मानव सभ्यता के विकास में कई जानवरों का योगदान है। इनमें कुत्ते, गाय, बकरी, भैंस जैसे दुधारू जानवर और घोड़े शामिल हैं। शायद यही वजह रही होगी कि उक्त सभी जानवरों की मानव रूप में भी कल्पना की गई। लोककथाओं और जनश्रुतियों में अश्व मानवों के कई किस्से-कहानियां पढ़ने को मिलते हैं। नरतुरंग या अश्व मानव नाम से एक तारामंडल का नाम भी है।
2. उच्चैःश्रवा है घोड़ों का राजा :
समुद्र मंथन के दौरान उच्चैःश्रवा घोड़े की भी उत्पत्ति हुई थी। घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो।
3. घोड़े ने की मानव की रफ्तार तेज :
प्राचीन मानवों के इतिहास में अश्व का बड़ा योगदान रहा है। घोड़े को पालतू बनाने से इंसान की रफ्तार और दूरियां पार करने की क्षमता तेजी से बढ़ी, साथ ही घोड़े को युद्ध में भी उपयोग किया जाने लगा।
4. आर्यों ने किया सबसे पहले घोड़ों का उपयोग :
माना जाता है कि घोड़े का सबसे पहले उपयोग आर्यों ने किया था। आर्य लोग जिस वृक्ष से घोड़े को बांधते थे, उसी वृक्ष को आज पीपल का वृक्ष कहा जाता है। पहले इस वृक्ष को अश्वत्थ कहा जाता था। कुछ लोगों का मत है कि 7,000 वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने प्रथम बार घोड़े को पालना शुरू किया था।
5. पौराणिक काल में घोड़े :
वेदों में घोड़ों को बहुत महत्व दिया गया है, लेकिन हड़प्पा सभ्यता के अवशेषों में घोड़े का कोई निशान नहीं मिलता इसलिए हड़प्पा सभ्यता और वैदिक सभ्यता के रिश्तों को लेकर पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों के बीच भारी विवाद है, जैसे घोड़े की वंश-परंपरा को आदिम जीवों के साथ जोड़ने वाली कड़ी अब भारत में मिल गई है। हो सकता है कि यह सिलसिला आगे बढ़े और भारत के भू-भाग में भी कोई ऐसा घोड़ा मिल जाए, जो हड़प्पा और वैदिक सभ्यताओं के बीच की दूरी को पाट दे।
6. घोड़ों पर लिखी गई प्रथम किताब :
संसार के इतिहास में घोड़े पर लिखी गई प्रथम पुस्तक 'शालिहोत्र' है जिसे शालिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल से भी बहुत समय पूर्व लिखा था। कहा जाता है कि शालिहोत्र द्वारा अश्व चिकित्सा पर लिखित प्रथम पुस्तक होने के कारण प्राचीन भारत में पशु चिकित्सा विज्ञान को 'शालिहोत्र शास्त्र' नाम दिया गया। शालिहोत्र का वर्णन आज संसार की अश्व चिकित्सा विज्ञान पर लिखी गई पुस्तकों में किया जाता है। भारत में अनिश्चित काल से देशी अश्व चिकित्सक को शालिहोत्री कहा जाता रहा है।
7. घोड़े पर क्या कहता है विज्ञान :
माना जाता है कि घोड़ा, गेंडा और दुनिया के कुछ हिस्सों में पाया जाने वाला टैपीर नामक जानवर एक ही पूर्वज की संतानें हैं। इस जीव समूह को वैज्ञानिक शब्दावली में ‘पैरिसोडैक्टिला’ कहते हैं जिसका अर्थ है अंगुलियों की अनिश्चित संख्या वाले जीव। पैरिसोडैक्टिला समूह के लगभग साढ़े 5 करोड़ साल पहले तक के पूर्वजों का तो पता लगाया जा चुका है, लेकिन उन्हें इसके पहले के आदिम जीवों से जोड़ने वाली कड़ी अभी तक कहीं नहीं मिल पाई थी। वर्तमान के गधा, जेबरा, भोट-खर, टट्टू, घोड़-खर एवं खच्चर आदि सभी घोड़े के ही कुटुंब के हैं।
8. घोड़ों का मूल स्थान :
अब तक वैज्ञानिक यह मानते रहे हैं कि घोड़े का मूल स्थान मंगोलिया और तुर्किस्तान है, लेकिन यह धारणा अब बदल गई है। अब गुजरात की कुछ खदानों में काम कर रहे वैज्ञानिकों को एक जीव के अवशेष या फॉसिल मिले हैं जिसे पैरिसोडैक्टिला का पूर्वज और आदिम जीवों से उन्हें जोड़ने वाली कड़ी कहा जा सकता है। करीब 20 साल पहले कुछ वैज्ञानिकों ने यह अवधारणा प्रस्तुत की थी कि घोड़े और गेंडे के आदिम पूर्वजों का मूल निवास भारत था। अब इस खोज से इसके पक्ष में सबूत मिल गए हैं।
9. कैम्बेथेरियम आकार का घोड़ा :
माना यह भी जाता है कि घोड़े का यह पूर्वज ‘कैम्बेथेरियम’ तब अस्तित्व में था, जब भारत एक विशाल द्वीप के रूप में था और यह द्वीप एशिया की तरफ बढ़ रहा था। इस फॉसिल की खोज से तब भारत के द्वीप होने की भी पुष्टि होती है, क्योंकि तभी यह जीव सिर्फ भारत में मिला है। भारत के एशिया की तरफ बढ़ने की प्रक्रिया में बीच के एक दौर में वर्तमान पश्चिम एशिया से भारत के बीच एक पुल-सा बन गया था और उससे ये जीव बाकी दुनिया में पहुंच गए और आज के घोड़े और गेंडे की नस्लों में विकसित हुए।
कैम्बेथेरियम आकार में मौजूदा घोड़े से काफी छोटा था और सूरत-शक्ल में गेंडे के कहीं ज्यादा करीब था। जो फॉसिल मिले हैं, उनकी संख्या 200 के आसपास बताई जा रही है और ये इस हालत में हैं कि वैज्ञानिक उनसे कैम्बेथेरियम की शरीर रचना का ठीक-ठीक अनुमान कर सके हैं।
10. घोड़ों को कब से पालतू बनाया गया : घोड़े के पूर्वज भले ही भारतीय थे, लेकिन माना यह जाता है कि घोड़ों को पालतू बनाना मध्य एशिया में तकरीबन 5,500 से 6,000 साल पहले शुरू हुआ और उसके 1,000 साल के भीतर सारी दुनिया में घोड़े पालने का रिवाज पहुंच गया। मध्य एशिया से भारतीयों का संपर्क बहुत पुराना है इसलिए हम मान सकते हैं कि भारत में यह काफी पहले शुरू हो गया होगा। भीमबेटका के गुफा चित्रों में घोड़े पर बैठे लोगों के भी चित्र हैं।
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