दिन प्रतिदिन बढ़ती आबादी और उसके कारण दिन प्रतिदिन बढ़ते वाहन और उनके कारण दिन प्रतिदिन बढ़ती दुर्घटनाओ ने मानव को सोचने पर मजबूर कर दिया है । पूरी दुनिया मे हर रोज लाखो लोग सिर्फ सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवा देते है । जिसके कारण दिन रात वैज्ञानिक ऐसे ऐसे उपकरण बनाने की कोशिश में जुटे रहते है जिससे कि सड़क दुर्घटनाओं में कमी की जा सके । इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने काफी उपकरणों का अविष्कार किया है । जैसे कि हेलमेट , सीट बेल्ट इससे दुर्घटनाओ में कमी तो हुई है लेकिन इसे पूरी तरह से रोका नही जा सका ।
इसी कारण दिन रात चलती रिसर्च ने मानव को गाड़ियों में एयरबेग जैसी सेफ्टी की सुरक्षा प्रदान की है । आज हम इस लेख में एयरबेग से जुड़ी अनेक प्रकार की जानकारियों से आपको अवगत करवाएंगे ।
एयर बैग क्या है?
यह चार पहिया वाहनों में आने वाली एक सुविधा है जिसके इस्तेमाल से गाड़ी में आगे की तरफ बैठे ड्राइवर और उसके साथ बैठे यात्री को किसी भी प्रकार की हानि से बचाता है । यह एक विशेष प्रकार के कपड़े से बना हुआ एक बैग होता है । जो गाड़ी के टकराने पर खुल जाता है ओर इसमी हवा भर जाती है । जिससे आगे बैठे व्यक्ति को किसी प्रकार की चोट नही लगती है । यह कुशन द्वारा बनाया जाता है । जिसे गाड़ी के डैशबोर्ड , छत , कार की सीट , पर लगा होता है । जिंसमे नाइट्रोजन गैस भारी जाती है । जो टक्कर लगने पर स्वतः ही तेजी के साथ फूल जाता है और किसी भी प्रकार की चोट से बचाता है ।
एयरबैग के प्रकार –
एयरबैग दो प्रकार के होते है ।
1. साइड एयरबैग
2. सामने का एयरबैग
1. साइड एयरबैग ये व्यक्ति को साइड से होने वाली दुर्घटना में लगने वाली चोट से बचाते है । इससे व्यक्ति की पसलियां , पैर और हाथ की सुरक्षा होती है ।
2. सामने के एयरबैग की सहायता से व्यक्ति को सिर , छाती और गले की गंभीर चोट से बचाया जाता है ।
इन एयरबैग को एक नाइट्रोजन पंम्प से जोड़ा जाता है म साथ ही साथ इसे एक सेंसर के साथ भी जोड़ा जाता है । जो दुर्घटना की स्तिथि में नाइट्रोजन पम्प को चलाने में सहायता करता है । जिससे तुरंत ही एयरबैग खुलते है और व्यक्ति गंभीर चोट से बच जाता है ।
एयरबैग पर सिलिकॉन की कोटिंग की जाती है । इसके खुलने की स्पीड बहुत ही ज्यादा होती है । इसकी स्पीड 300किलोमीटर प्रति घण्टा की रफ्तार से एयरबैग फूलता है । जैसे हर एक चीज की एक्सपायरी डेट होती है । वैसे ही इनकी भी एक्सपायरी डेट होती है । इसलिए समय समय पर एयरबैग को चेंज करवा लेना चाहिए ।
दोस्तो जितना एयरबैग का फायदा है उतना ही इसका नुकसान भी हो सकता है । क्योकि कई बार देखने मे आया है एयरबैग के खुलने की स्पीड से व्यक्ति की मौत भी हो जाती है । क्योकि इसके खुलने की स्पीड इतनी ज्यादा होती है कि यह लीवर हो नुकसान पहुंचा सकता है ।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कार की सीट बेल्ट का भी एयरबैग की फंक्शन से लिंक होता है। एयरबैग को बनाते वक्त इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि गाड़ी में बैठे आदमी ने सीट बेल्ट लगा रखा हो। इसलिए सिर्फ एयरबैग के भरोसे ना बैठें। गाड़ी में बैठते ही सीट बेल्ट जरूर लगाएं। अगर एक्सीडेंट या फिर किसी और दुर्घटना या किसी और वजह से आपकी कार का एयरबैग खुल जाता है तो किसी ऑथोराइज्ड डीलरशिप या वर्कशॉप में ही उसे ठीक करवाएं ताकि किसी भी तरह की चूक से बचा जा सके। चाइल्ड सीट को कभी भी एयरबैग के सामने ना रखें।
एयरबैग काम कैसे करता है ? –
1. एयरबैग कुल मिलाकर चार पार्ट्स से बनाया जाता है – ये हैं सेंसर, इग्नीशन सिस्टम, एक्सप्लोसिव डिवाइस और नायलॉन बैलून.
2. कार के बंपर से सेंसर जुड़ा होता है । उसको इस तरह प्रोग्राम किया जाता है कि वाहन की तेज गति की स्थिति में क्रैश होने पर ये इग्नीशन सिस्टम को सक्रिय कर देता है ।
3. इग्नीशन सिस्टम से एक्सप्लोसिव डिवाइस में एक नियंत्रित विस्फोट होता है । डिवाइस में टैबलेट के आकार के विस्फोटक होते हैं । जिसके विस्फोट होते ही नायलॉन के बैलून में हवा भर जाती है ।
4. यह बैलून स्टियरिंग व्हील में लगा होता है जो तेजी से हवा भरने की स्थिति में स्टियरिंग व्हील का सेंटर कवर हट जाता है और चालक बैलून पर झूल जाता है, इससे उसको चोट नहीं के बराबर लगती है ।
5. यह पूरी प्रकिया बहुत तेजी से महज 50 मिलीसेकेंड में पूरी हो जाती है । जिससे चालक के स्टियरिंग से टकराने से पहले ही एयरबैग पूरी क्षमता से खुल जाते हैं ।
6. कर्टेन एयरबैग जिन गाड़ियों में लगे होते हैं उन गाड़ियों में सेंसर चारों दरवाजों और पीछे के बंपर में भी दिया जाता है ।
एयरबैग का इतिहास -
दोस्तो अब बात करते है एयरबैग के आविष्कार की कहानी के बारे में । दुनिया के पहले एयरबैग का पेटेंट जर्मनी के वॉल्टर लिंडर और अमेरिका के जॉन हैडरिक के नाम है । 1950 में बने इस एयरबैग में कंप्रेस्ड हवा भारी जारी थी । इन्हें इस प्रकार से बनाया गया था की कार के बम्पर की किसी से टक्कर होने किस स्तिथि में ये खुद ही खुल जाते थे ।
खुद ड्राइवर भी इसे खोल सकता था । लेकिन इनके खुलने की गति इतनी धीमी थी कि इससे कार चालक को बहुत ज्यादा चोट आती थी ।
इसके बाद एलन ब्रीड ने एक 1968 मे एक ऐसा सेंसर बनाया जो टक्कर होने की स्तिथि में खुद ही कार के एयरबेग को खोल देता था । इससे और भी ज्यादा अच्छा हो गया एयरबैग का इस्तेमाल करना । इस तकनीक का इस्तेमाल करने उन्होंने कार के एयरबैग को इससे जोड़ दिया और ये एक सेफ्टी फ़ीचर्स बन गया ।
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