इस्लामिक निकाह और हिंदू विवाह में बुनियादी फर्क क्या आप कुछ जानते है…या…कुछ जानना चाहते है… ??
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क्या है :—-मुसलमानों की – निकाह – और – हिन्दुओं के विवाह – का अर्थ ..?..
आम तौर पे हम लोगों द्वारा “निकाह” को “विवाह” ही माना जाता है।
लेकिन – मुसलमानों का “निकाह” – हिन्दुओं वाला “विवाह” नहीं है।
जब कोई “मुस्लिम” लड़का किसी लड़की से “निकाह” करता है,
तो मौलवी साहब लड़का और लड़की दोनों से पूछते है…
“क्या आपको इतनी “मेहर” में फलाने से “निकाह” मंजूर है ?”
लड़का और लड़की के तीन बार “कबूल है” बोलने पर “निकाह” मंज़ूर हो जाता है।
अब जानिये – ये मेहर क्या है..?..
मेहर एक “धनराशि” है जो लड़का लड़की को “चुकाता” है या देना “तय” करता है।
अर्थात :– “लड़की की कीमत”…
“निकाह” हिन्दू धर्म वाला “विवाह” नहीं एक “सौदा” है।
इसके लिए — कोर्ट — भी मान चूका है कि :—
हिन्दुओ की “शादी” एक “संस्कार” है और मुसलमानों की “निकाह एक सौदा” है।
हिन्दुओं के विवाह भारतीय संस्कृती में “१६ संस्कारों मे से एक संस्कार” है।
हमारे विवाह “जन्म जन्मान्तर” का रिश्ता होते है।
कोई समझौता नहीं।
हिन्दुओं के “संस्कार सात पीढ़ियों” तक निभाये जाते है,
“वर और वधू” की पिछली “सात पीढियां” को “जांच परख” कर रिश्ते होते है।
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मुसलमान “सगे बहिन भाई” आपस में “अपने बच्चों” का रिश्ता करते है,
ऐसा करने से एक तरफ से “मामा का रिश्ता खत्म” और दूसरी तरफ से “बुआ का रिश्ता” खत्म — तो फिर वो बच्चे – “किसे मामा या किसे बुआ” – कहेंगे।
इस सारे चक्कर में एक बात और भी उभर कर सामने आती है :—-
सगे बहिन भाई – जब आपस में – “समधी समधन” – बन जाते है – तो क्या –??–
हम हिन्दुओं की तरह ही — आपस में — “हंसी ठिठोली” — करते है –??–
जो कि हम हिन्दुओं के — “समधी समधन” — में आम बात है।
हमे तो – ऐसा सोच कर भी – घिन्न आती है।
अपनी ही “सगी बहिन” से “ठिठोली” –??–
————
मित्रों आज दिन देश में करोड़ों हिन्दूओं से — मुसलमानों ने — “अल्तकिया”- के कारण –“मुंहबोले – “बहिन या भाई” — के रिश्ते बना रखे है और हिन्दुओ के घरों में “आते जाते” है,
जब ये लोग अपनी “सगी बहिन” के भी “सगे” नही होते तो क्या “मुंहबोली बहिन” को कैसे “बख्श” देंगे –??– सोचिये —
निकाहरूपी ये –“सौदा रद्द”– करने की शरियत में {इस्लामिक कानून} हर मुसलमान को खुली छुट है,
सिर्फ तीन — तलाक तलाक – बोलते ही सौदा खत्म।
“तीन बार तलाक” चाहे — “मजाक” में या “गुस्से” या “नशे” — में ही बोल दिया तो भी “निकाह खारिज” मानी जाती है।
हमारे यहाँ भारत में भी कई —
मुस्लिम फ़िल्मी हीरों – “हिन्दू हिरोइनों” – को विवाह {निकाह} करके तलाक दे चुके है,
“मौलवी और गवाहों” के सामने तय–”मेहर की–राशि” का भुगतान करो और मामला साफ,
हिन्दू समाज की तरह मुसलमान लड़की गुजारे भत्ते की हकदार नही :— क्यों की,
कोंग्रेस सरकार – “साहबानों प्रकरण” – में ऐसा “कानून” पास कर चुकी है कि,
मुस्लिम महिला “शरीयत” के हिसाब से गुजारे भत्ते की हकदार नही होती,
सिर्फ पहले से तय – “मेहर” – की ही हकदार होती है – इस लिए “गुजारा भत्ता” नही।
मुस्लिम कानून “शरीयत” के अनुसार एक मुसलमान चाहे जितने “निकाह” कर सकता है।
अर्थात “मुस्लिम समाज” में घर की स्थिति “हरम” जैसी होती है।
जहाँ मुस्लिम जितनी चाहे उतनी लड़कियां खरीद कर ला सकते है।
और उन्हें पत्नी बना कर घर में रख सकता है।
क्योकि इस्लाम हर मुसलमान को कई पत्नियां रखने की अधिकार देता है।
“अरब देशों” में “कई घरों” में आज भी “कई कई औरतें” मिल जायेगी,
भारत में हिन्दुओं के साथ बसने के कारण यहाँ ये “बहुपत्नी” चलन कम है,
ये परिवेश का फर्क है लेकिन – “इस्लाम और शरीयत” तो – वो का वो ही है।
इस लिए :–-
हिन्दू लडकियों को किसी मुस्लिम लड़के से शादी की बात सोचने से पहले
ये बातें याद रखनी चाहिए–
एक “हिन्दू लड़की” 15 साल की उम्र पूरा करने के बाद “निकाह” कर सकती है।
“सूप्रीम कोर्ट” से ले के भारत के “सभी कोर्ट” इसको मानते है,
बस शर्त ये है कि लड़की “इस्लाम कबूल” कर ले।
क्योंकि “मुस्लिमो” के लिए देश में उनके लिए “अलग कानून” है।
ऐसे “दोगले कानून” के वजह से घर से भागी हुई “हिन्दू लड़की मुस्लिम” बन जाती है।
होश में आ जाओ हिन्दुओं अब देश “सेकुलर नहीं इस्लामिक” बन चुका है।
की “मुस्लिमो औरतों” के केस में कोर्ट में मुस्लिमो का “शरीयत कानून” ही चलता है।
अब जानिये कैसी होती है – मुसलमानों की रिश्तेदारियां।
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एक बार एक — सच्चा मुसलमान — डिप्रेशन मे आकर
पागल हो गया और वो डॉक्टर के पास गया।
डॉक्टर — तुम पागल कैसे हुए ?
मुसलमान — मैने अपने “मजहब” के मुताबिक एक विधवा से शादी की,
उसकी जवान बेटी से मेरे बाप ने सेटिंग कर ली और शादी कर ली,
तो इस तरह — मेरी वो बेटी — मेरी मां बन गई।
उनके घर बेटी हुई तो वह मेरी बहन हुई, मगर मैं उसकी नानी का शौहर था।
इसलिए वह मेरी — नवासी — भी हुई।
इसी तरह मेरा बेटा — अपनी दादी का – भाई बन गया, और
मैं अपने बेटे का भांजा।
और मेरा बाप — मेरा दामाद — बन गया,
और मेरा बेटा – अपने दादा का साला – बन गया और..
फिर …
डॉक्टर — अरे भाई अब चुप रहो क्या अब मुझे भी पागल करेगा ?
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ऐसी होती है — मुसलमानों की रिश्तेदारियां..
आप को भी – ये रिश्ते समझेंने में – थोड़ा दिमाग पर जोर देना होगा…
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