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महिलाओं के 16 श्रृंगार और इनका महत्व

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हिन्दू महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है। विवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है। स्त्रियों का अपने पति और परिवार के लिए विशेष रूप से चिंता करने के स्वभाव के कारण ही इन सुहाग चिन्हों को पति और परिवार की भलाई करने वाले कवच का नाम दिया गया और धीरे-धीरे विवाहित स्त्रियों द्वारा इन्हें धारण करने की परंपरा बन गई। तभी तो भारतीय संस्कृति में सोलह श्रृंगार को जीवन का अहम और अभिन्न अंग माना गया है। ऋग्वेद में सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह श्रृंगारों के बारे में बताया गया है। सुहाग चिन्हों के समर्थन में कई वैज्ञानिक तथ्य पेश किये जाते हैं और इन्हें स्त्री के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक बताया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सभी सुहाग चिन्हों का संबंध स्त्री के स्वास्थ्य और जीवन से है। लेकिन आज की आधुनिक महिला किसी भी काम को करने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर जांचकर ही करती है। अब जब स्त्री और पुरुष के समान रूप से शिक्षित और सक्षम होने के विचारों पर बल दिया जाता है, तो विवाह के प्रतीक चिन्हों को धारण करना या ना करना व्यक्तिगत पसंद पर ही निर्भर है। ऐसा कहा जाता है कि सभी सुहाग चिन्हों का संबंध स्त्री के स्वास्थ्य और जीवन से है।

1 बिंदी–
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बिंदी दोनों भौहों के बीच माथे पर लगाया जानेवाला लाल कुमकुम का चक्र होता है, जो महिला के श्रृंगार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। बिंदी को त्रिनेत्र का प्रतीक माना गया है। दो नेत्रों को सूर्य व चंद्रमा माना गया है, जो वर्तमान व भूतकाल देखते हैं तथा बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के रूप में भविष्य में आनेवाले संकेतों की ओर इशारा करती है। संस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है। विज्ञान के अनुसार, बिंदी लगाने से महिला का आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है और वह आध्यात्मिक ऊर्जा को बनाए रखने में सहायक होता है। यानी बिंदी चक्र को संतुलित कर दुल्हन को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होती है। योग साधना में भौहों के बीचोंबीच के स्थान पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है। यह स्थान आज्ञाचक्र के नाम से जाना जाता है। यहां ध्यान केन्द्रित करने से बुद्धि और एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक संतुलन ठीक बना रहता है। बिंदी लगाने से यही लाभ प्राप्त होते हैं।
  • भौंहों के बीच में माथे पर महिलाएं जहां बिंदी लगाती हैं, उस स्थान को आज्ञा चक्र कहते हैं।आयुर्वेद के अनुसार यहां बिंदी लगाने से मन शांत रहता है, जिससे तनाव नहीं होता।
  • एक्युप्रेशर के अनुसार, सिरदर्द होने पर यहां थोड़ी देर प्रेस करने से सिरदर्द से राहत मिलती है।जो महिलाएं रोज़ाना बिंदी लगाती हैं, वो एक तरह से सुबह-सुबह इस प्रेशर पॉइंट को मसाज देती हैं, जिससे उन्हें बाकी लोगों के मुक़ाबले सिरदर्द कम होता है।
  • साइनस के दर्द में भी बिंदी आपको राहत दिलाती है. इस जगह पर मसाज करने से नाक के आस-पास ब्लड सर्कुलेशन अच्छी तरह होता है, जिससे साइनस के दर्द और सूजन दोनों में राहत मिलती है।
  • बिंदी लगाते व़क्त महिलाएं अगर थोड़ी देर उसे इधर-उधर ठीक करने में समय लगाती हैं, उससे माथे की मसल्स फ्लेक्सिबल व मज़बूत होती हैं, जो झुर्रियां पड़ने से रोकती हैं।
  • बिंदी के अलावा महिलाएं चंदन, टीका, हल्दी, कुमकुम आदि लगाती हैं, जो काफ़ी उपयोगी साबित होता है। रात को सोने से पहले अगर इस स्थान पर चंदन या हल्दी का टीका लगाएं, तो नींद अच्छी आती है।जिन लोगों को अनिद्रा की समस्या है, उनके लिए यह काफ़ी फ़ायदेमंद साबित होता है।

