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ईमू पक्षी पालन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी

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ईमू  पक्षी की उत्पत्ति आस्ट्रेलिया में हुई है । आज यह संसार के किसी स्थान पर पाली जा सकती है क्योंकि यह अत्यधिक ठंडे या अत्याधिक गर्म जलवायु वाले दोनों मौसम में संसार के किसी भी स्थान पर पाली जा सकती है । जैसे अमेरिका, चीन और भारत में इसके बड़े बड़े फार्म हैं । सन् 1996 में भारत में इमू का एक फार्म था आज 1000 से ज्यादा इमू फार्म भारत के विभिन्न 14 राज्यों में फैले हैं । तमिलनाडू, आन्ध्रप्रदेश, गोवा, महाराष्ट , उड़ीसा एवं मध्यप्रदेश  जैसे राज्यों में इमू फार्म पनप चुके हैं । एक साल का इमू पक्षी 5 से 6 फीट ऊंचा जिसका वजन 30 से 40 किलो हो जाता है । जब यही इमू पूर्ण वयस्क होता है तो यह  50 से 60 किलो  का होता है। अपनी बढ़त के दौरान इमू तीन बार रंग बदलता है। करीब 4 महीने के बाद इमू चाकलेट ब्राउन रंग के तथा 1 साल के बाद यह रंग बदलने लगता है। गर्दन के पंख गिर जाते हैं तथा गर्दन नीले हरे रंग के तथा पंखो के विभिन्न रंग देखे  गये हैं। नर एवं मादा इमू के बीच अंतर करना मुश्किल होता है। 

18 महीने के मादा इमू जनन योग्य हो जाती है कभी कभी कुछ इमू पक्षियों में यह उम्र 2 साल भी हो जाती हैं। प्रजनन काल में एक मादा 32 अण्डे देती है। प्रजनन काल करीब 6 महीने (अक्टूबर से मार्च तक) का होता है इमू के अण्डे गहरे हरे रंग के होते है जो मुर्गियों से 10-12 गुना बडे़ होते हैं मादा इमू हर 3 से 5 दिन के बाद अण्डा देती है। इमू की उम्र लगभग 40 वर्ष आंकी गई है इमू मादा करीब 25 साल तक प्रजनन कर सकती है इमू प्रति वर्ष लगभग 32 बच्चे उत्पन्न कर सकती है।   

इमू पालन व्यवसाय खेती के साथ साथ अपनाया जा सकता है। इमू एक सरल सीधी मुर्गी होती है। जो अनाज, दाल, तथा घास खाकर अपना गुजारा कर लेती है। इसका बिमारी अवरोधी तन्त्र बहुत मजबूत होने के कारण इमू कभी बीमार नहीं होती है इसलिए ये दुनिया के किसी भी मौसम में पाली जा सकती है। इमू के शरीर का प्रत्येक भाग व्यवसायिक रूप से कीमती है। इमू पालना एक बहुत बड़ा व्यवसाय हो सकता है जिसकी अपार बढढो़तरी की सम्भावना है। इमू एक सक्त, मजबूत पक्षी है जिसे बर्ड लू नहीं होता है। इमू इतना मजबूत है कि मालिक उस पर बैठ कर पैसे गिन सकता है। हमे घरों एवं होटलों में इमू माॅंस खाने पर बढ़ावा देना चाहिए। 

इमू दवाईयों में भी उपयोगी है। इमू तेल जिसे दर्द निवारक औलिव आईल अम्ल जो कि जोड़ो के दर्द मिटाने में सार्थक है। इमू की चमड़े का उपयोग चमडा उद्योग द्वारा किया जा रहा है। इमू पक्षी फल, फूल, कीड़े, बीज तथा हरे पेड़ पत्तियाॅ, इल्लियाॅ खाता है। इसे पूरे दिन में 6-10 लीटर पानी का जरूरत होती है। इमू को 3 बार भोजन की जरूरत होती है। मादा इमू अण्डे देती है नर इमू अण्डे सेता है। इमू के अण्डे छोटे से बड़े सभी आकार एवं रगों के होते हैं पर मुख्यतः गहरे हरे रंग के अण्डे जिनकी लग्बाई 5’’ तथा बजन 600 ग्राम होता है। कम से कम मादा इमू के 9 अण्डे देने के बाद ही नर इमू अण्डे सेना शुरू करता है। नर इमू 52-56 दिनों तक अण्डे सेता है जिससे उनमें से इमू चूजे निकल आते है तथा उन दिनों वह दाना पानी कुछ नहीं लेता। एक अण्डे देने के मौसम में मादा इमू 20 -25  अण्डे देती है तथा उसका उत्पादन काल  लगभग 20 वर्ष होता है। 

