परमाणु की आंतरिक संरचना वैज्ञानिकों के लिए सदा से ही एक जटिल समस्या रही है। इस गुत्थी को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा अनेक प्रयास किए गए। यद्यपि सन् 1900 में आरम्भ में ही वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया था कि परमाणु के अंदर ऋणात्मक आवेश से युक्त इलेक्ट्रॉन और धनात्मक आवेशित प्रोटॉन होते हैं,
लेकिन इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन का कुल द्रव्यमान (mass) परमाणु के कुल द्रव्यमान से कम बैठता था। इससे उन्हें इस बात का संदेह था कि परमाणु के अन्दर कुछ उदासीन कण भी होने चाहिए। आगे चलकर इसी उदासीन कण की खोज कि गई, जिसे आज हम ‘न्यूट्रॉन’ के नाम से जानते है। लेकिन क्या आपको ज्ञात है Neutron ki khoj kisne ki ? तो हम बता दे इस कण की खोज सन् 1932 में सर जेम्स चैडविक (James Chadwick) नामक ब्रिटेन के भौतिकशास्त्री ने किया था।
उन्होंने अपने प्रयोगों के आधार पर पता लगाया कि परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन नामक उदासीन (neutral) कण होते हैं। इन कणों का द्रव्यमान प्रोटाॅनों के साथ जोड़ने पर समस्त द्रव्यमान परमाणु के बराबर हो जाता है। न्यूट्राॅन के आविष्कार के लिए चैडविक को सन् 1935 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
सर चैडविक और न्यूट्रॉन की खोज
आज परमाणु की संरचना से सम्बन्धित सभी गुत्थियां सुलझ गई हैं। किसी भी एटम के केंद्रीय भाग को नाभिक यानी न्यूक्लस कहा जाता हैं। नाभिक में धनात्मक आवेश वाले प्रोटॉन होते हैं तथा उदासीन कण न्यूट्राॅन होते हैं। परमाणु के नाभिक के चारों तरफ भिन्न-भिन्न कक्षाओं में ऋण आवेशित इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते रहते हैं। प्रोटॉन का द्रव्यमान न्यूट्रॉन से कुछ कम होता है। न्यूट्राॅन कणों की खोज विज्ञान में एक वरदान सिद्ध हुई है। परमाणु बम का निर्माण न्यूट्रॉन के द्वारा ही संभव हो पाया। चूंकि ये कण उदासीन होते हैं, अतः इनके द्वारा नाभिक का विखंडन सम्भव हो पाया।
धीमी गति वाले न्यूट्रॉनों का प्रयोग नाभिकीय विखंडन (fission) में तथा तीव्र गति वाले न्यूट्रॉनों का प्रयोग नाभिकीय विघटन (disintegration) में किया जाता है। चूंकि न्यूट्रॉन आवेशहीन और उच्च ऊर्जा कण हैं, अतः बिना विक्षेपित हुए ही ये धनावेशित नाभिकों में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं और परमाणु के नाभिक को तोड़ देते हैं। इससे ही परमाणु ऊर्जा पैदा करने की विधियां विकसित की गई।
न्यूट्रॉन के आविष्कारक सर चैडविक का जन्म सन् 20 अक्टूबर, 1891 में इंग्लैंड के बाॅलिंगटन (Bollington) नगर में हुआ। इनकी शिक्षा मैनचेस्टर और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में हुई।
सन् 1923 के बाद इन्होंने रदरफोर्ड प्रयोगशाला में तत्वों के रूपान्तरण (transmutation) पर कार्य किया। तत्वों के रूपांतरण के लिए तत्वों के नाभिक पर अल्फा पार्टिकल्स का बौछार किया जाता था, जिसके कारण एक तत्व दूसरे तत्व में परिवर्तित हो जाता था। इन प्रयोगों से सर चैडविक को परमाणु के नाभिक का और विस्तृत रूप से अन्वेषण करने का अवसर मिला। सन् 1927 में इन्हें विश्व में विज्ञान के विकास के लिए समर्पित संस्था Royal Society का फेलो बनाया गया।
सन् 1932 में उन्होंने अन्य वैज्ञानिकों के समक्ष बेरिलियम नामक रासायनिक तत्व को अल्फा कणों से गुजार कर यह प्रमाणित किया कि बेरिलियम से अल्फा कणों के टक्कर जो नए कण निकल रहे हैं, उनका mass प्रोटॉन के mass के लगभग समान ही होता है लेकिन निकलने वाले ये कण उदासीन होते है, इनमें आवेश नहीं होता। बिना आवेश वाले ये कण ही ‘न्यूट्रॉन’ थे। इसके पश्चात उन्होंने न्यूट्रॉन के अन्य विशिष्टताओं की भी खोज की। परमाणु के इस उदासीन कण की खोज के लिए ही सर जेम्स चैडविक को 1935 में भौतिकशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया।
