लैमन घास को चीन घास के रूप में भी जाना जाता है। लैमन घास में चिकित्सीय और रोगाणुरोधी मूल्य की विस्तृत संख्या है। इसकी पत्तियों का उपयोग मुख्य रूप से दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है। लैमन घास से तैयार दवाइयां का उपयोग सिर दर्द, दांत दर्द और बुखार जैसे विभिन्न समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता है। यह एक सुगन्धित पौधा है जिसकी औसतन ऊंचाई 1-3 मीटर लंबा होता है। पत्ते 125 सैं.मी. लंबे और 1.7 सैं.मी. चौड़े होते हैं। इसे भारत, अफ्रीका, अमरीका और एशिया के उष्ण कटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है। भारत में इसे मुख्यत पंजाब, केरला, आसाम, महांराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उगाया जाता है।
नींबू घास की खेती के लिए आवश्यक जलवायु –
लेमनग्रास की खेती के लिए हमे एक गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है जहा वर्ष भर में 200 से 250 सेमी तक वर्षा होती हो । लैमन ग्रास का पौधा हमे साल भर में 2 से 3 बार उपज देता है. जो की हर कटाई करने के बाद इसकी सिंचाई करने से उत्पादन और आधिक बढ़ता है।
मिट्टी
इसे मिट्टी की कई किस्मों जैसे चिकनी से रेतली, जलोढ़ मिट्टी और अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में उगाया जाता है। यदि इसे रेतली दोमट मिट्टी जो जैविक तत्वों से भरपूर हो, में उगाया जाये तो अच्छे परिणाम देती है। इसे हल्की मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। घटिया जल निकास वाली और अधिक जल जमाव वाली मिट्टी में इसकी खेती करने से परहेज़ करें। इस फसल की वृद्धि के लिए पी एच 5.0 - 8.5 होनी चाहिए।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
OD-19 (Sugandhi): यह किस्म AMPRS, Odakkali, KAU, Kerala द्वारा जारी की गई है। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 1-1.75 मीटर होती है। इसमें 0.3-0.4 % तेल की मात्रा होती है। इसके तेल की उपज 40-50 किलो प्रति एकड़ होती है और खट्टेपन की मात्रा 84-86 % होती है। इसे जलवायु और मिट्टी की काफी मात्रा में उगाया जा सकता है।
Pragathi: इसे CIMAP, Lucknow, U.P. द्वारा जारी किया गया है। इस किस्म के पौधे का कद छोटा और पत्ते गहरे हरे रंग के चौड़े होते हैं। इसके तेल की उपज 0.63 % और खट्टेपन की मात्रा 85-90 % होता है। इसे उप उष्णकटिबंधीय और उष्णकटिबंधीय या उत्तरी मैदानों में उगाया जाता है।
Nima: इसे सी आई एम ऐ पी, लखनऊ, उत्तर- प्रदेश द्वारा जारी किया गया है। इस किस्म का पौधा लंबा और सिट्रल किस्म का होता है। इसके बायोमास की उपज 9-11 मिलियन टन प्रति एकड़ और तेल की उपज 95-105 किलो प्रति एकड़ होती है। इसे भारत के मैदानों में उगाया जाता है।
Cauvery: सी आई एम ऐ पी, लखनऊ, उत्तर- प्रदेश द्वारा जारी किया गया है। इस किस्म के पौधे लम्बे, और तने सफेद रंग के होते है| इसे नमी की स्थितियों में या नदी घाटी के निकट स्थित भारतीय मैदानों में उगाया जाता है।
Krishna: इसे सी आई एम ऐ पी सब सैंटर, बंगलौर द्वारा जारी किया गया है। इसका पौधा मध्यम ऊंचाई का होता है। इसमें बायोमास की मात्रा 8-11 मीटर प्रति एकड़ होती है और तेल की उपज 90-100 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। इसे भारतीय मैदानों में उगाया जाता है।
NLG 84: यह किस्म 1994 में AINRP on M & AP , NDUAT, Faizabad , Uttar Pradesh द्वारा जारी की गई है। यह किस्म लंबी होती है, इसके पत्ते 100-110 सैं.मी. लंबे होते हैं, जिसकी गहरी जामुनी रंग की परत होती है। इसमें तेल की मात्रा 0.4 % और सिट्रल की मात्रा 84 % होती है। यह उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है।
OD 410: यह किस्म ऐ एम पी आर एस उड़कली, के ऐ यू, केरला द्वारा जारी की गई है। इसकी ओलियोरेसिन की उपज 1050 किलोग्राम प्रति एकड़ और ओलियोरेसिन की मात्रा 18.6 % होती है। मैथानोल की निकासी के लिए यह एक अच्छा विलायक है।
