डॉक्टर माथुर की नजरें अपने क्लिनिक में प्रवेश करते हुए उन वृद्ध सज्जन पर पड़ीं। उन्होंने समझ लिया कि अब उनका काफी समय उन्हें समझाने में बीतेगा। वे महाशय हर दूसरे-तीसरे रोज आकर एक विशिष्ट लहजे में अपनी बीमारी का रोना रोते। ‘क्या बताऊं डॉक्टर साहब, रात को ढंग से सो ही नहीं पाता हूं।’
‘कितनी देर सो लेते हैं? मेरा मतलब है, लगभग कितने घंटे सो लेते हैं?’ डॉक्टर माथुर ने पूछा। ‘दो-दो घंटे करके पांच-छह घंटे की नींद होती है। रात में दो बार बाथरूम जाने को उठना पड़ता है।’ ‘आपकी उम्र के लिए इतनी नींद बहुत है, इससे आधिक क्या सोएंगे?’ उन्हें आश्वस्त करते हुए बोले। ‘इंसान को प्रतिदिन आठ घंटे की नींद लेनी जरूरी है, इसीलिए दोपहर को भी दो घंटे सोने की कोशिश कर लेता हूं।’ वृद्ध ने अपनी पूरी बात बताई। ‘अब आपको परेशानी क्या है? नींद तो पूरी हो गई?’ डॉक्टर ऊबते हुए बोले।
‘एक बात हो तो बताऊं? रात को जब नींद टूटती है तो बुरे ख्याल आने लगते हैं, मुझे फलां रोग हो गया तो क्या करुंगा या मैं गिर गया तो अपाहिज हो जाऊंगा। फिर आगे पड़ी लंबी जिंदगी कैसे कटेगी?’ उन सज्जन के माथे पर पड़ी सलवटों को देखकर डॉक्टर खीजने लगे।
बेजार होते हुए डॉक्टर बोले, ‘जब ऐसा कुछ होगा तब हम डॉक्टर लोग हैं, आपकी अच्छी तरह से इलाज और देखभाल करेंगे।’ लगभग दांत पीसते हुए बात खत्म की और चेहरे पर हंसी का मुखौटा पहने व्यस्त होने लगे कि वृद्ध महाशय वहां से टलें, पर कहां।
‘वैसे तो डॉक्टर साहब, इतने सालों में न तो मेरा सिर कभी दर्द किया, न कोई और तकलीफ। इतना नियमित और तरीके से रहता हूं, फिर भी शक्कर की बीमारी क्यों हो गई, पता नहीं। शायद मेरी किस्मत को यही मंजूर था कि मेरे जीवन में कड़वाहट घोल दे।’
डॉक्टर माथुर की जीभ की नोक पर कड़वाहट तैयार बैठी थी, पर शिष्टता के नाते अपने को रोके रहे। फिर भी बिना बोले न रह सके, ‘आप जानते हैं, भारत में आम इंसान की ‘लाइफ स्पैन’ यानी कितनी उम्र तक जीता है? उस हिसाब से तो आप पंद्रह-बीस वर्ष बोनस जी चुके हैं।’
डॉक्टर माथुर इसके आगे उनसे बात करना नहीं चाहते थे। तभी अपने माता-पिता के साथ दस-बारह वर्षीय बच्ची आई। उसके सिर पर केश नहीं के बराबर थे, गले पर लाल-लाल चकत्ते। डॉक्टर ने उसके गाल कोमलता से थपथपाए। बच्ची ने डॉक्टर के कान में कुछ कहना चाहा और फुसफुसाई। उसके पिता अश्रुपूरित आूखों से बोले, ‘पिछले तीन-चार दिनों से कह रही है कि डॉक्टर अंकल के पास ले चलो, मुझे उनसे कुछ कहना है।’
डॉक्टर माथुर की भी आंखें भर आर्इं। बच्ची की दोनों हथेलियों को अपने माथे से छुआते हुए बोले, ‘आपकी बेटी की बात सुनकर आपको भी गर्व होगा। इतनी-सी उम्र में ब्लड कैंसर जैसी बीमारी और सामने खड़ी मौत से नहीं डर रही है। कहती है, मैं अपनी आंखें और किडनी दान करना चाहती हूं।’ उन वृद्ध सज्जन की ओर डॉक्टर माथुर ने नजरें घुमार्इं। उन सज्जन की नजरें झुकी हुई थीं।
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