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महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण और उन्हें दूर करने के टिप्स

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वैसे तो हृदय रोग किसी को भी हो सकते हैं लेकिन महिलाओं में यह रोग अधिक होने की सम्भावना होती है। साथ ही महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं। आज के समय में दिल की बीमारी या हृदय रोग बहुत आम हो गया है जिसके कई सारे कारण हो सकते हैं। ये कारण कुछ भी हो सकते हैं जैसे अत्यधिक तनाव होना, ज्यादा सोचना, किसी बात को मन में ही रखना और उससे परेशान रहना, अनियमित खाना, असंतुलित खाना इत्यादि। ये सभी हृदय रोग के कारण हो सकते हैं और भी कारण हम यहाँ देखेंगे। लेकिन इनसे बचाव भी किया जा सकता है। इसके लिए आपको सतर्क रहना बहुत ही जरुरी होगा।

हृदय रोग क्या हैं?:
हृदय रोग को दिल की बीमारी भी कहते हैं। हृदय शरीर का एक बहुत ही अहम् हिस्सा होता है और हृदय अगर कार्य करना बंद कर दें तो व्यक्ति की मृत्यु निश्चित होती है। दिल व्यक्ति के शरीर में बाएं तरफ होता है। व्यक्ति का दिल दिन में लगभग एक लाख बार धड़कता है एवं एक मिनट में 60-90 बार। हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त पहुँचता है। पोषण एवं ऑक्सीजन के लिए हृदय तक रक्त का पहुँचना बहुत ही जरुरी होता है। और यह हृदय तक कोरोनरी धमनियों द्वारा पहुँचता है। जब सही प्रकार से हृदय तक खून नहीं पहुँच पाता तो यह हृदय रोग वाली स्थिति पैदा होती है। कई बार तो हृदय रोग व्यक्ति को जन्म से ही होते हैं जैसे दिल में छेद होना इत्यादि। कुछ लोगों का यह मानना है कि हृदय रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा पाए जाते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। वैसे तो यह ऐसी बीमारी है जो किसी भी व्यक्ति में पाया जा सकता है महिला हो या पुरुष।

हृदय रोग के प्रकार:
हृदय रोग के कई प्रकार के होते हैं। इनके बारे में भी जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है। जिससे इस बीमारी का सही प्रकार से इलाज करवाना संभव हो।

हार्ट अटैक:
हार्ट अटैक तब होता है जब हृदय तक पहुँचने वाले ऑक्सीजन से युक्त खून में अवरोध आ जाता है। हार्ट अटैक कई कारणों से होता है जैसे वसा या फिर कोलेस्ट्रॉल का शरीर में अधिक होना इत्यादि। इनसे हृदय तक खून पहुँचाने वाली धमनियों में प्लेक आ जाता है और हृदय तक खून नहीं पहुँचता। जब हृदय को ऑक्सीजन युक्त खून न मिले तो ह्रदय की मांसपेशियाँ नष्ट हो जाती हैं। और इसी वजह से हार्ट अटैक आता है और व्यक्ति की जान चली जाती है। अगर तीन बार हार्ट अटैक आता है तो तीसरी बार में मांसपेशियाँ बहुत कमजोर हो जाती हैं और इस समय व्यक्ति को बचाना बहुत ही अधिक मुश्किल हो जाता है।

एरिथमिया:
एरिथमिया एक हृदय रोग है जिसमें दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है। एरिथमिया में कभी रोगी के दिल की धड़कन तेज हो जाती है तो कभी दिल की धड़कन बहुत धीमी हो जाती है। जब इलेक्ट्रिक वेव्स ठीक से कार्य नहीं करते तब इस प्रकार की परेशानी होती है। इलेक्ट्रिक वेव्स हृदय की धड़कन को नियंत्रित करते हैं। जब धड़कन अनियमित होती है तो इसका अहसास सीने, गले अथवा गर्दन में भी होने लगता है।

