18वीं सदी के मध्य में ब्रिटेन के देश स्कॉटलैंड में एक प्रसिद्ध इंजीनियर का जन्म हुआ था, जिसने एक आधुनिक भांप इंजन का निर्माण कर पूरी दुनिया में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की थी। लेकिन क्या आपको पता है उस steam engine ka avishkar kisne kiya था? तो बता दे, उस पहले भाप इंजन का निर्माण इंजीनियर जेम्स वाॅट (James Watt) ने सन् 1776 में किया था।
आगे चलकर उस स्टीम इंजन का उपयोग पूरी दुनिया के उद्योगों में मशिनों को चलाने के लिए किया गया, जिससे उनकी कार्यक्षमता और उत्पादन शक्ति बढ़ गई। सन् 1825 में ट्रेन का आविष्कार भी इसी खोज के कारण संभव हो पाया। भाप इंजन के निर्माण की उपलब्धि इतनी महत्वपूर्ण थी कि आज उसे पूरे विश्व में अति प्रभावशाली आविष्कारों में से एक माना जाता है।
भाप इंजन का कार्यसिद्धांत-
ऊष्मा इंजन की अधिकतम दक्षता (T1-T2)/T1 होती है जिसमें T1 और T2 ऊष्मा इंजन चक्र (heat engine cycle) में अधिकतम एवं न्यूनतम ताप हैं। इससे पता चलता है कि इंजन की दक्षता इन दोनों तापों पर निर्भर करती है। भांप इंजन की दक्षता उतनी ही बढ़ती जाएगी जितनी (T1) का मूल्य बढ़ेगा एवं (T2) का मूल्य घटेगा। (T1) के मूल्य को बढ़ाने के लिए बायलर से निकल कर इंजन में आनेवाली भाप की दाब को बढ़ाना होगा, क्योंकि भाप की दाब जितनी ही अधिक होगी (T1) का मूल्य उतना ही बढ़ेगा। (T1) को बढ़ाने का एक और उपाय है। वह है भाप को अतितापित (superheat) करना। अतितापक का बॉयलर में व्यवहार करके भाप का अधिताप बढ़ाया जाता है। (T2) के मान को कम करने के लिए संघनित्र (condenser) का व्यवहार करना आवश्यक हो जाता है। संघनित्र में ठंढे जल द्वारा भाप जल में परिवर्तित की जाती है। अत: अच्छे संघनित्र में (T2) का मान ठंढे जल के ताप के बराबर हो सकता है। इससे पता चलता है कि भाप इंजन में अधिक दाब एवं अतितप्त भाप द्वारा कार्य कराने से एवं कार्य कराने के बाद भाप को संघनित्र में प्राप्य ठंढे जल के ताप के बराबर ताप पर जल में परिवर्तित करने से इंजन अधिक दक्ष होगा।
बॉयलर से भाप उच्च दाब पर भापपेटी (steam chest) में प्रवेश करती है। पिस्टन जैसे ही स्ट्रोक (stroke) के अंत में पहुँचता है, उसी समय वाल्व चलता है, जिसमें भापद्वार (steam port) खुल जाता है एवं भाप सिलिंडर में प्रवेश करती है। भाप की दाब द्वारा धक्का दिए जाने से पिस्टन आगे बढ़ता हे। इसे अग्र स्ट्रोक (forward stroke) कहते हैं। पिस्टन की चाल द्वारा क्रैंक, क्रैंक शाफ्ट एवं उत्केंद्रक (eccentric) चलते हैं। उत्केंद्रक के चलने से द्वार कुछ और अधिक खुल जाता है। सिलिंडर में भाप तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक द्वार एकदम बंद नहीं हो जाता। इस समय विच्छेद (cut off) होता है एवं इसके बाद सिलिंडर में भाप का संभरण (supply) नही हो पाता। सिलिंडर में आई हुई भाप अब प्रसारित होती है एवं इस प्रसार में भाप का आयतन बढ़ जाता है एवं दाब कम हो जाती है। इसी प्रकार