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नट-नटी: हरियाणवी लोक-कथा

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एक समय की बात है। महेंद्रगढ़ में राजा सोमदेव राज करते थे। उनके राज्य में गजानन नाम का एक ज्ञानी पंडित रहता था। वह प्रतिदिन भोर होने पर पूजा-अर्चना के बाद राजभवन जाता था। वहां राजा के मस्तक पर चंदन का तिलक लगाता और राज्य की ग्रह-दशा पर चर्चा करता था।

बचपन से राजा सोमदेव की जादू के खेलों में रुचि थी। वे स्वयं भी थोड़ा जादू जानते थे। वे अपने क़द को छोटा करके लोटे की नली से बाहर निकल आते थे। यह राजा का प्रिय खेल था। राजा रोज़ पंडित को यह खेल दिखाते और पंडित राजा की प्रशंसा के पुल बांध देता, “महाराज, आप कमाल का जादू जानते हैं। इस तरह का जादू पूरी दुनिया में और कोई नहीं दिखा सकता है।" राजा अपनी प्रशंसा सुनकर फूले नहीं समाते और पंडित को रोज़ दक्षिणा में एक सोने की मोहर देते थे।

एक दिन पंडित को हरदेव चौधरी के लड़के का लग्न लेकर दूर के एक गांव जाना था। अगले दिन सवेरे तक लौट पाना संभव नहीं था। वहां से दक्षिणा में अच्छी रक़म मिलने वाली थी। पंडित राजा से मिलने वाली सोने की मोहर भी नहीं छोड़ना चाहता था। पंडित ने अपने बेटे लक्ष्मण को पूरी बात समझाई और अगले दिन राजभवन जाने के लिए कहा।

लक्ष्मण बड़ा ख़ुश था। बार-बार मन में दोहरा रहा था कि कल कैसे राजा को तिलक लगाएगा, कैसे राजा की प्रशंसा करेगा। पूरी रात इन्हीं ख़्यालों में कट गई। अगले दिन वह पिता के बताए तरीक़े से धोती-कुर्ता पहनकर, टोपी लगाकर राजभवन पहुंच गया।

राजा रोज़ की तरह बगीचे में झूले पर बैठे थे। लक्ष्मण को आते देखकर पूछा, “क्यों गजानन पंडित नहीं आए?”

“नहीं, पिताजी आज दूर गांव गए हैं। इसलिए तिलक लगाने के लिए मुझे भेजा है।” लक्ष्मण ने उत्तर दिया। उसने राजा के मस्तक पर तिलक लगाया और लौटने लगा।

राजा ने उसको टोका, “अभी कहां जाते हो, ठहरो। तुम्हें अपने जादू का कमाल दिखाता हूं।" राजा ने हमेशा की तरह अपना क़द छोटा किया और पास रखे पानी के लोटे में डुबकी लगाई, फिर नली से बाहर निकल आए।

“कहो छोटे पंडित, रह गए ना दंग। कैसा लगा हमारा जादू?” राजा ने गर्वपूर्वक कहा।

लक्ष्मण को अपने पिता की बात याद नहीं रही। उसने राजा की प्रशंसा करने की अपेक्षा कहा, “इसमें क्या बड़ी बात है। थोड़ा सीख लेने पर कोई भी कर सकता है।" यह उत्तर सुनकर राजा आगबबूला हो गया और गुस्से से बोला, “यह बड़ी बात नहीं है तो तुम ऐसा कुछ करके दिखाओ जिससे सब तुम्हारे जादू का लोहा मान लें। नहीं तो तुम्हारे माता-पिता सहित पूरे परिवार को कोल्हू में पिलवा दूंगा।”

राजा का क्रोध देख लक्ष्मण रोने लगा। वह बगैर दक्षिणा लिए ही घर लौट गया। उसके माता-पिता ने जब पूरी बात सुनी तो वे रोते- गिड़गिड़ाते राजा के पास अपने पुत्र की भूल के लिए क्षमा मांगने गए। लेकिन राजा पर उनकी विनती का कोई असर नहीं हुआ। राजा ने अपनी बात दोहराई, “छह महीने बाद सावन मास की पूर्णमासी के दिन तुम्हारा लड़का कोई अनोखा जादू दिखाएगा, नहीं तो पूरे परिवार को कोल्हू में पिलवा दिया जाएगा।"

