सूकर पालन कम कीमत पर में कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय साबित हो सकता हैं,जो युवक पशु पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहते हैं सूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि सूकर का मांस प्राप्त करने के लिए ही पाला जाता हैं । इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो सूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक प्राप्त होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।
यदि किसान सूकर पालन की शुरुआत करते हैं तो उनके लिए फायदे का सौदा हो सकता है। सूकर पालन कोई भी किसान कर सकता है। इसके मांस में प्रोटीन होने की वजह से इसके मांस की मांग अधिक है। सुअर के मांस को निर्यात कर भी अच्छी आमदनी की जा सकती है। सूकर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इस पशु का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। सूकर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विलासिता के सामान तैयार किये जाते हैं। इसे अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर हो सकते हैं । अपने देश के बेरोजगार ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो सूकर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय साबित हो सकता है, बशर्ते इस व्यवसाय को आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ अपनाया जाये ।यह व्यवसाय किसानों को रोजगार का एक अवसर देता है इसलिए हम कह सकते हैं कि यह किसानों के लिए फायदे का सौदा है लेकिन इसके लिए आवश्यकता है सही जानकारी की।
सूकर पालन के लिए घर बनाते समय सर्दी, गर्मी, वर्षा नमी व सूखे आदि से बचाव का ध्यान रखना चाहिए । सूकरों के घर के साथ ही बाड़े भी बनाने चाहिए । ताकि सूकर बाड़े में घूम-फिर सकें । बाड़े में कुछ छायादार वृक्ष भी होने चाहिए, जिससे अधिक गर्मी के मौसम में सूकर वृक्षों की छाया में आराम कर सकें । सूकरों के घर की छत ढलवां होनी चाहिए और घर में रोशनी व पानी के लिए खुला बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुरली गोलाई में हो ताकि राशन आसानी से खाया जा सके । सूकरों के घर का फर्श समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए । मादा सूकर वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं, सामान्यतया मादा 112 से 116 दिन गर्भावस्था में रहती हैं इस अवस्था में तो विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ब्याने से एक महीना पूर्व मादा को प्रतिदिन तीन किलोग्राम खुराक दी जाती है, ताकि मादा की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा किया जा सके ।
एक नजर में सूकर पालन :
सूकर पालन विश्व के कई देशों में होता है। इसके पालन के मामले में चीन सबसे आगे है। चीन के बाद यूएस, ब्राजील, जर्मनी, वियतनाम, स्पेन, रूस, कनाडा, फ्रांस और भारत हैं। भारत में सुअर उत्पादन आबादी का लगभग 28 प्रतिशत यानी लगभग 14 मिलियन से ज्यादा है। उत्तर–पूर्व के राज्यों में सूकर पालन अधिक होता है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में सूकर पालन किया जाता है।
सूकर पालन की शुरुआत कैसे करें ?
सूअर पालन की शुरुआत करने के लिए पहले सूअर पालन के बारें में हर प्रकार की जानकारी ले लेनी चाहिए. और सूअर पालन की शुरुआत किसान भाइयों को छोटे पैमाने पर करनी चाहिए. इसके लिए अधिक पैसों को जरूरत भी नही होती. सूअर साल में दो या तीन बार नए बच्चों को जन्म देता है. जो एक बार में ही 5 से 12 बच्चों को जन्म देता हैं. ये बच्चे लगभग दो महीने बाद दूध पीना छोड़ देते हैं. अगर बच्चों को उचित पोष्टिक खाना दिया जाये तो प्रत्येक बच्चे आसानी से एक साल में 80 से 100 किलो वजन के हो जाते हैं. किसान भाई सूअर पालन की शुरुआत एक पशु रखकर भी कर सकता हैं. या फिर बड़े पैमाने पर भी इसे शुरू कर सकता हैं. बड़े पैमाने पर शुरू करने के लिए कई तरह की चीजों की जरूरत होती है. जिन पर खर्च भी ज्यादा आता हैं.
