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नमाज़ के तौर तरीके ही नहीं, शिया और सुन्नियों की अज़ान भी अलग हैं

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सम्पूर्ण विश्व में मुस्लिम समुदाय का वर्चस्व कायम है, बहुत से राष्ट्र है जहाँ पर केवल मुस्लिम समुदाय के लोग ही निवास करते है यदि दूसरे धर्म के लोग वहां पर है, तो इनकी संख्या बहुत ही कम है। पेट्रोलियम  उत्पादन करने वाले देशों में अधिकतर मुस्लिम राष्ट्र ही ।  मुस्लिम धर्म की स्थापना पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने की थी । मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद मुस्लिम समुदाय दो भागों में विभाजित हो गया एक शिया दूसरा सुन्नी ।  इस पेज पर शिया और सुन्नी मुसलमानों में अंतर के विषय में बताया जा रहा है। 

शिया और सुन्नी का इतिहास (History)
इस्लाम धर्म की उत्त्पति सातवीं शताब्दी में मानी जाती है, इसके संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब थे ।  सन 632 में मुहम्मद साहब की मृत्यु हो गयी थी ।  मृत्यु के पहले उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थी इसलिए कई लोग उनका उत्तराधिकारी बनना चाहते है, इसके लिए आपस में कई लोगों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था ।  कुछ लोगों का मानना था कि नए खलीफा को आम सहमति से चुनना चाहिए लेकिन कुछ लोगों का मानना था कि सिर्फ पैगम्‍बर हजरत मुहम्मद साहब के वंशज ही खलीफा बनेंगे। 

‘हज़रत अली’ मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद थे जबकि ‘अबू बक्र’ मुहम्मद साहब के सहायक थे ।  मुहम्मद साहब कि मृत्यु के बाद इन दोनों गुटों में खलीफा की गद्दी के लिए संघर्ष होने लगा। शुरुआत में चूंकि अबू बकर के पक्ष में अधिक लोग थे, इसलिए उन्हें इस्लाम का अगला उत्तराधिकारी या खलीफा चुना गया। 

अबू बकर को उत्तराधिकारी चुनने के कुछ दिन के बाद ही उनकी हत्या कर दी गयी ।  इसके बाद उमर को खलीफा बनाया गया उनकी भी हत्या कर दी गयी । फिर उस्मान को खलीफा बनाया गया कुछ समय के बाद उस्मान की भी हत्या कर दी गयी।  इस प्रकार से तीन खलीफाओं की हत्या कर दी गयी ।  चौथे खलीफा या उत्तराधिकारी हज़रत अली को बनाया गया । 

हज़रत अली को मुहम्मद साहब का पद मिलने के कुछ समय के बाद कुफा की मस्जिद में हज़रत अली की भी हत्‍या कर दी गई।  वर्तमान समय में कुफा की मस्जिद इराक में है। इनकी हत्या के बाद खलीफा का पद उनके बेटों हसन और हुसैन को मिलना था लेकिन यह सत्ता उम्मय्या वंश के मुवैय्या ने ख़लीफ़ा अली को धोखे से मारकर राजनीतिक सत्ता हासिल कर ली और फिर अपने बेटे यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी बना दिया । 


 
यज़ीद ने हसन और हुसैन से खिलाफत (अधीनता) स्वीकार करने को कहा लेकिन इन लोगों ने खिलाफत (अधीनता) को स्वीकार करने से मना कर दिया जिसके बाद विश्व प्रसिद्ध करबला की लड़ाई हुई | जिसमें हसन और हुसैन के पूरे परिवार को समाप्त कर दिया गया | हसन और हुसैन को मुस्लिम समाज में शहीद का दर्जा दिया गया जिनके लिए प्रति वर्ष शोक के रूप में मोहर्रम मनाया जाता है |

शिया कौन है (Who is Shia)?
मुस्लिम समाज में ‘शियत अली’ या अली की पार्टी को जाना जाता है, अथार्त मुहम्मद साहब के दामाद और चचेरे भाई के समर्थन में जो लोग थे उन्हें शिया कहा जाता है ।  शियाओं का मानना है, कि मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों को ही प्राप्त है। अली के बेटे हसन और हुसैन कि मृत्यु खलीफा बनने के लिए संघर्ष करते हुए हुई थी, इसलिए शिया लोग इनकी शहादत पर मातम मनाते है ।  इनकी जनसंख्या मुस्लिम आबादी की 10 प्रतिशत ही है ।  ईरान, इराक, बहरीन, अजरबैजान, यमन में शियाओं का बहुमत है ।  अफगानिस्तान, भारत, कुवैत, लेबनान, पाकिस्तान, कतर, सीरिया, तुर्की, सउदी अरब और यूनाइडेट अरब ऑफ अमीरात में इनकी जनसंख्या सुन्नियों की तुलना में कम है। 

