मनोविज्ञानिक विश्लेषण- हम इसे किसी धर्म से न जोड़कर मानवीय मनोविज्ञान से लेते हैं। एक इंसान दूसरे इंसान से जहां शिष्टाचार के नाचे प्रेम,सदभाव रखता है वहीं वह अहंकार, द्वेश, नफरत भी रखता है। कोई यह कहे कि वह सभी को एक समान समझता, किसी को बुरा नहीं समझता या किसी से उसके मन में नफरत, डर या घृणा नहीं है तो वह गलत बोलता है। इसमें वह अपने अहंकार, घृणा को लागू करने के लिए धर्म, राजनीति, स्टेटस आदि का सहारा ले लेता है।
अरब मूल के मुसलमान अपने को श्रेष्ठ मानते हैं, वे समझते हैं कि वही असली मुसलमान हैं। पाकिस्तान, बांगलादेश या भारत से अरब में काम करने के लिए गए मुसलमानों को वहां की अरबी मूल की लड़की से शादी करने की कानूनन मनाही है। क्या आपने कभी सुना कि अरबी लड़की ने अरब में रहते किसी पाकिस्तानी से शादी की हो। शिया व सुन्नी मुसलमानों में आपस में शादियां नहीं होती, यहां तक कि उनके कब्रिस्तान भी अलग-अलग होते हैं। शिया-सुन्नी टकराव इतना ज्यादा है कि ये एक दूसरे को देखना भी नहीं सुहाते। पाकिस्तान में आए दिन शियाओं की मस्जिद में बम विस्फोट होते हैं और सैंकड़ों जानें चली जाती हैं। मुसलमानों में छोटे-छोटे फिरके हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल अगल ही विचारधारा रखते हैं इनमें अहमदिया, बरेलहवी, मुहाजिर, वहावी, बोहरा आदि 300 से ज्यादा फिरके हैं जो स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं। पठान कभी भी अहमदियों से अपना शादी संबंध नहीं रखते।
अरब के मुसलमान सुन्नी हैं और यमन के मुसलमान शिया। आज अरब ने यमन लीबीया में हमले करके वहां के शियाओं का नरसंहार किया है और वहां भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई है। ईरान शिया देश है और अरब देशों से इसका टकराव जग जाहिर है। सीरिया में मुख्य जंग शिया व सुन्नी में बंटी है। ऐसा ही ईसाईयों में भी है।
अब बात करते हैं स्टेटस की- इस बीमारी का शिकार हर कोई है। अमीर चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई इस बीमारी से सभी ग्रस्त है। अमीर गरीब से
कोई संबंध नहीं रखना चाहता। अमीर रिश्तेदार गरीब रिश्तेदार से दूरी बना लेता है कि कहीं वह कुछ मांगने ही न आ जाए। नए बने अमीर की पत्नी रेलगाड़ी में सफर करती है तो वह साथ की 2 सीटों की भी बुुकिंग करवा लेती है कि कोई और उसके साथ न बैठ सके।
अब बात करते हैं जातिवाद की- हिन्दुओं ने स्वयं को प्रगतिशील समाज बनाया है। जाति अब केवल शादी तक में सीमित रह गई है। शहरों में जातिवाद न के बराबर है। हिन्दुओं में समस्याओं का निवारण करने की क्षमता इसलिए भी है कि ये लोग हर बात में तर्क करते हैं और उसका चुनाव करने में स्वतंत्र हैं।
पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में ( नेपाल, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका) में जातिवाद की गहरी जड़ें हैं भले ही वह इस्लाम के अनुसरणकर्ता हों ।
हिंदू वर्ण व्यवस्था में जातिवाद का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन मुसलमानों में भी ये कम नहीं है. इसकी चर्चा भले न हो, लेकिन मुजफ्फरपुर के एक वाकये ने तो इसे सबके सामने उजागर कर दिया है।
एक ही अल्लाह को मानने वाले आपस में बंट गए तो बात ही खत्म...
सड़क के बीच में ही दीवार बना दी गई है जहां एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय की तरफ नहीं जा सकते हैं.