सूकर पालन के फायदे :-
मांस उत्पादन में दूसरे पशुओं के मुकाबले सूकर से पर्याप्त मात्रा में मांस प्राप्त हो जाता है। इसका मांस अधिक प्रोटीन वाला होने की वजह से विदेशों में अधिक मांग है। अधिकतर ऐसा खाना जिसको बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, सुअर पालन के जरिए इस खाने को पोषित मांस के रूप में प्राप्त किया जा सकता है। मादा सूकर एक बार में 10 से 12 बच्चों को जन्म देती है। मादा साल में तीन बार बच्चों को जन्म देती है।इस व्यवसाय में इनके रहने के स्थान और अन्य सामग्री पर कम निवेश की आवश्यकता होती है। सूकर का मांस अच्छी गुणवत्तायुक्त प्रोटीन और पोषक मांस के रूप में जाना जाता है इसलिए भारत के साथ इसकी अन्य देशों में भी मांग है।अच्छी आय के नजरिए से इसके पालन से जल्दी ही 6 से 8 महीनों में अच्छी आमदनी होनी शुरू हो जाती है। ज्ञातव्य रहे कि सूकर के मांस का प्रयोग कैमिकल्स के रूप में जैसे सौन्दर्य प्रसाधन व रासायनिक उत्पादों में प्रयोग होने की वजह से इसकी बहुत मांग है।
सूकर पालन में आने वाला खर्च:-
सुअर पालन की शुरुआत करते समय मुख्य रूप से रहने की व्यवस्था, मजदुर- कर्मचारी , भोजन सामग्री, प्रजनन और दवाओं पर खर्च होता है। यदि कोई व्यक्ति 20 मादा सुअर का पालन करता है तो इस हिसाब से 20 वर्ग गज के लिए 150 रुपए प्रति वर्ग गज के हिसाब से 60,000 रूपए, 2 सुअर के लिए 70 प्रतिवर्ग गज के हिसाब से 25,200 रूपए, स्टोर रूम पर आने वाला खर्च लगभग 30,000 रूपए और लेबर में आने वाला खर्च लगभग 60,000 रूपए सालाना खर्च आता है। यदि देखा जाए तो पहले सालाना खर्च लगभग 2,80,000 रूपए आता है। दूसरे साल में इनके प्रजनन और बच्चों पर आने वाला खर्च लगभग 3,00,000 रूपए के आस-पास आता है। इसके अलावा पहले साल का लाभ लगभग 21,200 रूपए, दूसरे साल का लाभ 7,80,000 रूपए और तीसरे साल 16,50,000 रूपए होता है। आने वाले वर्षों में यह आय इसी क्रम में बढ़ती जाती है। आने वाले खर्च के विपरीत किसान इस व्यवसाय से एक अच्छी आय आर्जित सकते हैं।
सुअर पालन के लिए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता :-
सूअर पालन के लिए सरकार की तरफ से वैसे तो किसी तरह की सहायता नही दी जाती. लेकिन लोन के रूप में सरकार की तरफ से छूट दी जाती हैं. इस योजना के अंतर्गत लोन की सुविधा नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा प्रदान की जाती हैं. जिस पर 8 से 15 प्रतिशत तक ब्याज दर लगाई जाती हैं. लेकिन एक लाख तक के लोन पर किसी तरह का ब्याज नही लागत. सूअर पालन हेतु लोन लेने के लिए सुरक्षा के रूप में जमीन या घर के कागजात रखने होते हैं. इस योजना में अधिकतम लाभ आपको सुरक्षा में रखी गई प्रोपर्टी के आधार पर दिया जाता है. इसका ऋण मिलने के बाद उसे एक निशचित अवधि में चुकाना होता है.