2 गज़रा–
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गजरा एक ख़ूबसूरत व प्राकृतिक शृंगार है। गजरा चमेली के सुंगंधित फूलों से बनाया जाता है और इसे महिलाएं बालों में सजाती हैं, मान्यताओं के अनुसार, गजरा दुल्हन को धैर्य व ताज़गी देता है। शादी के समय दुल्हन के मन में कई तरह के विचार आते हैं, गजरा उन्हीं विचारों से उसे दूर रखता है और ताज़गी देता है। विज्ञान के अनुसार, चमेली के फूलों की महक हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है।चमेली की ख़ुशबू तनाव को दूर करने में सबसे ज़्यादा सहायक होती है।बालों में गजरा लगाने से घर सुगन्धित रहता है। फूलों की खुशबू से स्त्री का मन भी प्रफुल्लित रहता है।


3 मांगटीका– 
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मांगटीका दुल्हन को मांग में पहनाया जाने वाला ज़ेवर है यह सोने चांदी, कुंदन, जरकन, हीरे, मोती आदि से बनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, मांगटीका महिला के यश व सौभाग्य का प्रतीक है। मांगटीका यह दर्शाता है कि महिला को अपने से जुड़े लोगों का हमेशा आदर करना है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मांगटीका महिलाओं के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सूझबूझ व निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
  • यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • पिट्यूटरी ग्लैंड पर होने के कारण मांगटीका  पॉज़िटिविटी को आकर्षित करता है।
  • आज्ञाचक्र पर होने के कारण यह आपको अपनी भावनाओं को कंट्रोल करने में मदद करता है।
  • यह महिलाओं को एकाग्रचित्त होने में मदद करता है।

4 सिंदूर– 
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सिंदूर महिलाओं के सौभाग्यवती होने का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है, शादी के समय दूल्हा, दुल्हन की मांग इससे भरता है। अपने पति की लम्बी उम्र के लिए सौभाग्यवती महिलाएं इसे अपनी मांग में सजाये रखतीं हैं। सिन्दूर मस्तिष्क के मध्य में स्थित सह्स्राहार चक्र को सक्रिय रखता है।उसे एकाग्र कर सही सूझ बूझ देता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, सिंदूर महिलाओं के रक्तचाप को नियंत्रित करता है। सिंदूर महिला के शारीरिक तापमान को नियंत्रित कर उसे ठंडक देता है और शांत रखता है। चूंकि इसे सर के बिलकुल मध्य में लगाया जाता है, इसलिए इससे दिमाग तेज और सक्रिय बनता है। सिन्दूर में पारा भी होता है, इसलिए इससे मस्तिष्क को शीतलता मिलती है और तनाव से राहत मिलती है।
  • स्त्री विवाहित होने के बाद ही सोलह श्रृंगार धारण कर सकती है। 
  • सिंदूर शादी के बाद ही लगाया जाता है क्योंकि ये रक्त संचार के साथ ही यौन क्षमताओं को भी बढ़ाने का भी काम करता है।
  • सिंदूर का लाल रंग रक्त और आग का प्रतीक होता है। यह सिर के बीचोंबीच मांग में इसलिए लगाया जाता है, क्योंकि यहां पिट्यूटरी और पीनियल ग्लैंड्स होते हैं, जो सिंदूर लगाने पर सक्रिय हो जाते हैं। इससे शरीर में पॉज़िटिविटी का संचार होता है।


