नई दिल्ली। झारखंड विधानसभा परिसर में नमाज अदा करने के लिए अलग कमरा आवंटित किए जाने पर घमासान मचा है। नमाज कक्ष आवंटित करने पर विपक्ष में बैठी भाजपा भी अब विधानसभा परिसर में मंदिर के लिए जगह देने की मांग कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि संसद या विधानसभा परिसर में किसी धार्मिक गतिविधि को इजाजत देना क्या संविधान सम्मत है। विशेषज्ञों की मानें तो विधानसभा में धार्मिक गतिविधि या धार्मिक निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती। जानें इस मसले पर क्या है कानून विशेषज्ञों की राय...
यह संविधान के खिलाफ
विशेषज्ञों का कहना है कि संसद और विधानसभा संविधान के तहत राज्य की परिभाषा में आते हैं। संविधान के मुताबिक, राज्य पंथनिरपेक्ष है। ऐसे में विधानसभा परिसर में नमाज कक्ष संविधान के खिलाफ है। झारखंड विधानसभा स्पीकर की ओर से जारी दो सितंबर, 2021 के आदेश के मुताबिक, नए विधानसभा भवन में कमरा नंबर 348 को नमाज अदा करने के लिए नमाज कक्ष के रूप में आवंटित किया गया है।
लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल की राय
विधानसभा पब्लिक बिल्डिंग है जो विधानसभा अध्यक्ष के तहत आती है। वहां कोई भी काम विधानसभा अध्यक्ष के आदेश से ही होता है। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नमाज अदा करने के लिए नमाज कक्ष आवंटित करने को लोकसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल पीडीटी आचारी असंवैधानिक मानते हैं।
विधानसभा एक सेक्युलर बाडी
पीडीटी आचारी कहते हैं कि उन्होंने ऐसा पहले कभी देखा, सुना नहीं। विधानसभा एक सेक्युलर बाडी (पंथनिरपेक्ष संस्था) है। उसका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है। उसमें धार्मिक गतिविधि की बाडी नहीं होनी चाहिए। भारत पंथनिरपेक्ष राष्ट्र है। राष्ट्र का कोई धर्म नहीं होता। पाकिस्तान इस्लामिक स्टेट है। वहां ऐसा हो सकता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं हो सकता। यहां किसी धार्मिक गतिविधि की इजाजत नहीं दी जा सकती।
यह असंवैधानिक
राज्यसभा के पूर्व सेक्रेट्री जनरल योगेन्द्र नारायण भी कहते हैं कि यह असंवैधानिक है। विधानसभा पंथनिरपेक्ष है और वह पब्लिक बिल्डिंग है। पब्लिक बिल्डिंग के अंदर कोई रिलीजियस स्ट्रक्चर की इजाजत नहीं है।
नमाज कक्ष आवंटित करना अनुचित
संविधान विशेषज्ञ और लंबे समय तक लोकसभा में सेक्रेट्री जनरल रहे सुभाष कश्यप का भी मानना है कि झारखंड विधानसभा में नमाज के लिए नमाज कक्ष आवंटित करना अनुचित और औचित्य के विरुद्ध है। यह संविधान की भावना के खिलाफ है। उन्हें पूर्व की ऐसी कोई घटना याद नहीं है। हालांकि वह मानते हैं कि ऐसा करना स्पीकर और सदन के क्षेत्राधिकार में आता है, लेकिन साथ ही कहते हैं कि सदन स्पीकर से ऊपर होता है और सदन चाहे तो स्पीकर का आदेश खारिज कर सकता है।
अदालतों को सुनवाई का अधिकार
स्पीकर के क्षेत्राधिकार पर वरिष्ठ वकील और पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी कहते हैं कि स्पीकर भी संविधान के हिसाब से ही काम करेगा। वह मनमानी नहीं कर सकता। वह संविधान से बंधा होता है और संविधान के दायरे में रह कर ही काम करेगा। नमाज कक्ष आवंटित करने पर रोहतगी का कहना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने से दूसरे वर्ग भी इसी तरह की मांग रखेंगे। इस मामले में दखल देने के कोर्ट के क्षेत्राधिकार पर वह कहते हैं कि वैसे तो इस तरह के मामले कोर्ट-कचहरी में नही जाने चाहिए, लेकिन अगर मामला कोर्ट में जाता है तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को उस पर सुनवाई करने का अधिकार है।
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