सूकर की मुख्य प्रजातियाँ :-
देश में सूकर की काफी प्रजातियाँ हैं लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हल्का सफेद यॉर्कशायर, हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।
सफेद यॉर्कशायर सूकर:-
यह छोटे आकार का जानवर है। यह भारत में पायी जाने वाली सबसे आम नसल है। इसे, इसके भारी दूध उत्पादन और मीट के उत्पादन में वसा की मात्रा कम होने के कारण जाना जाता है। इसका शरीर सफेद रंग का और उस पर काले रंग के धब्बे होते हैं। इनकी टांगे लंबी, डिश के आकार का मुंह, छेद वाले कान और हल्के और लंबे कंधे होते हैं। इस नसल के प्रौढ़ नर सुअर का भार 300-400 किलो और प्रौढ़ मादा सुअर का भार 230-320 किलो होता है। इस नसल का उपयोग मुख्य तौर पर प्रजनन के लिए किया जाता है। इनकी प्रकृति सख्त होती है,जो विभिन्न तरह के जलवायु परिस्थितियों को सहन कर सकती है।
लार्ज वाईट यार्कशायर-
यह छोटे आकार का जानवर है। यह भारत में पायी जाने वाली सबसे आम नसल है। इसे, इसके भारी दूध उत्पादन और मीट के उत्पादन में वसा की मात्रा कम होने के कारण जाना जाता है। इसका शरीर सफेद रंग का और उस पर काले रंग के धब्बे होते हैं। इनकी टांगे लंबी, डिश के आकार का मुंह, छेद वाले कान और हल्के और लंबे कंधे होते हैं। इस नसल के प्रौढ़ नर सुअर का भार 300-400 किलो और प्रौढ़ मादा सुअर का भार 230-320 किलो होता है। इस नसल का उपयोग मुख्य तौर पर प्रजनन के लिए किया जाता है। इनकी प्रकृति सख्त होती है,जो विभिन्न तरह के जलवायु परिस्थितियों को सहन कर सकती है।
मिडल वाईट यार्कशायर-
यह नस्ल भारत के कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में पायी जाती है। यह जल्दी बड़ी होने वाली नस्ल है। यह यॉर्कशायर की तुलना में कम सफल प्रजाति है। इसका रंग सफ़ेद होता है। मादा सूअर का भार 250-340 किलोग्राम और नर सूअर का भार 180-270 किलोग्राम होता है। यह शांत स्वभाव, अच्छी मातृत्व प्रवृत्ति और अच्छी गुणवत्ता वाले मांस के उत्पादन के लिए जाना जाता है। इस नस्ल में बड़े चुभने वाले कान, स्नेब नाक और अच्छी तरह संतुलित या सममित शरीर होता हैं।
लैंडरेस सूकर :
यह नस्ल डेनमार्क में बड़े सफेद यॉर्कशायर के साथ देशी सुअर की क्रॉस ब्रीड करवा कर विकसित की गयी थी। यह मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व भारत में पाया जाता है। यह एक छोटे आकार का जानवर है, इसके शरीर का रंग सफेद और उस पर काळा रंग के धब्बे होते हैं। इसकी त्वचा सफ़ेद, कलमी कान, और मध्यम और हलके पट्ठे होते हैं।लैंड्रेस नस्लें उदर प्रजातियां हैं। प्रौढ़ नर सूअर का वजन 270-360 किलोग्राम और प्रौढ़ मादा सूअर का वजन 200-320 किलोग्राम होता है। इस सूअर का शरीर ज्यादातर यॉर्कशायर की तरह ही होता है। यह अपने उत्कृष्ट प्रजनन के लिए जाना जाता है।
हैम्पशायर सूकर :-
यह नस्ल उत्तर-पूर्व भारत में पायी जाती हैं। यह एक मध्यम आकार का पशु है। यह नस्ल एन. ई. एच. क्षेत्र, मेघालय के लिए आई.सी.ए.आर. रिसर्च कॉम्प्लेक्स पर उपलब्ध है। इस नस्ल को अपने अच्छे शरीर की गुणवत्ता और उच्च गुणवत्ता के मांस उत्पादन के लिए जाना जाता है। तेज उत्पादक, अच्छा स्वभाव और उत्कृष्ट प्रजनक, हेम्पशायर नस्ल की विशेषताएं हैं। इस नस्ल का शरीर काले रंग का होता है और पैरों पर सफेद रंग के निशान होते हैं। इसकी लम्बी नाक, लम्बी टाँगे, मजबूत मांसपेशियों वाला शरीर होता है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलोग्राम और मादा सुअर 250 किलोग्राम होता है। इसका औसत जीवन काल 12 साल का होता है।
घुंघरू सूकर :-
