प्राकृतिक ने इस संसार में इंसान को मुख्य रूप से तीन प्रकार के वर्गों में वर्गीकृत किया है नर,नारी और नपुंसक। समय के साथ-साथ हुए शारीरिक बदलाव के साथ इंसान में कई प्रकार की इक्छाएं जागृत होती है। जिनमे भूख प्रमुख होता है। याद रखिए कि जो भूख अर्थात तीव्र इच्छा होती है वह चाहे औरत से सम्बंधित हो या पुरुष से या नपुंसक से , वह प्राकृतिक तौर पर स्वाभाविक होती है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि किसी में इसका स्तर कम होता है और किसी में इसका स्तर ज्यादा और किसी में होता ही नहीं मतलब बहुत ही कम, नहीं के बराबर। विभिन्न प्रकार की इच्छाओं में भी कुछ एक ही भूख/तीव्र इच्छा के बराबर होती हैं, सभी नहीं। अब प्रश्न औरत पर है। इच्छाएं तो बहुत सारी होती हैं पर फिलहाल हम यहा कुछ महत्वपूर्ण ही चीजो पर ही चर्चा करते हैं जो निम्न भूख के समान पाईं गईं है।
जिनमे से कुछ एक निम्न उदाहरण प्रस्तुत है -
- पेट की भूख
- प्रेम और प्यार
- बातचीत की आदत
- सुंदर बने रहने की लालसा
- ईश्वर के प्रति अनावश्यक आस्था
- स्वादिष्ट भोजन की भूख
- शॉपिंग की भी भूखी
- इज्जत और सम्मान
- शारीरिक भूख
- पैसे की भूख
मैं भूख हूं-
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
मुझे पैसे की भूख लुभाती है
मुझे पेट की भूख ललचाती है
मुझे जिस्म की भूख बहकाती है
मुझे जरूरत की भूख सताती है
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
मैं तो ख्वाहिशों में बढ़ती जाती हूं
मैं यकीन को बेहद बनाती हूं
मैं सभी हदों को तोड़ जाती हूं
भले ही बाद में
मैं भूख बहुत पछताती हूं
फिर भी
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
सब कुछ पाने के बाद भी
मैं कभी संपन्न नहीं हो पाती हूं
मेरी महत्वकांक्षाओं का आर्थिक चिट्ठा
कभी सच का गणित नहीं बताता
मैं शाश्वत में यकीन के बाद भी
भूख में शिकार बनाती हूं
मैं ही आदमी औरत की जात बनकर
जीवन के दुख दर्द बन आती हूं
मैं भूख तुझे इंसान से
जानवर बनाती हूं
मैं भूख तुझे तेरी नियति में
नीयत बताती हूं,
इसलिए
मैं युगों से योनियों तक
भूख का भ्रमण कराती हूं
क्योंकि...
