एक अच्छा घर – सभी की चाहत होती है लेकिन हमारे बीच मौजूद कितने व्यक्ति इस सपने को पूरा नहीं कर पाते. घर बनाने का सपना जिन लोगों का पूरा होता है वह भाग्यशाली होते हैं. अपने सपनों का महल बनाने से पहले यदि हम कुछ बातों पर ध्यान दे तो यह घर सुख तथा समृद्धि प्रदान करने वाला साबित हो सकता है.
जब भी आप अपना घर बनाएं तब वास्तु संबंधी कुछ बातों पर ध्यान अवश्य दें. जैसे रसोईघर, पूजाघर, भोजनकक्ष, शयनकक्ष के साथ अन्य और भी कक्ष कैसे बनाएँ. वास्तु का अर्थ है कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का बहाव अधिक से अधिक हो और नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश ना कर पाए. वास्तु का अर्थ घर में हवा और रोशनी संतुलित मात्रा में रहे, ऊर्जा का प्रभाव भी नियंत्रित रहें. आइए भवन संबंधी कुछ बातों पर विचार करें कि वह कैसे होने चाहिए.
रसोईघर –
रसोई घर के निर्माण से पहले यह निर्धारित करें कि घर की किस दिशा में होना चाहिए. रसोईघर में अग्नि का काम होता है इसलिए रसोईघर का निर्माण आग्नेय कोण में होना चाहिए. घर की दक्षिण–पूर्व दिशा आग्नेय कोण कहलाती है. घर में स्लैब इस तरह से होनी चाहिए कि खाना बनाते समय घर की महिला का मुख पूर्व दिशा की ओर हो.
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यदि भोजन बनाएगें तो महिलाओं में रक्त संबंधी परेशानियाँ पैदा हो सकती हैं. यह इसलिए होता है क्योकि दक्षिण दिशा से ऋणात्मक चुंबकीय प्रवाह होता है. यदि किसी कारण से आग्नेय कोण में रसोईघर नहीं बन पा रहा हो तब वायव्य कोण में रसोईघर का निर्माण किया जा सकता है लेकिन ध्यान रखें कि पूर्वाभिमुख होकर ही खाना बनाएँ.
पूजाघर –
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के ईशान कोण में पूजाघर होना चाहिए और पूजाघर में पूजा करने वाले व्यक्ति का मुख पूर्व अथवा पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए. शयनकक्ष में पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए. आप में से बहुत से व्यक्ति हैं जो रसोईघर में पूजा का स्थान बनाते हैं क्योंकि घर में जगह की कमी होती है. ऎसे में आप रसोईघर के ईशान या वायव्य कोण में पूजा करने का स्थान बना सकते हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि पूजाघर में मूर्तियों के साथ स्वर्गवासी लोगों की तस्वीरें ना लगाएँ.
ड्राईंग रूम –
वास्तु के अनुसार ड्राईंग रुम वायव्य कोण में होना चाहिए लेकिन भूखंड के अनुसार अन्य दिशाओं में भी ड्राईंग रुम बनाया जा सकता है. पूर्व दिशा के भूखंड में ईशान कोण में ड्राईंग रुम में बना सकते है. दक्षिण दिशा के भूखंड में अग्नि कोण में ड्राईंग रुम बना सकते हैं. विशेष बात बताने की यह है कि ड्राईंग में यदि टेलीफोन रखा है तब आप उसको ऎसे रखे कि बात करते समय आपका मुख उत्तर या दक्षिण की ओर हो.
शयनकक्ष –
हम सभी जानते हैं कि सोते समय हमारा सिर दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए क्योंकि चुंबकीय ऊर्जा का प्रवाह उत्तर दिशा से दक्षिण दिशा की ओर होता है. वैसे भी कहा गया है कि दक्षिण दिशा में यमराज का वास होता है इसलिए इस ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए. यदि वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो आपका सिर आपके शरीर का उत्तरी ध्रुव है और यदि आप उत्तरी दिशा में सिर करके सोते हैं तो उससे प्रतिकर्षण होता है. इस प्रतिकर्षण के परिणामस्वरुप आपका रक्त प्रवाह प्रभावित हो सकता है और आपको बेचैनी हो सकती है. आपकी नींद खराब हो सकती है और सुबह नींद खुलने पर आपको पूरे दिन थकान का अनुभव हो सकता है.