इस प्रजाति के सूकर पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है। सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं। इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।
अन्य नस्ले -
स्वदेशी किस्म-
यह नस्ल उत्तर-पूर्व भारत में पायी जाती हैं। यह नस्ल एन. ई. एच. क्षेत्र, मेघालय के लिए आई.सी.ए.आर. रिसर्च कॉम्प्लेक्स पर उपलब्ध है। यह सभी नस्लों में से एक अच्छी नस्ल मानी जाती है।
डुरोक-
यह नस्ल उत्तर-पूर्व भारत में पायी जाती हैं। यह नस्ल एन. ई. एच. क्षेत्र, मेघालय के लिए आई.सी.ए.आर. रिसर्च कॉम्प्लेक्स पर उपलब्ध है। यह एक अच्छी नस्ल मानी जाती है। इस के शरीर का रंग लाल होता है। ड्यूरोक नस्ल की लम्बाई मध्यम होती है और कान ढके हुए होते हैं। यह नस्ल मुख्य रूप से अमेरिका में उत्पन्न हुई और भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में पायी जाती है। नर सुअर का वजन 500-750 किलोग्राम और मादा सुअर का वजन 204-295 किलोग्राम होता है।
एच एस एक्स-1-
यह नस्ल उत्तर-पूर्व भारत में पायी जाती हैं।यह नस्ल एन. ई. एच. क्षेत्र, मेघालय के लिए आई.सी.ए.आर. रिसर्च कॉम्प्लेक्स पर उपलब्ध है। यह एक अच्छी नस्ल मानी जाती है।
सूकर का विपणन और बाजार :
वैसे तो भारत और नेपाल में सुकर की मांस की काफी अच्छी मांग है। हालांकि क्षेत्रीय मांग के अलावा विदेशों में भारत से इसके मांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह ऐसा पशु है जिसके मांस से लेकर चर्बी तक को काम में लिया जाता है। भारत से लगभग 6 लाख टन से ज्यादा सुअर का मांस दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। इसके मांस का प्रयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधनों और कैमिकल के रूप में प्रयोग होता है इसलिए यह व्यवसाय किसानों के लिए लाभकारी है जिससे वो अच्छा लाभ ले सकते हैं
सूकर पालन का आहार -
खाद्य प्रबंधन:
सूअरों को ऐसी फ़ीड की ज़रूरत होती है जो पौष्टिक हो और उनकी भूख को संतुष्ट कर सके। सूअरों को ताजा खाना बहुत पसंद होता है। वे विभिन्न प्रकार के खाने को पसंद करते हैं जिनमें कई तरह की किस्में और स्वाद हों।वे अलग प्रकार का भोजन जैसे कि जलीय पौधे, फल, नट्स, मांस, झाड़ियों और सभी प्रकार की सब्जियों को विशेष रूप से बंद गोभी को खाते हैं। उन्हें स्वाद और बनावट के लिए मिट्टी खाना भी पसंद होता है। वे अधूरे भोजन और कूड़े को भी ख़ुशी से खाते हैं। सुअर प्रति दिन औसतन 2-3 किलो भोजन खाते हैं। आहार सुअर की आयु और वजन के हिसाब से अलग-अलग होता है। सुअर के आहार में अनाज और प्रोटीन की खुराक होनी चाहिए। मुख्य रूप से उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सुअर के आहार में कसावा, ज्वार, जवी, गेंहू, चावल, बिनौले, मछली का आहार (फिश मील), मक्का चोकर, पूर्व मिश्रित विटामिन और पानी शामिल हैं।सुअर आहार में एक पूरक के रूप में विटामिन बी 12 आवश्यक है।अच्छी वृद्धि के लिए खनिज की खुराक भी दी जानी चाहिए।
नर सूअरों की खुराक:
सूअरों कि उम्र और सेहत के हिसाब से उन्हें खाना दिया जाता है।एक सामान्य सूअर जिसका वजन 100 किलोग्राम हो को 2-2.5 किलोग्राम खाने की आवश्यकता होती है।यदि सूअरों को घर के अंदर रखा जाता है, तो उनको हरी फीड दी जानी चाहिए।
मादा सूअरों की खुराक:
आहार में विटामिन, खनिज और प्रोटीन सामग्री दी जानी चाहिए। गर्भ के दौरान फीड को संभोग से 1-2 पहले बढ़ाया जाना चाहिए। एक मादा सूअर जिसका वजन 100 किलोग्राम हो को 2.5-3 किलोग्राम खाने की आवश्यकता होती है।
दूध पीते सूअर के बच्चो की खुराक:
पौष्टिक भोजन जिसे क्रीप फ़ीड के नाम से जाना जाता है वह सूअर के बच्चो को दिया जाना चाहिए। 8 सप्ताह की उम्र तक पहुंचने से पहले प्रत्येक सूअर के बच्चे को 10 किलोग्राम क्रीप फ़ीड दी जाती है।
