शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से आकाशीय पिण्डों की खोज की बात तो आसानी से समझ आ जाती है। पर, यदि कोई कहे कि सौरमंडल के किसी ग्रह की खोज आकाश में टेलीस्कोप द्वारा बाद में, सबसे पहले गणित द्वारा कागज के पन्नों पर हुई, तो दिमाग कुछ चकरा सा जाता है।
भला गणित द्वारा गणना करके किसी ग्रह की खोज कैसे संभव है? पर हमारे सौरमंडल के अंतिम ग्रह नेपच्यून के साथ कुछ ऐसा ही हुआ है। आइए, बात को कुछ विस्तार से जानें।
नेपच्यून की खोज की कहानी
जैसा कि आप जानते है, सबसे छोटे ग्रह Mercury (बुध) से लेकर शनि तक के ग्रहों के बारे में लोग प्राचीनकाल से ही जानते थे। क्योंकि इन्हें आकाश में खुली आंखों से देखा जा सकता है।
शनि (Saturn) के बाद सौरमंडल में सूर्य से शनि तक की दूरी के बराबर खाली स्थान है। जिसके बाद फिर से ग्रहों की श्रृंखला प्रारंभ होती है। अत्यधिक दूरी के कारण इन ग्रहों को खुली आंखों से देखना संभव नहीं है। साधारण दूरबीनों से भी इन्हें नहीं देखा जा सकता।
13 मार्च, सन् 1781 को जर्मन मूल के ब्रिटिश खोलशास्त्री विलियम हशॅल द्वारा अपनी उच्च कोटि की दूरबीन द्वारा आकाश में एक नये ग्रह Uranus (अरुण) की खोज के पहले किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि सूर्य से इतनी दूरी पर उसका कोई ग्रह हो सकता है। इसके पश्चात आकाश का और गहराई से अध्ययन किया जाने लगा।
सन् 1846 की बात है। फ्रांस के खगोलविद और पेरिस ऑब्जर्वेटरी के अध्यक्ष उर्बैन ली वेर्रिएर (Urbain Le Verrier) ने सूक्ष्म गणना करने पर पाया कि यूरेनस की कक्षा में कुछ अनियमितता है। वह आकाश में ठीक उस स्थान पर नहीं है, जहां न्यूटन और केप्लर के खगोलीय सिद्धांतों के अनुसार उसे होना चाहिए था।
अतः उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि यूरेनस के परे अवश्य ही सौरमंडल का कोई अनखोजा ग्रह है, जो उसके रोटेशन को प्रभावित करता है।
उन्होंने बड़ी मेहनत से गणित की मदद से उस अनदेखे ग्रह की कक्षा और द्रव्यमान का निर्धारण किया और आकाश में उस स्थान का भी, जहां उसे होना चाहिए था।
उस समय पेरिस में कोई शक्तिशाली दूरबीन नहीं थी। अतः उन्होंने जर्मनी के खगोलविद जोहान गाले को एक पत्र लिख कर अपने बताए स्थान पर उस ग्रह को खोजने का अनुरोध किया। गाले ने उसी रात अपने दूरदर्शी द्वारा ली वेर्रिएर के बताए स्थान पर आकाश में सौरमंडल के उस नए सदस्य को ढूंढ निकाला।
23 सितंबर, 1846 की उसी रात जर्मनी के एक अन्य खगोलविद हेनरिक लुइस डी अरेस्ट ने भी अपनी दूरदर्शी से एक नए ग्रह का दर्शन किया। इसके पहले सन् 1820 में फ्रांसीसी खगोलविद एलेक्सिस बूवार्ड ने भी यूरेनस के परिक्रमा पथ का अध्ययन करते वक्त यह पाया था कि वह अपनी राह से कुछ विचलित होता है, पर वे इसका कारण नहीं समझ पाए थे।
तो, इस प्रकार इस ग्रह की खोज संयोगवश नहीं हुई। बल्कि, बाकायदा गणितीय सिद्धांतों के आधार पर एक निश्चित स्थान पर आकाश में इसे खोजा गया।
इस ग्रह की खोज से सारी दुनिया अचंभित रह गई। पर, सबसे अधिक धक्का लगा इंग्लैंड के खगोलविदों को! क्योंकि, ली वेर्रिएर से एक वर्ष पूर्व ही लंदन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक युवा छात्र जाॅन काउच एडम्स ने भी गणित के ही आधार पर इस ग्रह की कक्षा और गति का निर्धारण कर दिया था और वहां के खगोलज्ञों को उसके बताए स्थान पर नेपच्यून ग्रह को खोजने का अनुरोध किया था।
लेकिन, उन खगोलज्ञों ने उस विद्यार्थी की बातों पर ध्यान देना उचित नहीं समझा। परिणामस्वरूप, इंग्लैण्ड में अच्छी दूरबीन होते हुए भी इस ग्रह की प्रथम खोज का श्रेय इंग्लैंड को नहीं मिल पाया था। फिर भी, आज ली वेर्रिएर और एडम्स दोनों को संयुक्त से नेपच्यून का खोजकर्ता माना जाता है।