न्यूट्रॉन की खोज के फलस्वरूप ही आज परमाणु तथा न्यूट्रॉन बम जैसे खतरनाक एवं विनाश पूर्ण शस्त्रों का निर्माण तथा प्रयोगशाला में यूरेनियम से भी भारी तत्वों को बना पाना संभव हो पाया हैं। नाभिकीय भौतिकी में इन महत्वपूर्ण योगदानों के लिए उन्हें Royal Society द्वारा 1932 में Hughes Medal, 1950 में Copley Medal तथा 1951 में Franklin Medal प्रदान किया गया।
सर चैडविक ने जर्मनी के भौतिक विज्ञानी हैंस गीगर की निगरानी में बर्लिन में लगभग 4 वर्षों तक अनेक अनुसंधान किये। हैंस गीगर ने Geiger Counter का आविष्कार किया था। इसी यंत्र का प्रयोग करके बाद में परमाणु के नाभिक की खोज की गई थी।
सर जेम्स चैडविक ने चेन रिएक्शन (शृंखला अभिक्रिया) पर भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य किए। इन्हीं नाभिकीय अभिक्रियाओं के कारण परमाणु का विखंडन होता है तथा इसी प्रक्रिया का उपयोग करके आज परमाणु भट्टियों में बिजली का उत्पादन किया जाता है। सबसे पहले समस्थानिकों (Isotopes) का विवरण इन्होंने ने ही प्रस्तुत किया था। समस्थानिकों का प्रयोग आज विश्व भर में अनेक रूपों में किया जा रहा हैं। विभिन्न तत्वों के समस्थानिकों को रोग निदान एवं रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए कोबाल्ट का एक समस्थानिक कैंसर रोग के उपचार में प्रयोग होता है। इन्हें कृषि विज्ञान में काफी ऊंचे पैमाने पर प्रयोग में लाया जा रहा है। इस समय देश में समस्थानिकों का उत्पादन बम्बई का भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र काफी ऊंचे पैमाने पर कर रहा है।
सर चैडविक की मृत्यु 82 साल की उम्र में 24 जुलाई, 1974 में हुई।
Neutrino क्या है?
न्यूट्रिनो एक इलेक्ट्रॉन की तरह के सूक्ष्म कण हैं जिन पर कोई आवेश नहीं होता जिसके कारण इन पर विद्युत एवं चुंबकीय बलों का भी कोई असर नहीं होता। प्रकृति में विद्युत चुंबकीय बलों (Electromagnetic Forces) की एक अत्यंत विशिष्ट भूमिका है। परमाणुओं एवं अणुओं के आकार एवं ठोस पदार्थों की संरचना के लिए यही बल मुख्यतः जिम्मेदार हैं।
रासायनिक क्रियाओं में परमाणु इलेक्ट्रॉनों की अदला-बदली करके अथवा मिल-बाँटकर नए अणुओं का सृजन करते हैं किन्तु न्यूट्रिनो तो ऐसे कण हैं जो किसी पदार्थ से कॉन्टैक्ट ही नहीं करते इसलिए इनकी परमाणु-भौतिकी में कोई भूमिका ही नहीं है।
Neutrino एक विचित्र कण हैं। पदार्थ कणों के साथ कोई काॅन्टैक्ट न होने के कारण पदार्थ की मोटी-से-मोटी परतों को भी वेधते हुए बिना किसी रूकावट के वे गुजर जाते हैं। 130 अरब प्रकाशवर्ष मोटी लोहे की चादर भी उन्हें नहीं रोक सकती।
पहले वैज्ञानिकों की मान्यता थी कि न्यूट्रिनो का द्रव्यमान नहीं होता लेकिन वर्ष 2002 में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में न्यूट्रिनो से सम्बन्धित शोध के लिए नोबेल पुरस्कार के. डेविस एवं मासातोशी कोशिबा को दिया गया। अपने ग्रह के ऊपरी वायुमंडल के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड की सुदूरतम गहराइयों से आए न्यूट्रिनो की पहचान करने की दिशा में उक्त वैज्ञानिकों के सराहनीय कार्य के लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया था। डेविस ने सूर्य से उत्पन्न न्यूट्रिनो तथा कोशिबा ने 1987 के महासुपरनोवा विस्फोट से आए न्यूट्रिनो की पहचान की। इन प्रयोगों से वैज्ञानिकों कि यह अवधारणा कि न्यूट्रिनो द्रव्यमानरहित होते हैं, गलत साबित हुई।
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