कीड़े अथवा कृमि एक तरह के आंत परजीवी होते हैं जो छोटे बच्चों की आंतों में रहते हैं और बच्चे के आहार से उनके पोषण को प्राप्त करते हैं, जिससे बीमारी होती है। कृमि संक्रमण, जिसे हेल्मिन्थ संक्रमण भी कहा जाता है, बच्चों में पेट के दर्द के प्रमुख कारणों में से एक है। ये संक्रमण बहुत आम हैं और इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के कृमियों, उनके कारणों, लक्षणों और उपचार के बारे में अच्छी तरह से अवगत होना हमेशा बेहतर होता है, ताकि अगर आपका बच्चा किसी संक्रमण से ग्रस्त है तो आप उसका समय पर इलाज करने में मदद कर सकते हैं।
कृमि संक्रमण के प्रकार
अनेक प्रकार के कृमि मानव शरीर के विभिन्न भागों को संक्रमित करते है और वहाँ पलते हैं। वे विभिन्न आकारों और रूपों में मौजूद होते हैं। वे छोटे या लंबे, सपाट या गोल हो सकते हैं, चूषक या तीन होंठ वाले होते हैं और इनका कोई अलग अंग नहीं होता है। शिशुओं और छोटे बच्चों को संक्रमित करने वाले सबसे आम कृमि हैं:
1. टेपवर्म
टेपवर्म को फ्लैटवर्म भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपनी त्वचा के माध्यम से सांस और प्राणवायु व पोषक तत्व लेते हैं। उनके पास आँकड़े और चूषक होते हैं जो आंत में खोंस जाते हैं और अपने मेजबान के आंशिक रूप से पचने वाले भोजन पर पलते हैं। एक टैपवार्म कुछ इंच से 40 फीट या उससे अधिक लंबाई तक बढ़ सकता है। बच्चे इसे आमतौर पर अंडे या इल्ली (लार्वा) के रूप में दूषित भोजन के माध्यम से निगल जाते हैं।
2. राउंडवर्म
राउंडवर्म संक्रमण, जिसे “एस्कारियासिस” भी कहा जाता है, एस्केरिस लुम्ब्रिकोइडेस कृमि के कारण होता है। ये शरीर से खोखले होते हैं, केंचुए के समान दिखाई देते हैं और लंबाई में 30-35 सेंटिमीटर तक बढ़ सकते हैं। राउंडवर्म खारे पानी, मिट्टी या ताजे पानी में रहते हैं और आमतौर पर पालतू जानवरों में पाए जाते हैं जो प्रायः कृमि को मनुष्यों में फैलाते हैं। राउंडवर्म लार्वा (डिंभक) अक्सर आंत से रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं और फेफड़ों तक पहुँच जाते हैं।
3. पिनवर्म या थ्रेडवाॅर्म
पिनवर्म को थ्रेडवाॅर्म के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि वे छोटे, पतले, सफेद और कुलबुलाते कृमि हैं जो मलाशय में रहते हैं। मादा कृमि मलद्वार (गुदा) के आसपास अंडे देती हैं। ये अंडे कपड़े, बिस्तर और अन्य सामग्रियों पर जीवित रह सकते हैं और छूने या साँस लेने पर अंदर चले जाते हैं। शिशुओं और नन्हे बच्चों में पिनवर्म संक्रमण सबसे आम है।
4. हुकवर्म
हुकवर्म आमतौर पर अपर्याप्त स्वच्छता वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। हुकवाॅर्म छोटे परजीवी कृमि होते हैं जिनके मुँह में धारीदार पट्टियां होती हैं, जिसके माध्यम से वे आंतों की दीवार से चिपकजाते हैं। यह संक्रमण, बच्चे के दूषित मिट्टी के संपर्क में आने पर होता है। हुकवर्म लार्वा, इंसान के पैरों की त्वचा खोद कर उसके माध्यम से रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते है।
अपने बच्चों में कृमि संक्रमण के लक्षण कैसे पहचानें ?
अक्सर, एक बच्चे में कृमि संक्रमण के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।क्योंकि संक्रमण बहुत कम होता है इसलिए आप इसे अनदेखी भी कर सकती है। यदि आप खुद से पूछ रहीं हैं कि, ‘क्या बच्चों के पेट में कीड़े हो सकते हैं?’ इसका जवाब है हाँ; निसंदेह बच्चे भी कीड़ो से संक्रमित हो सकते हैं। संक्रमण का प्रकार और गंभीरता के आधार पर, आपको निम्नलिखित चेतावनी के संकेतों को देखना चाहिए:
थूकना: बच्चा बिना किसी कारण के बहुत बार थूकने लगता है क्योंकि कृमि के कारण मुँह में लार बढ़ जाती है।
दुर्गंध-पूर्ण मल: बच्चे के शौच से आने वाली अत्यधिक दुर्गंध का मतलब कृमि के कारण पेट का संक्रमण हो सकता है।
मलद्वार के आसपास खुजली: मादा कृमि आमतौर पर अंडे देने के लिए गुदा में जाती हैं, जिससे मलाशय के आसपास खुजली और परेशानी होती है।
पेट में दर्द: यह आंतों में कृमि होने का सबसे आम संकेत है।
अशांत नींद: खुजली, पेट दर्द और बेचैनी, सब बच्चे की नींद में खलल डालते है।
शिशुओं में कृमि संक्रमण के अन्य संकेत और लक्षण
बच्चे शायद ही कभी संक्रमित होने के लक्षण प्रदर्शित करते हैं और यदि ऐसा है, तो संक्रमण न्यूनतम हो सकता है। इसलिए, यह किसी के ध्यान में नहीं आता है। हालांकि, लक्षणों पर ध्यान रखने और संदेह होने पर बच्चे की जाँच करवाने की सलाह दी जाती है। शिशुओं में प्रचलित विभिन्न प्रकार के कृमि संक्रमण कम या ज्यादा समान लक्षणों का कारण बनते हैं। वे इस प्रकार हैं:
- पेट में दर्द
- थकान
- दस्त
- वजन घटना
- उल्टी
- भूख न लगना
- नींद की कमी
- पीलिया
- चिड़चिड़ापन
- पेट की तकलीफ
- शौच की तकलीफ
- त्वचा की और ज्यादा बिगड़ती हुई स्थिति जैसे की चकत्ते, पित्ती, घाव और अन्य एलर्जी
- परजीवी चयापचय अपशिष्ट द्वारा केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की जलन के कारण बेचैनी होना
- सुस्ती और उत्साह में असामान्य उतार-चढ़ाव
- बार-बार गैस बनना और पेट फूलना
- कब्ज
- व्यवहार में परिवर्तन
शिशुओं में कृमि संक्रमण के कारण क्या हैं?