5 काजल– 
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काजल आंखों में लगाई जानेवाली काले रंग की स्याही को कहते हैं। काजल महिला की आंखों व रूप को निखारता है। मान्यताओं के अनुसार, काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नज़र का कुप्रभाव नहीं पड़ता काजल से आंखों से संबंधित कई रोगों से बचाव होता है। काजल से भरी आंखें स्त्री के हृदय के प्यार व कोमलता को दर्शाती हैं। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, काजल आंखों को ठंडक देता है।
  • काजल आंखों की ख़ूबसूरती को बढ़ाने के साथ-साथ आंखों की रोशनी को भी बढ़ाता है।
  • काजल सूरज की हानिकारक किरणों से आंखों की रक्षा करता है।
  • यह आंखों को हाइड्रेटेड रखता है, जिससे ड्राई आईज़ की समस्या नहीं होती।
  • यह रतौंधी और मोतियाबिंद जैसी आंखों की समस्याओं में काफ़ी कारगर साबित होता है।
  • काजल में मौजूद कपूर आंखों को ठंडक प्रदान करता है. आंखों कोतनाव से भी राहत दिलाता है।
  • काजल में मौजूद घी आंखों के डार्क सर्कल्स को दूर करने में मदद करता है।
  • यह आंखों की थकान, जलन और खुजली को दूर करने में भी काफ़ी मदद करता है।
  • काजल लगाने से स्त्री पर किसी की बुरी नजर नहीं लगती हैं। साथ ही, आँखों से संबंधित कई रोगों से बचाव भी हो जाता है।

6 मंगल सूत्र और हार–
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मंगलसूत्र एक ऐसा सूत्र है, जो शादी के समय वर द्वारा वधू के गले में बांधा जाता है और उसके बाद जब तक महिला सौभाग्यवती रहती है, तब तक वह निरंतर मंगलसूत्र पहनती है। मंगलसूत्र पति-पत्नी को ज़िंदगीभर एकसूत्र में बांधे रखता है। ऐसी मान्यता है कि मंगलसूत्र सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित कर महिला के दिमाग़ और मन को शांत रखता है। मंगलसूत्र जितना लंबा होगा और हृदय के पास होगा वह उतना ही फ़ायदेमंद होगा। मंगलसूत्र के काले मोती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी मज़बूत करते हैं। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, मंगलसूत्र सोने से निर्मित होता है और सोना शरीर में बल व ओज बढ़ानेवाली धातु है, इसलिए मंगलसूत्र शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकता है। हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। मंगलसूत्र में लगे धातु जैसे सोना, मोती आदि कई तरह के स्वास्थ्य लाभ कराते हैं। मोती और चांदी मस्तिष्क को शीतलता देते हैं। सोने से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह होता है। मंगलसूत्र से ब्लड सर्कुलेशन सुचारू रूप से होता है और ब्लड प्रेशर भी ठीक रहता है।
  • विवाह के बाद मंगल सूत्र भी अनिवार्य रूप से पहनने की परम्परा है। मंगलसूत्र के काले मोतियों से स्त्री पर बुरी नज़र का बुरा असर नहीं पड़ता हैं।
  • कुवांरी कन्या और विधवा स्त्री इसे धारण नहीं कर सकती।
  • इसके पीछे का विज्ञान का तर्क है कि मंगलसूत्र शरीर से स्पर्श होना चाहिए, ताकि वह ज्यादा से ज्यादा असर कर सके।
  • हृदय के पास होने के कारण यह उसकी फंक्शनिंग में मदद करता है।
  • मंगलसूत्र पहननेवाली महिलाओं का इम्यून सिस्टम मज़बूत रहता है।
  • यह रक्तसंचार को बेहतर बनाता है, जिससे महिलाएं एनर्जेटिक बनी रहती हैं।
  • साथ ही यह ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित करता है।
  • महिलाओं के शरीर में मौजूद सूर्य नाड़ी को उत्तेजित करता है, जिससे उसमें मौजूद ऊर्जा का संचार होता है।

