वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा सप्तमी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा माँ का जन्म हुआ था जबकि गंगा सप्तमी के दिन माँ गंगा का पुनर्जन्म हुआ था। इस दिन को गंगा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान कर पूजा करने का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हजार पुत्र भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर माता गंगा को प्रसन्न किया और धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हजार पुत्रों का उद्धार हो सका।
गंगा सप्तमी पर कैसे करें गंगा मैया को प्रसन्न
गंगा सप्तमी को गंगा मैया के पुनर्जन्म का दिन भी कहा जाता है इसलिये इसे कई स्थानों पर गंगा जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व है। यदि गंगा नदी में स्नान करना संभव न हो तो गंगा जल की कुछ बूंदे साधारण जल में मिलाकर उससे स्नान किया जा सकता है। स्नानादि के पश्चात गंगा मैया की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए। भगवान शिव की आराधना भी इस दिन शुभ फलदायी मानी जाती है। इसके अलावा गंगा को अपने तप से पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ की पूजा भी इस दिन की जाती है। इस दिन गंगा पूजन के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी फल मिलता है।
इस विधि से करें स्नान
गंगा सप्तमी पर स्नान करते समय पहले रुद्राक्ष सिर पर रखें। इसके बाद जल सबसे पहले सिर पर डालें और यह मंत्र बोलें-
रुद्राक्ष मस्तकै धृत्वा शिर: स्नानं करोति य:।
गंगा स्नान फलं तस्य जायते नात्र संशय:।।
इसके अलावा ‘ऊं नम: शिवाय’ यह मंत्र भी मन ही मन बोलते रहें। इस मंत्र में रुद्राक्ष को सिर पर रखकर स्नान का फल गंगा स्नान के समान बताया गया है। यह उपाय घर या किसी भी तीर्थ स्नान के समय भी अपनाया जा सकता है। स्नान का यह तरीका तन के साथ मन को भी पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है।
क्यों मनाई जाती है गंगा सप्तमी
अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए भगीरथ ने कड़ा तप कर गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने में कामयाबी हासिल की। भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटा में लपेटकर गंगा के अनियंत्रित प्रवाह को नियंत्रित तो कर लिया लेकिन बावजूद उसके भी गंगा मैया के रास्ते में आने वाले बहुत से वन, आश्रम नष्ट हो रहे थे। चलते-चलते वह जाह्नु ऋषि के आश्रम में पंहुच गईं। जब जाह्नु ऋषि ने गंगा द्वारा मचाई जा रही तबाही को देखा तो वे क्रोधित हो गए और गंगा का सारा पानी पी गए।
भगीरथ को अपना प्रयास विफल दिखाई देने लगा। वह जाह्नु ऋषि को प्रसन्न करने के लिये तप पर बैठ गए। देवताओं ने भी महर्षि से अनुरोध कर गंगा के पृथ्वी पर अवतरित होने के महत्व के बारे में बताया। अब जाह्नु ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपने कान से गंगा को मुक्त कर दिया। मान्यता है कि इसी कारण गंगा को जाहन्वी भी कहा जाता है। जिस दिन उन्होंने गंगा को अपने कान से मुक्त किया वो दिन वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि का दिन था। इसलिए इसे गंगा सप्तमी और जाह्नु सप्तमी भी कहा जाता है।


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