नेपच्यून को आकाश में ली वेर्रिएर से बताए गये स्थान से 1 अंश की दूरी पर तथा एडम्स के बताए गए स्थान से 12 अंश परे हट कर खोजा गया। महान खगोलविद गैलीलियो ने भी अपनी दूरबीन से नेपच्यून को देखा था, उन्होंने इसे कोई तारा समझा।
हल्का हरा और नीला होने के कारण इस ग्रह को रोमन कथाओं के सागर के देवता ‘Neptune’ का नाम दिया गया। इसलिए हमारे यहां इसे ‘वरूण’ की संज्ञा दी गई है।
आकार, दूरी, परिक्रमा और कक्षा
वर्ष 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा प्लूटो को एक बौना ग्रह घोषित किये जाने के पश्चात अब नेपच्यून ही सौरमंडल का अंतिम ग्रह है। नेपच्यून पृथ्वी से चार गुना अधिक चौड़ा है, जिसका व्यास 49,244 किमी. है।
शक्तिशाली दूरबीन से भी यह हरे नीले रंग की एक धुंधली गेंद-सा नजर आता है। यह सूर्य से 4.5 अरब किलोमीटर दूर स्थित है। सूर्य के प्रकाश को यहां तक पहुंचने में 4 घंटे का समय लगता है। सूर्य यहां से एक चमकीले तारे-सा दिखाई देता है। दोपहर में भी यहां शाम जैसी हल्की रोशनी रहती है।
आकार की दृष्टि से यह सौरमंडल का चौथा सबसे बड़ा ग्रह है। इसमें पृथ्वी जैसे 64 ग्रह समा सकते हैं। यद्यपि यह पृथ्वी से 17 गुना भारी है, लेकिन इसका घनत्व अधिक नहीं है। यदि इसे किसी विशाल महासागर में डालना संभव हो तो यह उसमें डूबेगा नहीं, वरन् तैरने लगेगा।
नेपच्यून 19,720 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से 165 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरा करता है; जिसका अर्थ ये हुआ कि जब से इसकि खोज हुई है, तब से आज तक यह एक परिक्रमा भी पूरी नहीं कर पाया है।
नेपच्यून अपनी धुरी पर 16 घंटों में एक चक्कर लगा लेता है। यह अपने अक्ष पर 28 डिग्री झुका हुआ है, जोकि पृथ्वी और मंगल ग्रह के अक्षीय झुकाव के लगभग समान ही है। अक्ष पर पृथ्वी के समान झुका हुआ होने के कारण नेपच्यून पर भी चार अलग-अलग ऋतुएँ होती हैं। प्रत्येक ऋतु लगभग 40 साल लंबी होती है।
नेपच्यून की संरचना और वायुमंडल
नेपच्यून यूरेनस की तरह ही एक विशालकाय बर्फीला ग्रह है। इसका ज्यादातर हिस्सा गर्म तरल पदार्थों, जैसे – पानी, मीथेन और अमोनिया के घने परतों से बना हुआ हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि इन घने परतों के नीचे गर्म पानी का एक सागर है, जो अत्यधिक दबाव के कारण भाप बनकर उड़ता नहीं है।
नेपच्यून की सतह ठोस नहीं अगर आप इस पर खड़े होने कि कोशिस करेगें तो आप हजारों किलोमीटर मोटी गैसीय परतों में डूबतें जाएगे और अंत में इस ग्रह की ठोस कोर पर पहुंचेंगे जो मुख्य रूप से लौह, निकल एवं सिलिकेट से बना हुआ है। नेपच्यून के कोर का द्रव्यमान पृथ्वी के कोर के द्रव्यमान के लगभग बराबर है।
नेपच्यून का वायुमंडल मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम तथा थोड़ी मात्रा में मीथेन से बना हुआ है। नेपच्यून अपने पड़ोसी ग्रह यूरेनस से ज्यादा चमकीला है। यूरेनस के वायुमंडल में भी थोड़ी मात्रा में मीथेन गैस है; जिसके कारण वह भी हल्का नीला और हरे रंग का दिखाई देता है।
इस ग्रह पर पूरे सौरमंडल के ग्रहों की तुलना में सबसे तेज़ रफ्तार हवाएं चलती है। सूर्य से इतनी दूरी तथा कम ऊर्जा प्राप्त होने के बावजूद भी इसपर बृहस्पति से तीन गुना तथा हमारी पृथ्वी से नौ गुना अधिक श्क्तिशाली हवाएं चलती है। ये हवाएं 2000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलते हुए पूरे ग्रह पर में जमे हुए मीथेन के बादलों को उड़ा देती हैं। आपको बता दे कि पृथ्वी पर चलने वाली सबसे तेज हवा की रफ्तार 400 Km/hr है।
वर्ष 1989 में इस ग्रह के दक्षिणी-गोलार्द्ध में एक विशालकाय अंडाकार तूफान देखा गया था, जिसकी रफ्तार 2,414 Km/hr की थी। वह तूफान इतना विशाल था कि हमारी पूरी पृथ्वी उस में आसानी से समा सकती थी। हालांकि, वर्तमान में नेपच्यून के दक्षिणी भाग से वह तूफान समाप्त हो चुका है; लेकिन आज भी इस ग्रह के अन्य हिस्सों में कई छोटे-छोटे तूफान देखे जा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने काले धब्बे के समान दिखने वाले उस तूफान का नाम ‘The Great Dark Spot’ रखा था। उसे आप नीचे की तस्वीर में भी देख सकते है-
नेपच्यून के छल्ले
नेपच्यून सौरमंडल के उन 4 ग्रहों में से एक है, जिनके पास उपग्रही छल्ले (planetary rings) हैं। इन छल्लों की खोज सन् 1989 में वॉयजर-2 स्पेसक्राफ्ट ने कि थी। नेपच्यून के कुल 5 छल्ले हैं। इन छल्लों के नाम हैं – Galle, Leverrier, Lassell, Arago और Adams । इन छल्लों के नाम इस ग्रह के विषय में महत्वपूर्ण खोज करने वाले खगोल विज्ञानियों के नाम पर रखे गए हैं।
इन छल्लों का 20 से 70% भाग धूल कणों से तथा बाकि का हिस्सा अलग-अलग प्रकार के पत्थरों से बना हैं। नेपच्यून के ये छल्ले आसानी से दिखाई नहीं देते; क्योंकि ये बहुत ही गहरे काले रंग के पदार्थों से बने हुए है तथा इनका घनत्व और आकार भी भिन्न-भिन्न हैं। इस ग्रह के सबसे नजदीकी छल्ले का नाम Galle है और सबसे दूर स्थित छल्ले का नाम Adams है।
नीचे दी गई सारणी में पांचों छल्लों के नाम के साथ नेपच्यून ग्रह के केन्द्र से उनकी दूरी और उनकी चौड़ाई को बताया गया है।
नाम | ग्रह के केंद्र से दूरी | चौड़ाई |
गाले | 41,900 किमी. | 2,000 किमी. |
ली वेर्रिएर | 53,200 किमी. | 113 किमी. |
लैसल | 55,400 किमी. | 4,000 किमी. |
अर्गो | 57,600 किमी. | <100 किमी. |
एडम्स | 62,930 किमी. | 15–50 किमी. |
नेपच्यून के उपग्रह
सर्वप्रथम वॉयजर-2 स्पेसक्राफ्ट ने नेपच्यून के सबसे बड़े उपग्रह ट्राइटन (Triton) की तस्वीरें ली थी। नेपच्यून की खोज के 17 दिन बाद 10 अक्टूबर, 1846 को अंग्रेज व्यापारी खगोलशास्त्री विलियम लासेल ने ट्राइटन को खोज निकाला था।
यह नेपच्यून से 3,54,759 किलोमीटर दूर स्थित है तथा 5.9 दिनों (144 घंटे) में इसकी एक परिक्रमा पूरा करता है। नेपच्यून की परिक्रमा यह उसके घूमने की उल्टी दिशा में करता है। सौरमंडल में यही एक बड़ा उपग्रह है जो अपने पितृग्रह की परिक्रमा उल्टी दिशा में करता है।
इसका वायुमंडल पारदर्शी है तथा मीथेन और अमोनिया से भरा हुआ है। यह बर्फ से आच्छादित है और चंद्रमा से कुछ छोटा है। इसका तापमान -240 °C है। यह सौरमंडल का सर्वाधिक ठंडा पिण्ड है। यहां नाइट्रोजन से भरा समुद्र है जिसमें नेपच्यून का प्रतिबिंब देखना भी संभव है। ट्राइटन पर बर्फ के पहाड़ हैं। इन पहाड़ों से गुलाबी बर्फ छिटकर पूरे आकाश में छा जीती है।
नेपच्यून का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है- प्रोटियस। यह 27 घंटे में नेपच्यून की एक परिक्रमा पूरा करता है। इसकी खोज भी वॉयजर-2 ने वर्ष 1989 में कि था।
बाद में इसके अन्य 12 उपग्रहों को भी खोज निकाला गया, ये सभी उपग्रह अत्यंत छोटे और नेपच्यून के वलयों के ही भाग हैं। इस प्रकार अब इसके उपग्रहों की संख्या 14 हो गई है। Triton और Proteus के अलावा इसके अन्य 12 उपग्रहों के नाम इस प्रकार हैं- Naiad, Thalassa, Despina, Galatea, Larissa, Hippocamp, Nereid, Halimede, Sao, Laomedeia, Psamathe और Neso. उपग्रहों के ये सभी नाम छोटे-छोटे यूनानी पौराणिक समुद्री देवताओं के नाम हैं।
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