- संक्रमित सतह के संपर्क में आना
- संक्रमित भोजन या पानी का सेवन करना
- ख़राब स्वच्छता या साफ़-सफाई की कमी
- कच्चे या अधपके भोजन का सेवन
- हाथों को ठीक से न धोना
- संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना
- कृमि संक्रमण निर्धारित करने के परिक्षण
- कच्चा पपीता : उसमें एक एंजाइम है, पैपेन, वह एक कृमिनाशक के रूप में कार्य करता है और आंत में कृमि को नष्ट कर देता है।
- लहसुन: यह कृमि को मारने का एक प्राकृतिक पदार्थ है और परजीवी कृमि को मारने में अत्यधिक प्रभावी है।
- अजवाइन: ये बीज थाइमोल से भरपूर होते हैं, जो आंतों के परजीवी के विकास को रोकने में मदद करते हैं। इसे गुड़ के साथ मिलाकर बच्चों को दिया जा सकता है।
- कद्दू के बीज: इन बीजों में कुकुरबीटासीन होता है यह कृमि को कमज़ोर कर सकता है और शरीर में उनके अस्तित्व को रोक सकता है।
- करेला: यह पेट के कृमि से लड़ने में मदद करता है। पानी और शहद के साथ मिलाने से इसका कड़वापन कम हो जाएगा।
- नीम: इसमें परजीवी विरोधी गुण होते हैं और यह आंतों के विभिन्न कीड़ों को नष्ट करने में उपयोगी होता है।
- गाजर: गाजर में विटामिन ‘ए’ होता है जो एक बच्चे की प्रतिरक्षा को बढ़ाता है और आंतों के परजीवी से लड़ने में मदद करता है। खाली पेट गाजर का सेवन करने से कीड़ों को खत्म करने में मदद मिलती है ।
- हल्दी: यह एक आंतरिक एंटीसेप्टिक है और सभी प्रकार के कीड़ो को मारने के लिए जाना जाता है।
- नारियल: इसमें मजबूत परजीवी विरोधी गुण होते हैं, जिससे यह कृमि के इलाज में फायदेमंद होता है। इसका सेवन सीधे तेल के रूप में किया जा सकता है।
- लौंग: लौंग मौजूदा कृमि और उनके अंडों को नष्ट कर सकती है और भविष्य के संक्रमण को भी रोक सकती है।
- कृमि परजीवी होते हैं जो बच्चे के शरीर से पोषण प्राप्त करते हैं। वे बच्चों के पोषण को प्रभावित करते हैं, उन्हें निम्नलिखित तरीकों से संक्रमित करते हैं:
- कृमि बच्चे के ऊतकों में ही नहीं बल्कि खून में भी रहते और पोषण प्राप्त करते हैं, जिससे लौह तत्व और प्रोटीन की हानि होती है और अक्सर इसके वजह से खून की कमी हो जाती है।
- कुछ कृमि जैसे राउंडवर्म आंत में कुछ विटामिनों के खिलाफ लड़ते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर पोषक तत्व ठीक से नहीं सोख पातेहैं।
- कीड़ो के कारण भूख न लगना, पोषण सेवन में कमी और कमजोरी का कारण बनते हैं।
- कृमि के कारण दस्त और पेचिश, भी होता है, इस लिए शरीर कमजोर हो जाताहै।
- वे बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे का वजन कम हो जाता है और साथ ही उसके कद-काठी पर भी प्रभाव पड़ता है है।
- बच्चे का लंगोट नियमित रूप से बदलें और बदलने के तुरंत बाद अपने हाथों को धोएं।
- घर और आस-पास साफ सफाई रखें।
- सुनिश्चित करें कि बच्चा बाहर जाने के लिए बंद जूते का उपयोग करे और घर आने पर हाथ और पैर धोए।
- बच्चे को पानी से भरे क्षेत्रों के पास खेलने न दें।
- अपने बच्चे के नाखूनों को हमेशा काटें।
- अपने बच्चे को पीने के लिए उबला हुआ और छाना हुआ पानी दें।
- शिशुओं में पेट के कृमि को रोकने के लिए भोजन कच्चा नहीं खाना चाहिए, इसे अच्छी तरह से पकाया जाना चाहिए ।
- फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से साफ पानी में धोना चाहिए।
- कपड़े और बिस्तर की चादरें गर्म पानी से धोएं।
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