प्रकृति सहस्यों से भरी पड़ी है। प्रकृति की विचित्रताओं पर जब विचार किया जाता है तो सृजनहार की अद्भुत कारीगरी को देख हम चौंकने के सिवाय कुछ नहीं कह सकते। वनस्पतियों के इस विचित्र संसार में अनेक आश्चर्यजनक अजूबे भरे पड़े हैं। उन्हीं में से एक अजूबा है मांसाहारी पौधों का अद्भुत संसार।
प्रकृति में सन्तुलन बनाए रखने के लिये पेड़-पौधों का अत्यधिक योगदान है इसमें कोई दो राय नहीं है। पेड़-पौधे ताजी हवा, फल-फूल देकर हमेशा मानव का कल्याण करते हैं। लेकिन आपने कभी यह सुना है कि पौधे भी मांसाहारी होते हैं? यह प्रश्न अपने आप में आश्चर्य को लिये है क्योंकि अधिकांश पेड़-पौधे सूर्य के प्रकाश तथा पानी से अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि कुछ पौधे मांसाहारी (Insectivorous) भी होते हैं और कीड़े-मकोड़े को अपना शिकार बनाते हैं व उनसे अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
मांसाहारी पौधों की खोज सर्वप्रथम 1875 में हुई। चार्ल्स डार्विन ने इन पौधों के बारे में लिखा है ‘कुछ पौधों में न केवल छोटे जीवों को पकड़ने की क्षमता है, बल्कि उन्हें पचाकर उनमें मौजूद पोषक तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता भी है’ यह बात उन्होंने सौ साल से ज्यादा समय पहले कही थी, परन्तु आज भी हम मांसाहारी पौधों को देखकर अचम्भा हुए बिना नहीं रहते।
आमतौर पर मांसाहारी पौधे ऐसी मिट्टी में उगते हैं। जिसकी प्रकृति अम्लीय अथवा दलदली होती है। इस तरह की मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत कम होती है और इस कमी को पूरा करने के लिये ये पौधे कीटों को पकड़कर उनके शरीर से नाइट्रोजन प्राप्त करते हैं।
मांसाहारी पौधों की लगभग 975 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से लगभग तीस प्रजातियाँ भारत में ही पाई जाती हैं। इन पौधों ने कीटों को पकड़ने के लिये अनेक तरीके विकसित किये हैं। विस्मय की बात यह है कि कीटों को पकड़ने और पचाने वाले अवयव सौन्दर्य से परिपूर्ण होते हैं और इसी सौन्दर्य के कारण कीट इन पौधों की ओर आकर्षित होते हैं। कुछ ऐसे मांसाहारी पौधे निम्न हैं।
घटपर्णी (Pitcher)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम नेपन्थिस खासियाना (nepenthes khasiana) है। यह पौधा मुख्यतः असम के खासी पहाड़ियों में पाया जाता है। इस पौधे की पत्ती घट या कलश के रूप में विकसित हो जाती है, जिसके मुँह पर पत्ती का ही एक ढक्कन होता है।
इस कलश से एक प्रकार का मकरंद (मीठा तरल पदार्थ) निकलता है, जिससे कीट इसकी ओर आकर्षित होते हैं। इसे खाने के लालच में कीट घट के अन्दर उतरते हैं। कलश की तली में पाचक द्रव होता है कीट कलश में प्रवेश करते ही फिसलकर उस द्रव में डूबकर मर जाते हैं। उसके बाद इनका विघटन होता है और पोषक पदार्थ निकलकर द्रव में आ जाते हैं। इसके बाद पत्ती इन्हें सोख लेती है।
सन ड्यू (Sundew)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम ड्रोसेरा (drosera) है। यह हमारे देश के अनेक भागों में पाया जाता है। इसके पत्तों पर अनेक रेशे निकले रहते हैं, जो एक चिपचिपा रस पैदा करते हैं। जो सूरज की रोशनी में ओस के कणों के समान चमकता है। इन चमकती बूँदों की ओर कीट आकर्षित होते हैं और स्पर्श करते ही चिपक जाते हैं। इसके पश्चात कीटों के छटपटाने से लम्बे रेशे सक्रिय हो जाते हैं और वे चारों तरफ से कीट को जकड़कर बंदी बना लेते हैं। इन रेशोें से एक प्रकार का पाचक द्रव भी निकलता है, जो कीटों के पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं। पाचन पूर्ण होने पर पुनः सीधे हो जाते हैं और अगले शिकार की प्रतीक्षा करने लगते हैं।
ब्लैडरवर्ट (Bladderwort)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम यूट्रीकुलेरिया (utricularia) है। यह मांसाहारी पौधा भारत के अधिकांश जलाशयों में मिलता है पूरा पौधा पानी के नीचे रहता है और इसी पत्तियाँ बहुत अधिक खंडित होती हैं, इनकी नोक पर थैली जैसी संरचना होती है। इसमें वे सूक्ष्म प्राणी पकड़ लिये जाते हैं जो जलधारा के साथ आते हैं। थैली का खुलना तथा बन्द होना एक वाल्व के द्वारा संचालित होता है। शिकार के पच जाने के बाद वाल्व खुल जाता है और अगले शिकार को पकड़ने के लिये तैयार हो जाता है।
