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जब स्वर्ग के राजा बने नहुष को बनना पड़ा अजगर

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कहानी श्रीमद् भागवत की है। महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है। जब मनु के वंश की चौथी-पांचवी पीढ़ी ही थी। स्वर्ग में इंद्र का राज्य था। एक बार दुर्वासा ऋषि के अपमान के कारण इंद्र को उनके शाप का भागी बनना पड़ा। दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण इंद्र बल हीन हो गया। इंद्र को बलहीन देख दैत्यों ने स्वर्ग में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। इंद्र कहीं जाकर छिप गए। इस पर दैत्यों का साहस और बढ़ गया। रोज स्वर्ग पर अलग-अलग तरह से हमले होने लगे।

तब अन्य देवताओं ने सप्त ऋषियों से मंत्रणा करके धरती के उस समय के सबसे तेजस्वी राजा नहुष को स्वर्ग का राजा बना दिया। नहुष वीर और प्रतापी थे। उनके प्रभाव के कारण दैत्य फिर शांत बैठ गए और स्वर्ग में शांति हो गई। लेकिन, स्वर्ग का राजपद और इंद्र का आसन मिलने के कुछ ही दिनों में नहुष पर सत्ता और शक्ति का नशा छाने लगा। वो अपनी मनमानियों पर उतर आया। इंद्र का पद मिलने के बाद उसने इंद्र की पत्नी शचि को भी अपने सामने पेश होने का फरमान सुना दिया। नहुष ने इंद्र की पत्नी शचि से कहा कि जब इंद्र का आसन और उसकी शक्तियां मेरे पास हैं, तो तुम भी मुझे अपना पति स्वीकार कर लो।

शचि ने मना किया। नहुष उसे तरह-तरह से परेशान करने लगा। तब परेशान होकर शचि देवगुरु बृहस्पति के पास गईं, उन्हें सारी बातें बताईं। नहुष की मनमानियों से सभी ऋषि भी परेशान थे। तब देवगुरु ने शचि को एक युक्ति सुझाई। उन्होंने शचि से कहा कि तुम नहुष का प्रस्ताव मान लो और उससे कहो कि अगर वो सप्त ऋषियों को कहार बनाकर खुद उनकी डोली में बैठकर आए तो तुम उसको अपना पति स्वीकार कर लोगी। शचि ने ये सुझाव मान लिया। उसने नहुष तक अपनी इस शर्त का संदेश भिजवा दिया।

शचि का संदेश पाकर नहुष खुश हो गया और उसने सप्तऋषियों को डोली उठाने का आदेश दिया। मजबूरी में ऋषियों को नहुष की बात माननी पड़ी लेकिन वृद्ध होने के कारण वे तेज नहीं चल पा रहे थे। तो नहुष ने डोली उठाकर आगे चल रहे अगस्त ऋषि को लात मारते हुए तेज चलने को कहा। इस पर ऋषियों के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने नहुष को डोली से गिराते हुए तुरंत अजगर बन जाने का शाप दे दिया। धरती पर गिरा नहुष अजगर बन गया और अपने किए पर उसे पछतावा होने लगा। स्वर्ग का राजा बनने के योग्य व्यक्ति अपने अहंकार और गलतियों के कारण अजगर बन गया। नहुष का उद्धार तब हुआ जब हज़ारों वर्षों बाद पांडवों ने उसे इस श्राप से मुक्त करवाया।

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