यदि आप पूर्व या दक्षिण दिशा में अपना सिर करके सोते हैं तो इसका अच्छा अथवा बुरा कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि जैसा कि आपको पता है कि चुंबकीय़ तरंगों का प्रभाव उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होता है. शयनकक्ष में जब बेड स्थापित करें तो इसे दक्षिण्–पश्चिम दिशा में दो–तीन फीट की जगह छोड़कर स्थापित करना चाहिए.
घर के स्वामी का शयनकक्ष दक्षिण – पश्चिम दिशा में होना चाहिए. बच्चो का कमरा वायव्य कोण अथवा अग्नि कोण में बना सकते हैं लेकिन वायव्य कोण में बच्चों को अकेले नहीं सुलाना चाहिए पर आप अग्नि कोण में बने शयनकक्ष मेंबच्चों को अकेला सुला सकते हैं. शयनकक्ष में यदि अलमारी आदि रखते हैं तो आप उन्हें ऎसे रखें कि उनका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर खुले.
स्नानगृह अथवा बाथरुम –
स्नान घर को आग्नेय कोण अर्थात पूर्व दिशा के नजदीक बनाना चाहिए. पूर्व की ओर से आने वाली सूर्य की किरणें स्नान करते समय आपके शरीर पर अपना लाभदायक प्रभाव डालती हैं. यदि सूर्य की किरणें वहाँ तक नहीं पहुंच सकती तब भी आप इसे पूर्व दिशा में ही बनवाएँ.
शौचालय –
वास्तु के अनुसार शौचालय पश्चिम दिशा अथवा दक्षिण दिशा की ओर बनाना चाहिए. शौचालय की शीट को उत्तर या दक्षिण की ओर मुँह करके फिक्स कराना चाहिए.
भोजन कक्ष अथवा डाईनिंग रुम –
वास्तु के अनुसार भोजन कक्ष को पश्चिम दिशा में शुभ माना गया है क्योंकि उत्तर और पूर्व दिशा की ऊर्जा केन्द्रित होकर पश्चिम दिशा में अधिक मात्रा में विद्यमान रहती है. भोजन कक्ष में भोजन करते समय उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करके बैठना चाहिए. वैसे तो अधिकतर घरों में भोजन कक्ष रसोई घर के पास या मध्य में ही बनाया जाता है.
वास्तु के अनुसार बरामदा –
वास्तु शास्त्र के नियमानुसार भवन के पूर्व या उत्तर की ओर बरामदा होना लाभकारी होता है लेकिन पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर बरामदा बनाना अनिष्टकारी हो सकता है.
सीढ़ियाँ –
वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन की मुख्य सीढ़ियाँ दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य दिशा में होनी चाहिए. सीढ़ियाँ कभी भी ईशान कोण में नहीं होनी चाहिए. सीढ़ियाँ हमेशा पश्चिम या दक्षिण दिशा से ऊपर चढ़ती हुई और पूर्व व उत्तर दिशा की तरफ उतरती हुई होनी चाहिए. कोशिश करनी चाहिए कि गोल अर्थात घुमावदार सीढ़ियाँ नहीं होनी चाहिए.
वास्तु और पेंटिंग्स –
- घर की दीवारों पर युद्ध के दृश्य, महाभारत या रामायण आदि के युद्ध के दृश्य भी नहीं लगाने चाहिए.
- दु:ख, संघर्ष, अत्याचार, निर्धनता आदि के चित्र भी नहीं लगाने चाहिए.
- घर में शेर, भेड़िया, भालू, उल्लू, कौआ, कबूतर अथवा चीलों की तस्वीरें या मूर्त्तियाँ नहीं लगानी चाहिए.
- मरे हुए सिपाहियों, अकाल, बाढ़ अथवा ज्वालामुखी आदि के चित्रों को भी दीवारों पर नहीं लगाना चाहिए.
- सुंदर बाग – बगीचे, फूल अथवा प्राकृतिक सौंदर्य के चित्र लगाने चाहिए, यह शुभफलदायी रहते हैं.


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