एक बाल ग्वाल रोजाना अपनी गायों को जंगल में नदी किनारे चराने के लिए ले जाता था ।
जंगल में वह नित्य - प्रतिदिन एक संत के यौगिक क्रियाकलाप देखता था । संत आंखें और नाक बंद कर कुछ यौगिक क्रियाएं करते थे । ग्वाला संत के क्रियाकलाप बड़े गौर से देखता था । एक दिन उससे रहा नहीं गया । उत्सुकतावश उसने संत से यौगिक क्रियाओं के बारे में पूछ लिया ।
बाल ग्वाल के सवाल पर संत ने जवाब दिया कि वह इस तरह से भगवान से साक्षात्कार करते हैं । संत के प्रस्थान करने के बाद ग्वाला भी यौगिक क्रियाओं को दोहराने लगा और इस बात का संकल्प ले लिया कि आज वह भगवान के दर्शन साक्षात करके ही रहेगा । ग्वाले ने अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं और नाक को जोर से दबा लिया । श्वास प्रवाह बंद होने से उसके प्राण निकलने की नौबत आ गई उधर कैलाश पर्वत पर महादेव का आसन डोलने लगा ।
शिव ने देखा कि एक बाल ग्वाल उनसे साक्षात्कार करने के लिए कठोर तप कर रहा है । उसके हठ को देखकर शिव प्रगट हुए और बोले, 'वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं और तुमको दर्शन देने आया हूं ।' ग्वाले ने बंद आंखों से इशारा कर पूछा, 'आप कौन हो ?' भोलेनाथ ने कहा 'मैं वही भगवान हूं, जिसके लिए तुम इतना कठोर तप कर रहे हो ।' ग्वाले ने आंखें खोलीं और सबसे पहले एक रस्सी लेकर आया । चूंकि उसने कभी भगवान को देखा नहीं था, इसलिए उसके सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया । उसने भगवान को पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया और साधु को बुलाने के लिए भागकर गया । संत तुरंत उसकी बातों पर यकीन करते हुए दौड़े हुए आये लेकिन संत को कहीं पर भी भगवान नजर नहीं आए संत ने बाल ग्वाल से कहा - 'मुझे तो कहीं नहीं दिख रहे ।'
तब ग्वाले ने भगवान से पूछा प्रभु, "आप यदि सही में भगवान हो तो साधु महाराज को दिख क्यों नहीं रहे हो ।" तब भगवान ने कहा -'जो भक्त छल कपट रहित, सच्चे मन से मुझे याद करता है, मैं उसको दर्शन देने के लिए दौड़ा चला आता हूं । तुमने निश्छल मन से मेरी आराधना की, अपने प्राण दांव पर लगाए और मेरे दर्शन का दृढ़ संकल्प लिया इसलिए मुझे कैलाश से मृत्युलोक में तुमको दर्शन देने के लिए आना ही पड़ा । जबकि साधु के आचरण में इन सभी बातों का अभी अभाव है । वह रोजाना के क्रियाकलाप करते हैं लेकिन उनके मन में अभी भटकाव है । इसलिए मैं तुमको तो दिखाई दे रहा हूं, लेकिन संत को नहीं ।'
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