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जाने क्या रामायण काल में भी होते थे मोबाइल?

 
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आपको यह सुनकर संभवत: विश्वास न हो लेकिन इस पर विचार किए जाने में कोई बुराई नहीं है। दरअसल, भारत के लोगों ने दूसरों के कहने पर अपने इतिहास को मिथक ही मान लिया है। उस पर कभी वृहत्तर रूप में शोध नहीं किया। प्राचीन इतिहास के प्रमाण कभी नहीं ढूंढ गए। आजादी के बाद तो देश को धूल-मिट्टी में मिला दिया गया। खैर...

कुछ शोधकर्ता मानते हैं कि लंका में दूरसंचार यंत्रों का भी निर्माण होता था जिसे आजकल 'दूरभाष' या 'टेलीफोन' कहते हैं। अब तो मोबाइल है तो क्या रामायण काल में भी मोबाइल होते थे?

माना जाता है कि दूरभाष की तरह उस युग में 'दूर नियंत्रण यंत्र' था जिसे 'मधुमक्‍खी' कहा जाता था। जब इससे वार्ता की जाती थी तो वार्ता से पूर्व इससे भिन्न-भिन्न प्रकार की ध्‍वनि प्रकट होती थी। संभवत: इसी ध्‍वनि प्रस्‍फुटन के कारण इस यंत्र का नामकरण 'मधुमक्‍खी' किया गया होगा। ये यंत्र राजपरिवार के लोगों के पास रहते थे और इसके बल पर वे दूर से दूर बैठे लोंगे से बात कर लेते थे। यह बेतार प्रणाली थी।

शोधानुसार वि‍भीषण को लंका से निष्काषित कर दिया था, तब वह लंका से प्रयाण करते समय मधुमक्‍खी और दर्पण यंत्रों के अलावा अपने 4 विश्‍वसनीय मंत्री अनल, पनस, संपाती और प्रभाती को भी राम की शरण में ले गया था। राम की हित-पूर्ति के लिए रावण के विरुद्ध इन यंत्रों का उपयोग भी किया गया था।

लंका के 10,000 सैनिकों के पास 'त्रिशूल' नाम के यंत्र थे, जो दूर-दूर तक संदेश का आदान-प्रदान करते थे। संभवत: ये त्रिशूल वायरलैस ही होंगे। इसके अलावा दर्पण यंत्र भी था, जो अंधकार में प्रकाश का आभास प्रकट करता था। लड़ाकू विमानों को नष्‍ट करने के लिए रावण के पास भस्‍मलोचन जैसा वैज्ञानिक था जिसने एक विशाल 'दर्पण यंत्र' का निर्माण किया था। इससे प्रकाश पुंज वायुयान पर छोड़ने से यान आकाश में ही नष्‍ट हो जाते थे। लंका से निष्‍कासित किए जाते वक्‍त विभीषण भी अपने साथ कुछ दर्पण यंत्र ले आया था। इन्‍हीं 'दर्पण यंत्रों' में सुधार कर अग्‍निवेश ने इन यंत्रों को चौखटों पर कसा और इन यंत्रों से लंका के यानों की ओर प्रकाश पुंज फेंका जिससे लंका की यान शक्‍ति नष्‍ट होती चली गई।

एक अन्य प्रकार का भी दर्पण यंत्र था जिसे ग्रंथों में 'त्रिकाल दृष्‍टा' कहा गया है, लेकिन यह यंत्र त्रिकालदृष्‍टा नहीं बल्‍कि दूरदर्शन जैसा कोई यंत्र था। लंका में यांत्रिक सेतु, यांत्रिक कपाट और ऐसे चबूतरे भी थे, जो बटन दबाने से ऊपर-नीचे होते थे। ये चबूतरे संभवत: लिफ्‍ट थे।

संदर्भ ग्रंथ सूची:-
1.वाल्‍मीकि रामायण।
2.रामकथा उत्‍पत्ति और विकास: डॉ. फादर कामिल बुल्‍के।
3.लंकेश्‍वर (उपन्‍यास): मदनमोहन शर्मा ‘शाही'।
4.हिन्‍दी प्रबंध काव्‍य में रावण: डॉ. सु
रेशचंद्र निर्मल।
5.रावण-इतिहास: अशोक कुमार आर्य।
6. प्रमाण तो मिलते हैं: डॉ. ओमकारनाथ श्रीवास्‍तव (लेख) 27 मई 1973।
7. महर्षि भारद्वाज तपस्‍वी के भेष में एयरोनॉटिकल साइंटिस्‍ट (लेख) विचार मीमांसा 31. अक्‍टूबर 2007।
8. विजार्ड आर्ट।
9.चैरियट्‌स गॉड्‌स: ऐरिक फॉन डानिकेन।
10.क्‍या सचमुच देवता धरती पर उतरे थे डॉ. खड्‌ग सिंह वल्‍दिया (लेख) धर्मयुग 27 मई 1973।

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