एरिथमिया के लक्षण:
एरिथमिया के लक्षण के कई लक्षण होते हैं जैसे: अचानक दिल की धड़कन तेज होना, अचानक दिल की धड़कन धीमे होना, ब्लड प्रेशर कम हो जाना, बोलने में परेशानी होना, सीने में तेज दर्द, सांस लेने में परेशानी होना, अचानक थकान या सुस्ती आ जाना, कुछ पलों के लिए धड़कन रुक जाना या और फिर अचानक चलने लगना, चक्कर आना इत्यादि। अगर ऐसे कोई भी लक्षण आपको दिखाई देते हैं तो आपको एरिथमिया हो सकता है।

एथेरोस्क्लेरोसिस:
एथेरोस्क्लेरोसिस भी एक हृदय रोग ही है इसमें व्यक्ति के दिल में रक्त की सप्लाई कम हो जाती है। हृदय तक सही मात्रा में खून पहुँचना बहुत जरूरी है अगर ऐसा नहीं होता तो एथेरोस्क्लेरोसिस जैसी बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। एथेरोस्क्लेरोसिस होने के कई कारण हो सकते हैं जैसेशरीर में कोलेस्ट्रॉल अत्यधिक बढ़ जाना, हाई ब्लड प्रेशर, कम शारीरिक मेहनत, इंसुलिन हार्मोन की मात्रा घटना, अधिक उम्र और अनुवांशिक कारण एवं अधिक धूम्रपान इत्यादि।

एथेरोस्क्लेरोसिस के लक्षण:
एथेरोस्क्लेरोसिस के कई लक्षण होते हैं इसके प्रति सतर्क रहना बहुत जरुरी है। जैसे: हाथ और पैरों में कंपकंपी, बिना किसी वजह अचानक सीने में दर्द होना, सांस लेने में परेशानी, हाथ और पैरों में कमजोरी महसूस होना, सिरदर्द की समस्या, समय से पहले माथे पर झुर्रियां, माथे पर झुर्रियां, पैरालिसिस हो जाना, चेहरे का सुन्न पड़ जाना इत्यादि।

कॉन्जेनिटल हार्ट डिफेक्ट्स:
कॉन्जेनिटल हार्ट डिफेक्ट्स भी हृदय की एक बीमारी है। गर्भावस्था में ही शिशु के हृदय में यह बीमारी पाई जाती है। इस समय हृदय और बड़ी रक्त वाहिनियों में विकास होता है और इसी दौरान इस प्रकार के विकारों का जन्म होता है। बच्चा जब गर्भाशय में होता है या जन्म के बिल्कुल बाद हृदय की खराबी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। लेकिन कभी-कभी ये लक्षण समझ नहीं आते और बच्चे के थोड़े बड़े होने के बाद ये लक्षण समझ आते हैं। कुछ स्थिति में तो इलाज संभव है लेकिन कुछ स्थितियों में इनका इलाज संभव नहीं है।

कॉन्जेनिटल हार्ट डिफेक्ट्स के लक्षण:
इसके कई लक्षण होते हैं जैसे बार-बार फेफड़ों में संक्रमण होना, मुंह, कान, नाखूनों और होठों में नीलापन दिखना,सांस लेने में परेशानी होना, शिशु को दूध पीने में परेशानी होना, शारीरिक गतिविधियों के दौरान जल्दी थकान होना, कई बार बच्चे थकान के कारण अचानक बेहोश होना, दूध पीते समय शिशु को पसीना आना, शिशु के पैर, पेट और आंखों में सूजन आना, शिशु का वजन तेजी से कम होने लगना इत्यादि।

कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) या कोरोनरी धमनी रोग:
कोरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) या कोरोनरी धमनी रोग एक गंभीर प्रकार का हृदय रोग होता है। धमनियों में प्लाक जमने से या फिर धमनियों के क्षतिग्रस्त होने की वजह से हृदय में पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुँच पाता और इसी वजह से यह हृदय रोग होता है। यह बहुत ही ज्यादा गंभीर स्थिति होती है। इसके लक्षण इस प्रकार हैं।