मुजफ्फरपुर के एक गांव दामोदरपुर टोला में एक सड़क के बीच दीवार खड़ी कर दी गई है. इस गांव को मुसलमानों का गांव कहा जाता है क्योंकि इस गांव में करीब 70 मुस्लिम परिवार रहते हैं. दामोदरपुर टोला में शेख और अंसारी (दो मुस्लिम जातियां) रहती हैं और एक ही रोड का इस्तेमाल करते-करते उन्होंने इस रोड को बीच में से बांट दिया है ताकि न ही ऊंची जाति के मुस्लिम नीची जाती के साथ जा सकें और न ही किसी और को कोई परेशानी हो.
रोड का आधा हिस्सा शेखों का है और बाकी आधा है अंसारियों का. एक तो गांव की सड़क ऊपर से अब ये इतनी संकरी हो गई है कि लोग आसानी से गाड़ियां लेकर भी नहीं जा सकते. ये दीवार हाल ही में बनाई गई है. 18 नवंबर 2018 को एक अंसारी परिवार के घर शादी थी और वहीं किसी बात को लेकर अंसारी और शेख परिवारों में झड़प हो गई. एक झड़प में एक के बाद एक लोग जुड़ते चले गए और मामले ने तूल पकड़ लिया.
दीवार ने इतनी बड़ी दरार पैदा कर दी है कि दूसरे समुदाय की तरफ के हिस्से में जो मस्जिद है उसमें भी एक खास समुदाय के लोग नहीं जा पा रहे हैं
इस मामले का हल ये निकाला गया कि सड़क के बीच में एक दीवार बना दी जाए जो दोनों गुटों को एक दूसरे से अलग कर दे. इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर से बात करते वक्त स्थानीय निवासी नसीरुद्दीन अंसारी ने कहा कि, 'शेख उनके साथ सही बर्ताव नहीं करते और ये अच्छा है कि दीवार बना दी गई है क्योंकि हमें उनसे कोई लेना देना नहीं रखना.'
उसी जगह शेखों की तरफ से मोहम्मद सलीम ने बताया कि , 'ये बेहद गलत है और अंसारी लोग आपे से बाहर हो गए हैं. जो दीवार बनाई गई है वो हमें और अंसारियों की तरफ बने मस्जिद को भी अलग कर देती है. हम वहां नमाज़ पढ़ने भी नहीं जा सकते. ये कितनी अजीब बात है कि जो लोग एक ही धर्म का पालन करते हैं, एक ही किताब को सही मानते हैं वो ही मस्जिद के बीच में दीवार खड़ी कर देंगे.'
क्या कभी सोचा है आपने कि वाकई ये समस्या इतनी बड़ी है कि एक ही धर्म के दो अलग-अलग गुटों में इतनी रांजिश हो गई कि अपने ईष्ठ से प्रार्थना करने जाने में भी दिक्कत खड़ी कर दी गई.
कौन होते हैं शेख और अंसारी-
- क्या आपने कभी सुना कि अरबी लड़की ने अरब में रहते किसी पाकिस्तानी से शादी की हो। शिया व सुन्नी मुसलमानों में आपस में शादियां नहीं होती, यहां तक कि उनके कब्रिस्तान भी अलग-अलग होते हैं। शिया-सुन्नी टकराव इतना ज्यादा है कि ये एक दूसरे को देखना भी नहीं सुहाते। पाकिस्तान में आए दिन शियाओं की मस्जिद में बम विस्फोट होते हैं और सैंकड़ों जानें चली जाती हैं। मुसलमानों में छोटे-छोटे फिरके हैं जो एक दूसरे से बिल्कुल अगल ही विचारधारा रखते हैं इनमें अहमदिया, बरेलहवी, मुहाजिर, वहावी, बोहरा आदि 300 से ज्यादा फिरके हैं जो स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं। पठान कभी भी अहमदियों से अपना शादी संबंध नहीं रखते।
- जिस तरह से हिंदू धर्म में जाति विभाजित है उसी तरह मुस्लिम धर्म भी विभाजित है और ये मूलत: तीन अलग-अलग जातियों को दिखाता है. ये हैं अशरफ, अजलाफ और अरजल (Ashraf, Ajlaf, Arzal). ये विभाजन खास तौर पर एशिया में ही पाया जाता है. हालांकि, ये और भी ज्यादा विभाजित है, लेकिन मूलत: ये ही हैं.
