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दूध न पीने वाली बिल्ली-तेनालीराम

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एक बार महाराज कृष्णदेव राय ने सुना कि उनके नगर में चूहों ने आतंक फैला रखा है। चूहों से छुटकारा पाने के लिए महाराज ने एक हजार बिल्लियां पालने का निर्णय लिया। महाराज का आदेश होते ही एक हजार बिल्लियां मंगवाई गयी। उन बिल्लियों को नगर के लोगों में बांटा जाना था। जिसे बिल्ली दी गयी उसे साथ में एक गाय भी दी गयी ताकि उसका दूध पिलाकर बिल्ली को पाला जा सके।

चूहों से सभी लोग परेशान थे, अतः जब बिल्लियाँ बंट रही थी तो लोगों की लंबी-लंबी कतारें लग गयी थीं। इस अवसर पर तेनालीरामन भी एक कतार में खड़ा हो गया। जब उसकी बारी आयी तो उसे भी एक बिल्ली और साथ में एक गाय दे दी गई। बिल्ली को घर ले जाकर उसने गरमागरम एक कटोरा दूध उसे पीने को दिया। बिल्ली भूखी थी। बेचारी ने जैसे ही कटोरे में मुंह मारा तो गर्म दूध से उसका मुहँ बुरी तरह जल गया। इसके बाद बिल्ली के आगे जब दूध रखा जाता ,चाहे वह ठंडा ही क्यों न हो, बिल्ली वहां से भाग खड़ी होती। गाय का सारा दूध अब तेनालीराम व उसके परिवार के अन्य सदस्य ही पी जाते। बेचारी बिल्ली कुछ ही दिनों में इतनी कमजोर हो गयी कि उसमे चूहे पकड़ने की ताकत भी नहीं रही। 3 माह बाद महाराज ने बिल्लियों की जांच करवाई। गाय का दूध पी -पीकर सभी की बिल्लियां मोटी-तगड़ी हो गयी थी, परन्तु तेनालीराम की बिल्ली सूखकर कांटा हो चुकी थी। वह सब बिल्लियों के बीच में अलग पहचानी जा रही थी। महाराज ने जब तेनालीराम की बिल्ली की हालत देखी तब वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने तुरंत ही तेनालीराम को हाजिर करने का आदेश दिया। तेनालीराम के आने पर वे गरजते हुए बोले, ”तुमने बिल्ली का यह क्या हाल बना दिया है? क्या तुम इसे दूध नहीं पिलाते ?”

“महाराज ! मै तो रोज इसके सामने दूध भरा कटोरा रखता हूँ, अब यह दूध पीती ही नहीं है तो इसमें मेरा क्या दोष है ?” महाराज को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अविश्वास भरे स्वर में बोले, ”क्यों झूठ बोल रहे हो ? बिल्ली दूध नहीं पीती ? मै तुम्हारी झूठी बातों में आने वाला नहीं। “

“परन्तु महाराज यही सच है। यह बिल्ली दूध नहीं पीती। ” महाराज झल्लाकर बोले, “ठीक है। यदि तुम्हारी बात सच निकली तो तुम्हे सौ स्वर्ण मुद्राएँ दी जाएँगी। अन्यथा सौ कोड़ों की सजा मिलेगी।” मुझे मंजूर है! तेनालीराम शांत भाव से बोला। तुरंत ही महाराज ने एक सेवक से दूध का भरा कटोरा लाने का आदेश दिया। सेवक जल्द ही दूध से भरा कटोरा ले आया। अब महाराज ने तेनालीराम की बिल्ली को हाथों में उठाया और उसका सिर सहलाते हुए दूध के कटोरे के पास छोड़ते हुए कहा, “बिल्ली रानी दूध पियो !”

बिल्ली ने जैसे ही कटोरे में रखा दूध देखा, वह म्याऊं-म्याऊं करती हुई वहां से भाग निकली। “महाराज, अब तो आपको विश्वास हो गया होगा कि मेरी बिल्ली दूध नहीं पीती। लाइए अब मुझे सौ स्वर्ण मुद्राएं दीजिये।” तेनालीराम ने कहा। “वह तो ठीक है, लेकिन मैं एक बार उस बिल्ली को ध्यान से देखना चाहता हूँ।”

यह कहकर महाराज ने एक कोने में छिप गयी बिल्ली को पकड़कर लाने का आदेश दिया। बिल्ली को अच्छी तरह देखने पर उन्होंने पाया की उसके मुँह में जले का एक बड़ा सा निशान है। वह उसी क्षण समझ गए कि बिल्ली मुँह जल जाने के डर से दूध पीने से कतराती है। वे तेनालीराम की तरफ देखते हुए बोले। “अरे निर्दयी! तुमने इस बिल्ली को जानबूझकर गर्म दूध पिलाया ताकि यह दूध न पी सके। ऐसा करते हुए हुए तुम्हे शर्म नहीं आयी।”

तेनालीराम ने उत्तर दिया, “महाराज!, यह देखना तो राजा का कर्तव्य है कि उसके राज्य में बिल्लियों से पहले मनुष्य के बच्चो को दूध मिलना चाहिए।” इस बात पर महाराज हँस दिए। उन्होंने तेनालीराम को तुरंत ही एक हजार स्वर्ण मुद्राएं भेंट की और बोले, “तुम्हारा कहना ठीक है, परन्तु मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में तुम बेजुबान पशुओं के साथ दुष्टता नहीं करोगे।”

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