वात्स्यायन या मल्लंग वात्स्यायन भारत के एक प्राचीन दार्शनिक थे। जिनका समय गुप्तवंश के समय (६ठी शताब्दी से ८वीं शताब्दी ) माना जाता है। उन्होने कामसूत्र एवं न्यायसूत्रभाष्य की रचना की। महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र में न केवल दाम्पत्य जीवन का शृंगार किया है वरन कला, शिल्पकला एवं साहित्य को भी संपदित किया है। अर्थ के क्षेत्र में जो स्थान कौटिल्य का है, काम के क्षेत्र में वही स्थान महर्षि वात्स्यायन का है। वह भारत में दूसरी या तीसरी शताब्दी के दौरान थे, शायद पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में।
कामसूत्र के रचयिता वात्स्यायन
चाणक्य और वात्स्यायन के जीवन, स्थिति काल और नामकरण पर अतीत काल से मतभेद चला आ रहा है। हेमचन्द्र, वैजयन्ती, त्रिकाण्ड शेष और नाममालिका कोशों में कौटल्य और वात्स्यायन - ये नाम एक ही व्यक्ति के माने गए हैं। इनके अतिरिक्त चाणक्य, विष्णुगुप्त, मल्लनाग, पक्षिलस्वामी, द्वामिल या द्रोमिण, वररुचि, मेयजित्, पुनर्वसु और अंगुल नाम भी इन्हीं के साथ जोड़े गए हैं।
हिन्दी विश्वकोश ( पृ० २७४ ) में नीतिसार के रचयिता कामन्दक को चाणक्य (कौटल्य) का प्रधान शिष्य कहा गया है। कोशकारों के मत से कामन्दक ही वात्स्यायन था और कामन्दक-नीतिसार में उन्होंने प्रारम्भ में ही कौटल्य का अभिनन्दन कर उनके अर्थशास्त्र के आधार पर नीतिसार लिखने की बात कही है। इसके विपरीत कामन्दकीय नीतिसार की उपाध्याय-निरपेक्षिणी टीका के रचयिता ने कौटल्य ही को न्यायभाष्य, कौटल्य भाष्य ( अर्थशास्त्र ), वात्स्यायनभाष्य और गौतमस्मृतिभाष्य- इन चार भाष्यग्रन्थों को रचयिता माना है। यदि हम कामन्दकीय नीतिसार एवं गौतमधर्मसूत्र के मस्करी भाष्य को देखते हैं तो कौटल्य के लिए 'एकाकी’ और ‘असहाय' विशेषणों के प्रयोग मिलते हैं।
सुबन्धु द्वारा रचित वासवदत्ता में कामसूत्रकार को नाम 'मल्लनाग' उल्लिखित है। कामसूत्र के लब्धप्रतिष्ठ जयमङ्गला टीकाकार यशोधर ने वात्स्यायन का वास्तविक नाम मल्लनाग माना है। इस प्रकार कौटल्य, वररुचि, मल्लनाग सभी को वात्स्यायन कहा जाता है। अभी तक यह निर्णय नहीं किया जा सका है कि वात्स्यायन कौन थे। न्यायभाष्यकर्ता वात्स्यायन और कामसूत्रकार वात्स्यायन एक ही थे, या भिन्न-भिन्न।
जिस प्रकार वात्स्यायन के नामकरण पर मतभेद है उसी प्रकार उनके स्थितिकाल में भी अनेक मतवाद और प्रवाद प्रचलित हैं और कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जीवनकाल ६०० ईसापूर्व तक पहुँचता है।[2] आधुनिक इतिहासकारों में म० म० हरप्रसाद शास्त्री वात्स्यायन को ईसवी पहली शताब्दी का मानने का आग्रह करते हैं किन्तु शेष प्रायः सभी मूर्द्धन्य इतिहासकारों में कुछ तो तीसरी शती और कुछ चौथी शती स्वीकार करते हैं।
सूर्यनारायण व्यास ने कालिदास और वात्स्यायन के कृतित्व की तुलना करते हुए वात्स्यायन को कालिदास के बाद ईसवी पूर्व प्रथम शती की माना है। व्यासजी ने ऐतिहासिक और आभ्यन्तरिक अनेक प्रमाणों द्वारा अपने मत की पुष्टि की है किन्तु उन्होंने वात्स्यायन नाम के पर्यायों की ओर कोई संकेत नहीं किया है।