सुन्नी कौन है (Who is Sunni)?
सुन्नी शब्द ‘अहल अल-सुन्ना’ से बना हुआ है, इसका अर्थ परम्परा को मानने वाले लोग यह लोग स्वयं को इस्लाम की सबसे धर्मनिष्ठ और पारंपरिक शाखा के रूप में मानते है।  सुन्नी उन सभी पैगंबरों को मान्यता देते है, जिनका उल्लेख कुरान में किया गया है।  सुन्नी लोग पैगम्बर मुहम्मद साहब को ही अंतिम पैगम्बर मानते है, इनके बाद हुए सभी खलीफाओं को यह सांसारिक शख्शियत के रूप में मान्यता देते है। 

शिया और सुन्नियों की अज़ान में अंतर
अज़ान, मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आने वाली वही आवाज़ है, जिसका मकसद नमाज़ के लिए बुलाना है। 

शिया अज़ान-
अल्लाहु अकबर (4 बार)- अल्लाह सबसे बड़ा है। 
अशहदो अन ला इलाहा इल्लल ला (2 बार)- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई खुदा नहीं है। 
अशहदो अनना मुहम्मदर-रसूल-उल्लाह (2 बार)- मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। 
अशहदो अनना अलियन वली-युल्लाह (2 बार)- मैं गवाही देता हूं कि अली अल्लाह के नुमाइंदे (प्रतिनिधि) हैं। 
हय्या अलस्सलाह (2 बार)- इबादत के लिए चलो। 
हय्या अलल फलाह (2 बार)- समृद्धि, सौभाग्य, सफलता की ओर चलो। 
हय्या अला खैरिल अमल (2 बार)- दुनिया के सबसे बेहतरीन अमल की ओर चलो। 
अल्लाहु अकबर (2 बार)- अल्लाह सबसे बड़ा है। 
ला इलाहा इल्लल ला (2 बार)- अल्लाह के अलावा कोई खुदा नहीं है। 

सुन्नी अज़ान-
अल्लाहु अकबर (4 बार)- अल्लाह सबसे बड़ा है। 
अशहदो अन ला इलाहा इल्लल ला (2 बार)- मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई खुदा नहीं है। 
अशहदो अनना मुहम्मदर-रसूल-उल्लाह (2 बार)- मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं। 
हय्या अलस्सलाह (2 बार)- इबादत के लिए चलो। 
हय्या अलल फलाह (2 बार)- समृद्धि, सौभाग्य, सफलता की ओर चलो। 
अस सलातु ख़ैर अल-मिन अन-नौम (2 बार- सुबह की अजान में)- इबादत सोने के बेहतर है। 
अल्लाहु अकबर (2 बार)- अल्लाह सबसे बड़ा है। 
ला इलाहा इल्लल ला- अल्लाह के अलावा कोई खुदा नहीं है। 

सुन्नी अजान, सुबह की-
पैगंबर के बाद उनके वारिस पर अलग राय का फर्क दोनों समुदायों की अजान के बुनियादी फर्क में नजर आता है। शिया अज़ान में सुन्नी अज़ान से दो लाइनें अलग हैं। 

शिया अजान की पहली अलग लाइन- अशहदो अनना अलियन वली-युल्लाह। 
दूसरी लाइन- हय्या अला खैरिल अमल। 

पहली लाइन, अशहदो अनना अलियन वली-युल्लाह का अर्थ है, मैं गवाही देता हूं कि अली अल्लाह के नुमाइंदे (प्रतिनिधि) हैं. 'अली' वह किरदार है जिसे सुन्नी समुदाय ने पैगंबर के बाद उनका वारिस नहीं माना। 

(सुन्नी समुदाय के मुताबिक, पैगंबर के बाद मुसलमानों के नेता हज़रत अबु-बकर बने. अबु-बकर के बाद हज़रत उमर, उमर के बाद हज़रत उस्मान और उस्मान के बाद हज़रत अली. ये चारों लोग खलीफा कहलाए. शिया, सुन्नियों के मुताबिक पैगम्बर के बाद माने गए तीनों खलीफाओं अबु-बकर, उमर और उस्मान को राजनीतिक रूप से मुसलमानों के नेता कहलाए जाने से इनकार नहीं करते, लेकिन धार्मिक रहबर के नजरिए से इन तीनों को खलीफा नहीं मानते. वे पैगंबर के बाद 'खलीफा' नहीं 'इमाम' को मानताे हैं. उनके मुताबिक, हजरत अली  (रसूल के दामाद) पैगंबर के बाद पहले इमाम और दीन के रहबर बने.)