लक्ष्मण के माता-पिता रोते-बिलखते घर लौट आए। उसने अपने दुखी माता-पिता को ढांढस बंधाया, “आप दोनों धीरज रखिए। मैं जादू सीखूंगा और इस घमंडी राजा को छह महीने के भीतर अनोखा जादू दिखाऊंगा।"

अगले दिन लक्ष्मण सवेरा होने से पहले ही जादू सीखने की चाह में घर से निकल पड़ा। रास्ते में वह एक पेड़ के नीचे रुका। पेड़ की छांव में बैठते ही उसको झपकी आ गई। नींद में उसने कुछ गिरने की आवाज़ सुनकर अपनी आंखें खोलीं। उसने देखा पेड़ से कुछ दूरी पर एक छाबड़ी रखी थी। पास ही एक बुढ़िया खड़ी थी। इधर-उधर से उड़कर सब्ज़ियां- कद्दू, टमाटर, लौकी, भिंडी आदि छाबड़ी में आकर गिर रही थीं। जब छाबड़ी भर गई तो बुढ़िया के बिना छुए ही उसके सिर के ऊपर कुछ ऊंचाई पर जाकर ठहर गई। बुढ़िया उसी तरह छाबड़ी को लिए वहां से चल दी।

लक्ष्मण ने अपनी आंखें मलीं। वह तुरंत हड़बड़ाकर उठा। उसके मुंह से निकला, “जादूगरनी” और वह बुढ़िया के पीछे हो लिया। बुढ़िया थोड़ी दूर जाने के बाद हरे रंग की एक दीवार के पास रुकी। उसने दीवार को हाथ से धकेला और भीतर घुस गई। लक्ष्मण भी उसके पीछे से घुस गया। भीतर “एक और दीवार थी। दीवार पर एक घेरा बना था। बुढ़िया ने घेरे पर हाथ रखा तो वे एक गुफा में पहुंच गए। बुढ़िया ज़रा सा रुकी तो छाबड़ी अपने आप जाकर ज़मीन पर टिक गई। अब बढ़िया की नज़र लक्ष्मण पर पड़ी। उसने कड़ककर पूछा, “कौन है तू, यहां कैसे घुस आया है?” लक्ष्मण ने अपनी पूरी कहानी रोते हुए बुढ़िया को सुनाई। बुढ़िया का मन पिघल गया। उसने ल्रक्ष्मण को अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। लेकिन एक चेतावनी भी दी कि उसकी मर्ज़ी के बगैर वह गुफा से बाहर नहीं जा सकता है। लक्ष्मण ने यह बात स्वीकार कर ली।

बुढ़िया ने पास खड़ी अपनी बेटी सांवली को भोजन तैयार करने के लिए कहा। तीनों ने ओजन किया और सो गए। धीरे-धीरे लक्ष्मण ने अपनी बातों से बुढ़िया का मन मोह लिया। एक दिन बुढ़िया उसे जादू की विद्या सिखाने के लिए तैयार हो गई। समय बीतते लक्ष्मण व सांवली में प्यार पनपने लगा। बुढ़िया को लक्ष्मण अच्छा लगने लगा था। उसने कोई आपत्ति नहीं की। ख़ुशी से उसने दोनों की शादी करवा दी।

लक्ष्मण को अपने नगर से निकले पांच महीने बीत गए। अब वह जादू के खेल में पारंगत हो गया था उसने अपना और सांवली का नट-नटी का भेष बनाया और राजा के पास गया और राजा से कमाल का 'मरजीवनी' का खेल दिखाने की इजाजत ले ली और समय पर खेल शुरू हो गया। लक्ष्मण और सांवली 'नट-नटी' के वेष में मैदान में आए। जनता के बीच घेरे में उन्‍होंने एक चक्कर लगाया। सबने तालियों से उनका स्वागत किया। नट बने लक्ष्मण ने सूत का एक गोला आकाश की तरफ़ उछाला।

आकाश और धरती के बीच धागे का एक पुल बन गया। आकाश में कोलाहल मच गया। उस शोर की भयंकर आवाजें धरती पर स्पष्ट सुनाई दे रही थीं। नट ने राजा से पूछा, “क्या मैं आकाश में जाकर देख आऊं कि यह युद्ध क्‍यों हो रहा है?”