- सबसे ऊपर हैं अशरफ जिन्हें अरब, फारस, तुर्की या अफ्गानी मूल का माना जाता है और माना जाता है कि ये पैगंबर के वंशज हैं. इसमें सैयदों को पैगंबर के वंशजों का माना जाता है. या फिर कुरैशी जिन्हें पैगंबर के कबीले वाला माना जाता है, इसी में आते हैं शेख जिन्हें पैगंबर के अनुयायियों का वंशज माना जाता है, फिर आते हैं पठान जिन्हें अफ्गानिस्तान का माना जाता है और अशरफ जाति में ही मुगलों की भी पीढ़ियां आती हैं जो ईरान और सेंट्रल एशिया से आए थे. अधिकतर अशरफ उलामा होते हैं (अधिकतर सैयद इस उपाधि के लिए जाते हैं.), या फिर किसी ऊंची जगह में होते हैं जैसे जमीनदार आदि. चूंकि अशरफ में शेख भी आते हैं इसीलिए उन्हें ऊंची जाति का माना जाता है.
- दूसरा पायदान है अजलाफ का यानि छोटी जाति का. ये वो लोग हैं जो अपने पेशे से जाने जाते हैं. इनकी पहचान उन लोगों से होती है जिनके पूर्वज अन्य धर्मों से थे और अंत में इस्लाम से जुड़ गए थे. इस जाति के लोगों का पेशा अक्सर खेती, व्यापारी, बुनकार आदि का होता है (अंसानी और जुलाहा सरनेम वाले लोग). खास तौर पर गावों में कई अशराफ ये मानते हैं कि अजलाफ जाति भारतीय मुस्लिम समुदाय का हिस्सा नहीं है और उनसे दूरी बनाकर रखते हैं. यही हुआ शेख और अंसारियों की भिड़ंत में भी क्योंकि अंसारियों को शेख अपने से नीचे मानते है. सबसे नीचे आते हैं अरजल जो धोबी, चमार, हज्जाम जैसे काम करते हैं. उन्हें मुस्लिम समुदाय में अछूत का दर्जा दिया जाता है.
2. हिन्दू धर्म भी इस्लाम की तरह जन्म से जाति नहीं मानता है । यहां जाति शब्द न हो कर वर्ण या व्यवसाय था । अंग्रेजों ने इसे जाति (race) से जोड़ दिया ।
पुराने ज़माने प्रोफेशन सिखाने वाले विद्यालय न होने से बचपन से ही लोग अपने पिता के साथ काम करने लगते थे और युवा होते होते धंधे के गुर सीख जाते थे । और इस वजह से लोगों के व्यवसाय पुश्तैनी होने लगे । ब्राम्हण व्यक्ति की संतान धर्म , कर्म , शिक्षा, वैद्य, ज्योतिष को सीखने लगी , व्यापारी वर्ग अपनी संतान को व्यापार, क्षत्रिय युद्धकला , शूद्र हस्तशिल्प , कारीगरी और अन्य वर्ण सेवा में लग गए । 20वीं शताब्दी में जब व्यवसाय के लिए इंजीनियरिंग, मेडिकल, कानून, शिक्षण के कॉलेज खुलने शुरू हो गए तो यह वर्ण व्यवस्था स्वतः टूटने लगी और आज यह दैनिक जीवन में लगभग समाप्त है ।
व्यवसायिक उच्छताबोध आज भी अपनी जगह है । डॉक्टर, इंजीनियर, व्यवसायी, वकील , न्यायाधीश, आईएएस, किसान (अपने को अन्नदाता कहते हैं) सब अपने को श्रेष्ठ व दूसरे को छोटा मानते हैं जबकि सबका सबसे काम पड़ता है ।
ब्राम्हण भले ही अपने को श्रेष्ठ माने लेकिन उसको भिक्षा अन्य वर्गों से ही मिलती थी । राजा को बिना व्यापारी से धन , ब्राम्हण से सलाह , कारीगरों से हथियार बनवाए और सेवकों से सेवा लिए गुजारा नहीं था ।
