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शीत बसंत- बिहार की लोक-कथा

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एक समय की बात है एक राजा के आँगन में एक पीपल का पेड़ था। उस पेड़ पर एक गौरा और गौरैया रहते थे।एक दिन गौरैया गौरा से बड़े दुःखी स्वर में कहा -'' देखिये जी मेरे मरने के बाद आप दूसरी गौरैया मत लाइयेगा वरना मेरे बच्चो को बड़ा दुःख होगा। ''
गौरा ने कहा - '' ठीक है प्रिये मैं ऐसा नहीं करूँगा। ''

इस घटना के कुछ दिनों बाद गौरैया की मृत्यु हो गई। गौरा दूसरी गौरैया ले आया। नई गौरैया ने पुरानी गौरैया के अन्डो को अपनी चोंच से गिरा दिया। इस पूरी घटना को रानी देख रही थी। उससे बड़ा दुःख हुआ। रात को राजा से सोते वक्त रानी ने राजा से कहा - '' हे राजन मेरी मृत्यु पश्चात मेरी सौतन मत ले आइयेगा। वरना मेरे बच्चो को भी गौरैया के बच्चो की तरह बड़ा दुःख होगा। ''

राजा ने कहा -'' अरे मेरी रानी मैं भला ऐसा क्यों करूँगा। तुम निश्चिन्त रहो। मैं कभी तुम्हारी सौतन नहीं ले आऊंगा। ''

इस घटना के कुछ दिनों बाद रानी की भी मृत्यु हो गई। राजा दूसरी रानी ले आया। राजा के पहली रानी से दो बेटे थे। बड़े का नाम था शीत और छोटे का नाम बसंत था। एक दिन दोनों बच्चे गेंद खेल रहे थे की अचानक उनकी गेंद रानी को जा लगी। रानी को बड़ा क्रोध आया। वह कोपभवन में जाकर बैठ गयी। शाम को राजा ने पूछा तो रानी ने बड़े आवेश में आकर कहा -''हे मेरे राजा अगर तुम मुझे ज़िंदा देखना चाहते हो तो मेरे सामने शीत बसंत का कलेजा काट कर ले आओ। ''

राजा बड़ा परेशान हुआ। उसने बहेलियों को आदेश दिया की शीत बसंत को जंगल में ले जाकर उनका कलेजा काट कर रानी के सामने प्रस्तुत किया जाए। बहेलिये शीत बसंत को जंगल में ले गए तो शीत बंसन्त ने रोते हुए कहा -'' ओ बहेलिओं हम पर दया करो। हमारे गले सोने के हार है इन्हे ले लो और हमें ज़िंदा छोड़ दो। ''
उसमे से एक बहेलिये ने कहा -'' अरे इन्हे मारने के बाद ये हार वैसे ही हमारे हो जाएंगे। ''

ये बात सुन कर एक बूढ़े बहेलिये ने कहा -'' अरे पापी कुछ तो दया कर। क्यों इन मासूमों की जान लेने पर तुला है। हमें इन बच्चों की बात मान लेनी चाहिए। '' इसके बाद बहेलिओं ने सोने के हार ले लिए और दो खरगोश मार कर उनका मांस रानी को दे दिया। रानी बहुत खुश हुई।

जंगल में शीत बसंत अकेले हो गए। चारों तरफ जंगल जानवरों के डर और भूख से उनका बुरा हाल था। शीत ने बसंत को ढांढस बंधाते हुए कहा -'' मेरे भाई तुम इस पेड़ के नीचे इंतज़ार करो मैं पास के किसी गांव से हमारे लिए खाना लेकर आता हूँ। ''