नस्ल की देख रेख-
रहने की व्यवस्था: सुअर पालने के लिए उचित भूमि जो शोर से मुक्त और शांत हो, को चुनें। सूअर पालन के लिए जो भी सुविधाएँ आवशयक होती है वे सभी चुनी हुई भूमि पर होनी चाहिए। सुनिश्चित करें कि पास में बाजार और पशु चिकित्सा सेवा मौजूद हो। उस भूमि को चुनें, जिसमें अच्छा हवा का परवाह, उपयुक्त मौसम और सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हों।
गर्भवती मादा सूअर का रख-रखाव: प्रजनन मुख्य रूप से किया जाता है जब नर और मादा सूअर 8 महीने के हों। प्रजनन के बाद, गर्भावस्था अवधि 115 दिनों के लिए रहती है और वे 8-12 बच्चों को जन्म देती हैं। गर्भवती मादा पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है। बच्चों के जन्म से एक हफ्ता पहले गर्भवती मादा को अलग क्षेत्र, भोजन और पानी दिया जाना चाहिए।
नवजात बच्चो का रख-रखाव: जन्म के बाद बच्चों को गरम जगह पर रखा जाता है। हर एक सूअर के नाल को एक नरम कपडे से साफ़ करना चाहिए। साफ़ करने के बाद नाभि की नाड को हटा देना चाहिए और स्टंप आयोडीन से साफ किया जाना चाहिए। 4 जोड़े के तेज दांतों का कतरन (कटिंग) किया जाना चाहिए। ये थन को नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए जरूरी है। बच्चों 2-3 को सप्ताह बाद सूखी फीड देनी चाहिए।
सिफारिश टीकाकरण: -
सुअर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए उचित समय पर उचित टीके दिए जाने चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक टीकाकरण के साथ हर बार जुएं निकलना भी आवश्यक है। कुछ टीके जैसे कि डीवर्मिंग प्रत्येक वर्ष में एक बार आवश्यक होता है। कुछ प्रमुख टीके या दवाइयां जो सुअर के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जरूरी हैं, इस प्रकार हैं:
- बच्चे के जन्म के 3 और 10 दिनों के बाद, 1ml और 2ml आयरन का इंजेक्शन गर्दन पर दिया जाता है।
- जन्म के 24 घंटों के भीतर ओरल आयरन का पेस्ट बच्चे के मुंह में रखा जाता है।
- बुखार से रोकने के लिए 2-4 सप्ताह का होने पर सुअर को टीका लगा दें।
- लकड़ी को राख भी दिया जाता है क्योंकि यह पशु को महत्वपूर्ण खनिज देता है।
- अच्छे स्वास्थ्य के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली फीड खाद भी दी जाती है।
- यदि किसी भी बीमारी से संबंधित कोई लक्षण दिखाई देते हैं तो तत्काल पशु चिकित्सक से परामर्श करें।
बीमारियां और रोकथाम-
कोलीबैसिलोसिस:
इसमें सबसे पहले दस्त होते हैं और फिर जानवर की अचानक मृत्यु होती है।
उपचार: इस रोग को ठीक करने के लिए पशु को द्रव चिकित्सा या एंटीबायोटिक दवाइयां दी जाती हैं।
कुकड़िया रोग:
दस्त 10-21 दिनों के शिशु को होते हैं।
उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए फ्लूइड थेरेपी या कॉकसीडायस्ट्स दिया जाता है।
भुखमरी (हाइपोग्लाइसीमिया):
सबसे पहले कमजोरी आती है और फिर जानवर की मृत्यु हो जाती है।
उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए डेक्सट्रोज़ समाधान या पूरक आहार दिया जाता है|
एक्जीडेटिव एपिडर्मिटिसः
शरीर की त्वचा पर घाव पाए जाते हैं फिर मृत्यु हो जाती है।
उपचार: विटामिन और त्वचा का बचाव करने वाली एंटीबायोटिक दवाइयां रोग से राहत पाने के लिए दी जाती हैं।
श्वसन रोग:
छींकना, खाँसी और सूअर का विकास रुक जाना इस रोग के लक्षण हैं और कभी-कभी मृत्यु भी हो जाती है।
उपचार: उपयुक्त एंटीबायोटिक दवाइयां देकर या वेंटिलेशन में सुधार करके रोग को ठीक करने में मदद मिलती है।
स्वाइन पेचिश:
