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उत्तर प्रदेश का राजकीय पशु क्या है

 
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क्षेत्रफल तथा जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश भारत के सबसे बड़े राज्यों में से एक है। इस राज्य में 25 वन्यजीव अभयारण्य है। जिसमें कई तरह के पशु-पक्षी पाए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते है? Uttar Pradesh ka rajkiya pashu क्या है? तो बता दे, बारहसिंगा यानी Swamp deer इस राज्य का राजकीय पशु है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘रकुर्वस डुवाकुली’ है।

बारहसिंगा उत्तर प्रदेश के साथ-साथ मध्य प्रदेश का भी राज्य पशु है। लेकिन दोनों राज्यों के बारहसिंगों की उपप्रजाति अलग-अलग है। मध्य प्रदेश का राज्य पशु ब्रेन्डराई उपप्रजाति का है जबकि उत्तर प्रदेश के राज्य पशु की उपप्रजाति डुवेनसलाई है। इसकी एक और उपप्रजाति रंजितसिहाई काजीरंगा एवं मानस राष्ट्रीय उद्यानमें पायी जाती है।

पहली बार देखने पर ये तीनों बारहसिंगे एक जैसे दिखते हैं, लेकिन इन तीनों में स्पष्ट शारीरिक, व्यावहारिक एवं रहन-सहन संबंधी अन्तर हैं। इनकी अलग-अलग पहचान इनके सींगों, खुरों एवं सिर की बनावट, व्यवहार एवं प्रजनन संबंधी आदतों से होती है।

वयस्क बारहसिंगे की लंबाई 71 इंच, कंधे तक की ऊंचाई 52 से 54 इंच तथा वनज 170 से 180 किलोग्राम तक होता है। मादा नर से छोटी होती है। नर के गर्दन के ऊपरी भाग पर बाल लटके होते हैं। इसकी 4.8 इंच लंबी पूंछ के अंतिम छोर का निचला हिस्सा सफेद या हल्के पीले रंग का होता है। नर के शरीर का रंग गेहुंआपन लिये हुये ललछौंह भूरा होता है। पेट का हिस्सा पीठ की अपेक्षा थोड़ा और भूरापन लिये हुये होता है। मादा का रंग नर की अपेक्षा हल्का होता है। ग्रीष्म ऋतु में इनके शरीर का रंग हल्का हो जाता है एवं इसके पिछले भाग पर बहुत हल्के धब्बे उभर आते हैं।

नर के एक जोड़ी शाखायुक्त सींग होते हैं। इसके सींगों की वजह से ही इसको बारहसिंगा नाम मिला है। इसके प्रत्येक सींग में अमूमन 5 से 6 शाखायें होती हैं। इस तरह दोनों मुख्य सींग एवं शाखाओं को मिलाकर 12 सींग हो जाते हैं। हालांकि कुछ बारहसिंगों में 8 से 9 शखायें भी देखी गयी हैं। सींगों की औसत ऊंचाई 30 इंच होती है। नर बारहसिंगा के सींग प्रत्येक वर्ष गर्मियों में झड़ जाते हैं लेकिन नवम्बर माह तक सींग पुनः पूरी तरह विकसित हो जाते हैं।

बारहसिंगा छोटे बड़े दोनों समूहों में रहता है। इन्हें पानी के पास वाला स्थान बेहद पसन्द है जहां आसपास घास के मैदान भी हों। वैसे विभिन्न प्रकार की घास इसका मुख्य आहार है पर जलीय पौधे एवं काई भी यह बड़े चाव से खाता है। इसकी गजब की की सूँधने की शक्ति होती है और लगभग 400 मीटर की दूरी से यह खतरे को महसूस कर लेता है। बाघ, तेंदुआ और जंगली कुत्ते इसके मुख्य प्राकृतिक शिकारी हैं। इसकी आयु लगभग 20 वर्ष की होती है। साल सांभर, गोन्डा आदि इसके स्थानीय नाम है।