ईमू का प्रमुख आहार -

आम चारा : 
पहले 9 सप्ताह में ईमू को उनके भोजन में 20 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है, उसके बाद 9-42 सप्ताह के ईमू को उनके भोजन में 16 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है और फिर 42 सप्ताह बाद ईमू को उनके भोजन में 14 प्रतिशत प्रोटीन और चयापचय ऊर्जा की 2750 किलो कैलोरी की आवश्यकता होती है। अंडे के उत्पादन के 4-5 सप्ताह पहले उनके भोजन में प्रोटीन की प्रतिशतता 21 प्रतिशत बढ़नी चाहिए और चयापचय ऊर्जा की 29000 किलो कैलोरी होनी चाहिए।

फीड की सामग्री :
भोजन में विटामिनों की उचित मात्रा जैसे विटामिन ए, विटामिन बी12, विटामिन डी, अमीनो एसिड (लाइसिन ट्रिपटोफेन), प्रोटीन, और खनिज (कैल्शियम, जिंक और आयोडीन) होनी चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि हर ईमू की खुराक समान हो। पक्षियों में उचित भोजन की कमी के कारण बीमारियां हो जाती हैं।

बच्चों की खुराक :
0-8 सप्ताह के बच्चों को प्रतिदिन 2 पाउंड भोजन की आवश्यकता होती है और उन्हें प्रतिदिन कई बार भोजन की जरूरत पड़ती है। जब बच्चे 2 महीने से 14 महीने के हों, तो उनकी शुरूआती खुराक 20 प्रतिशत बढ़ा दें और उसके बाद इच्छानुसार खुराक दें।

प्रजनकों की खुराक :
प्रजनक, जिनकी उम्र 24 महीने या उससे ज्यादा होती है उन्हें प्रतिदिन 2 पाउंडस भोजन की आवश्यकता होती है लेकिन धीरे-धीरे उनकी खुराक 1 पाउंड पर ले आते हैं। प्रजनक ईमू को 21 प्रतिशत ईमू राशन की आवश्यकता होती है। प्रजनन से 1 महीना पहले कोशिश करें कि प्रजनक ईमू को उच्च मात्रा वाला प्रोटीन ही दें।

नस्ल की देख रेख-

शेल्टर और देखभाल : 
व्यापारिक तौर पर ईमू पालन के लिए उपयुक्त भूमि का चयन करें। उस भूमि पर ताजे और साफ पानी की उचित उपलब्धता, अच्छा और पोषक तत्व वाला भोजन स्त्रोत, मजदूरों की उपलब्धता, आवाजाई प्रणाली, उपयुक्त मंडीकरण आदि होना चाहिए।

छोटे बच्चों की देख रेख : 
1 दिन के ईमू का भार 370-450 ग्राम होता है। नए जन्में बच्चे को अच्छी तरह से सूखने के लिए 2-3 दिन के लिए इन्क्यूबेटर में रखें। उसके बाद प्रत्येक बच्चे को 3 सप्ताह के लिए 4 वर्ग फीट के ब्रूडर में रखें। पहले 10 दिनों के लिए ब्रूडिंग का तापमान 90 डिगरी फार्नाहाइट और फिर 3-4 सप्ताह के लिए हर रोज़ 5 डिगरी फार्नाहाइट कम कर दें। बच्चों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए उचित तापमान होना जरूरी है।

बढ़ने वाले बच्चों की देखभाल : 
ईमू को दौड़ने के लिए 30 फीट प्रति एकड़ खुली जगह की जरूरत होती है। इस तरह 50 बच्चों के लिए 50x30 फीट खुली जगह की आवश्यकता होती है। नर और मादा को एक दूसरे से अलग रखें।

प्रजनक की देखभाल : 
ईमू 18-24 महीने की उम्र में प्रौढ़ हो जाते हैं। प्रजनक ईमू को उनके भोजन में अधिक विटामिन और खनिज दें। पहले वर्ष में ईमू 15 अंडे देती हे और उसके बाद दूसरे वर्ष में अंडों का उत्पादन 30-40 अंडे प्रति वर्ष होता है।

