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Jesus,Son Of God उर्फ ईश्वर का बेटा‬‪-तथ्यात्मक सच का विश्लेषण‬

 
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ईसा मसीह उर्फ जीसस उर्फ यूज़ा युसुफ की तथाकथित पत्नि मैरी मैग्डैलिन को वेश्या तो पोप के आदेश से सन 1080 के आस पास पहले क्रूसेड के समय में बताया गया किंतु दस्तावेजी आधार पर वो फिलीस्तीनी यहूदी कबीले की राजवंशी और धनाड्य कुलीन महिला थी, जो ईसा के गुफा से बाहर आने पर मिस्र की ओर चली गई थी तथा ईसा ने दमास्कस/ दमिश्क, सीरीया का रूख करते हुऐ सिल्क रूट पकडा और ईरान पाकिस्तान होकर पुन: भारत पहुंचे जिसमें यात्रा के बीच उनकी मां चल बसी और जिसकी कब्र मैरी/ मुर्री के नाम से पाकिस्तान के मुर्री जगह पर ही है।


मैरी मैग्डैलिन और ईसा के वंशजों में से पुत्री साराह की शादी तत्कालीन फ्रांसीसी राजघराने में हुऐ जाने के भी सबूत दस्तावेजी हैं.... बस ईसाईयत के सबसे जलील संप्रदाय कैथोलिक ने (पोप , वेटिकन ने) सचाई जाहिर होने पर प्रोपोगंड़ा फैला रखा है अपनी दुकानदारी बचाने को, opus dei , Priory of Sion जैसे काम भी वेटिकनी हैं जबकि Priory of Sion तो ईसा और मैग्डेलिन की सीक्रेट ब्लड लाईन यानि बच्चों की रक्षा व बचाव हेतु 10 वीं सदी में बना फ्रांस में ही !!

ईसाई लोग यीशु को ईश्वर के रूप में पहली सदी से पूजते आ रहे थे। परंतु चौथी शताब्दी में पूर्व की गिरजा के एक नेता, एरियस ने ईश्वर की एकात्मकता के समर्थन में प्रचार करना आरंभ किया। उसने बताया कि यीशु विशेष रूप से पैदा किए गए थे, वे देवदूतों से ऊपर थे, परंतु ईश्वर नहीं थे। दूसरी ओर एथानेसियस और गिरजा के अधिकतर नेता इस बात से सहमत थे कि यीशु ईश्वर का अवतार थे।

रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन का ईसाई धर्म में प्रत्यक्ष धर्म-परिवर्तन गिरजा के इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी। रोम एक ईसाई साम्राज्य बन गया। लगभग 300 वर्षों के इतिहास में पहली बार ईसाई होना अपेक्षाकृत सुरक्षित, और यहां तक कि शान की बात थी।

अब ईसाइयों को उनके धर्म के कारण नहीं सताया जाता था। कॉन्सटेंटाइन ने तब अपने पूर्वी और पश्चिमी साम्राज्य को एकजुट करने पर ध्यान दिया जो ज़्यादातर ईसा की पहचान के आधार पर पूरी तरह से फूट, संप्रदायों और पंथ में विभाजित था , कॉन्सटेंटाइन इस आशा में इस विवाद का समाधान करना चाहते थे कि इससे उनके साम्राज्य में शांति आएगी तथा पूर्वी और पश्चिमी वर्ग एकजुट हो पाएंगे। इसलिए 325 ईसवी में उसने पूरी ईसाई दुनिया से 300 से ज़्यादा बड़े पादरी को नायसिया (अब तुर्की का हिस्सा है) बुलाया था। महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि प्रारंभिक गिरजाघर अथवा वेटिकन क्या सोचते थे, यीशु सृजनकर्ता हैं या मात्र एक सृजन हैं - ईश्वर के पुत्र या बढ़ई के बेटे ?

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तो ईसाई प्रचारकों ने यीशु के बारे में क्या सिखाया?