ज़मीन की तैयारी
लैमन घास की रोपाई के लिए उपजाऊ और सिंचित ज़मीन की आवश्यकता होती है। बार बार जोताई और हैरो की मदद से जोताई करें। खेत की तैयारी के दौरान दीमक के हमले से फसल को बचाने के लिए लिनडेन पाउडर 10 किलोग्राम प्रति एकड़ में मिलायें। लैमन घास की रोपाई बैडों पर की जानी चाहिए।
बिजाई
बिजाई का समय
मार्च-अप्रैल के महीने में नर्सरी बैड तैयार करें।
फासला
फासला नए पौधों की वृद्धि के अनुसार 60.X 60 सैं.मी. रखें और ढाल बनाने के लिए फासला 90X60 सैं.मी. रखें।
बीज की गहराई
2-3 सैं.मी. की गहराई में बोयें।
बिजाई का ढंग
खेत में रोपाई के लिए दो महीने पुराने पौधों का प्रयोग किए जाते हैं।
बीज
बीज की मात्रा
बीज 1.6-2 किलोग्राम प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
बीज का उपचार
फसल को कांगियारी से बचाने के लिए बिजाई से पहले बीजों को सीरेसन 0.2 % या एमीसान 1 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद बिजाई के लिए बीजों का प्रयोग करें।
पनीरी की देख-रेख और रोपण
लैमन घास के बीजों को आवश्यक लंबाई और 1 -1.5 मीटर की चौड़ाई वाले तैयार बैडों पर बोयें। बीजने के बाद बैडों को कट घास सामग्री से ढक दें|
फिर इसे मिट्टी की पतली परत के साथ ढक दें। नए पौधे रोपाई के लिए 2 महीने में तैयार हो जाते हैं, जब पौधा 12-15 सैं.मी. ऊंचाई पर पहुंच जाता है। रोपाई से पहले खेत अच्छी तरह से तैयार होना चाहिए। रोपाई 15x19 सैं.मी. के फासले पर की जानी चाहिए। नए पौधों को मिट्टी में ज्यादा गहरा ना बोयें इससे बारिश के दिनों में जड़ गलन का खतरा बढ़ जाता है।
खाद
खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)
| UREA | SSP | MURIATE OF POTASH |
| 52 | 125 | 23 |
तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)
| NITROGEN | PHOSPHORUS | POTASH |
| 24 | 20 | 14 |
उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में नाइट्रोजन 24 किलो (यूरिया 52 किलो), फासफोरस 20 किलो (एस एस पी 125 किलो), पोटाश्यिम 14 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 23 किलो) प्रति एकड़ में डालें। अन्य हालातों में नाइट्रोजन 40 किलो प्रति एकड़ में डालें। यह एरोमैटिक प्लांट रिसर्च स्टेशन, ओडाकली (केरला) द्वारा जारी की गई है।
खरपतवार नियंत्रण
खेत को नदीनों से मुक्त करने के लिए हाथों से गोडाई करें। मिट्टी के तापमान को कम करने और नदीनों की रोकथाम के लिए मलचिंग भी एक अच्छा तरीका है। जैविक मलच 1200 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें। एक वर्ष में 2-3 निराई आवश्य करें। जैविक रोकथाम के लिए अल्ट्रा वाइल्ट रेडीएशन या फ्लेम विडिंग का भी प्रयोग किया जा सकता है।
सिंचाई
गर्मियों के मौसम में फरवरी से जून के महीने तक 5-7 अंतराल पर सिंचाइयां करें| जब वर्षा नियमित रूप से नहीं होती तो पहले महीने में 3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई दें और फिर 7-10 दिनों के अंतराल पर दें। गर्मियों के मौसम के दौरान 4-6 सिंचाइयां देनी आवश्यक होती हैं।
हानिकारक कीट और रोकथाम
तना छेदक सुंडी: यह सुंडी तने के नीचे छेद बना देती है और पौधे को अपना भोजन बनाती है। पत्ते का केंन्द्रीय भाग से सूखना इसका पहला लक्षण होता है। इसकी रोकथाम के लिए फोलीडोल E 605 या पैराथियोन की स्प्रे करें।
नीमाटोड: ये कीट पूरे घास को संक्रमित करते हैं। इन कीटों से फसल को बचाने के लिए फेनामिफोस 4.5 किलोग्राम प्रति एकड़ में डालें।
बीमारियां और रोकथाम
कांगियारी: फूल क्रीम रंग में बदलना शुरू हो जाता है। बीमारी शिखर से फूल को संक्रमित करना शुरू कर देती है और फिर धीरे धीरे पूरे फूल पर पहुंच जाती है। कांगियारी से बचाव के लिए फूल बनने से पहले डाइथेन Z-78 @2% की स्प्रे करें या बिजाई से पहले बीजों को सीरीसन 0.2 % या एमीसन-6 1 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।