इतना कह कर शीत पेड़ के नीचे बसंत को अकेला छोड़ कर भोजन की तलाश में निकला। बहुत दूर जाने पर एक गाव दिखा। वहां की राजकुमारी शीत को देख उस पर रीझ गई। राजकुमारी के पिता ने शीत को अपना घर जमाई बना लिया और शीत बसंत को भूल कर वहीं बस गया। उधर बसंत का रो-रो के बुरा हाल था। जैसे-जैसे शाम होती जा रही थी बसंत के रोने की तीव्रता बढ़ती जा रही थी। उसके रोने की आवाज सुनकर जंगल परियां बसंत के पास गई और उस से रोने का कारण पुछा। बसंत ने रोते हुए पूरी बात बताई। परियों ने बसंत से कहा -''तुम हमारे घर चलो। वहां तुम्हे कोई दुःख नहीं होगा।'' ये कहकर परियां बसंत को अपने साथ अपने घर ले गयी। वहां बसंत के बड़े ठाट थे। एक बड़े नौकरों से भरे सोने के महल में बसंत रहने लगा। परियों ने उसके आमोद प्रमोद के सारे प्रबंध कर दिए थे। बसंत का जीवन मजे से कटने लगा।

उधर काफी दिनों बाद शीत को बसंत का ध्यान आया। वह वापस जंगल में आया तो बसंत को परियों के साथ देख बहुत आश्चर्यचकित हुआ। दोनों भाई एक बार फिर मिल गए। शीत ने परियों से बसंत को अपने साथ राजकुमारी के घर ले जाने की अनुमति मांगी। परियों ने बसंत और शीत को ढेर सारा धन-धान्य देकर विदा किया। राजकुमारी के राज्य में बसंत ने चरवाही का काम संभाला और शीत ने खेती शुरू की। राजकुमारी दोनों के लिए खाना बनाती थी पर दोनों के भोजन अलग अलग बनाती थी। शीत के भोजन में पकवान होते थे पर बसंत को वह पत्थर के जैसी रोटियां देती थी। बसंत चुप-चाप वो रोटियां ले कर अपने कमरे में रख आता और परियों का दिया भोजन करता था। एक दिन दोपहर में दोनों भाई साथ खाने को बैठे। शीत ने मजाक में बसंत से अपनी थाली बदल ली। बसंत से कहा -''भैया कृपा कर मेरा भोजन मुझे दे दो ।''

इस पर शीत कहा - ''अरे देखे तो तेरी भाभी ऐसा क्या देती है तुझे खाने में जिससे तू इतना तगड़ा हो गया है"
खाने का पहला निवाला मुख में डालते ही शीत को पत्थर जैसा लगा। उसने निवाला थूक कर कहा -''क्या तू ये खाता है ''

बसंत ने कहा -'' नहीं भैया। भाभी तो मुझे पत्थर जैसी रोटियां बनाकर देती थी पर मैं तो परियों का दिया खाना खाता था। मैंने वो सारी रोटियां अपने कमरे में रखी हैं जो भाभी मुझे खाने को देती थी। ''

ये सुनकर शीत ने थाली राजकुमारी के मुंह पर दे मारी और दोनों भाई राजकुमारी का राज्य छोड़ कर परियों के महल में रहने को आ गए। परियों ने उनका बड़ा स्वागत किया और दोनों भाई सुख से रहने लगे।

बहुत समय गुजरने पर शीत ने कहा -''भाई, यहाँ रहते बहुत दिन हो गए। मुझे अपने घर और माँ -पिताजी की याद आती है। चलो अब अपने घर चलें। ''
बसंत ने कहा -'' हाँ भैया मुझे भी अब घर के बड़ी याद आती है। ''

दोनों ने परियों से विदा ली और अपने घर को चले। उधर काफी दिनों बाद राजा को अपने किया पर पश्चताप हुआ। उन्होंने ने दूसरी रानी को जंगल में छोड़ देने एक आदेश दिया। जहाँ उसे जंगली जानवरों ने नोच खाया पर अब राजा गरीब हो गए थे । उनका राज्य उनसे छिन गया था। वे बूढ़े और अंधे हो कर भिखारियों सा जीवन जी रहे थे। जब उन्हें अपने बेटों के आने की खबर मिली तो उनकी आँख की रौशनी वापस आ गई। शीत बसंत हाथी और घोड़ों पर ढेर सारा सोने हीरे के आभूषण और सामान वापस लौटे। राजा का राज्य उन्हें फिर से वापस मिल गया और सब ख़ुशी ख़ुशी साथ रहने लगे।

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