बन्दूक को आविष्कृत करने का श्रेय यूनाइटेड स्टेट (ब्रिटेन) के युद्धक हथियार बनाने वाले तकनीशियनों को है। इसे ब्रिटिश इन्जीनियरों ने सन् 1850 ई० में डिजाइन किया और उसी साल 1850 ई० में ही यह उत्पादित होकर सेना में हथियार के रूप में आ गई। इसे हिन्दी में बन्दूक कहा गया, अंग्रेजी नाम कोचगन (Coach gun) था।
सन् 1857 में ब्रिटिशों द्वारा बन्दूक (आग उगलने वाला हथियार) बना लेने का ही परिणाम था कि इसमें प्रयुक्त होने वाले चर्बीयुक्त कारतूसों को धार्मिक भावनावश भारतीय सैनिकों ने इस्तेमाल करने से मना कर दिया। इन कारतूसों को दांतों से खोलने के लिए दिया जाता था। कारतूसों के इस्तेमाल करने से मना करने के कारण ही सन् 1857 के विद्रोह का कारण बना। बन्दूकों के आविष्कार में आ जाने के कारण ब्रिटिश अधिकारी भारतीय विद्रोही सैनिकों में विद्रोह को दबाने में सफल रहे।
बन्दूक (Coach gun) बीसवीं सदी तक सैनिकों द्वारा प्रयुक्त एक प्रमुख हथियार रहा है। यह आकार में बड़ा एवं वजनी होता था। साम्राज्यवाद के दौर में मुख्यतः इसी अस्त्र के कारण योरोपीय सेनाओं ने एशियाई, अफ्रीकी एवं अमेरिकी भूभागों पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। इकनाली बन्दूक में एक बार में केवल एक ही गोली भरकर दागी जाती है जबकि दुनाली बन्दूक में दो गोलियां भरकर क्रमशः दागी जा सकती हैं।
आजकल भारत की आम जनता में जो लाईसंसी बन्दूकें मिलती हैं उनमें प्रायः बारह बोर के ही कारतूस प्रयोग में लाये जाते हैं। ब्रिटिश भारत में प्रायः विदेश में बनी बन्दूकें ही अमीर लोगों के पास होती थीं किन्तु अब भारतीय आयुध निर्माणी द्वारा बनायी गयीं इकनाली व दुनाली बन्दूकें यहां के शस्त्र विक्रेता अपने पास रखने लगे हैं। इन्हें कोई भी शस्त्र अनुज्ञप्ति धारक उनसे सीधे मूल्य देकर खरीद सकता है।
सामान्यतः इनमें प्रयुक्त होने वाले बारह बोर के कारतूस 70 मिलीमीटर व 65 मिलीमीटर लम्बाई के होते हैं। इन्हें भी अब भारत में ही बनाया जाने लगा है। ये कारतूस भी भारत के शस्त्र विक्रेताओं से खरीदे जा सकते हैं। कारतूस में छर्रे, काटन वैड, गन पाउडर एवं .22 कैप होता है। बंदूक के कारतूस का वर्गीकरण नम्बरों के आधार पर है, जैसे-1 नम्बर का करतूस जिसमें छर्रे बड़े होते हैं एवं उनका प्रयोग बड़े शिकार पर किया जाता है। इसी प्रकार से नम्बर 2, 3, 4, 5, 6 के कारतूस होते हैं जिनमें छरों की संख्या बढ़ती जाती है एवं उनका आकार घटता जाता है। एलजी एवं कारतूस को बहुत ही बड़े शिकार के लिए प्रयोग किया जाता है। वास्तव में कोई बंदूक कितने बोर की होगी यह निर्धारित करने के लिए एक विशेष प्रणाली अपनायी जाती है, जैसे यदि किसी गन की नली से एक पाउण्ड लेड धातु का गोलाकार 12वां भाग सरलता से पास हो जाए तो उसे 12 बोर की गन कहेंगे। इसी प्रकार 14 बोर एवं 10 बोर की बंदूकों का वर्गीकरण भी किया जाता है। साधारण बोलचाल की भाषा में हम जिसे बोर कहते हैं वह शस्त्र-विज्ञान की भाषा में गेज कहलाता है।
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