सिफारिश किया गया टीकाकरण : 
  • समय के उचित अंतराल पर निम्नलिखित टीकाकरण की आवश्यकता होती है।
  • रानीखेत बीमारी से बचाव के लिए 1 सप्ताह की उम्र के पक्षी को लोसेटा स्ट्रेन टीका लगवाएं और 4 सप्ताह की उम्र के बच्चे को लोसेटा बूस्टर टीका लगवाएं।
  • रानीखेत बीमारी से बचाव के लिए 8,15 और 40 सप्ताह के बच्चों को मुक्तेस्वर स्ट्रेन टीका लगवाएं।

बीमारियां और रोकथाम

निमाटोड : इसके लक्षण हैं सिर हिलाना, गर्दन का टेढी होना, सांस लेने में परेशानी  और अचानक मौत हो जाना।
इलाज : निमाटोड से बचाव के लिए प्रत्येक महीने में एक बार आइवरमैक्टिन दवाई दें।

इक्वाइन एन्सेफलाइटिस वायरस (ई ई ई) : इस विषाणु के कारण ईमू में खूनी दस्त हो जाते हैं।
इलाज : दस्त की रोकथाम के लिए प्रोबायोटिक उपचार दें।

चांडलूरिला क्विस्ली : यह एक परजीवी बीमारी है जो काटने वाले कीड़ों के कारण होती है।
इलाज : इस बीमारी से बचाव के लिए उपयुक्त टीकाकरण करवायें या इस परजीवी संक्रमण के होने से पहले ही इसका निवारण कर लें। 

स्कोलियोसिस : यह एक परजीवी, आनुवांशिक और पोषक तत्वों से पैदा हुई बीमारी है।
इलाज : इस बीमारी से बचाव के लिए उपयुक्त टीकाकरण करवायें या इस परजीवी संक्रमण के होने से पहले ही इसका निवारण कर लें।

रानीखेत बीमारी : इसे न्यू कैस्टल बीमारी के नाम से भी जाना जाता है। यह बहुत संक्रमित बीमारी है और प्रत्येक उम्र के पक्षी में फैलती है। इसके लक्षण हैं मृत्यु दर में वृद्धि होना, सांस लेने में तकलीफ होना, टांगों और पंखों का कमज़ोर होना।
इलाज : R2B स्ट्रेन का टीका जरूर लगवायें और ईमू के 40 हफ्तों को हो जाने पर दोबारा यह टीका लगवायें।

ईमू  पालने के  उद्देश्य-
-पहला यह कि इमू का अभिजनन उनकी संख्या बढ़ाना एवं  वयस्क इमू को अच्छी कीमत लेकर बेचना एवं लाभ कमाना । दूसरा उद्देश्य है कि दमू के उत्पाद जैसे इमू मांस, तेल, हड्डियाॅं, पंख चमड़ी एवं नाखून से पैसे कमाना। इमू के मांस की खपत होटलों एवं सुपर माॅर्केट में सबसे ज्यादा हो सकती है। उच्च कोटि के इमू में चमडी से उत्पाद बनाये जा सकते हैं। एक इमू से 5-6 लीटर इमू तेल जिसका सदउपयोग सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में तथा शरीर के मसाज तेल में दवाई के रूप में चेहरे के मोसच्युराइजिंग लोशन मैं,  चमड़ी के जलने के बाद दवा के रूप में किया जाता है। आज हमारे भोजन में प्रोट्रीन की जरूरत देखते हुये इमू हमारे भोजन का खास हिस्सा होगा । इमू  के मांस में अत्यधिक लोह तत्व होता है। वसा से निकाले गये तेल को औषधि गुण बहुत है। इमू की चमड़े की एक विशेषता होती है इसे किसी भी रंग में आसानी से रंगा जा सकता है। जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसके चमड़े से बनी बस्तुओं के बहुत दाम मिल जाते है। इमू से अच्छी मात्रा में प्रोट्रीन की प्राप्ति, निर्यात की विशेष सम्भावनाऐं (इमू तेल एवं प्राप्त चमडे से) कई कारण जो हम इमू पालने को प्रोत्साहित करते है। पहला इसी तेज बढढोतरी, बहुत अधिक लाभ, जिसके पीछे सिर्फ एक मुख्य कारण है। इस पक्षी का किसी भी मौसम में जीवित रहना है। इमू एक बहुत शान्त स्वभाव का पक्षी है इसकी देखभाल करना बहुत आसान होता है इसके रहने के लिए किसी घर की जरूरत नहीं होती एक छोटे से जमीन के टुकडे पर जैसे 1 एकड़ जमीन पर 100 - 150 इमू पक्षी पाले जा सकते हैं। इमू पालन एक इको-दोस्त-अधिक सार्थक चतुर उद्योग होगा। यह खेती के समकक्ष समझे । इमू पालने में इसे लगे लोगों का मुख्य काम इमू का भोजन पानी का इन्तजाम तथा उनकी बीट को अलग करना एक मजदूर आसानी से 100 इमू के फार्म को संभाल सकता है। आज इमू फार्म के उत्पादन के बारे में सोचना होगा, कैसे इसे चालू करें, अण्डों को मशीनों से सेना तथा उनका प्रजनन करवाना। 