राजा ने इजाज़त दे दी और कहा, “दो घड़ी बाद लौट आना। यहां सब तुम्हारा 'मरजीवनी' कमाल देखने के लिए बैठे हैं।” “जी महाराज,” नट ने कहा। “लेकिन मुझे अपनी पत्नी की चिंता है। वह यहां किसी को नहीं जानती है।”
“तुम्हारी पत्नी की सुरक्षा का ज़िम्मा हमारा है।” राजा ने कहा।

राजा की आज्ञा ले नट लटके हुए धागे के सहारे आकाश में चढ़ने लगा। धीरे-धीरे वह ज़मीन से दिखाई देना बंद हो गया। सभी नट के लौटने की प्रतीक्षा में थे। तभी आकाश से किसी शरीर के कटे भाग नीचे गिरने लगे। सबने समझा युद्ध में किसी ने नट को मार दिया है। नटी विलाप करने लगी।

लोगों ने उस कटे शरीर के टुकड़ों को अर्थी पर रखा और अंतिम- संस्कार के लिए श्मशान ले गए। नटी भी अपने पति के साथ चिता पर लेट गई। दाह-संस्कार के बाद जब सब लोग श्मशान से लौटे तो देखा नट धागे को पकड़कर नीचे उतर रहा था। सबकी सांसें थम गईं। राजा के तो होश ही उड़ गए। “तुम जीवित हो!” राजा के मुंह से निकला। “मुझे क्या होना था। मैं तो युद्ध देखने गया था।" नट बोला।

“तुम्हारा कटा शरीर नीचे गिरा था, जिसका दाह-संस्कार हम अभी करके आए हैं। तुम्हारी पत्नी भी अपने पतिधर्म को पूरा करने के लिए चिता में भस्म हो गई।" राजा के एक सेवक ने बताया।

“क्या कहा! मैं नहीं मरा तो मेरी पत्नी सती कैसे हो सकती है? लगता है राजा का मन मेरी पत्नी पर आ गया है।” नट ने क्रोधपूर्वक कहा। नट की बातों से सभी हैरान-परेशान थे। किसी के पास कोई उत्तर नहीं था। राजा नट के आगे हाथ जोड़ रहा था, “मुझे माफ़ कर दो, मैं तुम्हारी पत्नी की रक्षा नहीं कर सका।”

राजा की बात सुनकर नट ज़ोर से हंसने लगा और बोला, "राजन, मेरी पत्नी तुम्हारे शयन-कक्ष में कैद है। जाकर देख लो।”

“ऐसा नहीं हो सकता। हमने अपनी आंखों से उसे आग की लपटों में समाते देखा है।" वहां उपस्थित सभी लोग एक साथ बोल उठे।

“चलो, चलकर आप सब अपनी आंखों से देख लो।" नट के कहने पर सब राजा के शयन-कक्ष की ओर गए। नटी राजा के बिस्तर पर रस्सियों से बंधी पड़ी थी।

राजा नटी को वहां पाकर घबरा गया और बोला,
“लेकिन मुझे नहीं मालूम तुम्हारी पत्नी यहां कैसे आई!”
“घबराइए नहीं महाराज, यही तो 'मरजीवनी' विद्या का जादू था।”
सभी ने राहत की सांस ली और हर्षपूर्वक तालियां बजाकर नट की प्रशंसा की।

राजा ने नट को अपना राज-नट नियुक्त किया। उसे बहुत सा इनाम दिया। फिर पूछा, “बोलो और क्या चाहिए? तुम्हारे खेल से हम बहुत प्रसन्‍न हैं।"

नट ने अपने नकली बाल और दाढ़ी-मूंछे हटाईं। चेहरे पर लगा रंग पोँछा और कहा, “राजन, मैं गजानन पंडित का बेटा लक्ष्मण हूं। मैंने छह मास में आपकी विशेष जादू दिखाने की शर्त पूरी कर दी है। अब आप मेरे माता-पिता को क्षमा कर दें।”

राजा की आंखें छलछला गईं। उन्होंने लक्ष्मण को गले से लगाया और बोले, “तुम्हारे माता-पिता धन्य हैं, जिन्हें तुम जैसा पुत्र मिल्रा है। आज से तुम राज-नट और तुम्हारे पिता राज-पंडित हुए।"

अब लक्ष्मण अपने माता-पिता व पत्नी के साथ सुख से रहने ल्रगा।

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