के समय भाप कार्य करती है। अग्र स्ट्रोक के अंत में वाल्व भापद्वार को निकास की ओर खोल देता है, जिससे भाप निर्मुक्त होती है। निकली हुई भाप की दाब पश्च दाब (back pressure) के बराबर हो जाती है। निर्मोचन होने के कुछ क्षण के बाद पिस्टन पीछे की ओर लौटता है एवं इसे प्रत्यावर्तन स्ट्रोक (return stroke) कहते हैं। इस स्ट्रोक में लौटते समय पिस्टन सिलिंडर में बची हुई भाप का निकास करता जाता है। जब पिस्टन इस स्ट्रोक के अंत पर पहुँचता है, वाल्व निकास द्वार को बंद कर देता है, जिससे भाप का प्रवाह बंद हो जाता है। सिलिंडर शीर्ष और पिस्टन के बीच कुछ भाप बच जाती है, जो निर्मुक्त नहीं हो पाती है। फिर चक्र की पुनरावृत्ति होती है। द्विक्रिया इंजन में इसी से सदृश चक्र की क्रिया सिलिंडर की दूसरी ओर होती है।
जेम्स वाॅट और स्टीम इंजन का आविष्कार
जेम्स वाॅट का जन्म स्कॉटलैंड के ग्रीनॉक नामक शहर में सन् 1736 में हुआ था। जेम्स वाॅट अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके पिता जेम्स वाॅट सीनियर जहाज के कप्तान थे तथा साथ-साथ जहाज बनाने का काम भी किया करते थे।
जेम्स वाॅट बचपन में बहुत बीमार रहा करते, जिस कारण वे स्कूल नहीं जा पाते थे। इसलिए उनकी ज्यादातर प्रारम्भिक शिक्षा उनके माता-पिता द्वारा घर पर ही प्रदान की गई। हालांकि, वे कुछ वर्षों के लिए स्थानीय विद्यालय ग्रीनाॅक ग्रामर स्कूल में भी गये। बचपन से जेम्स का झुकाव गणित एवं विज्ञान की तरफ अधिक था, जिसे उनके परिवारजन भी अच्छी तरह समझते थे तथा इस क्षेत्र में कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
जेम्स जब 18 साल के थे तो उनकी माता एग्रेस मुइरहेड की मृत्यु हो गई एवं उनके पिता का स्वास्थ्य भी खराब होने लगा। उसी दौरान उन्होंने लंदन जाकर कोई नौकरी करने का निर्णय किया। लंदन में उन्होंने लगभग एक वर्ष तक उपकरण बनाने का प्रशिक्षण लिया और फिर ग्लासगो लौटकर गणितीय उपकरणों को बनाने की एक कार्यशाल खोल ली। लेकिन मैकेनिक का सात वर्षों का जरूरी अप्रेंटिसशिप न होने के कारण स्थानीय यूनियन के दबाव में विवश होकर उन्हें अपना व्यवसाय जल्द ही बंद करना पड़ा।
सौभाग्य से ग्लासगो विश्वविद्यालय ने जेम्स वाॅट के उपकरण बनाने एवं मरम्मत करने की कुशलता के बारे में सुना तो उन्हें तुरन्त नौकरी पर रख लिया। ग्लासगो विश्वविद्यालय में बहुत सारे खगोलीय टेलीस्कोप एवं गणितीय उपकरण थे, जिन्हें बार-बार मरम्मत की जरूरत पड़ती थी। जेम्स उन उपकरणों को ठीक किया करते तथा कई बार उन उपकरणों के और अच्छी तरह से इस्तेमाल के लिए उनमें कई सुधार भी करते।
सन् 1757 में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों के अनुरोध पर जेम्स ने विश्वविद्यालय के अंदर ही एक छोटी सी कार्यशाला खोल ली। तब उस विश्वविद्यालय के दो चर्चित प्रोफेसरों – राजनैतिक अर्थशास्त्री Adam Smith और कार्बन-डाइऑक्साइड गैस के खोजकर्ता Joseph Black से उनकी दोस्ती हो गई। वे दोनों प्रोफेसर जीवन भर उनके मित्र बन रहे तथा उनके कई महत्वपूर्ण कार्यों का मार्गदर्शन भी किया।