7 लाल रंग का कपडे, शादी का जोड़ा  – 
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दुल्हन के लिए शादी का जोड़ा चुनते समय सुंदर और चमकदार रंगों को प्राथमिकता दी जाती है, दुल्हन के लिए लाल रंग का शादी का जोड़ा शुभ व महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लाल रंग शुभ, मंगल व सौभाग्य का प्रतीक है, इसीलिए शुभ कार्यों में लाल रंग का सिंदूर, कुमकुम, शादी का जोड़ा आदि का प्रयोग किया जाता है। विज्ञान के अनुसार, लाल रंग शक्तिशाली व प्रभावशाली है, इसके उपयोग से एकाग्रता बनी रहती है, लाल रंग भावनाओं को नियंत्रित कर के स्थिरता प्रदान करता है। ये प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।कन्या विवाह के अवसर पर जो विशेष परिधान धारण करती है, वह अनिवार्य सोलहों श्रृंगार में सम्मिलित है। ये परिधान लाल रंग का होता है और इसमें ओढ़नी, चोली और घाघरा पहनाया जाता है। शास्त्रों के कथनानुसार जो सौभाग्यवती स्त्री इन सोलह श्रृंगार को धारण करती है, उनके गृह मेंबर धन-धान्य और गृह लक्ष्मी की कोई कमी नहीं रहती। ऐसी स्त्री पर स्वतः माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। सोलह श्रृंगार करने वाली स्त्री का कुटुंब सर्वदा सुखी रहता है।

8 मेहंदी– 
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किसी भी स्त्री के लिए मेहंदी भी अनिवार्य श्रृंगार माना गया है। किसी भी मांगलिक कार्यक्रम के दौरान स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है। ऐसा माना जाता है कि विवाह के बाद नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी अच्छी रचती है, उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करने वाला होता है। मेहंदी त्वचा से जुडी कई बीमारियों में औषधि का काम करती है।  मेहंदी लगाने का शौक लगभग सभी महिलाओं को होता है। लड़की कुंआरी हो या शादीशुदा हर महिला मेहंदी लगाने के मौ़के तलाशती रहती है। सोलह श्रृंगार में मेहंदी महत्वपूर्ण मानी गई है। मान्यताओं के अनुसार, मेहंदी का गहरा रंग पति-पत्नी के बीच के गहरे प्रेम से संबंध रखता है। मेहंदी का रंग जितना लाल और गहरा होता है, पति-पत्नी के बीच प्रेम उतना ही गहरा होता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार मेहंदी दुल्हन को तनाव से दूर रहने में सहायता करती है। मेहंदी की ठंडक और ख़ुशबू दुल्हन को ख़ुश व ऊर्जावान बनाए रखती है।मेहंदी लगाने से एक महिला के हाथ ज्यादा सुंदर तो लगने ही लगते हैं, लेकिन इससे हार्मोन पर भी प्रभाव पड़ता है। इससे शरीर को ठंडक मिलती है और दिमाग भी शांत होता है।

9 बाजूबंद– 
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सोने या चांदी के कडें स्त्रियां बाहों में धारण करती हैं, इन्हें बाजूबंद कहा जाता है। ये आभूषण स्त्रियों के शरीर से लगातार स्पर्श होते रहता है, जिससे धातु के गुण शरीर में प्रवेश करते हैं, ये स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। ये बाजू के ऊपरी हिस्से में पहना जाता है। बाजूबंद सोने, चांदी, कुंदन या अन्य मूल्यवान धातु या पत्थर से बना होता है। मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद महिलाओं के शरीर में ताक़त बनाए रखने व पूरे शरीर में उसका संचार करने में सहायक होता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, बाजूबंद बाजू पर सही मात्रा में दबाव डालकर रक्तसंचार बढ़ाने में सहायता करता है। इसमें सोने और चांदी के पदार्थ शरीर से स्पर्श कर अपने अपने गुण प्रदान करते हैं। इसके धारण से ह्रदय रोग और यकृत के बिमारी में लाभ मिलता है।

10 नथ–
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स्त्रियों के लिए नथ भी अनिवार्य श्रृंगार है। इसे नाक में धारण किया जाता है। नथ धारण करने पर कन्या की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। नाक छिदवाने से स्त्रियों को एक्यूपंक्चर के लाभ मिलते हैं, जिनसे स्वास्थ्य ठीक रहता हैं। नाक की लौंग यानि नोज पिन या नथ पहनने से श्वसन तंत्र सुचारू रूप से काम करता है। विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है। उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है। ज़्यादातर महिलाएं नथ या नोज़ रिंग बाईं तरफ़ पहनती हैं. दरअसल, ऐसा माना जाता है कि नाक के इस हिस्से में छेद करके नोज़ रिंग या नोज़ पिन पहनने से पीरियड्स के दौरान होनेवाले दर्द से राहत मिलती है। बाईं नासिका की नर्व्स महिलाओं के रिप्रोडक्टिव ऑर्गन से जुड़ी होती हैं, इसलिए उन्हें डिलीवरी के दौरान होनेवाला लेबर पेन भी कम होता है। यह ब्रेन की वेवलेंथ्स को कंट्रोल करता है, जिससे इनको सम्मोहित करना आसान नहीं होता।