जानें महर्षि वात्स्यायन के कामसूत्र की 64 कलाएं -
दण्डी ने काव्यादर्श में कला को 'कामार्थसंश्रयाः' कहा है (अर्थात् काम और अर्थ कला के ऊपर आश्रय पाते हैं।) - नृत्यगीतप्रभृतयः कलाः कामार्थसंश्रयाः।
भारतीय साहित्य में कलाओं की अलग-अलग गणना दी गयी है। कामसूत्र में ६४ कलाओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त 'प्रबन्ध कोश' तथा 'शुक्रनीति सार' में भी कलाओं की संख्या ६४ ही है। 'ललितविस्तर' में तो ८६ कलाएँ गिनायी गयी हैं। शैव तन्त्रों में चौंसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है।
कामसूत्र में वर्णित ६४ कलायें निम्नलिखित हैं-
गीतं (१), वाद्यं (२), नृत्यं (३), आलेख्यं (४), विशेषकच्छेद्यं (५), तण्डुलकुसुमवलि विकाराः (६), पुष्पास्तरणं (७), दशनवसनागरागः (८), मणिभूमिकाकर्म (९), शयनरचनं (१०), उदकवाद्यं (११), उदकाघातः (१२), चित्राश्च योगाः (१३), माल्यग्रथन विकल्पाः (१४), शेखरकापीडयोजनं (१५), नेपथ्यप्रयोगाः (१६), कर्णपत्त्र भङ्गाः (१७), गन्धयुक्तिः (१८), भूषणयोजनं (१९), ऐन्द्रजालाः (२०), कौचुमाराश्च (२१), हस्तलाघवं (२२), विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकारक्रिया (२३),.पानकरसरागासवयोजनं (२४), सूचीवानकर्माणि (२५), सूत्रक्रीडा (२६), वीणाडमरुकवाद्यानि (२७), प्रहेलिका (२८), प्रतिमाला (२९), दुर्वाचकयोगाः (३०), पुस्तकवाचनं (३१), नाटकाख्यायिकादर्शनं (३२), काव्यसमस्यापूरणं (३३), पट्टिकावानवेत्रविकल्पाः (३४),तक्षकर्माणि (३५), तक्षणं (३६), वास्तुविद्या (३७), रूप्यपरीक्षा (३८), धातुवादः (३९), मणिरागाकरज्ञानं (४०), वृक्षायुर्वेदयोगाः (४१), मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधिः (४२), शुकसारिकाप्रलापनं (४३), उत्सादने संवाहने केशमर्दने च कौशलं (४४),अक्षरमुष्तिकाकथनम् (४५), म्लेच्छितविकल्पाः (४६), देशभाषाविज्ञानं (४७), पुष्पशकटिका (४८), निमित्तज्ञानं (४९), यन्त्रमातृका (५०), धारणमातृका (५१), सम्पाठ्यं (५२), मानसी काव्यक्रिया (५३), अभिधानकोशः (५४), छन्दोज्ञानं (५५), क्रियाकल्पः (५६), छलितकयोगाः (५७), वस्त्रगोपनानि (५८), द्यूतविशेषः (५९), आकर्षक्रीडा (६०), बालक्रीडनकानि (६१), वैनयिकीनां (६२), वैजयिकीनां (६३), व्यायामिकीनां च (६४) विद्यानां ज्ञानं इति चतुःषष्टिरङ्गविद्या. कामसूत्रावयविन्यः. ॥कामसूत्र १.३.१५ ॥
1- गानविद्या 2- वाद्य - भांति-भांति के बाजे बजाना 3- नृत्य 4- नाट्य 5- चित्रकारी 6- बेल-बूटे बनाना 7- चावल और पुष्पादि से पूजा के उपहार की रचना करना 8- फूलों की सेज बनान 9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना 10- मणियों की फर्श बनाना 11- शय्या-रचना (बिस्तर की सज्जा) 12- जल को बांध देना 13- विचित्र सिद्धियाँ दिखलाना 14- हार-माला आदि बनाना 15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना 16- कपड़े और गहने बनाना 17- फूलों के आभूषणों से शृंगार करना 18- कानों के पत्तों की रचना करना 19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना 20- इंद्रजाल-जादूगरी 21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना | 22- हाथ की फुती के काम 23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना 24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना 25- सूई का काम 26- कठपुतली बनाना, नाचना 27- पहेली 28- प्रतिमा आदि बनाना 29- कूटनीति 30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी 31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना 32- समस्यापूर्ति करना 33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना 34- गलीचे, दरी आदि बनाना 35- बढ़ई की कारीगरी 36- गृह आदि बनाने की कारीगरी 37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा 38- सोना-चांदी आदि बना लेना 39- मणियों के रंग को पहचानना 40- खानों की पहचान 41- वृक्षों की चिकित्सा 42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति | 43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना 44- उच्चाटनकी विधि 45- केशों की सफाई का कौशल 46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना 47- म्लेच्छित-कुतर्क-विकल्प 48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान 49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना 50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना 51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना 52- सांकेतिक भाषा बनाना 53- मनमें कटकरचना करना 54- नयी-नयी बातें निकालना 55- छल से काम निकालना 56- समस्त कोशों का ज्ञान 57- समस्त छन्दों का ज्ञान 58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या 59- द्यू्त क्रीड़ा 60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण 61- बालकों के खेल 62- मन्त्रविद्या 63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या 64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या |
वात्स्यायन ने जिन ६४ कलाओं की नामावली कामसूत्र में प्रस्तुत की है उन सभी कलाओं के नाम यजुर्वेद के तीसवें अध्याय में मिलते हैं। इस अध्याय में कुल २२ मन्त्र हैं जिनमें से चौथे मंत्र से लेकर बाईसवें मंत्र तक उन्हीं कलाओं और कलाकारों का उल्लेख है।
कामसूत्र से सेक्स पोजीशन की जानकारी-
सेक्स के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राचीन भारतीय ग्रंथ 'कामसूत्र' से मिलती है, लोगो के बीच ये प्राचीन भारतीय ग्रंथ 'कामसूत्र' बहुत ही लोकप्रिय है, और लोग इस 'कामसूत्र' को बहुत ही रूचि के साथ पढ़ते है, हम आपको बता दे ये प्राचीन भारतीय ग्रंथ 'कामसूत्र' केवल सेक्स के बारे में ही बल्कि ये मर्द और औरत के जीवन के बारे में बहुत कुछ बताता है, यदि अगर आप आचार्य वात्स्यायन दूआरा बताई गई कामसूत्र की 64 कलाओ को जान लेते है, तो आपको अपने जीवन में कभी भी दुःख नहीं उठाना पड़ेगा |
दोस्तों इस लेख में मै आपको कामसूत्र क्या है, कामसूत्र में क्या लिखा गया है, इससे जुड़े कौन कौन से मिथक है , कामसूत्र दुनिया भर में आखिर क्यों प्रचलित है और कामसूत्र के यौन आसन क्या है कामसूत्र पुस्तक......ऐसे ही और भी बहुत सारी जानकारी के बारे में बताऊंगा , तो चलिए अब हम शुरू करते है-
कामसूत्र क्या है -