सन् 1759 में जेम्स वाॅट के मित्र और ब्रिटिश भौतिकविद् जाॅन राॅबिसन ने उनका ध्यान चालन शक्ति के स्रोत के रूप में भाप के उपयोग पर आकर्षित किया। उस समय तक पूरे ब्रिटेन में केवल एक ही प्रकार का स्टीम इंजन था, जिसका प्रयोग पिछले 50 सालों से खादानों से पानी निकालने के लिए किया जा रहा था। उस भाप इंजन को अंग्रेज आविष्कारक थॉमस न्यूकमेन ने सन् 1712 में बनाया था, जो बहुत अधिक कारगर नहीं था।
इसी बीच जेम्स वाॅट को एक खराब न्यूकेमन भाप इंजन को ठीक करने का काम मिल गया। उस इंजन की मरम्मत करते हुए उन्होंने पाया कि इंजन के पिस्टन को चलाने के लिए भाप की मात्र तीन चौथाई ऊर्जा ही उपयोग हो रही थी। यह एक प्रकार से भाप की शक्ति की बर्बादी थी, क्योंकि इस तरह से इंजन अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहा था।
सन् 1765 के मई माह में उन्होंने स्टीम इंजन की समस्या का समाधान निकाल लिया। जेम्स ने भाप के इंजन का एक नया मॉडल बनाया, जिसमें पिस्टन के साथ संघनित भाप को अलग चैंबर में इक्कठा किया। उन्होंने सोचा कि इस तरीके से सिलेंडर के तापमान को बनाए रखा जा सकता है, जिसके बाद उसे हर बार गरम करने की जरूरत नहीं होगी। जिसका मतलब यह था कि अब भाप की शक्ति का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता था।
पूरा इंजन बनाने के लिए जेम्स को पैसों की जरूरत थी, जिसमें उनकी मदद की इंग्लैंड के सोहो कारखाने के मालिक Matthew Boulton ने। Boulton की मदद से जेम्स की पैसों संबंधी समस्या खत्म हो गई। आगे बुल्टन तथा जेम्स वाॅट ने मिलकर लगभग 25 वर्षों तक खादानों से पानी निकालने वाले अधिक कार्यक्षमता के कई भाप इंजनों का निर्माण किया।
लंबे समय के कारोबार के बाद जेम्स वाॅट का ध्यान पिस्टन की प्रत्यागमनी गति को चक्रीय शक्ति में बदलने की ओर गया। जिससे भांप की शक्ति का उपयोग अन्य क्षेत्रों में भी किया जा सके। जैसे- अनाज की पिसाई, कताई, बुनाई आदि में।
जेम्स वाॅट इस समय तक सिर्फ इंग्लैंड में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुके थे। फिर भी वे भांप इंजन में आगे कई सुधार करते रहे। भाप इंजन के अलावा उन्होंने एक ऐसी मशीन बनाई थी जिसकी सहायता से कोई भी चित्रों और अक्षरों को दूसरे कागज पर नकल कर सकता था। इसे दुनिया नकल करने वाली मशीन का सबसे पुराना रूप माना जाता है।
83 वर्ष की आयु में 25 अगस्त, 1819 को जेम्स वाट की मृत्यु हो गई।
भाप की शक्ति के जिज्ञासु जेम्स वाॅट एक दूरदर्शी व्यक्ति थे और सौभाग्यवश वे अपने स्वप्नों को साकार करना जानते थे। उनके समस्त कौशल उन्हें अचानक प्राप्त नहीं हुए थे, यद्यपि वे नियमित तौर पर किसी विद्यालय में कभी नहीं गए। उन्होंने अपने समस्त कौशल लगन, कठोर परिश्रम एवं प्रतिबद्धता एवं मशीनों के प्रति निहित प्रेम के कारण प्राप्त किया था।
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