माउजर पिस्तौल मूल रूप से जर्मनी में बनायी गयी। यह अर्द्धस्वचालित पिस्तौल थी, जिसका डिजाइन जर्मनी निवासी दो माउज़र बन्धुओं विल्हेम माउज़र एवं पॉल माउज़र ने तैयार किया था। माउज़र के नाम से ही इस पिस्तौल को जर्मनी में 15 मार्च, 1895 को पेटेण्ट कराया गया था। अगले साल सन् 1896 में जर्मनी की एक आयुध निर्माता कम्पनी माउज़र ने इस पिस्तौल का निर्माण प्रारम्भ कर दिया।
इसके नामकरण में सी का मतलब कॉन्सट्रक्शन (निर्माण) जबकि 96 का अंक निर्माण का वर्ष बोध कराता था। कम्पनी ने इस मॉडल (C-96) का निर्माण सन् 1937 तक किया। बाद में इस पिस्तौल को स्पेन और चीन में भी बनाया जाने लगा लेकिन नाम माउज़र ही रहा।
इस पिस्तौल की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इसके बट के साथ लकड़ी का बड़ा कुन्दा अलग से जोड़कर इसे आवश्यकतानुसार किसी रायफल या बन्दूक की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था। इससे इसकी मारक क्षमता बढ़ जाती थी। इस कुन्दे को जब चाहे अलग करने से पिस्तौल छोटी हो जाती थी। इसकी दूसरी विशेषता यह थी कि इसके चैम्बर में 6, 10 और 20 गोलियों वाली छोटी या बड़ी कोई भी मैगजीन फिट हो जाती थी। इसके अतिरिक्त इस पिस्तौल की एक विशेषता यह थी कि इसके पीछे लगाया जाने वाला लकड़ी का कुन्दा ही इसके खोल (होल्डर) का काम करता था।
सन् 1896 में इसके उत्पादन शुरू होने के एक वर्ष के अन्दर ही इस पिस्तौल को सरकारी अधिकारियों के अलावा आम नागरिकों व सैन्य अधिकारियों को भी बेचा जाने लगा।
माउज़र पिस्तौल का सी-96 मॉडल ब्रिटिश अधिकारियों की पहली पसन्द हुआ करता था। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद इसकी लोकप्रियता ब्रिटिश सेना में कम हो गयी। सैन्य अधिकारियों के शस्त्र के अतिरिक्त इस पिस्तौल का प्रयोग उपनिवेशों के युद्धों में भी हुआ। रूसी सिविल वार (गृह युद्ध) और बोलशेविक पार्टी द्वारा की गयी क्रान्ति में भी इन पिस्तौलों की खूब मांग रही।
विंस्टन चर्चिल को यह पिस्तौल बहुत पसन्द थी। इस पिस्तौल की कई विशेषताओं को देखते हुए भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के लिए क्रान्तिकारियों ने विदेश से इन पिस्तौलों की एक खेप ऑर्डर देकर मंगायी थी। जर्मनी से भारी मात्रा में माउज़र पिस्तौलें मंगाने के लिये ही रामप्रसाद बिस्मिल ने इस पिस्तौल का प्रयोग करके 9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास ट्रेन रोककर सरकारी खजाना लूटने का जो ऐतिहासिक कार्य किया था उसे सारे विश्व में 'काकोरी काण्ड' के नाम से जाना जाता है।
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