गांठ गोभी को देश में कई नामों से जाता है। इसकी खेती काश्मीर, बंगाल, महाराष्ट्र आसाम, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में की जाती है। गांठ गोभी का गोभी वर्गीय सब्जियों में महत्त्वपूर्ण सब्जी है, परन्तु काफी कम क्षेत्र में इसकी खेती हो रही है। देश के पहाड़ी क्षेत्रों की लोकप्रिय सब्जी है, क्योंकि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी इसका खेती सम्भव है। किसान बन्धु वैज्ञानिक तकनीक से इसकी खेती कर के इसके अच्छी गुणवता के फल और अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते है। इस लेख में गांठ गोभी की उन्नत खेती कैसे करें एवं इसकी किस्मों, देखभाल और पैदावार की जानकारी का उल्लेख किया गया है।
वानस्पतिक नाम : brassica oleracea L. caulorapa
प्रचलित नाम : गाँठगोभी को हमारे देश में नालखाल,कंटीगोवी जैसे प्रचलित नामों से जाना जाता है ।
जन्मस्थान व उद्भव : गांठगोभी का उद्भव स्थान उत्तरी यूरोप माना जाता है ।
गाँठगोभी की सब्जी की सब्जी फूलगोभी व पातगोभी के मुकाबले अधिक लोकप्रिय नहीं है । इसकी सब्जी का स्वाद शलजम के जैसे होता है । अधिकतर किसान भाई इसे सब्ज़ी का उपयोग जानवरों के चारे के रूप में करते हैं ।
गाँठगोभी की उन्नत किस्में :
अगेती उन्नत किस्में : व्हाइट वियना,अर्ली एस्ट व्हाइट,
पछेती उन्नत किस्में : पर्पिल वियना,ग्रीन वियना,येलो वियना,
जलवायु व तापमान :
गाँठगोभी का पौधा ठंडे जलवायु का पौधा है । इसकी खेती उत्तर भारत के मैदानी भागों में शरद ऋतु में की जाती है ।पौधे की उचित बढ़वार व विकास के लिए 15 से 20 ०C तापमान उपयुक्त रहता है ।
भूमि का चयन :
गांठगोभी की खेती के लिए भूमि उचित जल निकास वाली दोमट मिटटी अच्छी होती है । एक सर्वे के मुताबिक़ बलुई दोमट की अपेक्षा मृतिका दोमट में गाँठगोभी की उपज अधिक प्राप्त की गयी है ।
गाँठगोभी की खेती के लिए भूमि की तैयारी :
पातगोभी की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए सबसे आवश्यक कारक है भूमि की तैयारी, 20 सेंटीमीटर गहराई से मिटटी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए । खेत में देशी हल से जुताई करने के साथ-साथ पटेला चलाकर भूमि ढेला रहित करते हुएम समतल भी करते रहना चाहिए । फूलगोभी की फसल हेतु देशी हल से जुताई करना पर्याप्त होता है ।
बुवाई का समय –
अगेती किस्मों के लिए : अगस्त से सितम्बर माह तक
पछेती किस्मों के लिए : सितम्बर – अक्टूबर
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए : मई-जून (सब्जी के लिए)
बीज की मात्रा :
अगेती किस्मों के लिए : 1.2 से 1.5 किलोग्राम/हेक्टेयर
पछेती किस्मों के लिए : 900 ग्राम से 1.0 किलोग्राम/हेक्टेयर
गाँठगोभी की पौध तैयार करना :
किसान भाईयों गाँठगोभी की पौध तैयार करने के लिए सर्वप्रथम अच्छी भूमि का चुनाव करना चाहिए । पातगोभी की पौध के लिए पर्याप्त जल निकास वाली उपजाऊ दोमट भूमि उपयुक्त रहती है । किसान भाई यदि एक हेक्टेयर में पातगोभी की खेती करना चाहते हैं तो 125 वर्ग मीटर में तैयार की गयी पौध पर्याप्त होगी । सबसे पहले भूमि को पाटा चलाकर समतल लें ।इसके बाद 5 मीटर लम्बी 1.2 मीटर चौड़ी क्यारियां बना लें । ध्यान रहें क्यारियां जमीन से करीब 15 सेंटीमीटर ऊँची होनी चाहिए ।पौध में सिंचाई अथवा बारिश का अनावश्यक पानी न रुके, इसके लिए 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बना लें ।गाँठगोभी की पौध की 8 सेंटीमीटर ऊपरी सतह पर कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद सड़ी-गली पत्तियों से तैयार खाद कम्पोस्ट मिलाना चाहिए । खाद मिलाने के बाद पाटा चलाकर क्यारी को समतल कर लें ।
गाँठगोभी के नर्सरी हेतु बीजशोधन –
