किसी गांव में एक चरवाहा रहता था। उसे गांवभर की भेड़ें चराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वह भेड़ों को प्रतिदिन पहाड़ी पर स्थित चरागाह में ले जाता और उन्हें चरने के लिए छोड़ देता।
चरवाहा बालक अपने कार्य को भली प्रकार करता था। मगर एक ही जगह उन सभी जानी-पहचानी भेड़ों को प्रतिदिन ले जाकर चराते-चराते बेचारा ऊब-सा गया था। इसलिए उसने सोचा कि क्यों न दिल बहलाने के लिए कुछ हंसी-मजाक किया जाए। बस, लगा जोर-जोर से डरी आवाज में चिल्लाने—‘‘भेड़िया आया ! भेड़िया आया !...बचाओ ! भेड़िया भेड़ों को खा रहा है।’’
वह थोड़ी देर ठहरा और फिर जोर से चिल्लाया, ‘‘गांववालो, सोच क्या रहे हो, जल्दी आओ...मुझे और भेड़ों को बचाओ।’’
गांव वाले खेतों में काम कर रहे थे। उन्होंने चरवाहे की डरी हुई आवाजें सुनीं तो जो भी उनके हाथ में आया, वह लेकर भेड़िये को मारने के लिए पहाड़ी की ओर दौड़ पड़े।
परंतु वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि भेड़ें तो आराम से चर रही हैं और चरवाहा बालक हंस रहा था।
‘‘कहां है भेड़िया ?’’ गांव वाले क्रोध में बोले। मगर चरवाहा हंसता ही रहा।
फिर बोला, ‘‘कोई भेड़िया नहीं आया। मैं तो यूं ही मजाक कर रहा था, रोज एक-सा काम करते-करते ऊब गया हूं। आप लोग जाएं, अपना काम करें।’’
गांव वाले गुस्से में भुनभुनाते वहां से चले गए। लेकिन जाने से पहले उसे समझाना ना भूले, ‘‘तुम इसे मजाक कहते हो। यह मूर्खता के अलावा कुछ नहीं। भविष्य में ऐसा मजाक दोबारा मत करना वरना तुम्हें उसके दुष्परिणाम भोगने पड़ सकते हैं, अपने किए पर पछताना पड़ सकता है।’’
दूसरे दिन चरवाहा भेड़ों को चराने पहाड़ी वाले मैदान पर ले गया। मगर जब वह एक पेड़ के नीचे बैठा अपनी बांसुरी बजा रहा था, तभी उसे गुर्राने की सी आवाजें सुनाई दीं। उसने सिर उठाकर देखा तो कुछ दूर सचमुच एक बड़ा-सा भयानक भेड़िया गुर्राता हुआ भेड़ों की ओर बढ़ रहा था।
भेड़ों ने एक खूंखार भेड़िए को अपनी ओर बढ़ते देखा तो मिमियाकर इधर-उधर भागने लगीं।
चरवाहा बालक भयभीत हो गया। लगा जोर – जोर से चिल्लाने—‘‘भेड़िया आया ! भेड़िया आया !! बचाओ...बचाओ !’’
इस बार वह बहुत डरा हुआ था। चिल्ला-चिल्ला कर सहायता की पुकार कर रहा था। वहा कांप रहा था और खेतों की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा था। मगर गांव वालों ने सोचा कि चरवाहा बालक मजाक कर रहा होगा, अतः वे नहीं आए।
भेड़िये ने भी चरवाहे बालक को भय से कांपते देखा तो समझ गया कि यहां कोई नहीं है, जो उसका मुकाबला कर सके। बस फिर क्या था, भेड़िये ने एक भेड़ की गरदन पकड़ी और देखते-ही-देखते उसे लेकर भाग गया। भेड़ें बुरी तरह मिमियाती और छटपटाती रहीं।
चरवाहा बालक रोता हुआ गांव वालों के पास आया और दर्दभरी कहानी सुनाई। वह अपने किए पर बुरी तरह पछता रहा था। चरवाहे बालक के माता-पिता तथा गांव वालों ने उसे खूब डांटा। बालक ने भी अपने मूर्खतापूर्ण कार्यों के लिए क्षमा मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह ऐसा मजाक नहीं करेगा।
निष्कर्ष : झूठे व्यक्ति की सच बात पर भी लोग विश्वास नहीं करते।
(ईसप की कहानियाँ - अनिल कुमार)


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