इमू उत्पाद- 
माॅंस, चमड़ा, वसा, तेल एवं अण्डों का बाजार की स्थापना करना। इमू पक्षीयों का पालन पड़ती जमीन का उपयोग कर आसानी से किया जा सकता है। एक वयस्क इमू पक्षी के लिए 400-500 वर्ग फीट जगह की जरूरत होती है एक 20 इमू के फार्म के लिए 20ग्40 फीट का पक्का छत वाला (शेड) घर जिसमें हवा, धूप, वारिश से बचने के लिए तथा 50ग्100 फीट का लोहे की ग्रिल वाला बड़ा - सही रहेगा। इमू को प्राकृतिक वातावरण में रहने का स्वभाव रखती है। जिसके कारण वह दाना, दाले, फलों के बीज, इल्लियाॅ, हरे पेड़ पौधे, घास आदि खाने की शौकीन है। इमू प्रजनन के शुरू के समय के उत्पादि अण्डे बच्चे निकालने के उपयोग हेतु लिए जाते है। अण्डा उत्पादन एवं उनसे बच्चे निकालना फार्म का एक महत्वपूर्ण काम है। अण्डे उत्पादन एक लाभ दायक ध्ंाधा है। इमू पक्षी की उम्र 40 साल होती है तथा प्रजनन उम्र सिर्फ 25 साल होती है। एक बार का निवेश एक लाभदायक हो सकता है। एक इमू पक्षी कम से कम 20 तथा अधिक से अधिक 40 अण्डे प्रति वर्ष दे सकता है। जोकि गहरे हरे रंग के होते है। जिनका वनज 400 से 600 गा्रम होता है।

ईमू   चूजे - 
इमू  चूजे  का वजन अण्डे के वजन का 70 प्रतिशत होता है । चूजे निकालने के लिए दो विधियों प्रचलित हैं । पहला प्राकृतिक सेने की विधि से तथा अण्डे को मशीन में सेने से निकाले जा सकते है। इंक्युवेटर का तापमान 97.5 डिग्री फेरनाहाॅइट रखा जाता है। आर्दता वातावरण अनुसार रखी जाती है। 48 से 52 दिनों में अण्डों से चूजे निकल आते हैं। जन्म के समय चूजों का रंग काॅफी भूरे रंग का होता है जिसमेें सफेद लाईन के चिन्ह होते है। इन चुजों का रंग तीन महीने के बाद बदलने लगता है जन्मसे 3 महीने तक संतुलित आहार का शुद्ध पानी की अनिवार्यता होती है।

ईमू   तेल - 
इमू तेल का इस्तेमाल दवाई के रूप में माॅंसपेशियों तथा जोड़ो के दर्द को दूर करने के लिए होता है। इलाज से पता चला है कि इसके दो फायदे है, यह सूजन दूर करता है । इस तेल में चमड़ी में प्रवेश करने का विशेष गुण होता है।

यह सूर्य प्रकाश से चमड़ी की बचत भी करता है । मानव की त्वचा फास्फोरस फास्फोलिपिड विहीन होती है यानि की हमारी त्वचा में फास्फोरस नहीं होता है । ऐसी कोई भी चीज जिसमें फास्फोरस न हो त्वचा पर लगाते है वह त्वचा में तुरन्त प्रवेश कर जाता है। अनुसंधान में पाया गया है कि इमू के तेल में कुछ ऐसे तत्व होते है जो बहुत ही प्रभावशाली है। इस तत्व को ‘‘कौलेजन’’ का नाम दिया गया है। मुर्गी तथा तर्की में भी यह कम सांधता में पाया जाता है पर इमू तेल में यह बहुत संख्या में होने से अति प्रभावशील होता है। इमू तेल सौंदर्य प्रसाधन तथा औषधि उद्योग में बहुत उपयोगी पाया गया है।