एक समय भारत में बारहसिंगा सिन्धु एवं गंगा की घाटियों से लेकर ब्रह्मपुत्र तक तथा सम्पूर्ण मध्य भारत के साथ-साथ दक्षिण में गोदावरी नदी तक पाये जाते थे। पर उन्नसवीं सदी में इनकी संख्या में भारी कमी आयी और असम के ऊपरी क्षेत्र गंगा के मैदानी इलाकों से सुन्दरवन इलाके तक मध्य भारत होते हुए दक्षिण में गोदावरी तक सीमित रह गये।

घटते प्राकृतिक आवास एवं अत्यधिक शिकार के कारण इनकी संख्या में लगातार गिरावट आयी और 20वीं सदी में इनकी संख्या और रहवास क्षेत्र में अत्यधिक कमी आ गयी। आज यह असम के कुछ क्षेत्रों में, मध्य भारत के मैदानी इलाकों, दक्षिण में गोदावरी के कुछ हिस्सों तक एवं हिमालय के तराई वाले इलाकों तक ही सिमट कर रह गये हैं। आज यह अत्यधिक संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में है तथा केवल राष्ट्रीय उद्यानों में ही देखा जा सकता हैं।

गुजरात का राजकीय पशु क्या है?

गुजरात का राजकीय पशु एशियाई सिंह है। एशियाई सिंह शेरों की एक प्रजाति है, जो आज सिर्फ गुजरात के गिर वन्यजीव अभ्यारण्य में लगभग 1000 की संख्या में मौजूद हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ‘पेन्थेरा लियोपरसिया’ है।

एशियाई शेर परिवार के साथ रहने वाला एक शक्तिशाली जानवर है। एक परिवार में एक नर, दो से तीन मादायें तथा कुछ किशोर बच्चे एवं शावक होते हैं। नर की औसत लंबाई 2.5 मीटर तक होती है। नर एवं मादा दोनों की पूंछ की लंबाई लगभग 75 से 105 सेमी. तक होती है। नर का औसत वनज 150 से 250 किग्रा. तक एवं मादा का 120 से 180 किग्रा. तक होता है। मादा 4 वर्ष एवं नर 5 वर्ष में पूरी तरह वयस्क हो जाते हैं।

नर एवं मादा एकदम अलग-अलग होते हैं। नर का चेहरा बड़ा एवं भारी होता है। कद-काठी में भी यह मादा से बड़ा होता है। नर की गर्दन के चारों ओर लंबे बाल होते हैं जिन्हें अयाल (mane) कहते हैं।

ये शेर वर्ष में कभी भी प्रजनन कर सकते हैं। 100 से 119 दिन के गर्भधारण के उपरान्त मादा 1 से 6 शावकों को जन्म देती है। एशियाई शेरों पर किये गये अध्ययन के अनुसार शेरों के एक तिहाई शावकों की एक वर्ष के अंदर ही मृत्यु हो जाती है और केवल 10 प्रतिशत शावक ही बड़े हो पाते हैं। एशियाई शेरों का जीवन काल औसत 16 से 18 वर्ष का होता है पर कभी-कभी यह 20 वर्ष तक भी जीवित रहते हैं।

नर शेर प्रायः शिकार नहीं करता है। शिकार को खदेड़ने एवं गिराने का काम मादा ही करती है। हां खाने के मामले में नर को पहले अवसर दिया जाता है। कभी-कभी बड़े जानवरों के शिकार एवं उसे पछाड़ने में नर सहयोग करते देखे गये हैं। शेर अपने से चार गुने बड़े एवं भारी शिकार पर भी हमला करने से नहीं चूकते हैं। आपसी तालमेल एवं अदम्य साहस से वे झुंड में रहने वाले खतरनाक जंगली भैंसों को भी धूल चटा देते हैं।


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