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भागवत महाकथा श्याम सिंह बिष्ट

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भागवत महाकथा एक ऐसी कथा जिसके सुनने से हर प्राणी मात्र के दुख, दर्द दूर हो जाते हैं, व वह भव सागर की नैया मैं तैरकर सीधा अपना सम्वन्य अपने प्रभु से कर लेता है ।

हम सभी को गर्व होना चाहिए कि हम ऐसी माहकथा के सूत्रधार व दर्शक बने, इस बार डोटल गाँव, में आयोजित चारों ओर चीड़ के हरे, भरे पेड़, पहाड़ों से घिरे, ठंडी, ठंडी हवाओं के मध्य कालिका मंदिर (चीण कोट खानखेत ) June 2019 में - आदरणीय वेद व्यास हिमांशु जी के श्री मुख से हमें इस कथा को सुनने का अवसर प्रदान हुआ, उनके द्वारा कहे गए श्लोक, भजन व ज्ञान की बातें हमें अपने जीवन में अवश्य उतारने चाहिए, क्योंकि "जहां चाह है वही राह है " हम उनके समस्त सदस्यों का भी धन्यवाद करते हैं जो सप्ताह भर चली भागवत महाकथा में हमें नित्य, प्रतिदिन चाहे वह दिन का पहर हो या शाम का पहर हो, उन्होंने हमारी चेतना को हमारे कुल देवी, देवताओं व भगवान से हमारा सीधा समन्वय कराया ।
बेशक कुछ लंबे अंतराल के बाद हमारे गांव डोटल गांव में इस माहकथा का आयोजन हुआ, परन्तु यह उन सभी सदस्यों के अथक परिश्रम, तन,मन,धन से व उन सभी भक्तों का व वहाँ की कार्यकारिणी सदस्य व समस्त क्षेत्रीय जनता के अथक परिश्रम का फल है कि, उनके अथक परिश्रम के फलस्वरूप हम इस एक सप्ताह भर चली भागवत महाकथा के गवाह बने ।

भागवत महाकथा का सर्व प्रथम दिन सुबह, सूरज की लालिमा के कलशयात्रा से प्रारंभ होकर भागवत महा ज्ञान कथा की अवरिल बहने वाली ज्ञान की गंगा से शुभारंभ हुआ, भागवत महाकथा का प्रारंभ दिन वहां की समस्त क्षेत्रीय जनता को युगों, युगों तक याद रहेगा, सभी भक्त लोग ( देविय महिलाएं ) उस दिन उत्तराखंड की सांस्कृतिक दर्शाने वाली गेहूंए, पिछोर व नाख में नथुली व पूर्ण रूप से सज, धज कर गागर मैं आम के हरे, भरे पत्तों को रखकर अपने सर, पर विराजमान करके कालिका मंदिर से दूर शिवालय मंदिर तक तपती दोपहरी में लेकर विद्यमान रहे । जैसे ही कालिका माता मंदिर से कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ सभी लोग कालिका माता की जय जय कार के नारे लगाते हुए उबर खाबड़, ऊँचे, नीचे हरयाली युक्त , पहाड़ी रास्तों को पार करके तपती दोपहरी में दूर शिवालय मंदिर तक का रास्ता पूर्ण किया, शिवालय मंदिर से गागर में सागर भर कर सभी देवीय महिलाएं पुनः कालिका मंदिर की ओर अपने माता की जय जयजयकार, करते हुए प्रस्थान हुए, इसी बीच वहां के लोगों का जोश अपने देवी देवता के प्रति, आस्था विश्वास कैसे किया जाता है,दूसरों के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ । शिवालय मंदिर में पानी भरने के उपरांत मेरे आराध्य देव शिव जी के सभी ने दर्शन किए, कुछ महिलाओं में स्वयं कालिका माता अवतरित हुई ।