पौध को रोगों से बचाने के लिए केप्टान अथवा थायरम की 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की मात्रा की दर से उपचारित कर लेना चाहिए । किसान भाई उपचारित बीज को क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दूरी तथा एक सेंटीमीटर के अंतर पर तथा करीब 1.50 सेंटीमीटर की गहराई में बुवाई करें । बीजों की बुवाई के पश्चात मिटटी के मिश्रण और सड़ी-गली गोबर की खाद का 1:1 के अनुपात में मिश्रण बनाकर क्यारियों को ढक दें । बीजों के सही जमाव हेतु उचित तापमान व नमी अति आवश्यक होती है । इसके लिए क्यारियों को पुआल अथवा गन्ने की सूखी पत्तियों व सूखी घास से ढक दें ।किसान भाई क्यारियों में हजारे की सहायता से पानी दें । जैसे बीजों का अंकुरण अच्छी तरह हो जाये । तो घास की परत हटा दें,अगर ऐसा लगे की गाँठगोभी की पौध में पत्तियां पीली व पौधे लग रहे हों । तो 5 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर क्यारियों में छिडकाव करें । पौध को कीटों से बचाव हेतु 0.2% इंडोसल्फान 35 E.C. का घोल बनाकर हजारे से छिडकाव करें । पौध को वर्षा व धूप से बचाने के लिए क्यारियों के ऊपर पोलीथीन की चादर अथवा घास या फिर छप्पर से ढक देना चाहिए । गाँठगोभी के पौधे रोपाई हेतु 25 से 30 दिन में तैयार हो जाते हैं ।
पौध अन्तरण व दूरी :
25-30*20 सेंटीमीटर
गाँठगोभी के पौध की रोपाई-
सर्वप्रथम खेत को अच्छी प्रकार से तैयार करना चाहिए । आवश्यकता के अनुसार लम्बाई व चौड़ाई में क्यारियाँ बना लेना चाहिए । 3 से 4 सप्ताह बाद जैसे की पौधे लगभग 10 सेंटीमीटर ऊँचे हो जाये । नर्सरी से सावधानी पूर्वक उखाड़कर शाम के समय रोपाई कर देनी चाहिए । पौधों से पौधों के मध्य 25-30 सेंटीमीटर तथा लाइन से लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए । केवल स्वस्थ पौधे की रोपाई के लिए प्रयोग में लाना चाहिये । कमजोर व रोगी पौधे फेक देना चाहिए । रोपे के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए । जिससे पौध की जड़ें जमीन को जल्दी पकड़ लें ।
खाद व उर्वरक :
गाँठगोभी की रोपाई से पहले खेत तैयार करते समय 200-250 कुंतल/हेक्टेयर की दर गोबर की खाद को भूमि में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए । खेत में सदैव मृदा परीक्षण के पश्चात् ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए । किन्ही कारणों से यदि मृदा परीक्षण न हो पाए तो –
- नाइट्रोजन : 100 किलोग्राम/हेक्टेयर
- फॉस्फोरस ; 50 किलोग्राम/हेक्टेयर
- पोटॉस : 80 किलोग्राम/हेक्टेयर
- की दर से प्रयोग करना चाहिए/
नाइट्रोजन की 60 किलोग्राम मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटॉस की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए । शेष नाइट्रोजन की 40 किलोग्राम को रोपाई के एक माह बाद टॉपड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए । बोरोन की कमी होने पर 0.3% का छिडकाव करना चाहिए ।
सिचाई व जल प्रबन्धन :
गाँठगोभी के बढ़वार व विकास हेतु जमीन में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है । इसके लिए फसल पर 15 – से 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिये । सिंचाई के बाद खेत में अनावश्यक पानी जल निकास द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए,गाँठगोभी की सफल खेती के लिए उचित जल प्रबन्धन बेहद आवश्यक है ।
खरपतवार नियंत्रण :
गाँठगोभी की फसल पर रोपाई के कुछ दिन बाद ही खरपतवार उग आते हैं । ये खतपतवार अधिकतर एक वर्षीय आयुकाल वाले होते हैं । जिसमें – बथुवा,प्याजी,जंगली गाजर,हिरनखुरी,चटरी-मटरी,आदि मुख्य है । इन्हें खुरपी से निराई कर अथवा हैण्ड हो की मदद से निकाल देना चाहिए । आमतौर पर 2 से 3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है ।गाँठगोभी की जड़ें उथली रहती रहती हैं । इसलिए निराई करते समय उन पर मिटटी चढ़ाते रहना चाहिए । जिससे जड़ें जमीन में मजबूती से टिकी रहें ।
गाँठगोभी की उन्नत खेती हेतु फ़सल पर अधिक खरपतवार होने पर बेसालिन 1 किलोग्राम सक्रीय अवयव प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर रोपाई से पहले मिटटी में छिडकाव करें । फूलगोभी की फसल पर अधिक खरपतवार होने पर टोक ई-25 की 5लीटर/प्रति हेक्टेयर की दर 625 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करें,दवा से असर से लगभग 45 दिन तक खरपतवार नही उगते,इसके बाद उगे खरपतवारों को निराई कर फसल से हटा देना चाहिए ।
रोग व रोग नियंत्रण :