वीनस फ्लाईट्रैप (Venus fly trap)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम डायोनिया मसीपुला (dionaea muscipula) है। यह पौधा मुख्य रूप से अमरीका के कैरोलिना क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके पत्ते दो भागों में बँटे होते हैं और दोनों के मध्य एक उभार होता है, वह दरवाजे के कब्जे की तरह कार्य करता है। पत्ते के दोनों भागों की सतह पर संवेदनशील बाल जैसे रेशे होते हैं। इनमें से किसी को कोई छू ले तो पत्ते के दोनों भाग तुरन्त बन्द हो जाते हैं और कीट को अपने भीतर कैद कर लेते हैं। कीट को पूरा पचाने के पश्चात पत्ते कै दोनों भाग पुनः खुल जाते हैं और अन्य शिकार की प्रतीक्षा करने लगते हैं।
सारासीनिया (Sarracenia)-
नेपन्थिस की तरह सारासीनिया भी घटपर्णी पादप हैं। ये मुख्यतः अमरीका एवं कनाडा के कई क्षेत्रों में पाये जाते हैं। सारासीनिया के घट कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। एक बार कीट इसके अन्दर चला जाता है तो वह घट के अन्दर स्थित द्रव में फँस जाता है और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं होती है। पाचक द्रव उस कीट के पोषक पदार्थ ग्रहण कर लेतेे हैं।
बटरवर्ट्स (Butterworts)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम पिंगुइकुला (Pinguicula) है। इस पौधे के फूल अत्यधिक सुन्दर एवं आकर्षक होते हैं। इस पौधे की पत्तियाँ चिपचपी एवं ओस के समान द्रव स्रावित करती हैं जिससे कीट इनकी ओर खिंचे चले आत हैं और जैसे ही कीट इन पर बैठता है तो वह चिपक जाता है और किसी भी तरह दोबारा उड़ नहीं सकता है। चिपके हुए कीट का पाचन द्रव कर लेते हैं और उनसे पोषक तत्व मुख्यतः नाइट्रोजन ग्रहण कर ली जाती है।
सुंदरी का पिंजड़ा (वीनस फ्लैटराप)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम डायोनिया मसीपुला (Dionaea Muscipula) है। ये पौधा मुख्य रूप से अमेरिका के कैरोलिना क्षेत्र में पाया जाता है। इसके पत्ते दो भागों में बंटे होते हैं और दोनों के मध्य एक उभार होता है, वो दरवाज़े के कब्ज़े (Hinge) की तरह होता है। पत्ते के दोनों भागों की सतह पर संवेदनशील बाल जैसे रेशे होते हैं। इनको अगर कोई कीड़ा छू ले, तो ये तुरंत बंद हो जाते हैं और कीड़े को खा जाते हैं। वीनस फ्लाईट्रैप एक मांसाहारी पौधा है जो कीड़ों को फँसाकर अपना पोषण प्राप्त करता है!यह बीच में जुड़ा होता है और किनारों के चारों ओर "दाँत" जैसी विशेष पत्तियाँ होती हैं। जब कीट लाल पत्ते पर बैठते है, तो यह कीट को अंदर फँसाकर, उसे बंद कर देता है। वे इसे लगभग 10 दिनों में पचाते हैं, जिसके बाद वे अपने अगले शिकार के लिए पत्ते खोलते हैं।
ड्रोसैरा -
इसे सनड्यूज़ भी कहते हैं। यह एक बहुत सुंदर कीटभक्षी पौधा है जो शिमला, मसूरी और नैनीताल में पाया जाता है। ड्रोसेरा को मक्खाजाली भी कहा जाता है। इसकी गोल-गोल पत्तियों के किनारे लाल रंग की घुण्डी वाले आलपिन सरीखे बाल होते हैं जिनसे एक चिपचिपा रस निकलता रहता है। ड्रोसैरा पौधे से निकला यह रस धूप की रोशनी में ओस की तरह चमकता है। छोटे कीट पतंगों को यही रस चिपका लेता है और फिर घुण्डियां मुड़कर चारों ओर से उसे घेर लेती हैं।
कोबरा लिली (Cobra lily)-
इस पौधे का वानस्पतिक नाम डार्लिंगटोनिया कैलीफोर्निका (Darlingtonia californica) है। यह पादप मुख्यतः उत्तर कैलिफोर्निया एवं ओरिगोन में पाया जाता है। कोबरा लिली इस पौधे का नाम इसलिये पड़ा चूँकि इसकी ट्यूबूलर पत्तियाँ कोबरे के फन के आकार की होती है। पत्ती का ऊपरी भाग फूले हुए गुब्बारे के समान होता है। इसी फूले हुए गुब्बारे के नीचे एक छोटा रास्ता होता है जहाँ पर कीट आकर बैठते हैं तो फँस जाते हैं। इस पौधे की एक और विशेषता है कि यह पादप पाचक एंजाइम्स नहीं पैदा करता जबकि उसके स्थान पर बैक्टीरिया एवं प्रोटोजोआ कैद कीट के पोषक तत्वों को ग्रहण करने में सहायता करते हैं।
इस प्रकार मांसाहारी पौधों का यह अद्भुत संसार अत्यन्त रोचक एवं अनोखा है। ये पौधे इस बात के भी द्योतक हैं कि चाहे कोई भी विषम परिस्थिति हो जीव जीवित रहने के लिये मार्ग ढूँढ ही लेते हैं। परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को कैसे ढालना है और क्या-क्या परिवर्तन लाने हैं, यह सीखा जा सकता है इन पौधों के व्यवहार से। संक्षेप में कहें तो मांसाहारी पौधे जीवों की अद्भुत जिजीविषा का परिचय देते हैं।
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