इस रोग में खुनी दस्त या दस्त हो जाते हैं और पशु के विकास की दर कम हो जाती है और अंततः पशु की मृत्यु हो जाती है।
उपचार: सुअरो की संख्या को समान्य रख कर इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
प्रोलिफेरेटिव एंटरपैथी:
इस रोग में रक्त या डायरिया के साथ दस्त हो जाते है, विकास दर कम हो जाती है और अंततः पशु की अचानक मौत हो जाती है।
उपचार: प्रोलिफेरेटिव एंटीऑप्टैथी का इलाज करने के लिए आयरन या विटामिन की खुराक दी जाती है।
सरकोप्टीक मैंजे:
इस बीमारी के लक्षण खुजली, खरोंच, रगड़ और विकास दर कम कर रहे हैं।
उपचार: बीमारी का इलाज करने के लिए मिटीसीडल स्प्रे या इंजेक्शन दिए जाते हैं।
आंतों का मरोड़ा: इसका परिणाम पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है।
उपचार: पशु को आहार बदल बदल कर देना इस रोग से छुटकारा पाने में मदद करता है।
आंतरिक कीट (कीड़े): इस रोग में दस्त होता है या कम वृद्धि या निमोनिया होता है।
उपचार: फीड या इंजेक्शन के माध्यम से कीटनाशक दिए जाते हैं जो रोग को ठीक करने में मदद करते हैं।
बच्चा पैदा करने पर कमजोरी: इस बीमारी के लक्षण दूध उत्पादन में कमी, भूख की हानि और शरीर के तापमान में वृद्धि होना है।
उपचार: रोग से इलाज करने के लिए ऑक्सीटोक्सिन या सोजिश ठीक करने वाली दवाएं जानवर को दी जाती हैं।
लंगड़ापन:
इस बीमारी में प्रजनन क्षमता घट जाती है और समय से पूर्व प्रसव भी हो सकता है।
उपचार: इसका कोई गंभीर इलाज नहीं है लेकिन चोटों को रोकने के द्वारा इसे रोका जा सकता है।
योनि स्राव सिंड्रोम: रोग मुख्य रूप से प्रजनन पथ में संक्रमण का कारण बनता है।
उपचार: इस रोग से इलाज करने के लिए सूअर के मादा सूअर के शिशन मुख पर खुली त्वचा का एंटीबायोटिक उपचार दिया जाता है।
मूत्राशय / गुर्दा संक्रमण: मूत्र में खून आना इस रोग का पहला लक्षण है, फिर अचानक पशु की मृत्यु हो जाती है।
उपचार: इस रोग से इलाज करने के लिए सूअर की मूत्र नली का एंटीबायोटिक उपचार किया जाता है।
इरिसिपेलस:
यह रोग में पशु की प्रजनन प्रक्रिया में विफलता या गर्भपात का कारण बनता है।
उपचार: इस बीमारी का इलाज करने के लिए पेनिसिलिन का इंजेक्शन 1 मिलि / 10 किलो वजन के हिसाब से दिया जाता है जो कि इरिसिपेलस को ठीक करने में मदद करता है। बीमारी का इलाज होने तक 3-4 दिनों तक इंजेक्शन जारी रखें।
गैस्ट्रिक अल्सर: इस बीमारी के लक्षण उल्टी, भूख न लगना, गोबर के निचले हिस्से में रक्त आदि हैं और इससे अचानक मौत हो सकती है।
उपचार: गैस्ट्रिक अल्सर से इलाज करने के लिए विटामिन ई को खुराक में मिलकर 2 महीने तक दिया जाता है।
पी. एस. एस. (पोर्सिन तनाव सिंड्रोम):
इसे अत्याधिक ताप के रूप में भी जाना जाता है इसके लक्षण हैं पसीना आना, आंशिक रूप से मृत, धड़कन का बहुत तेज होना या असाधारण तरीके से चलना और बुखार होना आदि।
उपचार: एनेस्थेसिया के तहत डेंट्रालेन सोडियम उपचार एक प्रभावी उपचार है।
आय और व्यय का लेखा-जोखा-
सूअर पालन का व्यवसाय काफी ज्यादा कमाई करने वाला व्यापार है, अगर जानवरों में किसी तरह की बीमारी ना आयें तो. क्योंकि एक उन्नत नस्ल का एक सुअर साल में 20 बच्चों को भी जन्म देता है तो वो बच्चे एक साल बाद बिकने के लिए तैयार हो जाते हैं. और एक सूअर का बाजार भाव 5 से 8 हजार के बीच पाया जाता हैं. जिस हिसाब से 20 बच्चों के बेचने पर औसत कमाई डेढ़ लाख तक की होती हैं. जबकि 20 बच्चों के खाने का अधिकतम खर्च 60 हजार होता है. और बाकी खर्च अगर 30 हजार और मान लिया जाये तो एक सूअर से दो साल में 60 हजार की कमाई हो जाती हैं. जो बाद में सूअरों की संख्या के बढ़ने पर बढती ही जाती हैं.
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