डैम्पिग ऑफ
लक्षण व कारण : यह नर्सरी में लगने वाला फंफूद जनित रोग है,जड़ तथा तने सड़ने लगते हैं । पौधे गिरकर मर जात्ते हैं ।
उपचार : बीजों को केप्टान/थायराम की 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए । अथवा ब्रेसिकाल की 0.2% मात्रा से बुवाई से पूर्व नर्सरी की सिंचाई कर देनी चाहिए ।
काला विगलन
लक्षण व कारण : यह जीवाणुजनित रोग पत्तियों के किनारों पर V आकार में दिखता है । धीरे-धीरे शिरायें काली व भूरी हो जाती हैं ।अंतत: पत्तियाँ मुरझाकर पीली पड़कर गिर जाती है ।
उपचार : बीजों को बोने से पहले 50 C पर आधे घंटे के लिए गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए । रोगी पौधे के मलवे को उखाड़कर जला देना चाहिये ताकि संक्रमण अधिक न हो ।
पत्ती का धब्बा रोग
लक्षण व कारण : फफूंदजनित रोग है,पत्तियों पर गहरे रंग के छोटे-छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं ।
उपचार : रोगी पौधों को उखाड़कर जला दें ।साथ ही इंडोफिल M-45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 पानी में घोलकर छिड़काव करें ।
लालामी रोग :
लक्षण व कारण : यह बोरान की कमी से होने वाला रोग हैं ।गाँठगोभी की उन्नत खेती में यह रोग बड़ा प्रभाव डालता है । इसमें फूल का रंग कत्थई हो जाता है फूलों के बीच-बीच में डंठल व पत्तियों पर काले काले धब्बे बन जाते हैं,धीरे-धीरे पौधे अविकसित हो जाते हैं और डंठल खोखले हो जाते हैं ।
उपचार : इस रोग से बचाव के लिए 0.3% बोरेक्स के घोल का छिडकाव करें ।
काली मेखला
लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है,इसका प्रभाव नर्सरी में ही बुवाई के 15-20 दिनों में दिखाई देने लगता है। पत्तियों पर धब्बे,तथा बीच का भाग राख जैसा धूसर हो जाता है,फूलों के बड़े होने पर रोगी पौधे गिर जाते हैं ।
उपचार : फसल चक्र नेब तीन साल के लिए बदलाव कर सरसों कुल के पौधों को मही बोना चाहिए । साथ ही बीजों को बुवाई से पहले 50०C पर आधे घंटे तक गर्म पानी में उपचारित करना चाहिए ।
काला तार
लक्षण व कारण : यह फंफूद जनित रोग है ।तना तारकोल का काला पड़ जाता है ।
उपचार व बचाव : पौधों के रोपने के 10 से 15 दिन के अंतर पर ब्रेसिकाल 0.2% मात्रा को घोल बनाकर छिड़काव कर बचाव कर सकते हैं ।
कीट नियंत्रण :
माहू :
आकाश में बादल छाने व मौसम नम होने पर माहू के छोटे-छोटे पौधों का प्रकोप बढ़ जाता है। ये फसल को कमजोर कर देते हैं ।
पत्तियों में जाला बुनने वाला कीट : एक प्रकार की हरे रंग की सुंडी होती है । जो पत्तियों में जाला बुनकर हानि पहुचाती है ।
गोभी की तितली :
इस तितली को सूंडी पौधे की पत्तियों,कोपलों व पौधे के ऊपरी भाग को खाती है ।
उपचार व रोकथाम : उक्त तीनों के कीटों के रोकथाम हेतु नुवान 0.05% (0.5 मिलीलीटर/लीटर पानी) का घोल बनाकर छिडकाव करें ।
फ्ली बीटल :
इस कीट का प्रकोप पौधे छोटी अवस्था में होता है । मुलायम पत्तियों पर छेड़ बनाकर,ये कीट उसे खत्म कर देते हैं ।
आरा मक्खी :
20 सेंटीमीटर शरीर पर पांच धारियों वाली इस कीट की सूंडी फूलगोभी के मुलायम पत्तियों को फसल को नुकसान पहुचाती हैं,
डायमंड बैक मोथ :
इसका प्रकोप फसल पर अगस्त-सितम्बर के महीने में होता है । इसकी सूंडी पौधे की पत्तियों को खाती हैं ।छेद बनाकर पत्तियां खाने से पत्तियों में सिर्फ नसें की बचती हैं ।
बंदगोभी की सूंडी :
इस सूंडी का प्रकोप पत्तियों पर होता है,छोटे-छोटे बच्चे पतियों से भोजन प्राप्त कर बड़े होने पर पूरी पत्ती को ही खा जाते हैं ।
उपचार व रोकथाम : उक्त कीटों से बचाव हेतु सेविन 10% धूल का 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए।
पातगोभी की कटाई
जब पातगोभी के हेड यानि सिरों का आकार बड़ा सुडौल,व ठोस तथा अन्दर का गूदा मुलायम हो । तभी पातगोभी की फसल की कटाई करना चाहिए । पातगोभी की कटाई विलम्ब से करने से या तो हेड फट जाते हैं । या फिर गूदा मुलायम हो जाता है ।
उपज :
अगेती किस्मों की उपज : 150-200 कुंतल/प्रति हेक्टेयर
पछेती किस्मों उपज : 200-250 कुंतल/प्रति हेक्टेयर


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