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Pencil का आविष्कार कब और किसने किया ?

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि Pencil Ka Avishkar Kisne Kiya ? एवं इससे जुड़ी हुई अन्य दूसरी जानकारी भी। तो हमारे इस आर्टिकल को शुरू से लेकर अंत तक जरूर पढ़ें।

पेंसिल का आविष्कार कब और किसने किया ?

दोस्तो आज के समय मे हमे लगभग जितनी भी जानकारी बीते हुए कल के बारे में मिलती है , वह सब की सब प्रचीन लेखों , प्राचीन पुस्तको या फिर शिलालेखों में वर्णन के आधार पर मिलती है ।  इनके आधार पर हम कह सकते है कि मनुष्य को शुरू से ही लिखने का शौक रहा होगा । जब वह विकसित मानव की राह पर बढ़ रहा था तब वह अपनी रहने वाली गुफाओं की दीवारों पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बना कर अपनी भावनाओं को प्रकट करता था । धीरे धीरे मानव ने बोलना सीखा और अपनी लिपिया विकसित की तब वह अपने विचारों को पेड़ो की छाल के तालपत्र पर लिखकर संजोने की कोशिश करने लगा । जहाँ पहले वह पत्थरो से दीवारों पर निशान बनाकर अपने आस पास का और अपने जीवन का वर्णन करता था वही अब लकड़ी की बनी कलम ने उसका स्थान ले लिया था ।

धीरे धीरे दुनिया  बदली तो लोगो के लिखने के तरीके और लिखने के औजार भी बदलने लगे । कलम के बाद पेंसिल जैसे एक बहुत ही आरामदायक और शानदार उपकरण की खोज हुई । लेकिन जिस आधुनिक पेंसिल को हम देखते है उसकी खोज अनायास ही हुई थी । आज हम जिस पेंसिल को देखते है वह शुरूआत में ऐसी नही थी । समय के साथ इसमें अनेक परिवर्तन हुई अनेक पदार्थो को इसमें मिलाया गया और इसे ज्यादा सुलभ और सक्षम बनाया गया । आज जिस तरह से पेन का व्यापक उपयोग होता है पहले ऐसा नही था । पहले सबसे ज्यादा व्यापक प्रयोग पेंसिल का ही होता था।  पहली बार सीखने वाले बच्चे को पेंसिल से ही अक्षरो को बनाना सिखया जाता था । आज भी बहुत सी जगह पर विद्यालय जाना शुरू करने वाले बालको को सबसे पहले पेंसिल से ही लिखना सिखाया जाता है ।  ऐसा नही है कि पेन्सिन का उपयोग सिर्फ लिखने के कार्य मे ही होता है , इसका उपयोग कलाकार , चित्रकार भी बहुत ज्यादा लेते है । आज तो पेंसिल के अनेक प्रकार बाजार में उपलब्ध है। आज के इस लेख में हम पेंसिल की खोज कैसे हुई और किसने की के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे ।

पेंसिल की खोज की कहानी –

Pencil Ka Avishkar Kisne Kiya ? पेंसिल की खोज किसी प्रयोगशाला में नही हुई थी और ना ही किसी वैज्ञानिक ने इसके लिए हजारों की संख्या में प्रयोग किये थे । ये तो बस मनुष्य के हाथ मे आया एक नायाब तोहफा था जो कुदरत ने अनायास ही उसे दिया था । बात 1564 की है जब एक रात इंग्लैंड में एक बहुत ही भयंकर तूफान आया था । उस समय तूफान के कारण इंग्लैंड में काफी पेड़ जमीन से उखड़कर गिर गए थे ।  जब सुबह उठकर चरवाहे , अपने पशुओं को चराने ले गए थे तो उस समय एक चरवाहे ने देखा कि एक पेड़ पूरा उखड़ा हुआ है और उसकी जड़ो में काले रंग का बहुत सारा पदार्थ भरा हुआ है । उसने सोचा कि यह तो शायद कोयला होगा इसलिए उसने इसे जलाने की कोशिश की लेकिन वह इसे जला नही पाया तो उसने इसे काला पदार्थ ही नाम दिया । बहुत समय के बाद इस  पदार्थ को ग्रेफाइट नाम दिया गया । शुरुआत में काले पदार्थ को उस चरवाहे ने अपनी बकरियों की पहचान के लिए उन पर लकीर खिंचने के काम मे लिया ।