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
हां मैं भूख हूं
मैं कभी शांत नहीं होती हूं।
पेट की भूख-
इस पृथ्वी पर जीव जब जन्म लेता है तो उसे सबसे पहले भूख महसूस होता है। किस तरह शिशु के रोने से फेफड़ों में हवा भर जाती है और शिशु श्वसन क्रिया आरंभ देता है। भूख लगने पर उसकी चूसने की चेष्टायें प्रारंभ हो जाती हैं। पहले तो दूध पीने की गति अनियमित एवं मंद होती है, परंतु जन्म के दो तीन सप्ताह बाद उसकी भूख नियमित हो जाती है। अत: उसे सयम – सारिणी के अनुसार दूध इत्यादि देना चाहिए। मलोत्सर्जन की क्रिया जन्म के कुछ घंटे बाद शुरू होती है, जब नवजात दूध पीकर चुप हो जाता है। समय के साथ जीवो में जैसे-जैसे शारीरक विकास होता है वैसे-वैसे भूख के अनेक रूपों का प्रादुर्भाव होता है।
प्रेम और प्यार -
प्रेम और प्यार यह जन्मजात गुण होते है और सभी में एक सामान पाए जाते है। परन्तु प्रेम और प्यार में समय के साथ -साथ बदलाव होते रहते है जिनके मायने कई प्रकार के होते है। जन्म से लेकर शारीरिक बदलाव होने से पहले का प्रेम और प्यार वास्तविक होता है। लेकिन जैसे-जैसे शारीरिक बदलाव होता है तो वही प्रेम,प्यार और आकर्षण आभाषी हो जाता है। जिनमे से वे बहुत ही भाग्यशाली होते है जिनमे प्रेम और प्यार का होना वास्तविक होता है। वैसे फिरहाल प्रेम और प्यार यह गुण औरत के अंदर प्रकृति ने कूट कूट कर भरा हुआ है। औरत जानी ही प्यार के लिए जाती है। प्यार के भी कई रूप हैं। यह सब रूप औरत के अंदर मिलेंगे। इनके प्यार का दायरा दाम्पत्य जीवन में बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दायरे में पूरा परिवार आ जाता है। और यहीं इसके विभिन्न रूप भी देखने को मिलते हैं। यदि प्यार में समर्पण की भावना न हो तो प्यार, प्यार नहीं रहता। इसी समर्पण की भावना से उसका परिवार चल निकलता है। परिवार में पति-पत्नी ही दो मुख्य स्तंभ होते हैं। इन्हीं के ऊपर पूरे परिवार का दारोमदार रहता है। परिवार में प्यार भी सबसे पति-पत्नी का ही चर्चित रहता है। स्वभाविक है जब कोई चीज़ दी जाती है तो उसकी वापसी की भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से इच्छा रहती ही रहती है। यहां लेन-देन ( give & take ) वाला फार्मूला एकदम सटीक बैठता है। यदि दोनों पक्ष इस फार्मूले का अनुसरण नहीं करते हैं तो समस्या खड़ी हो सकती है। दाम्पत्य जीवन में,जो बाद में समस्याएं सामने आती है वह मुख्यता इसी से सम्बंधित होती हैं। इसलिए लेन-देन ( give & take ) के फार्मूले का हमेशा ध्यान रखना अति आवश्यक है।
बातचीत की आदत-
जन्म के बात जैसे-जैसे समझ बढ़ती है वैसे-वैसे सभी जीवो में अपने-अपने भाषा में बातचीत आरंभ होता है। हाँ यह अलग बात है कि बातचीत की प्रक्रिया किसी में कम और किसी में अधिक होता है। अधिकांश औरतों और मर्दो को बातचीत करने का या गप्पे मारने का शौक बहुत ही अधिक होता है। इसके लिए समय व स्थान तलाशने की इन्हें कतइ जरूरत नहीं होती है। यह ख़ुद-ब-ख़ुद प्रकट हो जाते हैं। यदि कोई गप्पे मारने के लिए भी नहीं मिलेगा तब भी इनके दिमाग में गप्पे चली रहती है। परन्तु औरतो की यही आदत की वजह से रसोई में दूध जल जाता