3. हिन्दू धर्म को छोड़ कर इस्लाम अपनाने का जब तक कोई विशिष्ट कारण न हो तब तक ऐसा स्वतः होना मुश्किल है । इसके प्रमुख कारण हैं , दबाव , हिन्दू धर्म के बारे में अज्ञानता, झूठा प्रोपेगैंडा या आर्थिक प्रलोभन ।
अक्सर लोग बोलते हैं कि जाति प्रथा से बचने के लिए धर्म परिवर्तन करते हैं । पहले उदाहरण से ही स्पष्ट है कि जाति प्रथा धर्म परिवर्तन के बाद भी कायम रहती है । तो यह सिर्फ आर्थिक प्रलोभन ही हो सकता है क्योंकि दबाव आज भारत में मुश्किल है ।
4. जब ऊंची हिन्दू जाति का व्यक्ति मुस्लिम बनता है तो उसका मुख्य कारण आर्थिक फायदा होता है । अभी फतेहपुर का श्याम सिंह गौतम इसलिए मुस्लिम बना क्योंकि उसको मुस्लिम यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने का ख्वाब दिखाया गया , देश विदेश घूमने , चंदा इकठ्ठा कर के अमीर बनने का फायदा दिखाया गया ।
इन लोगों को लगता है कि कहीं नया नया मुसलमान बनने पर उन्हें नीची जाति का घटिया मुसलमान न मान लिया जाए , बड़े लोगों की मस्जिद में नमाज न पढ़ने दी जाए, तो यह लोग अपने नाम में अपनी हिन्दू जाति लगाए रहते हैं । आप इनके नाम में तोमर , गौतम, खत्री, बाजवा , भट्ट (बट) , नाइक (जाकिर नाइक ) आदि लगा पाएंगे । क्योंकि ऊंची जाति से बना मुसलमान मौलाना बन सकता है ।
5. नीची जाति से जो मुसलमान बनता है उसे कोई विशेष फायदा न होने से वह अपनी जाति के काम से ही जुड़ा रहता है जबकि वह अपनी जाति नाम में नहीं लगाता है । सिर्फ नमाज साथ पढ़ी जाती है । इसलिए यह मुस्लिम भारत सरकार से जातिगत आरक्षण की मांग करते हैं पर सरकार नहीं देती है । संविधान जाति को हिन्दू प्रथा मानता है । अगर आपको आरक्षण भी चाहिए तो हिन्दू बने रहने में क्या दिक्कत थी । तो कुछ प्रलोभन इन्हें भी दिया जाता है , बाद में अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है । दंगे फसाद के समय ऊंची जाति से मुस्लिम बने मौलाना , इन नीची जाति के मुस्लिमों को इस्लाम खतरे में है का खुतबा पढ़कर उत्तेजित करते हैं जिससे यह मार काट करें । बेचारे मारकाट करते भी हैं , बाद में यही लोग पुलिस , कानून , कोर्ट कचहरी के बरसों शिकार होते हैं , मौलाना इसे हिंदुओं पर दोषारोपण कर के बच निकलते हैं । ज़ाकिर नायक जैसे ऊंची जाति वाले मुस्लिम मौलाना आग लगा कर मलेशिया भाग जाते हैं ।
नीची जाति के मुस्लिम इस तरह हमेशा गरीबी में , अशिक्षा में पड़े रहते हैं क्योंकि मौलाना इनको ज्यादा बच्चे पैदा करने , सब कुछ अल्लाह पर छोड़ देने को बोलते रहते हैं और हिंदुओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराते हैं ।
6. भारत में तो मुस्लिमों को अल्पसंख्यक, दयनीय , मजलूम बता कर सब बुराई ढंक जातीं है और इसके लिए भाजपा, हिन्दू , आरएसएस आदि को जिम्मेदार ठहरा देते हैं । लेकिन यही हाल 94 प्रतिशत और 90 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी क्यों है ? 74 साल में पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी जाति प्रथा क्यों जारी है , इसका उत्तर इन अशराफ, अज़लफ , अंसारी, खान, कुरैशी , कसाब, भांड, मिरासी जैसी जातियों में बंटे मुस्लिम नहीं देंगे ।