पत्तों पर लाल धब्बे: इस बीमारी के कारण पत्तों के निचले भाग में भूरे रंग के गोल आकार में धब्बे बन जाते हैं। बाद में ये धब्बे बड़े हो जाते हैं और पूरा पत्ता सूख जाता है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए बाविस्टिन 0.1 % की स्प्रे 20 दिनों के अंतराल पर और डाइथेन एम-45 0.2 % की 3 स्प्रे 10-12 दिनों के अंतराल पर करें।
पत्ते का झुलस रोग: इस बीमारी के कारण पत्ते के शिखर और किनारों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इस बीमारी से पकने से पहले ही पत्ते मर जाते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए 10-12 दिनों के अंतराल पर डाइथेन Z-78 @0.2% की स्प्रे करें या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 % की स्प्रे करें।
कुंगी: इस बीमारी के कारण पत्ते की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे अच्छे से दिखाई देते हैं जिसके बीच में पीले रंग के धब्बे होते हैं। इस बीमारी को रोकने के लिए डाइथेन 0.2 % या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 % या प्लांटवैक्स 0.1 % की 10-12 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
पत्तों का छोटापन : इसके कारण पौधे की ऊंचाई छोटी रह जाती है और पत्ते भी छोटे आकार के होते हैं।इस बीमारी के खतरे को कम करने के लिए डाइथेन Z-78 की फूल आने से पहले 10-12 दिनों के अंतराल पर स्प्रे करें।
फसल की कटाई
रोपाई के 4-6 महीने बाद पौधा उपज देना शुरू कर देता है। कटाई 60-70 दिनों के अंतराल पर करें। कटाई के लिए दराती का प्रयोग करें। कटाई मई के शुरू में और जनवरी के आखिर में करें। कटाई के लिए दराती की सहायता से ज़मीन की सतह से 10-15 सैं.मी. घास की कटाई करें।
कटाई के बाद
कटाई के बाद तेल निकालने की प्रक्रिया की जाती है। तेल निकालने से पहले लैमन घास को सोडियम क्लोराइड के घोल में 24 घंटे के लिए रखें इससे फसल में खट्टेपन की मात्रा बढ़ती है। उसके बाद घास को छांव में रखे और बैग में पैक करके स्थानीय बाजारों में भेज दें। पकी हुई लैमन घास से कई तरह के उत्पाद जैसे लैमन घास तेल और लैमन घास लोशन बनाए जाते हैं।


No comments:
Post a Comment
कमेन्ट पालिसी
नोट-अपने वास्तविक नाम व सम्बन्धित आर्टिकल से रिलेटेड कमेन्ट ही करे। नाइस,थैक्स,अवेसम जैसे शार्ट कमेन्ट का प्रयोग न करे। कमेन्ट सेक्शन में किसी भी प्रकार का लिंक डालने की कोशिश ना करे। कमेन्ट बॉक्स में किसी भी प्रकार के अभद्र भाषा का प्रयोग न करे । यदि आप कमेन्ट पालिसी के नियमो का प्रयोग नही करेगें तो ऐसे में आपका कमेन्ट स्पैम समझ कर डिलेट कर दिया जायेगा।
अस्वीकरण ( Disclaimer )
गोण्डा न्यूज लाइव एक हिंदी समुदाय है जहाँ आप ऑनलाइन समाचार, विभिन्न लेख, इतिहास, भूगोल, गणित, विज्ञान, हिन्दी साहित्य, सामान्य ज्ञान, ज्ञान विज्ञानं, अविष्कार , धर्म, फिटनेस, नारी ब्यूटी , नारी सेहत ,स्वास्थ्य ,शिक्षा ,18 + ,कृषि ,व्यापार, ब्लॉगटिप्स, सोशल टिप्स, योग, आयुर्वेद, अमर बलिदानी , फूड रेसिपी , वाद्ययंत्र-संगीत आदि के बारे में सम्पूर्ण जानकारी केवल पाठकगणो की जानकारी और ज्ञानवर्धन के लिए दिया गया है। ऐसे में हमारा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप किसी भी सलाह,उपाय , उपयोग , को आजमाने से पहले एक बार अपने विषय विशेषज्ञ से अवश्य सम्पर्क करे। विभिन्न विषयो से सम्बन्धित ब्लाग/वेबसाइट का एक मात्र उद्देश आपको आपके स्वास्थ्य सहित विभिन्न विषयो के प्रति जागरूक करना और विभिन्न विषयो से जुडी जानकारी उपलब्ध कराना है। आपके विषय विशेषज्ञ को आपके सेहत व् ज्ञान के बारे में बेहतर जानकारी होती है और उनके सलाह का कोई अन्य विकल्प नही। गोण्डा लाइव न्यूज़ किसी भी त्रुटि, चूक या मिथ्या निरूपण के लिए जिम्मेदार नहीं है। आपके द्वारा इस साइट का उपयोग यह दर्शाता है कि आप उपयोग की शर्तों से बंधे होने के लिए सहमत हैं।