है। यह आदत इनके अंदर इतनी गहरी होती हैं कि सामने किस किस्म का आदमी बात कर रहा है, कोई परवाह नहीं। बदमाश और गुंडे इनकी इस कमजोरी का फायदा उठाने में एक्सपर्ट होते हैं। और धीरे धीरे इन पर हावी हो जाते हैं। और अगर यह लोग एक बार भी हावी हो गए तब तो भगवान ही मालिक है। और ऐसे में यदि बातचीत की प्रक्रिया सोच समझ कर नहीं करने पर कभी-कभी यही बातचीत की प्रक्रिया घातक हो जाता है। जो समग्र जीवन को कष्ट मय बना देता है। इस लिए बातचीत की प्रक्रिया को हमेशा सोच समझ कर एवं अपने आप पर काबू में रख कर करना चाहिए बातचीत के दौरान भावावेश में नहीं बहना चाहिए।
सुंदर बने रहने की लालसा-
प्रत्येक नर,नारी और नपुंसक सुन्दर बने रहने की लालसा में पूरी जिंदगी खपा देते है। परन्तु प्रत्येक स्त्री अपनी सुन्दरता बनाए रखने की जद्दोजहद में तो पूरी जिंदगी ही खपा देती है। इसके लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती। हां, यह जरूर है कि जवानी ढलने के बाद इसकी रफ्तार में कुछ कमी हो जाती है। सुन्दरता को बनाएं रखने के लिए औरतें जेवर, कपड़े, श्रृंगार प्रसाधन के सारे आइटम जिसमें ब्यूटी पार्लर जाने का शौक, आदि, का शौक बहुत गहरा है। इनकी शापिंग करने का तरीक़ा बहुत मशहूर है। शापिंग करने के सारे हुनर इनके पैदाइशी गुण बन चुके हैं। वैसे सुहाग की जरूरत तो नहीं है। फिर भी सुहाग एक आधी निशानी से चल पड़ता है। परन्तु यह सिर से लेकर पांव की उंगलियों तक ढंकी व रंगी हुई मिलेंगी। इसके ऊपर प्रसाधन का अलग से इस्तेमाल करना। वक्त की बरबादी और मर्दों की दिमागी संकीर्णता व दिवालियापन का एक बेहतरीन नमूना हैं।
लड़कियां कोमल हृदयांगी होती हैं। लड़कों की बजाय वे जल्दी रूठती है और फिर जल्दी ही मान भी जाती हैं। सो उन्हें भावनात्मक सुरक्षा व सहयोग की सबसे ज्यादा दरकार होती है। लड़कियां दूसरों पर विश्वास जल्दी कर लेती है। यह प्रवृत्ति उनके लिए बहुत ही घातक साबित होती है। बरगलाने वालों से लड़कियों को बहुत ही सचेत रहने की जरूरत है। लड़की के माता पिता की जिम्मेदारी यहां बहुत बढ़ जाती है। स्कूल कॉलेज में भी इन बातों पर विशेष जोर होना चाहिए। आज हालांकि वक्त बहुत बदल चुका है लेकिन फिर भी और बड़े स्तर पर लड़कियों को स्वावलंबी होने की आवश्यकता है।
मां-बाप को इस विषय में अपनी लड़की को कई दक्षताओं में कुशल बनाने हेतु गंभीर प्रयास करने चाहिए। आर्थिक पक्ष की मजबूती मुसीबत में किसी के लिए भी बहुत बड़ा सहारा बन जाती है। हर लड़की को आपातकालीन स्थिति से निपटने हेतु कठोर प्रशिक्षण प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता है। सरकारी स्तर पर इन प्रशिक्षणों को सख्ती के साथ लागू कर देना ज़रूरी है। एक मां बाप को भी इस बात का सामाजिक बोध होना चाहिए कि एक लड़की के लिए आत्मरक्षा की सख्त ट्रेनिंग उसके बेहतर भविष्य व मान मर्यादा के लिए बहुत ही फायदेमंद सिद्ध होगी। आभूषणों व श्रृंगार की अधिकता से भी अब लड़कियों को कुछ कुछ दूरी बना ही लेनी चाहिए। यह चीजें कितनी ही मूल्यवान हो, आखिरकार एक लड़की के लिए कुछ हद तक मानसिक जकड़न तो हैं ही। यह वस्तुएं लड़की के मां-बाप की आर्थिक कमर भी तोड़ देती है। श्रृंगार व मेकअप हो लेकिन सीमित हो।