उनके सबसे पहले दर्ज किए गए कथनों में ही उन्होंने यीशु को ईश्वर माना। यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के लगभग 30 वर्षों बाद, पौलुस ने फिलिप्पियों को लिखा था कि यीशु मानवीय रूप में ईश्वर हैं (फिलिप्पियों 2:6-7, NLT)। और एक निकट प्रत्यक्षदर्शी यूहन्ना ने यीशु के देवत्व की निम्नलिखित वाक्यों में पुष्टि की है:

आरंभ में यह शब्द पहले से ही मौजूद था। वह ईश्वर के साथ थे, और वह ईश्वर थे। उसने हर एक चीज बनाई। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे उन्होंने नहीं बनाया। जीवन स्वयं उनके भीतर था। इसलिए शब्द मानव बन गया और पृथ्वी पर हमारे बीच रहने लगा (यूहन्ना 1: 1-4, 14, NLT)।

यूहन्ना 1 के ये वाक्य एक प्राचीन हस्तलिपि में पाए गए हैं और इसकी कार्बन-तिथि 175-225 ईसवी है। इस प्रकार कॉन्सटेंटाइन द्वारा नायसिया परिषद आयोजित करने के सौ वर्ष पूर्व ही यीशु को निश्चित रूप से ईश्वर बोला जाने लगा था।

हम अब देखते हैं कि हस्तलिपि का न्यायिक प्रमाण द डा विंची कोड के इस दावे का खंडन करता है कि यीशु का देवत्व चौथी शताब्दी की कल्पना थी। परंतु इतिहास हमें नायसिया के परिषद के बारे में क्या बताता है? ब्राउन अपनी पुस्तक में टीबिंग के माध्यम से कहते हैं कि नायसिया में बड़े पादरियों ने बहुमत से एरियस के इस विश्वास को नामंज़ूर कर दिया कि यीशु एक “नश्वर पैगंबर” थे और यीशु के देवत्व के सिद्धांत को “अपेक्षाकृत बहुमत” से अपनाया,,, सही या गलत?

कॉन्सटेंटाइन ने नए बाइबिल के निर्माण को अधिकृत किया और वित्तीय सहायता दी जिससे ईसा की मानवीय विशेषताओं को बताने वाले ईसा चरितों को निकाल दिया और उन वृत्तांतों को अलंकृत किया गया जिन्होंने उन्हें ईश्वरस्वरूप बनाया। पहले के ईसा चरितों को गैरकानूनी करार देकर एकत्रित किया गया और जला दिया गया।

52 लेखों में से वास्तव में केवल पाँच ईसा चरित के रूप में सूचीबद्ध हैं। जैसा कि हम देखेंगे ये तथाकथित ईसा चरित स्पष्ट रूप से नवविधान ईसा चरित मैथ्यू ( Mathews), मार्कोस (Marcos) उर्फ मार्क (Mark) तथा लूक (Luke) और यूहन्ना (Yuhanna) से भिन्न हैं।

जैसे-जैसे ईसाई धर्म का विस्तार हुआ गूढ़ज्ञानवादियों ने ईसाई धर्म के कुछ सिद्धांतों और तत्वों को अपने विचारों में सम्मिलित किया और गूढ़ज्ञानवाद को नकली ईसाई धर्म रूप में बदल दिया। शायद उन्होंने अपनी भर्ती संख्या को बढ़ाए रखने के लिए और यीशु को अपने अभियान के लिए चेहरा बनाने के लिए ऐसा किया। हालांकि, अपनी विचार प्रणाली को ईसाई धर्म के योग्य बनाने के लिए यीशु को फिर से ईजाद करने की, उनकी मानवीयता और पूर्ण देवत्व दोनों को स्पष्ट करने की आवश्यकता थी।

द ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ क्रिस्चनियटी में जॉन मैकमैनर्स ने ईसाई और मिथकीय आस्था के गूढ़ज्ञानवादी मिश्रण के बारे में लिखा। “गूढ़ज्ञानवाद कई सामग्रियों वाली एक ब्रह्मविद्या थी (और अभी भी है)। गुह्यविद्या और प्राच्य रहस्यवाद को ज्योतिषशास्त्र, जादू के साथ जोड़ दिया गया।"

उन्होंने यीशु के कथनों को एकत्र किया, अपनी व्याख्या (जैसा कि थॉमस के वृत्तांत में है) के अनुकूल बनाया, और उनके अनुयायियों को ईसाई धर्म के वैकल्पिक या प्रतिद्वंद्वी के रूप में उसे पेश किया !!

आज के समय में सुनामी के महाप्रलय ने जो संहार किया उससे भी बड़ा भूचाल आज के ही समय में लगभग डेढ दशक पूर्व लेखक डैन ब्राउन के उपन्यास दा विंची कोड ने पैदा किया है क्योंकि सुनामी ने तो पार्थिव शरीरों को नष्ट किया, लेकिन द विंची कोड ने ईसाइयत के आध्यात्मिक आधार को हिला दिया है। अगर डैन ब्राउन ने जो लिखा वह निरी बकवास है तो उससे स्थापित धर्म और उसे मानने वालों की रूह क्यों थरथरा उठी?

जरूर डैन ब्राउन की कल्पना के बादलों से सत्य का प्रखर सूरज झाँक रहा है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
डैन ब्राउन ने बरसों असली दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद यह उपन्यास लिखा है- वे दस्तावेज जिन्हें आज तकस्थापित धर्म ने दफना दिया था और गुह्य समूहों ने जीवित रखा था।

विख्यात चित्रकार लिओनार्दो द विंची ऐसे ही गुह्य समूह का एक सदस्य था इसलिए उसने अपनी पेंटिंग्स में कुछ सूत्र, कुछ इशारे छुपाए हैं जिन्हें अनकोड किया जा सकता है।

प्रसिद्ध चित्र मोनालिसा आज तक उसकी गूढ़ मुस्कराहट के बारे में जानी जाती थी, लेकिन किसे पता था कि वह अपने सीने में ईसाई धर्म का राज छुपाए बैठी है। और राज भी ऐसा खतरनाकजो चर्च के पैरों तले जमीन खिसका ले।

अपने उपन्यास में डैन ब्राउन एक के बाद एक धमाके करता जाता है, पहला यह कि जीसस का विवाह मैरी मेग्दलीन से हुआ था, और उन्हें एक बच्चा भी था।

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यहीं पर स्थापित पूरे ईसाई धर्म की हवा निकल गई उनका मसीहा जो कि ईश्वर का एकमात्र पुत्र था, इतना मानवीय कैसे हो सकता है?

वेटिकन का पूरा साम्राज्य जीसस की दिव्यता पर खड़ा है अतः ऐसी कहानियाँ गढ़ी गईं कि न तो उनका अपना जन्म नैसर्गिक या मानवोचित तरीके से हुआ और न ही उनका अत: हर घटना अतिमानवीय या यूं कहें पारलौकिक पुट लिए हुए है।

यानि - बाइबिल में जो अंकित है वह जीसस की असली कहानी और वचन नहीं है जीसस की मृत्यु के 325 साल बाद रोम में तत्कालीन सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने एक धर्म परिषद बुलवाकर जीसस को दिव्यता प्रदान की और उसके लिए सदस्यों ने वोट डाले थे अपने राज्य में अमन और चैन लाने के लिए उसे यह करना जरूरी था क्योंकि उन दिनों ईसाइयों की संख्या बहुत कम थी और रोमन और ईसाई लोगों के बीच लगातार कलह होता था।