अगर इतिहास को देखा जाए तो कामसूत्र उन सभी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में से एक ग्रन्थ है। कामसूत्र ग्रन्थ एक ऐसी ग्रन्थ है, जो हमें सच्चे प्यार का अहसास दिलाता है, यह ग्रन्थ सच्चे प्यार के साथ-साथ सेक्स जैसी परेशानीयों को भी दूर करता है, यह ग्रन्थ समाज में महिला और पुरुष दोनो के रिश्ते और कर्तव्यों को उजागर करना है। अगर 'कामशास्त्र' शब्द का अर्थ 'काम के सिद्धान्त को बताने वाला ग्रंथ' है| कामसूत्र दुनियाभर में 'काम क्रिया' पर लिखा जाने वाला पहला ग्रंथ माना जाता है। कामसूत्र के रचियता महर्षि वात्स्यायन ने कामसूत्र को संस्कृत भाषा में लिखा था। कुछ समय के बाद इस ग्रन्थ को और कई भाषाओ में ट्रांसलेट किया था (जैसे : Hindi , English....) | इतिहास के किसी भी पन्ने में महर्षि वात्स्यायन के बारे में कोई जानकारी मोजूद नहीं है, जो ये साबित करे कि वह जानकारी सही जानकारी है, अगर थोड़ी बहुत सी जानकारी मिलती है , तो वह दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित खजुराहों की मूर्तिकला को देखते हुए मिलती है | खजुराहों की मूर्तिकला से केवल ये अनुमान लगाया जाता है, कि महर्षि वात्स्यायन शायद् इसी स्थान पर रहते थे| अगर देखा जाए तो महर्षि वात्स्यायन द्वारा लिखित कामसूत्र का उद्देश्य केवल यौन संबंधों को उजागर करना नहीं था। महर्षि वात्स्यायन ने काम आनंद के गंभीर विषय पर सैद्धांतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करते हुए, कामसूत्र ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में इस तरह के आनंद को पाने के सभी कर्तव्यों के बारे में बताया गया है। कामसूत्र ग्रंथ में कामसूत्र की 64 कलाए बहुत उपयोगी है |
कामसूत्र पुस्तक -
महर्षि वात्स्यायन ने ग्रन्थ कामसूत्र को सात अध्याय में लिखा है। इन सातो अध्याय महर्षि वात्स्यायन ने जीवन से जुडी साड़ी बाते और साथ में जीवन को आसान बनाने के लिए बहुत सारे उपाय बताये है, जिसको समझकर इन्सान अपने जीवन को सरल और आसन बना सकता है, महर्षि वात्स्यायन ने ग्रन्थ कामसूत्र में सबसे ज्यादा इस बात पर जोर दिया है, कि इन्सान को सेक्स के दोरान की तरह का व्यवहार करना चाहिए, कामसूत्र का आसन, योनि सम्बंधित सभी जानकारी , और किस तरह एक स्त्री को अपने तरह आकर्षित करे ,महर्षि वात्स्यायन ने ग्रन्थ कामसूत्र में कुल 1250 श्लोक लिखे और इन श्लोक के 36 अध्याय बने है | तो आएये दोस्तों ये जानते है कि महर्षि वात्स्यायन ने सातो भागो में क्या बताया है, कामसूत्र के 7 भाग इस प्रकार है-
- भूमिका – कामसूत्र का ये पहला भाग है और इस भाग में कुल पांच अध्याय हैं। इस भाग में प्रेम के बारे में बताया गया है।
- यौन क्रिया के बारे में – कामसूत्र के इस दूसरे भाग में कुल 10 अध्याय हैं। इस भाग में औरत और मर्द यौन इच्छाओं, किस करना , गले लगाना , सेक्स के दौरान महिलाओं की पीड़ा, सेक्स के दोरान महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करे , ओरल सेक्स कैसे करे , आदि के बारे में बताया गया है |
