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ड्रोन का अविष्कार किसने और कब किया

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विज्ञान की प्रगति नित्य ऊँचाइयां छू रही है। इन्सान हर दिन वैज्ञानिक तकनीक से अपने लिए नई सुविधाएं खोजता और प्राप्त करता जा रहा है। वैज्ञानिक नई सुविधा है ड्रोन डिलिवरी। अब किसी दुकान से सामान मंगाने के लिए डिलीवरी मैन की जरूरत नहीं रही; यह जरूरत ड्रोन डिलीवरी पूरी करने लगी है। भारत में इस तरह की डिलीवरी की शुरूआत ड्रोन द्वारा पिज्जा मंगाने से आरम्भ हुई। ड्रोन मानवरहित मशीन है। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पर आधारित ड्रोन रिमोट द्वारा लक्ष्य पर पहुंचता और वापस आता है। यह एक नया आविष्कार है। 

ड्रोन का अविष्कार किसने किया?

दुनिया में ड्रोन की शुरूआत 18वीं सदी के मध्य में मानी जाती है, जबकि ऑस्ट्रिया ने ड्रोन व्हीकल के जरिए वेनिस पर बम से भरे गुब्बारों से हमला किया था। वह गुब्बारा आधारित ड्रोन था। इस टेक्नीक पर अधिक सोचने की जरूरत नहीं। राइट बन्धुओं ने गैस के गुब्बारे से उड़ान भरकर पक्षियों की तरह आकाश में उड़ने की कल्पना को साकार कर, विमान निर्माण की तकनीक दी थी। ऑस्ट्रिया ने गुब्बारा आधारित तकनीक से ड्रोन व्हीकल द्वारा बम गिराने का प्रयोग किया था।

इसके कई वर्षों बाद 1915 में निकोला टेस्ला ने एक मानव रहित लड़ाकू  विमान का निर्माण किया, यह  भी आधुनिक drone कीं नींव माना गया। पहली बार drone का बड़े स्तर पर प्रयोग दूसरे विश्वयुद्ध  के दोरान USA द्वारा 15 हज़ार drone बनाकर मैरीलीन मोनरोए नाम के व्यक्ति ने प्रमुख भूमिका निभाई थी।  पहले ड्रोन का प्रयोग केवल युद्ध में किया जाता था। बाद में 1987 में ड्रोन का प्रयोग यमहा कम्पनी द्वारा जापान में ऐग्रिकल्चर में फ़सलो में दवाई छिड़कने के लिए किया जाता रहा। साल 2015 तक अमेरिका ने भी ड्रोन के प्रयोग के लियें अपने देश में आदेश जारी कर दिया। 

ड्रोन मानव रहित मशीन की कार्य प्रणाली

मानव रहित मशीन की कार्य प्रणाली को यूं समझ सकते हैं : आप बच्चों के लिए अपने घर में रिमोट से चलने वाले सेल युक्त खिलौना कार लाते हैं, रिमोट से कार चलती है, दाहिने, बाएं, आगे-पीछे होती है। इस तरह के वायुयान शक्ल के खिलौने जमीन से उठकर हवा में भी कुछ देर चक्कर लगाते हैं और रिमोट संकेत पर आपके आस-पास निश्चित लक्ष्य पर उतर सकते हैं।

उपरोक्त रिमोट आधारित बैटरी और इलैक्ट्रॉनिक युक्त खिलौनों से कुछ अधिक विकसित ड्रोन है। भारत में भी सरकारी स्तर पर लक्ष्य ड्रोन बना। जिसे भारतीय सेना में हवाई हमले के लिए सुरक्षित किया गया।

सन् 2010 ई० में हैती में आए भूकम्प के बाद, भूकम्प प्रभावित इलाकों में राहत सामग्रियां ड्रोन के जरिए पहुंचायी गयी थीं।

ड्रोन के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए इसे बनाने वाली कम्पनियों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। विश्व स्तर पर द बोइंग, जनरल एटपिबस, साइफ, डेनेल डाइनेमिक्स जैसी विश्व प्रसिद्ध कम्पनियां इसके निर्माण में लगी हैं। भारत में डी०आर०डी०ओ० (सरकारी कम्पनी) के अलावा ऑरोरा इंटिग्रेटेड सिस्टम (टाटा), आइडिया फोर्ज, ओएम यूएवी सिस्टम, स्पेक सिस्टम, नेशनल एयरोस्पेस लेबोरेटरीज और कैडेट डिफेंस इसे बना रही है।

विकासशील देशों में ड्रोन का प्रयोग दूरदराज के इलाकों में चिकित्सीय मदद पहुंचाने के लिए, डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म निर्माण शॉट्स के लिए किया जाने लगा है। ड्रोन का इस्तेमाल वहां हो रहा है जहां हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल संभव नहीं।

भारत की ड्रोन निर्माता कम्पनी ओएमयूएवी सिस्टम के पास ढाई किलोमीटर से लेकर चालीस किलोमीटर तक के रेंज के ड्रोन तैयार हो चुके हैं। जिनके उड़ने की क्षमता 15 मिनट से लेकर 3 घण्टे तक की है। ये फिलहाल बैटरी से चलते हैं, पर जल्द ही पेट्रोल से चलने वाले ड्रोन निर्मित कर लिए जाएंगे। इसमें फिक्स्ड लैंस कैमरा, जूम लैंस कैमरा और रात में काम करने वाले कैमरे लगे हैं।

ड्रोन के अनेक उपयोग हैं -

  • खोज और बचाव कार्य
  • किफायती एरियल फोटोग्राफी 
  • भवनों का निरीक्षण
  • विज्ञापन तथा समाचार रिपोर्टिंग 
  • घटनाओं की रिकॉर्डिंग और प्रसारण
  • शिक्षण और प्रशिक्षण 
  • विकलांग व्यक्तियों की सहायता 
  • जंगल में आग की रोकथाम
  • अवैध शिकार की रोकथाम
  • पुलिस निगरानी
  • फसल पालतू पशुओं की सुरक्षा इत्यादि।
डिलीवरी मैन की भूमिका तो मानव के दैनिक जीवन में सबसे उपयोगी है ही, ड्रोन शब्द इंग्लिश का है, जिसका अर्थ मधुमक्खी (नर) होता है। यह मधुमक्खी की तरह ही उड़ता हुआ आपके द्वार पर आकर हाजिरी बजा सकता है तथा तंग-संकरी पहाड़ी, घाटी के मार्ग से गुजरकर कहीं भी उड़ता हुआ जा सकता है। यह 'पिज्जा' डिलीवरी करने योग्य वजन और आकार में खिलौने जैसा छोटा भी है। इसे जरूरत के हिसाब से छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा बनाया जा चुका है। 5 किलो वजन का ड्रोन पिज्जा डिलीवरी में इस्तेमाल में आ रहा है।

ड्रोन के बारे में अधिक सोच-विचार की जरूरत नहीं, बस यह मानकर चलिए कि यह प्लास्टिक का उड़ता हुआ खिलौना है, जिसे इन्सान ने अपनी आवश्यकता के हिसाब से विभिन्न क्षेत्रों में इससे काम लेना शुरू कर दिया है।

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