पोलैण्ड में 19 फरवरी, सन् 1473 ई० को जन्मे निकोलस कोपरनिक्स ऐसे पहले खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे जिन्होंने यह खोजकर कि पृथ्वी अन्तरिक्ष केन्द्र से अलग अरस्तु की अवधारणा को गलत साबित कर दिया था। इससे पहले पूरा यूरोप अरस्तु की इसी अवधारणा पर विश्वास करता था कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र थी और सूर्य, तारे तथा दूसरे पिण्ड उसके चारों ओर चक्कर लगाते थे।
1530 ई० में कोपरनिक्स की किताब डी रिवोलूशन्स (De Revolutions) प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है और एक साल में सूर्य का चक्कर पूरा करती है। कोपरनिक्स ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रूटेनिक टेबिल्स की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफी लोकप्रिय हुई।
खगोलशास्त्री होने के साथ-साथ कोपरनिक्स गणितज्ञ, चिकित्सक, अनुवादक, कलाकार, न्यायाधीश, गवर्नर, सैन्य नेता और अर्थशास्त्री भी थे। उन्होंने मुद्रा पर शोध कर ग्रेशम के प्रसिद्ध नियम को स्थापित किया, जिसके अनुसार खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। उन्होंने मुद्रा के संख्यात्मक सिद्धांत का फार्मूला दिया। कोपरनिक्स के सुझावों ने पोलैंड की सरकार को मुद्रा के स्थायित्व में सहायता प्रदान की ।
कोपरनिक्स के अन्तरिक्ष के बारे में सात नियम, जो उनकी किताब में दर्ज हैं, इस प्रकार हैं -:
- सभी खगोलीय पिंड किसी एक निश्चित केन्द्र के परितः नहीं हैं।
- पृथ्वी का केन्द्र ब्रह्माण्ड का केन्द्र नहीं है; वह केवल गुरुत्व व चंद्रमा का केन्द्र है।
- सभी गोले (आकाशीय पिंड) सूर्य के परितः च
- क्कर लगाते हैं। इस प्रकार सूर्य ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है।
- पृथ्वी की सूर्य से दूरी, पृथ्वी की आकाश की सीमा से दूरी की तुलना में बहुत कम है।
- आकाश में हम जो भी गतियां देखते हैं, वह दरअसल पृथ्वी की गति के कारण होता है।
- जो भी हम सूर्य की गति देखते हैं, वह दरअसल पृथ्वी की गति होती है।
- जो भी ग्रहों की गति हमें दिखाई देती है, उसके पीछे भी पृथ्वी की गति ही जिम्मेदार होती है।
विशेष बात यह है कि कोपरनिक्स ने ये निष्कर्ष बिना किसी प्रकाशिक यंत्र के उपयोग के प्राप्त किए। वह घंटों नंगी आंखों से अन्तरिक्ष को निहारता रहता था और गणितीय गणनाओं द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने की कोशिश करता रहता था। बाद में गैलीलियो ने जब दूरदर्शी का आविष्कार किया तो उसके निष्कर्षों की पुष्टि हुई।
इस महान खगोलशास्त्री का निधन 14 मई, सन् 1543 ई० में हुआ।
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