शिया अजान की दूसरी लाइन, हय्या अला खैरिल अमल का अर्थ है, दुनिया के सबसे बेहतरीन अमल की ओर चलो. यानी वे नमाज अदा करने को दुनिया का सबसे बेहतरीन अमल ( best of action) कहते हैं. वे हर दिन की अजान में इस कहकर पुख्ता करते हैं कि नमाज दुनिया का सबसे बेहतरीन अमल है। 

सुन्नियों की सुबह की अज़ान में शिया अजान की दूसरी लाइन से अलग वाक्य है- अस सलातु ख़ैर अल-मिन अन-नौम. जिसका मतलब है, इबादत सोने के बेहतर है। 

शिया अजान की लाइन का मतलब है- नमाज दुनिया का सबसे बेहतरीन अमल है। 
सुन्नी अजान की लाइन का मतलब है- नमाज, नींद से बेहतर है। 

सुन्नी अजान की लाइन, 'अस सलातु ख़ैर अल-मिन अन-नौम' को उनके धर्म गुरू उमर बिन अल-खत्तब ने 'हय्या अला खैरिल अमल' से बदला था. जिसे सुन्नी समुदाय की इन किताबों में लिखा है। 

  • मिशकत अल-मसाबीह, वॉल्यून 1. पेज नं-142, मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह। 
  • मुवत्ता ऑफ मलिक, किताब 3, हदीथ नंबर 3.1.8
  • किताब अल-फारूक़. अल्लमा शिबली नो-मानी द्वारा लिखित. पेज नंबर-295, करांची में पब्लिश। 
  • किताब इज़ालातुल ख़िफा, वॉल्यूम 3, पेज नंबर- 328, सुनान-ए-अधान। 
  • किताब कन्ज- अल उम्मल वॉल्यूम 4, पेज नंबर- 270, धिकार ए अधन। 
  • सीरत अल हलाबियाह, वॉल्यूम 2, पेज नंबर-303, धिकार ए अधन। 
  • नेल अल अवतार, वॉल्यूम 2, पेज नंबर- 43। 
  • सुनन अल कुबरा, पेज नंबर- 425, अल-बैयहक़्क़ी द्वारा लिखित। 
  • तारीख बगदाद, वॉल्यूम 9, पेज नंबर- 409। 
शिया अज़ान-
अज़ान, हर दिन मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आने वाली वही आवाज़ है, जिसका मकसद नमाज़ के लिए बुलावा देना है। हर दिन की नमाज को पांच हिस्सों में तकसीम किया गया है।  जिनके नाम इस तरह हैं- फजर, ज़ौहर, असर, मग़रिब, इशां। 
  • फजर- सुबह (morning)
  • ज़ौहर- दोपहर (noon)
  • असर- शाम (afternoon)
  • मग़रिब- सूरज डूबने के तुरंत बाद (dusk)
  • इशां- रात (night)
दोनों की नमाज़ में फर्क-
शिया, सुन्नी दोनों फर्ज नमाज बराबर रकात (तादाद) में ही अदा करते हैं. शिया नमाज पढ़ते वक्त जब खड़े होते हैं तो दोनों हाथों को खोलकर नमाज़ पढ़ते हैं. सुन्नी समुदाय के ज्यादातर फिरके हाथ बांधकर नमाज़ अदा करते हैं। 
  • मस्ज़िद से दिए जाने वाले अज़ान का अर्थ क्या है
  • इनकी अजान में भी यह स्पष्ट होता है, कि शिया लोग अली को अल्लाह का प्रतिनिधि मानते है और सुन्नी लोग केवल मुहम्मद साहब को ही अल्लाह का प्रतिनिधि मानते है, मुहम्मद साहब के बाद के लोगों को राजनीतिक नेता माना गया है, जिसे सुन्नी लोग इमाम कहते है। 
  • दोनों वर्गों के लोग महदी को इस्लाम का सही भविष्य बताते हैं, जिसके अनुसार जब दुनिया का अंत होगा तो महदी की उत्पत्ति होगी, जिसके बाद सिर्फ इस्लाम ही इस धरती पर रहेगा। 
  • मुस्लिम जनसंख्या में सुन्नियों कि संख्या सबसे अधिक है पुरे विश्व में यह 85 से 90 प्रतिशत के आस- पास है। इन दोनों में सिद्धांत, परम्परा, क़ानून, धर्मशास्त्र और धार्मिक संगठन में अंतर पाया जाता है। यह एक -दूसरे को असली मुसलमान नहीं मानते है। 

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