11 कानों के कुंडल–
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कानो में पहने जाने वाले कुंडल भी श्रृंगार का अनिवार्य अंग है। यह भी सोने या चांदी की धातु के हो सकते हैं। कान छिदवाने से भी स्वास्थ्य संबंधी कई लाभ मिलते है। ये भी एक्यूपंक्चर ही है। कर्णफूल यानी ईयररिंग्स-झुमके, कुंडल, गोल, लंबे आदि आकार व डिज़ाइन में पाए जाते हैं। आमतौर पर महिलाएं सोने, चांदी, कुंदन आदि धातु से बने ईयररिंग्स पहनती हैं। मान्यताओं के अनुसार, कर्णफूल यानी ईयररिंग्स महिला के स्वास्थ्य से सीधा संबंध रखते हैं। ये महिला के चेहरे की ख़ूबसूरती को निखारते हैं। इसके बिना महिला का श्रृंगार अधूरा रहता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार हमारे कर्णपाली (ईयरलोब) पर बहुत से एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जिन पर सही दबाव दिया जाए, तो माहवारी के दिनों में होनेवाले दर्द से राहत मिलती है। ईयररिंग्स उन्हीं प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव डालते हैं। साथ ही ये किडनी और मूत्राशय (ब्लैडर) को भी स्वस्थ बनाए रखते हैं।इनसे एक्यूप्रेशर होता है। कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवों के बीच के सभी अंगों को प्रभावित करती हैं। इसलिए कान में छेद कराके उसमें धातु (विशेषकर सोना) धारण करने से स्त्रियों को पीरियड्स से संबंधित समस्याएं नहीं होती हैं। सोने के ईयर रिंग्स से शारीरिक उर्जा और बल का विकास होता है। 

12 चूड़ियां या कंगन–
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स्त्रियों के लिए चूड़ियां पहनना अनिवार्य है। यह लाख , काँच , चाँदी सोने और अन्य धातुओ से बनती है।  विवाह के बाद चूड़ियां सुहाग की निशानी मानी जाती है। सोने या चांदी की चूड़ियां पहनने से ये त्वचा से लगातार संपर्क में रहती हैं, जिससे स्त्रियों को स्वर्ण और चांदी के गुण प्राप्त होते हैं जो कि स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।चूड़ियां हर सुहागन का सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार हैं। महिलाओं के लिए कांच, लाख, सोने, चांदी की चूड़ियां सबसे महत्वपूर्ण मानी गई हैं। मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियां पति-पत्नी के भाग्य और संपन्नता की प्रतीक हैं। यह भी मान्यता है कि महिलाओं को पति की लंबी उम्र व अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमेशा चूड़ी पहनने की सलाह दी जाती है। चूड़ियों का सीधा संबंध चंद्रमा से भी माना जाता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चूड़ियों से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि महिलाओं की हड्डियों को मज़बूत करने में सहायक होती है। महिलाओं के रक्त के परिसंचरण में भी चूड़ियां सहायक होती हैं।चूड़ियों से होने वाली मीठी ध्वनि से नेगेटिव एनर्जी घर से दूर होती है। चूड़ियों से होने वाली ध्वनि के प्रभाव से कई तरह की बीमारियां भी नहीं होती हैं। 