इसके बाद इसे अनेक चरवाहे अपनी बकरियों की पहचान के लिए निशान बनाने के काम लेने लगे । जब लोगो को इसके बारे में पता चला तो वे इस पदार्थ को काटकर इंग्लैंड के बाजार में बेचने लगे ।  उस समय इसे बाजार में सिर्फ समानो को अंकित करने वाले पदार्थ के नाम से बेचा जाता था । धीरे धीरे लोगो ने इससे लिखना भी शुरू कर दिया । ग्रेफाइट कार्बन का ही एक अपररूप है । यह काफी मुलायम होता है । इसलिए शुरुआत में लोगो को इससे लिखने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था । यह काफी नरम और चिकना भी था तो लोगो ने इसके चारो तरफ कसकर धागा बांध कर इसे काम लेना शुरू किया ।

पेन्सिन का आधुनिक रूप –

1560 से पहले तक लोग ग्रेफाइट को एक सामान्य पत्थर के रूप में ही काम लेते रहे । अच्छे से लिखने के लिए लोगो ने इसके चारो तरह धागा बांधकर भी लिखने का अभ्यास किया लेकिन  आज की तरह लकड़ी के खोल में पेंसिल सबसे पहले 1560 में नजर आयी । 1560 में सबसे पहले इटली के लोगो ने जुपिटर नाम के पेड़ की टहनियों में छेद करके इसमें ग्रेफाइट को भरकर चिपका दिया । और इस तरह से आधुनिक पेसिंल का अविष्कार हुआ था।  लेकिन अभी तक किसी को भी इसका पेटेंट प्राप्त नही हुआ था।  1660 में और ज्यादा आधुनिक तरीके से इसे बनाया जाने लगा । लकड़ी को तराशकर इसमें ग्रेफाइट भरा जाता और इसे चिपका दिया जाता ।

एच और एच बी की खोज –
1790 में जब इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ाई हुई तो इंग्लैंड ने फ्रांस को ग्रेफाइट देने से मना कर दिया । अब फ्रांस में पेंसिल का संकट पैदा हो गया । इस संकट से निकलने के लिए ग्रेफाइट का कोई दूसरा विकल्प तलाशा जाने लगा । इसके लिए निकोलस जाक कोटे को यह काम सौंपा गया । उन्होंने अनेक प्रयोग किये । एक दिन उन्होंने पानी मे चिकनी काली मिट्टी और ग्रेफाइट को मिलाया और इस मिश्रण को सूखने के लिए धूप में रख दिया । जब यह मिश्रण सूख गया तो उन्होंने इसे भट्टी में गर्म करके जलाया तो उन्होंने देखा कि मिट्टी में ग्रेफाइट की अलग अलग मात्रा मिलाने पर काजग पर लिखने में फर्क आ रहा है ।  कभी पेंसिल की लिखाई गहरी हो जाती तो कभी हल्की । इस प्रकार पहली बार पेंसिल के अलग अलग प्रकार बनाने का विचार मिला और यही विचार आज हमें बाजार में अनेक प्रकार की  एच बी की पेंसिल के साथ देखने को मिलता है ।

पहली बार मिला पेटेंट –
अभी तक पेंसिल के आविष्कार को पेटेंट नही मिला था । पहली बार 1795 मे निकोलस जाक कोटे को पेंसिल का पेटेंट मिला था ।