कालिका मंदिर में पहुंचकर दोपहरी के बाद सभी ने सर्वप्रथम दिन भागवत महा कथा का सर्वप्रथम ज्ञान प्राप्त किया व प्रसाद ग्रहण किया व माता की जय जयकार के नारे लगाए , साँझ के समय भगवान की आरती के उपरांत सभी ने वेदव्यास हिमांशु जी के श्री मुख से भजन कीर्तन ग्रहण किए व राधे , राधे कृष्णा, कृष्णा जप के साथ अपने देवी देवताओं को याद किया व प्रभु की शरण में खूब झूमे नाचे गाए कहीं पर हारमोनियम तो कहीं पर तबला वादक की मधुर धनिया कानों को आनंदित करती तो कभी कभी प्रभु के धुन में सभी लोग आनंदित होकर प्रभु का भजन कीर्तन करते, वहीं दूसरी तरफ सभी लोग अपनी जिम्मेदारी का परिपूर्ण रूप व निस्वार्थ भाव से कार्य कर , रात के समय के भंडारे को आयोजित करते, रात के समय के भंडारे को ग्रहण करके अधिकतर लोग अपने,अपने घर सोने चले जाते, और कुछ लोग वहां की कार्यकारणी द्वारा नियुक्त कुछ सदस्य, रातभर, दिन भर भक्ति में लीन रहते, व निस्वार्थ भाव से अपने काम पर लगे रहते । सप्ताह भर चला यह आयोजन सभी के लिए एक यादगार क्षण बना, व सभी लोगों को भक्ति करने का अवसर प्रदान हूआ व एक दूसरे से मिलने का सौभाग्य मिला, देश परदेश से आए हुए लोग अपने घरों में आए व अपने आस-पड़ोस के लोगों से मिले व उनके सुख-दुख के संग साथी बने ।

सभी ने वेद व्यास जी के श्री मुख से सप्ताह भर चली इस महा कथा के ज्ञान को ग्रहण किया व इस कथा से बहने वाली ज्ञान की गंगा में गोते लगाए, इस महाकथा का अंतिम पड़ाव वाला दिन सभी को भावुक करने वाला था, सुबह प्रातः 8 बजे प्रारंभ होकर मध्य दुपहरी 12 बजे तक हवन चला व सभी 35, 36 जोड़े, ( पुरुष जहां पर अधिक्तर सफेद धोती, कुर्ता पहने हुए थे व महिलाएं पूर्ण रूप से सज धज कर व गेंहुए रंग का पिछोड़ा पहने हुई थी ),सभी ने अपनी जीवन संगिनी के साथ व अपने यजमान को साक्षी मानकर वहां की कार्यकारिणी द्वारा नियुक्त पूजनीय पंडितों के द्वारा कह गए श्लोकों का उच्चारण किया व इस हवन को पूर्ण रूप से आहुति प्रदान की, हवन समाप्ति के बाद वेदव्यास जी के श्री मुख से भागवत महाकथा का अंतिम पड़ाव पूरा हुआ , वहां की समस्त जनता ने आनंदित होकर भजन कीर्तन किए और समस्त क्षेत्रीय जनता ने भंडारे के रूप में वितरण प्रसाद को ग्रहण किया और खुशी-खुशी अपने घरों की ओर प्रस्थान किया भागवत महा कथा का संपूर्ण कार्य पूरा होने के पश्चात वहां के नौजवानों ने भंडारे में उपयोग हुए बर्तनों को गांव में बनी पंचायत घर मैं पहुंचाया व भंडारे के लिए आए हुए, कुछ बची हुई खाद्य सामग्री को अपने सामर्थ्य के अनुसार लिया व सभी ने एक आपसी तालमेल बैठा कर प्रण किया कि हम सभी लोग समय-समय पर कोई न कोई कार्यक्रम गांव के लिए व अपने कुल देवी देवता के मंदिरों के लिए कार्य करते रहेंगे, भागवत महाकथा के समाप्ति के बाद अंतिमवाला दिन, "झोई भात " के लिए रखा गया सुबह कालिका मंदिर मैं पहुंचकर "झोई भात " बनाया गया और वहां पर मौजूद सभी सदस्यों ने झोई भात ग्रहण किया मंदिर के प्रांगण को साफ स्वच्छ कर अपने घरों की ओर प्रस्थान किया ।

यह भागवत महाकथा वहां पर कार्यरत सभी सदस्यों के अथक मेहनत का फल है जिन्होंने सप्ताह भर चली इस कथा को सुचारू ढंग से कार्यनिवत किया, उन सभी क्षेत्रीय जनता का धन्यवाद जिन्होंने भंडारे के रूप में अपने तन से,मन से, धन से इस महाकथा के लिए सहयोग प्रदान किया व उन सभी दर्शकों का भी अभिनंदन जो सप्ताह भर चली इस भागवत महाकथा के गवाह बने व अपने को प्रभु की भक्ति में आनंदित होकर इस महा कथा को शांतिपूर्वक सुना व भजन कीर्तन में परिपूर्ण रूप से अपना सहयोग प्रदान किया ।
और सभी ने यह विश्वास दिलाया की आने वाले भविष्य में वो इसी प्रकार के कार्य करते रहेंगे ।
जय कालिका मैया, जय गोलू देवता की, जय नो लाख कत्यूरियों की, जय कुलदेवी, जय हो कुल देवता की ।।

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