ईश्वर के प्रति अनावश्यक आस्था-
इस मामले में पुरुषो की अपेक्षा स्त्री में इनकी उपस्थिति हर स्थान में पुरुषों से बहुत ज्यादा मिलेगी। इनके अंदर अनावश्यक आस्था की इतनी जबरदस्त तीव्र इच्छा होती है कि साधुओं, बाबाओं, कर्मकांडियों के चंगुल में आसानी से फंस जाती हैं। इतना अधिक लालच होता है कि अपने सारे ज़ेवर तक उतार कर और घर की नकदी भी उन्हें दुगना करने के चक्कर में दे डालती हैं। औरतों में व्याप्त अंधविश्वास, रूढ़िवादिता, ग़लत परम्पराओं के कारण यह कर्मकांडियों के तो चक्कर लगाती ही रहती हैं। ईश्वर के प्रति अंध भक्ति अमुमन इनके अंदर देखने को मिलेगी, जो हमारे समाज के लिए अभिशाप से कम नहीं है। और व्रत रख-रख कर अपने शरीर को तबाह कर देती हैं। बुढ़ापे में इनकी कमजोरी, दुःख, दर्द का यही मुख्य कारण है। इनकी सैक्स लाइफ 40 की उम्र से ही समाप्ति की ओर तेजी से चल पड़ती है। गृह क्लेश की वजह भी यही है।
स्वादिष्ट भोजन की भूख
याद रखिए कि जो स्वादिष्ट भोजन की भूख अर्थात तीव्र इच्छा होती है वह चाहे औरत से सम्बंधित हो या पुरुष से, वह प्राकृतिक तौर पर स्वाभाविक होती है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि किसी में इसका स्तर कम होता है किसी में ज्यादा और किसी में होता ही नहीं मतलब बहुत ही कम, नहीं के बराबर। विभिन्न प्रकार की इच्छाओं में भी कुछ एक ही भूख/तीव्र इच्छा के बराबर होती हैं, सभी नहीं। लड़कियां कम कैलोरी वाले सुस्वादु भोजन की भूखी होती है। खाने पीने के मामले उनका चुनाव औरों से अलग होता है। चटक मटक खाने की शौकीन ये लड़कियां अपनी काया की माया में पड़कर, तिखे चटपटे भोजन को ललचाई नजरों से देख कर संतोष कर लेती हैं। पर चाट छोले और गोलगप्पे देखकर इनका धैर्य जवाब दे जाता है। औरत हो या मर्द खुश रहना सबको पसंद होता है एक पुरुष हर छोटी छोटी बात पर गुस्सा कर सकता है लेकिन एक औरत गुस्से के अलावा प्यार से काम लेना पसंद करती है क्योकि वो खुद से ज्यादा दूसरों को खुश देखना चाहती है और अगर वो घर बेठी बोर भी हो रही होती है तो अपनी खुशी का जरिया ढूंढ ही लेती है क्योकि औरते हर छोटी छोटी खुशी को एंजॉय करना जानती है। दुआ देने की बात हो या पाने की बेशुमार मिले तो सबकी ज़िंदगी बदल देती है ये दुआ इसलिए औरते हमेशा दुआ पाने से ज्यादा दुआ देने में विश्वास रखती है क्योकि जब वो अपनों को खुश देखती है तो उसकी खुद की खुशियों का ठिकाना नही रहता । चाहे वो खुश हो या दुखी लेकिन वो अपनों को दुआ ही देती है।
शॉपिंग की भी भूखी -
सभी लड़कियो को इज्ज़त ओर सम्मान चाहिए होता है चाहे वो कोई भी और किसी भी टाइप कि लड़की क्यो न हो 60% लड़कियो को सिर्फ प्यार से मतलब होता है और 40% लड़कियो को मनी से मतलब होता है और 99% लड़कियाँ शॉपिंग की भी भूखी होती है यह जग जाहिर है। परन्तु कुछ लड़कियां अपने परिवार और अपने आर्थिक हालात के हिसाब से खुद को ढाल लेती है। लेकिन कुछ लड़कियां जो शापिंक की बहुत ज्यादा भूखी होती है वे अपने शौक को पूरा करने के लिए गलत रास्तो का चयन कर लेती है। जो समय के साथ जिंदगी को नर्क से भी बदतर बना लेती है। इस लिए किसी भी चीज की अधिकता पुरुष औ या औरत घातक हो सकता है इस लिए परिस्थिति के अनुसार अपने शॉपिंग की शौक पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।