7. हिंदुओं में जो जाति प्रथा थी भी वह लगातार खत्म हो रही है । सवर्ण जातियों में तो वह समाप्ति की ओर ही है अन्य जातियों में भी अगले 20–25 साल में समाप्त हो जाएगी बशर्ते आरक्षण का सरकारी, राजनीतिक टॉनिक इसे न मिले जैसे सवर्ण को न मिलने से यह समाप्त हो रहा है ।
8. लेकिन मुस्लिमों का जो अरबी, गैर अरबी, शिया , सुन्नी, अहमदिया जैसे 72 विभाजन अलग से हैं जिनके आधार पर मस्जिद, शहर, मुहल्ले , देश तक बंटे हुए हैं और इसके लिए हर साल युद्ध लड़े जाते हैं , आपस में दंगे होते हैं, यह सदियों तक चलेगा । हिन्दू धर्म इन सबसे बरी है । यहां कोई किसी भी मंदिर में जाता है , सिर झुकाता है ,कोई झगड़ा नहीं है । कोई दबाव नहीं है ।
9. जहां तक आर्थिक प्रलोभन की बात है तो अगर सरकार हिंदुओं के बड़े मंदिरों (तिरुपति, वैष्णो देवी आदि ) के खजाने मुक्त कर दे तो इन पैसों से इस्लाम और ईसाई धर्मों की तरह हिंदुओं को भी आर्थिक मदद दी जा सकती है और लोगों को पुनः हिन्दू धर्म में लाया जा सकता है । 100 करोड़ हिंदू अगर 1000 रुपए प्रतिवर्ष भी चंदा दें तो एक लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष से हिन्दू लोगों का आर्थिक उत्थान किया जा सकता है जैसे मुस्लिम और ईसाई मिशनरी करते हैं ।अभी यह चंदा सरकार हड़प लेती है ।
10. एक व्हाट्सअप मेसेज अक्सर चुनाव के समय आता है
टी.वी. चैनल वाले चुनावी कैलकुलेशन करते समय, क्षेत्रवार जनसंख्या प्रतिशत करके बताते हैं तो कुछ इस प्रकार से दिखाते हैं कि इस चुनाव क्षेत्र में
- 28 % मुस्लिम
- 10 % ब्राह्मण
- 08 % ठाकुर
- 04 % जाट
- 05 % लोध राजपूत
- 16 % दलित
- 12 % कुर्मी
- 02 % सिक्ख
- 15 % अन्य , जाति के मतदाता हैं
वो कभी यह क्यों नहीं दिखाते कि इस क्षेत्र में 72 % हिन्दुओं के अलावा 16% सुन्नी और 12% शिया हैं अगर ऐसा दिखाया जाए तब क्या होगा
- हिन्दू --------------- 72 %
- कसाई -------------- 01 %
- अंसारी ------------- 02 %
- हज्जाम ------------- 02 %
- कायमखानी -------- 02 %
- सय्यद -------------- 02 %
- पठान --------------- 02 %
- शेख ----------------- 03 %
- शैफी ----------------- 02 %
- मनिहार ------------ 01 %
- सलमानी ( धोबी) -- 01 %
- इदरीसी ( दर्जी) --- 01 %
- मंसूरी (धुनें) ------- 0.5 %
- बाबर्ची ------------- 01 %
- मिरासी ------------ 0.5 %
- भांड ---------------- 01 %
- अन्य --------------- 04 %
कभी देखा है किसी ने ऐसा टी.वी. या अखबार में ? तो फिर केवल हिंदुओं का ही ऐसा बटवारा क्यो ?
जिन्हें और विस्तार में इस्लामी जातिवाद के बारे में जानना हो वह संजय दीक्षित और फैयाज अहमद फैजी की बातचीत पर आधारित यह वीडियो जरूर देखें , उनके नाक , कान दिमाग सब खुल जाएंगे ।
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