- पत्नी के बारे में – कामसूत्र के इस भाग में कुल 5 अध्याय हैं। इस भाग में मर्दों को शादी के बारे में जरूरी सलाह दी गई है।
- पत्नी का आचरण – इस भाग में दो अध्याय है। ये भाग पत्नियों के आचरण व व्यवहार को बताता है।
- अन्य की पत्नियों के बारे में – कामसूत्र के इस भाग में कुल 6 अध्याय हैं। इस भाग में बताया गया कि कैसे दुसरो की पत्नियों की ओर लोग आकर्षित होते है ।
- वेश्याओं के बारे में- कामसूत्र के इस भाग में कुल 6 अध्याय हैं। इस भाग में बताते हैं कि औरते पैसा पाने के लिए मर्दों के साथ किस प्रकार का प्यार करती हैं।
- सम्मोहित करने के बारे में – कामसूत्र के इस भाग में कुल 2 ध्याय हैं। इनमें किसी को अपनी ओर आकर्षित करने का तरीका बताया गया है |
कामसूत्र के आसन -
कामसूत्र के दूसरे भाग में सेक्स के बारे में जानकारी दी गई है, इस भाग में यौन क्रिया , किस कैसे करे , किन चीजो का प्रयोग सेक्स के दोरान करे और किन चीजो का प्रयोग सेक्स के दोरान न करे , सेक्स के प्रकार और साथ में 64 यौन आसनों को शामिल किया गया है। और इन 64 आसनों में से कुछ आसन हम आपको बताते है -
- उत्फुल्लक (utphallaka)
- उत्पीड़ितक (utpiditaka)
- अवलम्बितक (avalambitaka)
- परावृत्तक (paravrittaka)
- वेणुदारितक (venudaritaka)
- विजृम्भितक(vijrimbhitaka)
- इंद्राणिक (Indranika)
- वेष्टितक (veshititaka)
- भुग्नक (bhagnaka)
- जृम्भितक (jrimbhitaka)
- बाड़वक (vadavaka)
- उत्तान संपुट (uttana samputa)
- पार्शव संपुट (parshva samputa)
- शूलाचितक (shulachitaka)
- पद्मासन (padmasana)
- धेनुक (dhenuka)
- कृषक (Peasant)
सेक्स क्या है -
कामसूत्र के अनुसार, सेक्स हर इन्सान के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें औरत और मर्द न सिर्फ शारीरिक रूप से एक दूसरे से जुड़ते हैं, बल्कि वह मानसिक और आध्यत्मिक रूप से भी एक दूसरे से जुड़ते हैं। सेक्स के दौरान भावनाओं का अपना एक अहम रोल होता है। इसको केवल शारीरिक क्रिया मान लेना बेहद गलत है।
सेक्स कैसे, कब और कहाँ करे -
कामसूत्र ग्रन्थ के अनुसार सेक्स ऐसे कमरे में करना चाहिए जिसमें एक हल्की रौशनी ,हल्की सुगंध जैसे चीजे हो ये चीजे आपके निजी पल को और भी ज्यादा खास बना देती है। लड़की हो या लड़का दोनों को उस समय अपनी सभी चिंताओं को भूल जाना चाहिए| इस समय महिला और पुरुष दोनों को अपने दिमाग को केवल प्रेम पर एकाग्र करना चाहिए। " प्रेम और भावनाओं के साथ किया जाने वाला सेक्स दोनों ही साथियों को पूर्ण संतुष्टि प्रदान करता है।"
कामसूत्र दुनियाभर में प्रचलित कैसे हुआ -
कामसूत्र में केवल सेक्स के बारे में ही नहीं बल्कि इस ग्रन्थ में दुनिया के और भी कई क्रिया कलापों के बारे में बताया गया है, लेकिन पोर्न इंडस्ट्री ने कामसूत्र ग्रन्थ को अपना आधार बनाते हुए कई फिल्मे बनाई जो बहुत ही ज्यादा तेजी से लोगो के बीच फैली, इन फिल्मो में कामसूत्र के बारे में भी बताया गया, जिससे कामसूत्र को एकमात्र सेक्स पोजीशंस की पुस्तक के रूप में देखने लगे | और ये दुनिया में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हो गई।
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