दो वर्ष बाद धातुओं के प्रकाशविद्युतीय यानी Photoelectric एवं तापवैद्युतीय यानी Thermoelectric प्रभावों से उत्पन्न कणों के लिए भी द्रव्यमान एवं आवेश का मान स्थिर एवं उपरोक्त प्रयोग जैसा ही पाया गया। इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि Electron किसी भी तत्व की मूल रचनात्मक इकाई हैं। जे.जे. थॉमसन को उनकी इस वैज्ञानिक उपलब्धि के लिए वर्ष 1906 का भौतिकी का ‘नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया।
परमाणु के अन्य कणों की खोज
इलेक्ट्रॉन की खोज के पश्चात एक अन्य वैज्ञानिक लार्ड रदरफोर्ड ने यह अनुमान लगा लिया कि परमाणु में यदि ऋण-आवेशित इलेक्ट्रॉन हैं तो इनके आवेश को निष्प्रभावी करने के लिए उतनी ही धनात्मक आवेशवाली कोई वस्तु अवश्य होनी चाहिए क्योंकि परमाणु वस्तुतः आवेशहीन होते हैं। कुछ ही परमाणुओं की मोटाई वाली सोने की परत पर जब अल्फा-कणों (धनात्मक आवेशवाले हीलियम नाभिक) की बौछार डाली गई तो औसतन 8000 अल्फा-कणों में से कम-से-कम एक कण ऐसा निकला जो पलटकर लगभग उसी पथ पर वापस आ गया।
यह आशा नहीं की जा सकती कि इलेक्ट्रॉन से 8000 गुना भारी अल्फा-कण किसी इलेक्ट्रॉन से टकराकर वापस चले जाएँगे। इसके लिए तो कम से कम उतना ही या उससे कहीं अधिक भारी वस्तु परमाणु के अन्दर होनी चाहिए जो लगभग उसी दिशा में वापीस कर दे जिससे वे आए थे।
Lord Rutherford ने सही अनुमान लगाया कि परमाणु में एक नाभिक भी होता है जिसमें धनात्मक विद्युत-आवेश होना चाहिए। इस प्रकार परमाणु के नाभिक की खोज हुई। यह भी ज्ञात हुआ कि नाभिक का आकार परमाणु के आकार से भी लगभग 1 लाख गुना छोटा होता है। परमाणु का 99.9 प्रतिशत द्रव्यमान इसी नाभिक में समाहित है। नाभिक के चारों ओर ज्यादातर स्थान खाली होता है जहां इलेक्ट्रॉन पाए जाते हैं। नाभिक में मौजूद धनावेशित कणों को प्रोटॉन कहा गया।
1932 तक यही मान्यता थी कि परमाणु इलेक्ट्रॉन एवं प्रोटॉन से बना है, किन्तु जेम्स चैडविक द्वारा न्यूट्रॉन (Neutron) नामक उदासीन कण की खोज के बाद परमाणु संरचना संबंधी अवधारणा में पुनः परिवर्तन हुआ।
जहां पहले मान्यता थी कि पदार्थ की दुनिया परमाणु से निर्मित है वहीं अब परमाणु के अंदर भी एक दुनिया का अस्तित्व प्रकाश में आया। 1930 के दशक में जे.जे. थॉमसन के पुत्र जी.जे. थाॅमसन ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि इलेक्ट्रॉन जैसा सूक्ष्म कण तरंग प्रकृति (Wave Nature) भी रखता है। इस कार्य हेतु उन्हें 1937 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया ।
उसी वर्ष 1937 में ही कास्मिक किरणों पर खोज करते हुए एक नये कण का पता चला जिसे म्युआन कहते हैं। यह आवेश (charge) में इलेक्ट्रॉन के बराबर किन्तु भार में 210 गुना भारी था। उसके बाद पॉल डिराक ने इलेक्ट्रॉन के प्रतिकण पाजिट्रान (Positron) की खोज की जो धनावेशित (+) था। सन् 1955 में न्यूट्रिनो (Neutrino) के अस्तित्व के का पता चला जो भारहीन एवं उदासीन होते हैं।
वर्तमान सदी के मध्य के बाद उच्च शक्ति वाले कण त्वरकों यानी Particle Accelerator की खोज के बाद अनेक सूक्ष्म कणों का अस्तित्व प्रकाश में आया। 1970 के दशक में टाऊ (Tau) नामक कण का पता चला जो आवेश में इलेक्ट्रॉन के बराबर किन्तु द्रव्यमान में 3500 गुना भारी होता है। म्युआन तथा टाऊ को भारी इलेक्ट्रॉन कहते हैं। वैज्ञानिक इलेक्ट्रॉन, म्युआन, टाऊ एवं न्यूट्रिनो को संयुक्त रूप से ‘लेप्टन’ (Lepton) कहते हैं।
उच्च शक्ति वाले त्वरकों से अब तक 200 से अधिक मूल कणों की खोज हो चुकी है। विगत तीन दशकों में नाभिकीय भौतिकी के क्षेत्र में हुए अनुसंधान से यह स्पष्ट हो चुका है कि नाभिक में स्थित न्यूट्राॅन एवं प्रोटान अन्य सूक्ष्म कणों के संयोजन से बने हैं। क्योंकि कणों के आपस में टकराने से नाभिकीय कण नए-नए ढंग से समायोजित होकर नये कणों को जन्म देते हैं। इन कणों को हम क्वार्क (Quark) कहते हैं। ये क्वार्क इलेक्ट्राॅन के आवेश का 1/3 या 2/3 आवेश रखते हैं तथा तीन क्वार्क आपस में मिलकर एक मूलकण का निर्माण करते हैं। ये क्वार्क 6 प्रकार के होते हैं। जिन्हें अप , चार्म , टाप , डाउन , स्ट्रेन्ज , बाटम क्वार्क कहते हैं।
इन क्वार्क कणों के मध्य प्रबल नाभिकीय बल कार्य करता है जो इनको आपस में बांधे रखता है। इस सशक्त बंधन के लिए उत्तरदायी कणों को ‘ग्लुआन’ कहते हैं। इस प्रकार क्वार्क कणों के समुच्चय से निर्मित कणों को हैड्रान कहते हैं। जैसे प्रोटॉन, न्यूट्राॅन, मेसान, हाइपेरान इत्यादि। इस प्रकार पाया गया कि प्रोटॉन, न्यूट्रॉन जैसे नाभिकीय कण भी विभाज्य हैं।
अब तक की खोज के बाद क्वार्क सबसे सूक्ष्म कण के रूप में ज्ञात हुए हैं। आज हम नाभिक के अंदर 10−18 मीटर के सूक्षम अंतराल तक का विश्लेषण कर चुके हैं, किन्तु क्वार्क से सूक्ष्म कण फिलहाल प्राप्त नहीं हो सका है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि क्वार्क मूल कणों का मूलभूत कण है। हैड्रॉन समूह के कण विभाज्य हैं किन्तु लेप्टान समूह के कणों की सत्ता अभी भी अविभाज्य है। विगत एक शताब्दी में परमाणु संरचना से संबंधित अनेक मत एवं सिद्धांत प्रतिपादित हुए जो समय के साथ संशोधित या खारिज होते रहे किन्तु इलेक्ट्रॉन अपनी संपूर्ण विविधता के साथ आज भी अविभाज्य एवं सूक्ष्मतम कण बना है तथा अपनी अखंडता बनाए हुए हैं।
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