आप में अधिकतर पाठक देवताओं और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के बारे में जानते है। लेकिन हमारे धर्म ग्रंथो में इसके अलावा भी अन्य मंथन का वर्णन है। आज हम आपको तीन ऐसे ही मंथन की कहानियां बता रहे है। ये तीन मंथन इस प्रकार है –
1. सागर मंथन
2. राजा निमि के शरीर का मंथन
3. क्षीर सरोवर का मंथन
सागर मंथन
जैसा की हम सभी जानते है कि देवों और असुरों के बीच सागर मंथन हुआ। मंद्राचल गिरि मथानी बना तथा वासुकि नाग रस्सी बना। मंथन से चौदह रत्नो की प्राप्ति हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकलने वाली वस्तुओं को रत्न कहा गया है तथा वे चौदह रत्न थे।
हलाहल (विष),कामधेनु,उच्चैःश्रवा घोड़ा,ऐरावत हाथी,कौस्तुभ मणि,कल्पद्रुम,रम्भा,लक्ष्मी,वारुणी (मदिरा),चन्द्रमा,पारिजात वृक्ष,पंच जन्य शंख,धन्वन्तरि वैद्य औरअमृत।
राजा निमि के शरीर का मंथन
राजा निमि के शरीर का रिषियों ने मंथन किया । जिसमे सोने की मथानी और रेशम की रस्सी का प्रयोग किया गया । तन का मंथन हुआ।मंथन से चौदह पुत्रों को प्राप्त किया। बारह पुत्रों ने सन्यास ग्रहण किया। तेरहवें पुत्र जनक(शीरध्वज ) को राजा बनाया गया।
पुत्रों के नाम-
१-जनक(शीरध्वज)
२-जीव
३-गव,(कुशध्वज)
४- सुमंत
५-सार
६अतिसार
७-अमृत
८-अभय
९-अंशुमान
१०- अमन
११- आदि
१२- अमित
१३-अगाध
१४-अनन्त
क्षीर सरोवर का मंथन
राजकुमारी वृजेश्वरी का विवाह नही होगा, ऐसी भविष्यवाणी राज ज्योतिष्यों ने की, राजकुमारी ने ये बात नारद मुनि को बताई। नारद ने उसे श्री कृष्ण का तप करने के लिए कहा।राजकुमारी ने घोर तपस्या की भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए,। भगवान श्री कृष्ण ने वृजेश्वरी के साथ मिलकर क्षीर सरोवर का मंथन किया। जिसमे काठ की मथानी और सन की रस्सी का प्रयोग किया । मंथन से चौदह पुरूषों की उत्पत्ति हुई, जिसके साथ वृजेश्वरी का विवाह हुआ ।
चौदह पुरूषों के नाम—कृष्णेश्वर,पिंगल,कनक,पार्थ,उदधि,बिन्दु,अचल,शूलपाणि, सूरसेन,संदल,सौरभ,सारंग,साज,गोविंद ।।
विवाह होने के बाद बृजेश्वरी ने श्री कृष्ण से विनती की और कहा हे प्रभु आप की कृपा से मुझे चौदह पती तो प्राप्त हो गये लेकिन समाज क्या सोचेगा संसार की नजर मुझपे होगी लोग मुझे ताना मारेंगें इस संसार में मै कैसे जियूँगी ।
श्री कृष्ण ने बृजेश्वरी पर कृपा की चौदहों पुरुषों को एक शरीर में समाहित कर दिया जो ” कृष्णेश्वर” के नाम से जाना गया।
एक शरीर में चौदह आत्माओं ने वास किया ( शरीर एक आत्मायें चौदह ) ।
||ऊँश्री कृष्णाय गोविन्दाय बलभद्राय वासुदेवाय पर काया प्रवेशाय नमो नम: ऊँ ||


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