इमू तेल के गुण -
सूजन उतारने वाला ,नमी उत्पन्न करने वाली,कोल्सट््राल कम करने वाला ,जीवाणु रोधक,त्वचा मेें प्रवेश की क्षमता रखने वाली,बहरी चमड़ी निखारने वाला,घाव भरने वाला,दाग मिटाने वाली,जलने पर घाव भरने एवं दर्द कम करने वाला,जोड़ों के दर्द को दूर करने वाला,उन्नत पायसीकरण ,इमू तेल त्वचा से जल्दी प्रवेश हो जाने के कारण त्वचा आईंटमेट एवं सौन्दर्य प्रसाधन उत्पाद बनाने के काम आता है । अनुसंधान से पता चला है कि जोड़ों की यह अचूक दवा है । तथा अच्छी दर्द निवारक दवा सिद्ध हुई है ।

इमू मांस - 
निम्न कोलस्टाल एवं  उच्च कोटि के प्रोटीन युक्त इमू मीट स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है । अगर हम लाल मीट (भेड़/गाय,भैंस) से इसकी तुलना करे तो यह बहुत ही पौष्टिक होता है । शरीर से वसा तथा सूजन को कम करने वाला । इमू तेल 4 से 5 सेकण्ड में हड्डियों तक पहुंच जाता है । इमू तेल खून के कोल्टाल को कम करता है । इमू पक्षी के शरीर के प्रत्येक भाग का व्यवसायिक उपयोग किया जाता है ।  इमू का मांस (मीट) 95 से 98 प्रतिशत वसामुक्त होता है । इमू के मांस में अधिकतम प्रोटीन होती है । इसमे बहुतायत में लौह तत्व तथा विटामिन बी-12 पाया जाता है । हृदय रोगियों के लिए इमू का मांस बहुत गुणकारी सिद्ध हुआ है । कम वसा के कारण आसानी से पच जाता है, यह स्वादिष्ट होता है इसलिए यह बकरे एवं मुगें के मांस के बदले खाया जा सकता है । प्रत्येक इमू पक्षी से लगभग 25 किलो मीट मिल जाता है ।

इमू चमड़ा - 
इमू की त्वचा बहुत नरम एवं चिकनी होती है । विदेशी चमड़ा उद्योग में इसकी बहुत मांग है  जो फैशन वाली चीजों को बनाने में होती है विभिन्न प्रकार की वस्तुएं इससे बनाई जा सकती है पूर्ण वयस्क इमू से 6-8 वर्ग फीट चमड़ा प्राप्त हो जाता है ।

ईमू   पंख - 
इमू के पंख नम, आकर्षण एवं छूने से वालवेट का एहसास करवाते है । वे नरम हल्के और नाॅन एलर्जिक होतें है। उनकी मांग फैसन कला तथा क्राफ्ट उद्योग में बनी रहती है । उस्ट बनाने, पंखे, वोबल, मास्क् मेंट के पेन्ट करने से पहले चमकाने ठण्ड से बचने के ऐपन, तकीये,बलेजर, स्वेप्ट,ज्वैलरी क्फार्ट आइटम बनाने के काम आते है । इमू एक गहरे  सफेद रंग का सामाजिक पक्षी है । ये समूह में रहना पसंद करते है तथा किसी भी बातावरण जैसे 0 डिग्री से 52 संेटीग्रेड तापमान में रह सकते है । ये पक्षी दोनों शाकाहारी एवं मांसाहारी होते है जो पत्तियों हरे टहनिया फल कीड़े, पत्ते इत्यादि खा लेते है ये मुर्गी दाना दिया जा सकता है । उन्हें महाराष्ट् गर्वेटमेट तथा चीफ कजेने द्वारा इसे विदेशी पक्षी कहा गया है तथा इसे विल्डिफ कन्जर्वेट से दूर रखा गया है । भारत में इमू संगठन स्थापित है दो देश स्तर पर इमू फार्म का माम कर रहे हैं दो राज्य स्तर (महाराष्ट)पर काम कर रहें है ।

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