19 वी शताब्दी में इस पेंसिल के साथ साथ रबर को भी जोड़ दिया गया । जिससे लोगो का काम और भी आसान हो गया । अब उन्हें पेंसिल से हुई गलती को सुधार के लिए दूसरी जगह पर नही जाना पड़ता था।  अब दोनों काम एक ही जगह पर हो जाते थे।  इस प्रकार की पेंसिल का चलन आज भी हो रहा है।  हम आज भी रबर लगी हुई पेंसिल से लिखना पसन्द करते है ।

एच और एच बी का अर्थ –
दोस्तो आपने पेंसिल पर एच और एच बी जैसे अक्षर लिखे देखे होंगे लेकिन कभी आपने सोचा है कि इनका अर्थ क्या होता है ।

तो आज मैं आपको इन अक्षरो का अर्थ बता ही देता हूँ । पेसिंल पंर लिखे एच और एच बी में एच का अर्थ होता है हार्ड यानी कठोर और बी का अर्थ होता है ब्लैक यानी कि काला । इसलिए पेंसिल को एच बी कहा जाता है । आज बाजार में आपको अनेक प्रकार की एच बी की पेंसिल मिल जाएंगी । जिनकी लिखाई में आपको काफी फर्क दिखाइ देगा ।

पेंसिल शब्द कहा से आया –
शुरुआत में पेंसिल को पेंसिल नही कहा जाता था इसे सिर्फ लिखने वाला पत्थर कहा जाता था । बाद में  लैटिन भाषा के पेनिसिलस शब्द से इसका नाम पेंसिल पड़ा । जिसका अर्थ होता है छोटी पूंछ ।

एक पेंसिल से आप कितना लिख सकते है –
दोस्तो आज बाजार में सामान्य तौर पर 18 सेंटीमीटर लम्बी पेंसिल काम ली जाती है । जिसकी सहायता से आप 55 किलोमीटर लम्बी रेखा खींच सकते है । अगर बात करे इससे लिखे जाने वाले शब्दों की तो इसकी सहायता से आप 50 हजार तक शब्द लिख सकते है ।

आधुनिक पेंसिल का निर्माण किन पदार्थो से होता है –
दोस्तो जैसे जैसे समय बदला पेंसिल को बनाने के तरीके भी बदलते गए । आज पेंसिल का निर्माण चालीस विभिन्न प्रकार के पदार्थो से होता है । जिंसमे ग्रेफाइट और खड़िया पत्थर मुख्य पदार्थ के तौर पर मिलाए जाते है । आज के पेंसिल का खोल देवदार के लकड़ी से किया जाता है ।

पेंसिल से हम क्या सीख सकते है –
दोस्तो आप जिस पेंसिल से लिखते है वह आपको जीवन के कई गहरे राज से भी रूबरू करवाती है ।
  • सबसे पहले पेंसिल हमे सिखाती है कि आप चाहे कितने की काबिल क्यो ना हो अगर किसी काबिल व्यक्ति के हाथों में नही जाएंगे तब तक आप बेका रही है । इसलिए पेंसिल के अनुसार हमे अपने जीवन मे आगे बढ़ने के लिए काबिल व्यक्ति के साथ अपना समय बिताना चाहिये ।
  • पेंसिल से दूसरी सीख हम ये ले सकते है कि अगर हम कोई गलती कर देते है या हो जाती है तो हमारे पास उस गलती को सुधारने के लिए रबर जैसे साधन अवश्य मौजूद होते है । बस बिना निराश हुए हमें उस साधन को ढूंढना चाहिये ।
  • जिस प्रकार हम सुंदर लिखाई के लिए पेंसिल को बार बार छीलते है । यह भी हमे जीवन का एक बहुत बड़ा पाठ सिखाता है कि अगर आप कुछ काम करते है तो जीवन मे अनेको परेशानियां आएंगी तुम्हे बार बार छिला जाएगा लेकिन ये याद रखना ये सभी रुकवाते सिर्फ तुम्हे निखारने के लिए ताकि तुम कामयाब हो सको  ।


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