इज्जत और सम्मान-
एक औरत को जितना चाहे प्यार कर लो उसे हमेशा प्यार की भूख रहेगी ही एक औरत को समाज में मान सम्मान और प्यार दोनों चाहिए होता है चाहे कोई भी औरत हो । लेकिन ये बात अलग है की औरतों को इतनी इज्जत नहीं मिलती क्योकि लोग ये सोचते है की अगर इज्जत दी तो सर चढ़ के बोलेगी लेकिन ये गलत है क्योकि आप इज्जत दोगे तो वो बस अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र होगी और वो खुद आपको ये कह सकती की आगे जो करना है कर सकते हो । यही चाहिए होता है एक औरत को ।
शारीरिक भूख-
युवावस्था शारीरिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चे का शरीर प्रजनन क्षमता से युक्त वयस्क के शरीर में बदल जाता है। इसके लिए सबसे पहले पुरुष और महिला युवावस्था के बीच का अंतर क्या है होगा। जिसके परिणाम स्वरूप एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ना स्वभाविक है। जब शारीरिक भूख की इक्छा जाग्रत होती है तो उसके आगे सभी भूख नगण्य हो जाती है। जवानी को अंधा इस कारण से कहते हैं कि अक्सर वे झूठे और उथले शब्दों को भी सच मान बैठती हैं और चालाक शिकारी द्वारा फैंके गए जाल में फँस जाती हैं। इस लिए कोई भी कदम उठाने से पहले यौन शिक्षा (Sex education) की जानकारी होना महत्वपूर्ण है। इसी के साथ सेक्स एजुकेशन (यौन शिक्षा) एव स्वास्थ्य के बारे भी जानना महत्वपूर्ण है।
इसका प्रमुख कारण युवावस्था शारीरिक परिवर्तनों की प्रक्रिया है जिसके द्वारा बच्चे का शरीर प्रजनन क्षमता से युक्त वयस्क के शरीर में बदल जाता है। युवावस्था मस्तिष्क द्वारा यौन अंगों (अंडाशय तथा वृषण) को हार्मोन संकेत भेजे जाने से शुरू होती है। जवाब में, यौन अंग विभिन्न तरह के हार्मोन उत्पन्न करते हैं जो मस्तिष्क, हड्डियां, मांसपेशियां, त्वचा, स्तन तथा प्रजनन अंगों के विकास की गति को तेज़ करते हैं। युवावस्था के पहले अर्ध-भाग में विकास तेज़ी से होता है और युवावस्था के समाप्त होने पर रुक जाता है। युवावस्था के पूर्व लड़के तथा लड़कियों के बीच शारीरिक भिन्नता केवल गुप्तांगों तक ही सीमित रहती है। युवावस्था के दौरान, कई शारीरिक संरचनाओं और प्रणालियों में आकार, आकृति, रचना और उनसे संबंधित कार्यों में प्रमुख अंतर के कारण विकास होता है। इनमें से सबसे स्पष्ट को सहायक लिंग विशेषताओं (secondary sex characteristics) के रूप में संदर्भित किया जाता है।
यद्यपि सामान्य उम्र की एक विस्तृत सीमा है, तथापि लड़कियों में युवावस्था 10 वर्ष तथा लड़कों में 12 वर्ष की उम्र में शुरू होती है। आम तौर पर 15-17 वर्ष की उम्र तक लड़कियों की युवावस्था समाप्त हो जाती है जबकि लडकों का युवावस्था काल 16-18 वर्ष की उम्र में ख़त्म होता है। इन आयु-सीमाओं के बाद ऊंचाई बढ़ना असामान्य होता है। युवावस्था के प्रथम लक्षण के दिखाई देने के लगभग 4 वर्ष बाद लड़कियां प्रजनन परिपक्वता प्राप्त कर लेती हैं। इसके विपरीत, लड़के धीमी गति से बढ़ते हैं, किन्तु युवावस्था के पहले लक्षण के दिखाई देने के लगभग 6 वर्ष तक बढ़ते रहते हैं।
