मणिपुर में लोकटक झील के किनारे एक टूटी हुई झोंपड़ी में तोमचा रहता था। उसके चार बेटे थे। तोमचा की पत्नी का देहांत हो चुका था। उसके बेटों को केवल भीख माँगना आता था।
सुबह होते ही वे चारों पिता सहित अपना कटोरा उठाए चल देते। उन्होंने घर में ही पाँच चूल्हे बना रखे थे। भीख में मिले अनाज को वह अपने-अपने चूल्हों पर भून लेते। इसी तरह गरीबी में वे दिन गुजार रहे थे।
एक दिन तोमचा को ध्यान आया कि क्यों न बड़े बेटे की शादी कर दी जाए। यूँ तो भिखारी लड़के के लिए दुल्हन लाना बहुत मुश्किल था, परंतु ईश्वर ने अपने आप रास्ता निकाल दिया।
अनाथ तोम्बी के मामा ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसका विवाह तोमचा के बेटे से कर दिया। तोम्बी ने ससुराल में कदम रखा तो वहाँ की बुरी हालत देखकर दंग रह गई।
ससुर और लड़कों के जाते ही उसने कमर कस ली। पहले घर में झाड़ू लगाया, फिर चार चूल्हे तोड़ दिए।
पड़ोसन से चावल माँगकर पका लिए। चटनी भी तैयार कर ली।
जब घर के पुरुष पहुँचे तो खाने पर टूट पड़े। उन्होंने पहली बार ऐसा स्वादिष्ट भोजन किया था। खाना खाते-खाते तोमचा की नजर टूटे चूल्हों पर पड़ी। वह गुस्से से बोला-
'क्यों री लड़की, आते ही हमारे चूल्हे तोड़ दिए। तू भाइयों में
'फूट डलवाकर उन्हें अलग करेगी?'
तोम्बी हँसकर बोली-
भाइयों में फूट डलवाने मैं नहीं आई
इस घर को सजा-सँवार कर
मैंने भात व चटनी बनाई
भीख के अनाज में से तोम्बी ने पड़ोसिन का उधार लौटा दिया। शेष अगले दिन के लिए बचा लिया। अब तोम्बी ने ससुर से निवेदन किया-
'आप जंगल से थोड़ी लकड़ी काट लाया करें। मुझे खाना बनाने के लिए चाहिए।' उसकी बात सुनते ही चारों लड़के भड़क उठे, 'अच्छा, हमारे पिता से लकड़ियाँ मँगवाएगी। हम हट्टे-कट्टे तुझे नजर नहीं आते।'
तोम्बी ने जलकर उत्तर दिया, 'यदि आप लोग हट्टे-कट्टे हैं तो लकड़ी काटकर क्यों नहीं बेचते? भीख क्यों माँगते हैं?'
उस दिन चारों लड़के कुल्हाड़ी लेकर चल दिए। पिता ने अपना कटोरा उठाया। बाकी कटोरे वहीं रहे। तोम्बी अपनी सूझ-बूझ से स्वयं ही प्रसन्न हो उठी। शाम को उसका पति लकड़ी बेचकर पैसे लाया तो वह फूली न समाई।
घर में चूल्हा जला, सोंधी-सोंधी रोटी की खुशबू आई तो सबने बहू को सराहा। समझदार तोम्बी हमेशा कुछ न कुछ अनाज बचा लेती। पड़ोसिन के करघे पर उसने सुंदर मेखला तैयार की। उसे बेचकर मिले पैसों से जरूरी सामान खरीदा।
घर की दशा ही बदल गई। मेहनत की कमाई आने से घर में बरकत हुई तोम्बी ने ससुर को भी चाय की दुकान खुलवा दी। स्वयं वह खाली समय में करघे पर कपड़ा बुनती।
दिन बीतते गए। जो भिखारी थे, वे सौदागर बन गए। उनकी लकड़ी की टाल पूरे गाँव में प्रसिद्ध हो गई। तोम्बी की मेहनत रंग लाई। पूरे परिवार ने खुशहाली पाई। तोमचा प्राय: ईश्वर से प्रार्थना करता-
'हे भगवान, मेरे दूसरे लड़के भी तोम्बी-सी गुणवान पत्नी पाएँ।'
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