सर्वविदित है कि आज की दुनिया में नेत्रहीन इंसान भीपढ़ने-लिखने में सक्षम हो सकता है। नेत्रहीनों के लिए जिस लिपि का प्रयोग किया जाता है, उसे ब्रेल लिपि कहा जाता है। इस लिपि का विकास सन् 1824 ई. में लुईस ब्रेल ने किया था।
लुईस ब्रेल उस समय अंधे हो गए थे, जब उनकी आयु मात्र तीन वर्ष की थी। ब्रेल के पिता अपनी दुकान में कपड़ा काट रहे थे और चाकू फिसलकर ब्रेल की आंखों में लग गया था। चाकू सिर्फ उनकी एक ही आंख में लगा था, लेकिन दूसरी आंख में इन्फेक्शन हो जाने के कारण वे बिल्कुल ही अंधे हो गए।
सन् 1819 ई. में वे पेरिस के अंधे विद्यालय में भर्ती हो गए और वहीं उन्होंने सन् 1829 ई. में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया।
सन् 1829 ई. में उन्होंने इस लिपि को एक पुस्तक के रूप में छपवाया। ब्रेल लिपि में 63 अक्षरों की वर्णमाला है, जिसमें 26 अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर हैं, कुछ दूसरे शब्द और संख्याएं हैं। हरेक अक्षर को प्रदर्शित करने हेतु छः बिन्दुओं का एक सांचा है। इन बिन्दुओं पर ऊपर से नीचे की ओर 4, 5, 6 लिखा होता है।
वर्णमाला से पूर्व दस अक्षर 1, 2, 4 और 5 नम्बर के बिन्दुओं द्वारा प्रदर्शित होते हैं। K से T तक के अक्षर 3 नम्बर के बिन्दु को लगाने से बनाये जाते हैं। शेष छः अक्षर 3 और 6 नम्बर के बिन्दुओं को प्रयोग में लाकर प्रदर्शित होते । 6 नम्बर के बिन्दु से कुछ शब्दों का निर्माण होता है।
सन् 1837 ई. में उन्होंने बेहतर प्रणाली विकसित की, जिसमें उठे हुए अक्षरों के लिखने का प्रावधान था। समग्र संसार में आज भी उनकी लिपि प्रसिद्ध है। इसके पश्चात् नेत्रहीनों के लिए एक मशीन विकसित की गई। यह विकास सन् 1892 ई. में अमेरिका में किया गया।
आज का प्रशिक्षण प्राप्त नेत्रहीन व्यक्ति बड़ी तीव्रता के साथ पढ़-लिख सकता है। अनेकों ने यहीं पढ़-लिखकर दफ्तरों में काम करते हैं। बदलते समय ने विकास की दुनिया में नए चिन्ह लगा दिये हैं। आज नेत्रहीनों के बड़े-बड़े स्कूल हैं, जहां ये लोग पढ़ाई-लिखाई सीखते हैं।
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