उत्तर इजिप्ट के एक शहर नाग हम्मदि के पास, सन 1945 में एक बर्तन में सुरक्षित रखी हुई 12 किताबें मिलीं ये किताबें एक ऐसा असाधारण दस्तावेज है जो तकरीबन 1500 साल पहले निकटवर्ती ईसाई मठ के पुजारी / पादरियों ने पुरातनपंथी चर्च के विध्वंसक चंगुल से बचाने की खातिर भूमि के नीचे दफना रखा था, उस समय जो भी विद्रोही मत रखते थे उन सबको चर्च नष्ट कर रहा था,वेटिकनी / कैथोलिक चर्च का क्रोध जायज भी है क्योंकि जीसस के ये मूल सूत्र प्रकाशित होते तो चर्च का काम तमाम हो जाता।

बाद में विद्वानों को इस खजाने की खबर लगी और उन्होंने इसका अनुवाद कर इसे छपवाया इनमें संत थॉमस के सूत्र हैं, ल्यूक के और मेरी मग्दालिन के भी सूत्र हैं ये सूत्र वर्तमान कैथोलिक - वेटिकनी ईसाईयत के लिए सर्वाधिक खतरनाक हैं क्योंकि ये मनुष्य की अन्तःप्रज्ञा को मानते हैं, चर्च या ईश्वर को नहीं , थॉमस के ये सूत्र आध्यात्मिक खोज को आदमी को भीतर मोड़ते हैं, इसलिए ये बाइबल का हिस्सा नहीं हैं ये जीसस के कुँवारे शब्द हैं जो 2000 साल तक मानवीय हाथों से अछूते रहे। इनमें से कुछ वचन तो ऐसे हैं कि पहली बार मनुष्य की निगाह उन पर पड़ी , इस किताब में जीसस का मूल हिब्रू नाम जोशुआ ही लिखा हुआ है। 

जीसस का उनके शिष्यों के साथ हुआ वार्तालाप है यह बहुत छोटी सी पॉकेट बुकनुमा किताब है जिसमें आधे पन्नों में खूबसूरत चित्र हैं और आधे पन्नों में जीसस के सूत्र जो थॉमस ने दर्ज किए हैं। ये सारे चित्र प्राचीन मिस्र के हैं, और उनमें से कुछ रहस्यपूर्ण प्रतीक हैं जैसे यिन-यांग की आकृति या और कुछ यंत्र। सूत्रों के प्रारंभ में थॉमस ने लिखा है- ये गुप्त शब्द हैं जिन्हें जीवित जोशुआ ने कहा और और डिडीमस जुदास थॉमस ने लिखा।

इसी तरह अप्रैल 2015 के प्रथम सप्ताह में इस्राईल के येरूशल से एक वैज्ञानिक द्वारा खुलासा हुआ कि येरूशलम / जेरूसलेम में ईसा मसीह उर्फ यीशु उर्फ जीसस उनके बच्चे, भाई और परिवार की कब्रें मिली है, और यह खबर पूरी दुनिया के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों, टीवी न्यूज चैनलों समेत शोध पत्रों तक में प्रकाशित हुई!

इजरायल के एक भूगर्भशास्त्री ने येरुशलम में जीसस और उनके बेटे को लेकर एक बेहद ही चौंकाने वाला दावा किया है।'डेली मेल' के मुताबिक, भूगर्भशास्त्री डॉक्टर ए शिमरॉन का दावा है कि उन्होंने येरुशलम में जीसस और उनके बेटे की कब्र की प्रमाणिकता और उसके अस्तित्व को पुख्ता किया है। करीब 150 कैमिकल टेस्ट के बाद शिमरॉन ने दावा किया है कि उन्होंने जेम्स ओजुएरी (पहली शताब्दी के चॉक बॉक्स जिनके बारे में मान्यता है कि उनमें जीसस के भाई की हड्डियां हैं) का 'जीसस फैमिली टॉम्ब' का कनेक्शन भी खोज लिया है। ये टॉम्ब येरुशलम के पूर्व में स्थित बताई गई हैं।