रोनरी धमनी रोग के लक्षण:
कोरोनरी धमनी रोग के लक्षण के कई लक्षण होते हैं जैसे: जी मिचलाना, सीने में तेज दर्द होना, सांस लेने में परेशानी होना या सांस तेज हो जाना, सीने में किसी दबाव या खिंचाव का महसूस होना, पेट में गैस बनना या अपच की समस्या, बेचैनी और पसीना निकलना इत्यादि।

कार्डियोमायोपैथी:
कार्डियोमायोपैथी भी एक प्रकार का ह्रदय रोग ही है इसमें हृदय की मांसपेशियां बड़ी और कठोर होती जाती हैं और मांसपेशियां मोटी और कमजोर भी हो जाती हैं। कार्डियोमायोपैथी को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम भी कहा जाता है। जब व्यक्ति बहुत ज्यादा खुश या बहुत ज्यादा दुखी होता है तब व्यक्ति में यह लक्षण देखने को मिलते हैं। कार्डियोमायोपैथी के कारण हार्ट फ़ैल का खतरा रहता है और है ब्लड प्रेशर वाले रोगियों में इसका खतरा अधिक रहता है।

कार्डियोमायोपैथी के लक्षण:
कार्डियोमायोपैथी के कई लक्षण हैं अगर आपको खुद में ये लक्षण दिखाई देते हैं तो आप अपने स्वस्थ्य का ध्यान रखें और जांच करवाएँ। कार्डियोमायोपैथी के लक्षण इस प्रकार हैं: छाती पर दबाव या वजन महसूस होना, सांस लेने में परेशानी होना, पैरों, एड़ियों और तलवों में सूजन, तरल पदार्थ के कारण पेट फूलने लगना, पैरों, एड़ियों और तलवों में सूजन, थकान, छाती पर दबाव या वजन महसूस होना, लेटे हुए खांसी आना इत्यादि।

हार्ट इंफेक्शन या हृदय का संक्रमण:
हार्ट इंफेक्शन या संक्रमण भी हृदय में होना संभव है और बैक्टीरिया तो हर जगह ही पाए जाते हैं। और बैक्टीरिया हमारे शरीर में  भी पाए जाते हैं। जब हृदय से जुडी सामान्य बीमारी भी व्यक्ति को होती है तो ये बैक्टीरिया डैमेज टिशू से चिपकते हैं ये बैक्टीरिया रक्त में पाए जाते हैं। इन्हें एंडोकार्डाइटिस कहते हैं। हृदय की ऊपरी परत को एंडोकार्डियम कहते हैं। इसके कई लक्षण होते हैं।

हार्ट इंफेक्शन के लक्षण:
इसके कई लक्षण होते हैं जिन्हे पहचानना बहुत जरुरी होता है। हार्ट इंफेक्शन के लक्षण इस प्रकार हैं: त्वचा पर चकत्ते होना, खांसी आना, तेज ठंड लगना, बुखार आना, सीने में दर्द इत्यादि।

महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण:
अब बात आती है कि महिलाओं में हृदय रोग के क्या लक्षण होते हैं और इन्हें कैसे पहचाना जाता है। महिलाओं में हृदय रोग के लक्षण इस प्रकार हैं:

  • गर्दन में दर्द होना।
  • जबड़े में दर्द होना।
  • कन्धों में दर्द।
  • कमर में बहुत अधिक दर्द।
  • उदर में दर्द होना।
  • सांसों का या तो तेज़ होना या बहुत धीमे होना।
  • दाहिने हाथ में दर्द होना।
  • उलटी का मन होना।
  • सिर में हल्का दर्द महसूस होना।
  • बेहोशी छाना और थकावट महसूस होना।

