पाकिस्तान की चेनाब नदी के किनारे पर तख़्त हजारा नामक गाँव था । यहा पर रांझा जनजाति के लोगो की बहुतायत थी । मौजू चौधरी गाँव का मुख्य ज़मींदार था । उसके आठ पुत्र थे और राँझा उन चारो भाइयों में सबसे छोटा था । राँझा का असली नाम ढीदो था और उसका उपनाम राँझा था इसलिए उसे सभी राँझा कहकर बुलाते थे । राँझा चारो भाइयो में छोटा होने के कारण अपने पिता का बहुत लाडला था । राँझा के दुसरे भाई खेती में कड़ी मेहनत करते रहते थे और राँझा बाँसुरी बजाता रहता था ।
अपने भाइयो से जमीन के उपर विवाद के चलते रांझा ने घर छोड़ दिया । एक रात रांझा ने एक मस्जिद में आश्रय लिया और सोने से पहले समय व्यतीत करने के लिए बांसुरी बजाने लगा । मस्जिद के मौलवी साब जब बांसुरी का संगीत सुना और बांसुरी बजाना बंद करने को कहा । जब राझा ने कारण पूछा तो मौलवी ने बताया कि इस बांसुरी का संगीत इस्लामिक नही है और ऐसा संगीत मस्जिद में बजाना वर्जित है । जवाब में रांझा ने कहा कि उसकी धुन इस्लाम में कोई पाप नहीं है। मूक मौलवी ने दूसरा कोई विकल्प ना होते हुए उसे मस्जिद में रात रुकने दिया ।
अगली सुबह वो मस्जिद से रवाना हो गया और एक दुसरे गाँव में पंहुचा जो हीर का गाँव था । सियाल जनजाति के सम्पन्न जाट परिवार में एक सुंदर युवती हीर का जन्म हुआ जो अभी पंजाब, पाकिस्तान में है । हीर के पिता ने रांझा को मवेशी चराने का काम सौंप दिया । हीर, रांझा की बांसुरी की आवाज में मंत्रमुग्ध हो जाती थी और धीरे धीरे हीर को रांझा से प्यार हो गया । वो कई सालो तक गुप्त जगहों पर मिलते रहे । एक दिन हीर के चाचा कैदो ने उन्हें साथ साथ देख दिया और सारी बात हीर के पिता चुचक और माँ मालकी को बता दी ।
अब हीर के घरवालों ने राँझा को नौकरी से निकाल दिया और दोनों को मिलने से मना कर दिया । हीर को उसके पिता ने सैदा खेड़ा नाम के व्यक्ति से शादी करने के लिए बाध्य किया । मौलवियों और उसके परिवार के दबाव में आकर उसने सैदा खेड़ा से निकाह कर लिया । जब इस बात की खबर राँझा को पता चली तो उसका दिल टूट गया । वो ग्रामीण इलाको में अकेला दर दर भटकता रहा । एक दिन उसे एक जोगी गोरखनाथ मिला । गोरखनाथ जोगी सम्प्रदाय के “कानफटा” समुदाय से था और उसके सानिध्य में रांझा भी जोगी बन गया ।रांझा ने भी कानफटा समुदाय की प्रथा का पालन करते हुए अपने कान छीद्वा लिए और भौतिक संसार त्याग दिया ।
रब्ब का नाम लेता हुआ वो पुरे पंजाब में भटकता रहा और अंत में उसे हीर का गाँव मिल गया जहां वो रहती थी । वो हीर के पति सैदा के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया । सैदा की बहन सहती ने दरवाजा खोला । सेहती ने हीर के प्यार के बारे में पहले ही सुन रखा था । सेहती अपने भाई के इस अनैच्छिक शादी के विरुद्ध थी और अपने भाई की गलतियों को सुधारने के लिए उसने हीर को राँझा के साथ भागने में मदद की । हीर और रांझा वहा से भाग गये लेकिन उनको राजा ने पकड़ लिया ।राजा ने उनकी पुरी कहानी सूनी और मामले को सुलझाने के लिए काजी के पास लेकर गये । हीर ने अपने प्यार की परीक्षा देने के लिए आग पर हाथ रख दिया और राजा उनके असीम प्रेम को समझ गया और उन्हें छोड़ दिया ।
वो दोनों वहाँ से हीर के गाँव गये जहां उसके माता पिता निकाह के लिए राजी हो गये । शादी के दिन हीर के चाचा कैदो ने उसके खाने में जहर मिला दिया ताकि ये शादी रुक जाये । ये सुचना जैसे ही राँझा को मिली वो दौड़ता हुआ हीर के पास पहुचा लेकिन बहुत देर हो चुकी थी । हीर ने वो खाना खा लिया था जिसमे जहर मिला था और उसकी मौत हो गयी । रांझा अपने प्यार की मौत के दुःख को झेल नही पाया और उसने भी वो जहर वाला खाना खा लिया और उसके करीब उसकी मौत हो गयी । हीर और राँझा को उनके पैतृक गाँव झंग में दफन किया गया ।
(पंजाबी साहित्य में इस कथा के सुखांत और दुखांत दोनों तरह के वर्णन मिलते हैं)
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