लड़कों के लिए, टेस्टोस्टेरोन नामक एण्ड्रोजन प्रमुख सेक्स हार्मोन है। जबकि लड़कों में टेस्टोस्टेरोन के कारण हुए परिवर्तनों को पुरुषत्व विकास (virilization) कहा गया है, नरों में टेस्टोस्टेरोन चयापचय (मेटाबोलिज्म) का एक प्रमुख उत्पाद एस्ट्राडियोल (estradiol) है, तथापि लड़कियों में इसका स्तर देरी से तथा और कहीं अधिक धीमी गति से बढ़ता है। पुरुष के "विकास में उछाल" भी बाद में शुरू होता है, धीरे धीरे तेज़ होता है और एपिफाइसिस (epiphyses) के फ्यूज़ होने के पहले समाप्त हो जाता है। हालांकि युवावस्था की शुरुआत में लड़के लड़कियों से औसतन 2 सेमी छोटे होते हैं, औसत के आधार पर वयस्क पुरुष महिलाओं से लगभग 13 सेमी (5.2 इंच) लंबे होते हैं। वयस्कों की ऊंचाई में लिंग का यह अंतर विकास की गति के अंत में तेज़ होने और धीमी गति से पूरा होने के कारण है, जो देरी से विकास तथा नरों में एस्ट्राडियोल के कम स्तर के परिणामस्वरूप होता है।
मादाओं के विकास को प्रभावित करने वाला हार्मोन एक एण्ड्रोजन है जिसे एस्ट्राडियोल कहा जाता है। जबकि एस्ट्राडियोल गर्भाशय और स्तन वृद्धि को बढ़ावा देता है, यह प्रजनन क्षमता में तेज़ी लाने तथा एपिफाइसील (epiphyseal) की परिपक्वता तथा समाप्ति करने वाला प्रमुख हार्मोन भी है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में एस्ट्राडियोल का स्तर तेज़ी से बढ़ता है और उच्च स्तर तक पहुँच जाता है।
पैसे की भूख
पैसो की भूख या जरुरत हर किसी को होता है किसी में कम और किसी में कुछ ज्यादा ही पाया जाता है। पुरुष और औरत अपने जरुरत एवं महत्वाकांक्षा के लिए पैसो के पीछे भागता है। वैसे फिरहाल पैसो की जरुरत सभी को होती है।
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
मुझे पैसे की भूख लुभाती है
मुझे पेट की भूख ललचाती है
मुझे जिस्म की भूख बहकाती है
मुझे जरूरत की भूख सताती है
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
मैं तो ख्वाहिशों में बढ़ती जाती हूं
मैं यकीन को बेहद बनाती हूं
मैं सभी हदों को तोड़ जाती हूं
भले ही बाद में
मैं भूख बहुत पछताती हूं
फिर भी
मैं भूख हूं इसलिए
कभी शांत नहीं होती हूं
पुछी तो आपने भूख थी लेकिन ये आदत कहूँ या स्वभाव कहूँ लेकिन इसे भूख भी कह सकते है। इसके अलावा औरते कैसी होती है आपको बता देती हूँ। जवानी अंधी होती है लडकियां अक्सर झूठे और उथले शब्दो में चालाक शिकारी द्वारा फैंके गए जाल में फँस जाती है। एक औरत तब तक कुछ नहीं बोलती जब तक बात उसके चरित्र पर न आ जाए लेकिन जब उंगली चरित्र पर उठ जाए तो चाहे वो खुद का पति ही क्यों ना हो वो उसका भी वध कर सकती है मतलब ये है की वो किसी को नही बकसती है। अगर प्रेम देने की बात आती है तो वो पराये बच्चे को सगी माँ से बढ़कर प्रेम दे सकती है हालांकि कुछ औरते ऐसी होती है जिनके लिए खुद की संतान ही सर्वप्रिय होती है। औरतों को गुस्से में पुरुष से कम आंकना बेवकूफी ही होगी क्योंकी इसका तो इतिहास गवाह है की औरत गुस्से में कितनी खतरनाक हो सकती है\
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