जब पुरुष हृदय रोग से पीड़ित होते हैं तो उनमें कुछ अलग प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं और महिलओं में अलग प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। कुछ ऐसे लक्षण भी हैं जो दोनों में सामान्य रूप से दिखाई देते हैं जैसे सीने में तेज़ दर्द का होना, भूख में कमी होना इत्यादि। महिलाओं में यह परेशानी मासिक धर्म समाप्त होने के बाद दिखाई पड़ती है। मीनोपॉस के बाद हृदय कि समस्याएं महिलाओं में बहुत अधिक दिखाई पढ़ने लगती हैं।

महिलाओं में हृदय रोग होने के कारण:
महिलाओं में हृदय रोग के कई कारण हो सकते हैं। कभी-कभी महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही ये कारण दिखाई देने लगते हैं। महिलाओं में हृदय रोग के कारण इस प्रकार हैं:

तनाव:
महिलाओं में हृदय रोग का सबसे बड़ा कारण मानसिक तनाव है। जब महिलायें नौकरी पेशा होती हैं तो उन्हें घर और ऑफिस दोनों ही तरफ से तनाव होता है। और इसकी वजह से ही महिलायें तनाव में रहने लगता है। तनाव में रहने के कई और भी कारण हो सकते हैं जैसे कोई गंभीर बात होना और उसके बारे में सोचते रहना। यह कारण भी हृदय रोगों का कारण बनता है।

मोनोपॉज:
मोनोपॉज महिलाओं में हृदय रोग का बहुत बड़ा कारण होता है। और इसकी वजह से कई प्रकार की अन्य समस्याएँ भी होने लगती है। महिलाओं में हृदय रोग होने का मुख्य कारण मोनोपॉज माना जाता है क्योंकि इसके बाद कई महिलायें हृदय रोग शिकार होती हैं और उनकी जान को भी कई बार खतरा हो जाता है।

अत्यधिक कार्य करना:
कई बार हद से ज्यादा कार्य करने से भी थकावट हो जाती है शरीर और दिमाग दोनों को ही आराम की जरुरत होती है। और महिलायें निरंतर कार्य करती हैं उनकी सोच होती है कि वे अपना कार्य अच्छे तरह से और जल्दी से जल्दी पूरा करें। यह भी हृदय रोग का एक बहुत ही बड़ा कारण है।

महिलाओं में हृदय रोग दूर करने के उपाय:
महिलाओं में हृदय रोग को दूर करने के लिए कई प्रकार के उपाय हैं। इन उपाय को अपनाकर आसानी पूर्वक ह्रदय रोगों से दूर रहा जा सकता है।

योग:
योग एक ऐसा व्यायाम है जिसे करने से तनाव को दूर किया जा सकता है और साथ ही इससे शारीरिक ऊर्जा को भी बढ़ाया जा सकता है। हृदय रोग से बचने और इन्हें दूर करने के लिए सूर्य नमस्कार और प्राणायाम को करना चाहिए। इन्हें करने से कई अन्य बिमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है। इसलिए योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।

खुश रहने का करें प्रयास:
अधिकतर बिमारियों की वजह दुखी और मायूस रहना होती है। इसलिए अगर आप खुश रहे तो हृदय रोग और डिप्रेशन जैसी बीमारियाँ दूर हो जाएँगी। इसलिए आप खुश रहे इसके लिए आपको जो काम करने में ख़ुशी मिलती हैं वह काम करें। खुश रहने से व्यक्ति के जीवन में बहुत परिवर्तन आते हैं।

संतुलित आहार:
असंतुलित आहार भी कई बिमारियों की वजह होता है। इसलिए व्यक्ति को संतुलित आहार लेना चाहिए। संतुलित आहार कई बिमारियों से मुक्ति दिलाता है। खाने में हमेशा पोषक आहार लेना चाहिए। ये आहार इस प्रकार होना चाहिए हरी सब्जियाँ, सूप, जूस, अंकुरित आहार, सलाद इत्यादि।

इन सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए। अगर इन सभी पर विचार किया जाये एवं इनका ध्यान रखा जाये तो हृदय रोगों से दूर रहा जा सकता है। तनाव से दूर रहने के लिए आप अपने पसंद का काम करें लेकिन शराब और नशे की लतों से दूर रहें।

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