13 कमरबंद– 
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प्राचीन काल में कमर बंद विवाहित स्त्रियों के लिया अनिवार्य धार्य आभूषन था। आज ये शादी विवाह या किसी समारोह में पहनने तक सिमित हो गया है। इसके धारण करने के पीछे भी भी कई स्वस्थ्य लाभ के रहस्य छुपा है। कमरबन्द धारण करने से प्रतिविंब क्षेत्र पर दबाव बना रहता है जिससे स्त्रियों में हर्निया की बीमारी नहीं होती। कमरबंद धातु व अलग-अलग तरह के मूल्यवान पत्थरों से मिलकर बना होता है। कमरबंद नाभि के ऊपरी हिस्से में बांधा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, महिला के लिए कमरबंद बहुत आवश्यक है। चांदी का कमरबंद महिलाओं के लिए शुभ माना जाता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी का कमरबंद पहनने से महिलाओं को माहवारी तथा गर्भावस्था में होनेवाले सभी तरह के दर्द से राहत मिलती है।

14 अंगूठी– 
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उँगलियों में अंगूठी पहनने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। इसे भी 16 श्रृंगार जगह दी गयी है । शादी की सबसे पहली रस्म अंगूठी से ही शुरू की जाती है, जिसमें लड़का-लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर सगाई की रस्म पूरी करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, अंगूठी पति-पत्नी के प्रेम की प्रतीक होती है, इसे पहनने से पति-पत्नी के हृदय में एक-दूसरे के लिए सदैव प्रेम बना रहता है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, अनामिका उंगली की नसें सीधे हृदय व दिमाग़ से जुड़ी होती हैं, इन पर प्रेशर पड़ने से दिल व दिमाग़ स्वस्थ रहता है। शादी के पहले मंगनी या सगाई की रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथ रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। सीता का हरण करके रावण ने जब सीता को अशोक वाटिका में कैद कर रखा था तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी के माध्यम से सीता जी को अपना संदेश भेजा था। तब स्मृति चिन्ह के रूप में उन्होंनें अपनी अंगूठी हनुमान जी को दी थी। 

15 पायल–
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पायल पैरो में पहनने के लिए स्त्रियों के लिए महत्त्वपूर्ण आभूषण है। इसके घुंघरुओं की आवाज़ से घर का वातावरण सकारात्मक बनता है। पैरों में पहनी जानेवाली पायल चांदी की ही सबसे उत्तम व शुभ मानी जाती है। पायल कभी भी सोने की नहीं होनी चाहिए। शादी के समय मामा द्वारा दुल्हन के पैरों में पायल पहनाई जाती है या ससुराल से देवर की तरफ़ से यह तोहफ़ा अपनी भाभी के लिए भेजा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, महिला के पैरों में पायल संपन्नता की प्रतीक होती है। घर की बहू को घर की लक्ष्मी माना गया है, इसी कारण घर में संपन्नता बनाए रखने के लिए महिला को पायल पहनाई जाती है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, चांदी की पायल महिला को जोड़ों व हड्डियों के दर्द से राहत देती है। साथ ही पायल के घुंघरू से उत्पन्न होनेवाली ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है।इसके साथ-साथ पीठ, और कमर से नीचे के अंगों से संबंधित रोगों से निजात मिलता है। पायल पहनने से हड्डियां भी मजबूत होती हैं। स्वास्थ्य लाभ के लिए ये जरूरी है कि आपकी पायल चांदी की ही हो। पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवी-लक्ष्मी का अपमान होता है।

16 बिछुए –
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विवाह के बाद खासतौर पर पैरों की उँगलियों में पहने जाने वाला आभूषण है बिछुए। यह रिंग या छल्ले की तरह होता है, इसे बिछुड़ी भी कहते है । हर वैवाहिक महिला पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनती है। बिछिया भी चांदी की ही सबसे शुभ मानी गई है। महिलाओं के लिए पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनना शुभ व आवश्यक माना गया है। ऐसी मान्यता है कि बिछिया पहनने से महिलाओं का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और घर में संपन्नता बनी रहती है। वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं के पैरों की उंगलियों की नसें उनके गर्भाशय से जुड़ी होती हैं, बिछिया पहनने से उन्हें गर्भावस्था व गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं से राहत मिलती है। बिछिया पहनने से महिलाओं का ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है। बिछिया से भी एक्यूप्रेशर होता है और स्त्री का शरीर स्वस्थ रहता है, इससे हृदय से संबंधित परेशानियां नहीं होती हैं। मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं से भी निजात मिलती है। गर्भधारण में परेशानी नहीं होती है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पैर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी। 

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