शिमरॉन ने दावा किया है कि जीसस शादीशुदा थे और उनका एक बेटा भी था। डॉक्टर शिमरॉन के मुताबिक, 'गॉड के बेटे' को नौ अन्य लोगों के साथ दफनाया गया था जीसस के बेटे जुदा और पत्नी मैरी शामिल हैं। चॉक बॉक्स पर मिले अभिलेखों में 'जेम्स, जोसेफ का बेटा, जीसस का भाई' आदि का उल्लेख भी मिला है। इन्हीं संबंधों और जांच के आधारों पर शिमरॉन का दावा है कि जीसस एक बच्चे के पिता भी थे और शादीशुदा थे। चॉक बॉक्स में लिखित नाम भी एक परिवार से ही संबंधित हैं।

अपने उपन्यास Da Vinci Code‬ में डैन ब्राउन एक के बाद एक धमाके करता जाता है, पहला यह कि जीसस का विवाह मैरी मेग्दलीन से हुआ था, और उन्हें एक बच्चा भी था। यहीं पर स्थापित पूरे ईसाई धर्म की हवा निकल गई उनका मसीहा जो कि ईश्वर का एकमात्र पुत्र था, इतना मानवीय कैसे हो सकता है?

वेटिकन का पूरा साम्राज्य जीसस की दिव्यता पर खड़ा है अतः ऐसी कहानियाँ गढ़ी गईं कि न तो उनका अपना जन्म नैसर्गिक या मानवोचित तरीके से हुआ और न ही उनका अत: हर घटना अतिमानवीय या यूं कहें पारलौकिक पुट लिए हुए है

तथाकथित हिंदू ग्रंथ भविष्यपुराण में भी इस बात का तथाकथित उल्लेख है कि ईसा मसीह भारत आए थे और उन्होंने कुषाण राजा शालीवाहन से मुलाकात की थी , मुस्लिमों का अहमदिया समुदाय भी इसी बात पर यकीन करता है कि रोजाबल में मौजूद मकबरा ईसा या जीसस का ही है , अहमदिया समुदाय के संस्थापक हजरत मिर्जा गुलाम अहमद ने 1899 में लिखी अपनी किताब ‘मसीहा हिन्दुस्तान में’ इस बात को सिद्ध किया है कि रोजाबेल में स्थित मकबरा जीसस का ही है जिनकी शादी कश्मीर प्रवास के दौरान मरजान / Marjan से हुई और बच्चे हुऐ जिनमें से एक बच्चे एल कीन/ Eil Kin की संबंधता के शिलालेख भी 2000 साल से कश्मीर के प्रसिद्व शिव मंदिर पर लगे हुऐं हैँ,, बाईबल भी ईसा के सूली पर चढाये जाने के बाद उनके 12 बार अलग अलग समय पर लोगों के समक्ष आ कर अपने मानव रूप में जीवित होने का प्रमाण देना स्वीकार करती है जिसमें अंतिम बार बाईबल अनुसार ही घोषित रूप से दमास्कस/दमिश्क (आज के सीरीया देश की वर्तमान राजधानी Damascus या दमिश्क) में प्रकट होना है, वो भी क्रूसीफिकेशन के छ: साल बाद...हालांकि ईसाई धर्मगुरू इस बात से साफ इंकार करते हैं कि जीसस कभी भारत आए थे पर यह बात अगर सिद्ध हो जाती है तो यह ईसाई धर्म के आधारभूत विश्वास पर बेहद करारा कुठाराघात होगा , पूरी ईसाईयत मय वेटिकन और चर्च अपनी रचित बाईबिल समेत पूरी तरह झूठ के व्यापारी साबित हो जायेंगे!

मित्रों, इस पल पल बदलती फ़ानी दुनिया में सबकुछ जानना जरूरी भले ही नहीं पर बहुत कुछ जानना या जानते रहना बहुत जरूरी है…. because this world is obeying the ‘survival of fittest’



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